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'इंडियन' से '12th फेल' तक : कितना बदला IAS/IPS की कहानी कहने का तरीका?

अगर IAS/IPS बन जाने को एक दीवार मान लें तो पहले की फिल्में दीवार के दूसरी तरफ की कहानी कहती हैं और इस कड़ी में '12th फेल' सबसे ताजा मिसाल है

'इंडियन' से '12th फेल' तक हीरोइज्म का तरीका भी बदला है
'इंडियन' से '12th फेल' तक हीरोइज्म का तरीका भी बदला है
अपडेटेड 1 नवंबर , 2023

12th Fail. आईपीएस अधिकारी मनोज कुमार शर्मा की कहानी पर बनी फिल्म इन दिनों चर्चा में है. मनोज शर्मा की कहानी एक उपन्यास की शक्ल में 12th फेल के नाम से आई थी (लेखक- अनुराग पाठक). जिसे अब निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने पर्दे पर उतारा है. 12th फेल को दर्शकों और क्रिटिक्स की ओर से सराहना मिल रही है.

मनोज शर्मा का किरदार निभा रहे विक्रांत मेसी का ये अब तक का सबसे बेहतरीन काम कहा जा सकता है. इस फिल्म के जरिए दृष्टि IAS कोचिंग संस्थान के फाउंडर और शिक्षक विकास दिव्यकीर्ति ने भी फिल्मों में डेब्यू किया है. हाल के दिनों में सिविल सेवाओं की तैयारी करने वाले युवाओं, उनके संघर्षों की कहानी खूब कही जा रही है. फिल्में और वेब सीरीज़ बन रही हैं.

ओटीटी और सिनेमाघरों से इतर यूट्यूब के कंटेंट क्रिएटर भी इस विषय को अपने अंदाज़ में कह रहे हैं. IAS/IPS की कहानी कहने का क्या ये नया चलन है? या फिर हिंदी सिनेमा में ऐसा पहले से ही होता आ रहा है? तीसरा सवाल है कि क्या इन कहानियों का अंदाज़ बदल गया है? पहले हिंदी फिल्मों में IAS/IPS बन जाने के बाद उस अधिकारी के संघर्ष को पेश किया जाता था. कैसे एक अधिकारी अपने क्षेत्र में भ्रष्ट नेताओं और गुंडाराज फैलाने वाले माफियाओं से टकराता है और जनता को दहशत से मुक्त कराता है. ये बेसिक प्लॉट हुआ करता था. किरदार बदलते थे, शहर बदलते थे, शैली बदलती थी लेकिन प्लॉट एक जैसा ही दिखता था. हाल के दिनों में ये ट्रेंड शिफ्ट हुआ है IAS/IPS बनने से पहले की कहानी की ओर. दुनिया की सबसे कठिन परीक्षा को पास करने की जद्दोजहद और इसके लिए हो रहा संघर्ष अब फिल्मों और वेब सीरीज का प्लॉट बनता जा रहा है. जिसे खूब पसंद भी किया जा रहा है.

अस्सी के दशक और बाद के दिनों में अमिताभ बच्चन कई फिल्मों में इंस्पेक्टर बनते दिखे. 1973 में आई जंजीर फिल्म में इंस्पेक्टर विजय का किरदार इतना पसंद किया गया कि अमिताभ पर जैसे ये नाम चिपक ही गया. 1999 में आई आमिर खान की सरफरोश भी उसी लीक की शुरुआती फिल्मों में से एक है जिनकी बात हम करने जा रहे हैं. बात शुरू करते हैं साल 2000 के बाद से. 2001 में 'इंडियन' रिलीज हुई. एन. महाराजन ने फिल्म को डायरेक्ट किया था. फिल्म एक ईमानदार और देशभक्त डीसीपी राजशेखर आजाद (सनी देओल का किरदार) पर आधारित है. आजाद एक आतंकवादी वसीम खान पर शिकंजा कसता है और फिर देश के नेताओं, आला अधिकारियों के गिरेबान तक उसका हाथ पहुंच जाता है. ये हिंदी सिनेमा का वो दौर था जहां, मार-धाड़ और स्लो मोशन के जरिए फिल्म के प्रमुख किरदार को हीरो बनाकर पेश किया जाता था. डीसीपी आजाद गुंडों से लड़ता है, खुद बम डिएक्टिवेट कर देता है. यहां तक कि जरूरत पड़ने पर नेताओं को भी पीट देता है.

दो साल बाद 2003 में एक फिल्म आई गंगाजल. डायरेक्टर प्रकाश झा के चुनिंदा कामों में से एक. बिहार के तेजपुर में एसपी अमित कुमार (अजय देवगन का किरदार) की तैनाती होती है. तेजपुर में कहने को पुलिस है लेकिन राज तो स्थानीय डॉन साधु यादव का ही रहता है. पुलिस विभाग के अधिकारी भी साधु यादव से हाथ मिलाए रहते हैं. हाथ क्या मिलाए रहते हैं, उसके कृपापात्र बनकर अपनी नौकरी के दिन काट रहे हैं. एसपी अमित कुमार ऐसा नहीं है. वो ईमानदार है और खाकी का रौब उसके तेवर में साफ झलकता है. बस शुरू हो जाती है साधु और अमित की भिड़ंत. गुंडों को निपटाते हुए कहानी आगे बढ़ती है और हमारे दिमाम पर एसपी अमित के रुआब की छाप छप जाती है.

बॉलीवुड या कहें कि हिंदी सिनेमा धीरे-धीरे अपने तीन सुपरस्टार खान की उठान देखने लगा था. शाहरुख, आमिर और सलमान. लेकिन सलमान की गाड़ी कुछ अधर लटकी हुई थी. लगातार कई फिल्में फ्लॉप हो चुकी थीं. सलमान की डगमगाती नैया को सबसे बड़ा बूस्ट इसी IAS/IPS के रौले वाले प्लॉट ने दिया. 2009 की बात है. अपने डांस कोरियोग्राफी के लिए मशहूर प्रभुदेवा के डायरेक्शन में फिल्म बनी वॉन्टेड. एक अंडर-कवर IPS अधिकारी राधे (सलमान खान का किरदार) की कहानी. जो मुंबई में लोकल गैंगस्टर्स को आपस में लड़ाता है. ताकि अंतरराष्ट्रीय गैंगस्टर गनी भाई (प्रकाश राज का किरदार) को पकड़ सके. राधे खुद अपराधी बनकर रहता है और अंत में गनी भाई को खत्म कर देता है. फिल्म के क्लाइमेक्स में राधे पुलिस की वर्दी में गुंडों से लड़ता है. लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद उसकी दबंगई ही याद रह जाती है. फिल्म राधे के किरदार को हीरोइक अंदाज में पेश करती है.

सलमान खान की फेहरिस्त में IAS/IPS की हीरोबाजी वाले प्लॉट पर बनी कई फिल्में हैं. दबंग और दबंग-2 भी उसमें शामिल हैं. जो अपनी कहानी के जरिए एक इंस्पेक्टर चुलबुल पांडेय की वर्दी की धमक को दिखाती है. एक और फ्रेंचाइज है सिंघम. रोहित शेट्टी की कॉप यूनिवर्स. सिंघम, सिंघम-2 और फिर सूर्यवंशी इसी यूनिवर्स के अलग-अलग फिल्मी ग्रह हैं. एक छोटे से शहर शिवागढ़ में एक ईमानदार इंस्पेक्टर है बाजीराव सिंघम. जो एक केस के सिलसिले में गोवा के डॉन और नेता जयकांत शिकरे (प्रकाश राज) को शिवागढ़ आने पर मजबूर करता है. जिससे भड़ककर जयकांत सिंघम का ट्रांसफर गोवा में कराता है. फिर उसे टॉर्चर करता है. लेकिन अंत में सिंघम लड़ता है और जयकांत के साम्राज्य को खत्म कर देता है. ये सिंघम की कहानी है.

दीवार के इस पार की कहानी

बीते साल 2022 में नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज आई 'खाकी: द बिहार चैप्टर'. इसमें बिहार के चर्चित आईपीएस अमित लोढ़ा की कहानी दिखाई गई है. जो बिहार के कुख्यात बदमाश चंदन महतो को शेखपुरा जिले में पोस्टिंग के दौरान पकड़ते हैं. इस बीच के संघर्ष पर सीरीज आधारित है. अमित लोढ़ा का किरदार निभाया है करन ठक्कर ने. 'खाकी' देखते हुए वर्दी की धमक महसूस तो होती ही है. लेकिन उसके साथ ही अमित लोढ़ा के निजी जिंदगी के संघर्ष भी दिखते हैं. खाकी का टोन 'इंडियन' या फिर 'वॉन्टेड' से बिलकुल अलग है. फर्क हीरोइज्म का है. जहां एक तरफ 'इंडियन' और 'वॉन्टेड' कायदे-कानूनों के पार जाकर अधिकारी के किरदार को हीरो के तौर पर पेश करती है. तो वहीं 'खाकी' का हीरो हकीकत के ज्यादा करीब दिखता है.

IAS/IPS की कहानी कहने का सलीका अब बिलकुल बदलता दिख रहा है. अगर IAS/IPS बन जाने को एक दीवार मान लें तो पहले की फिल्में दीवार के दूसरी तरफ की कहानी कहती हैं. अब जो फिल्में या वेब सीरीज आ रही हैं वो दीवार के इस पार की दुनिया दिखाती हैं. जिसमें दीवार तक पहुंचने की लड़ाई है. 'खाकी' से पहले 2021 में ASPIRANTS नाम से पांच एपिसोड की सीरीज आई. जिसमें दिल्ली के राजेंद्र नगर में रहकर UPSC की तैयारी करने वालों की रोज की जिंदगी के संघर्ष को दिखाया गया है. किराए के कमरे में कैसे कठिनाई का सामना करते हुए बच्चे रहते हैं. दिन-रात मेहनत करते हैं ताकि UPSC पास कर IAS बन सकें. 

इसी साल एक फिल्म आई 'अब दिल्ली दूर नहीं'. IAS गोविंद जायसवाल के संघर्ष की कहानी है. गोविंद जायसवाल के पिता बनारस में रिक्शा चलाते थे. रिक्शा चलाकर उन्होंने बेटे गोविंद को पढ़ाया. गोविंद ने मेहनत के दम पर मुश्किल हालात में भी तैयारी की और UPSC क्लियर किया. 2007 में गोविंद IAS बने. इस पूरी यात्रा को फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' दिखाती है. इमरान जाहिद ने गोविंद जायसवाल का किरदार निभाया है. कमल चंद्रा फिल्म के डायरेक्टर हैं. अब 12th फेल रिलीज हुई है. जिसमें IPS मनोज शर्मा की कहानी दिखाई गई है. ये कहानी भी IAS/IPS की दीवार के इस पार की दुनिया दिखाती है.

ऐसा नहीं है कि अब उसी पुरानी प्लॉट पर फिल्में गढ़ी नहीं जा रही हैं. रणवीर सिंह की सिम्बा और फिर सूर्यवंशी इसी लीक की फिल्में थीं. लेकिन अब इन रॉबिनहुड फिल्मों के साथ-साथ संघर्ष की कहानियां भी कही जा रही हैं. लोगों की पसंद में भी प्राथमिकता अब संघर्ष वाली फिल्में ही रखती हैं.

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