
दिसंबर की 20 तारीख को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला (ओपी चौटाला) का निधन हो गया. 89 साल की उम्र में उन्होंने गुरुग्राम में अपने निवास पर अंतिम सांस ली. वे इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के मुखिया थे. मूल रूप से हिसार के रहने वाले चौटाला को हरियाणा के सबसे प्रभावशाली जाट नेता के तौर पर माना जाता था. वे रिकॉर्ड पांच बार सीएम रहे. राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी.
हालांकि 'ताऊ' देवीलाल की पांच संतानों में सबसे बड़े ओम प्रकाश चौटाला के साथ विवादों का नाता भी हमसाया बनकर चलता रहा. कानून से उलझते रहने के कारण चौटाला को हरियाणा के 'बिगड़ैल' नेता भी कहा गया. इंडिया टुडे के 6 फरवरी, 2013 के अंक में संवाददाता असित जॉली ने 'चौधरी पर गहरी चोट' शीर्षक से एक लेख लिखा था. तब चौटाला को 'जेबीटी' घोटाले में सीबीआई कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई थी.
दरअसल, साल 1999 में ओम प्रकाश चौटाला ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मदद से हरियाणा में सरकार बनाई थी. वे चौथी बार सीएम बने थे. इसके अगले साल (2000 में) राज्य के 18 जिले में टीचर भर्ती घोटाला सामने आया. यह 3206 जेबीटी (जूनियर बेसिक ट्रेंड) स्कूल टीचरों की भर्ती में हुए फर्जीवाड़े से जुड़ा था. आरोप लगा कि मनमाने ढंग से टीचरों की भर्ती की गई.
इस मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने ओपी चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला को तीन सरकारी अधिकारियों सहित 10 साल की सश्रम कठोर कारावास की सजा सुनाई. इसमें तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक संजीव कुमार भी शामिल थे. संजीव ने ही जून, 2003 में इस मामले का खुलासा किया था. बाद में सीबीआई ने उन्हें प्रतिवादी बना दिया.
असित लिखते हैं कि जेबीटी घोटाले मामले में जब पुलिसकर्मी चौटाला को कोर्ट से दिल्ली की तिहाड़ जेल ले जाने लगे तो एकबारगी उनका भावहीन चेहरा, जो हरियाणा में काफी मशहूर है, सफेद पड़ गया था. वे करीब साढ़े नौ साल तक जेल रहे. उसके बाद दिल्ली सरकार ने 10 साल सजायाफ्ता कैदियों की सजा में नियमित मिलने वाली छूट के अलावा छह माह की छूट दे दी. जिसके बाद जुलाई, 2021 में वे तिहाड़ जेल से रिहा हो गए.

2013 में असित ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि 1977 में देवीलाल के राजनैतिक सचिव के रूप में शुरुआत कर अपना 40 साल से अधिक का वक्त चौटाला परिवार को देने के बाद कांग्रेस में शामिल होने वाले संपत सिंह का मानना है कि यह फैसला भारत के राजनैतिक इतिहास में अहम साबित होगा.
संपत सिंह ने तब कहा, "भ्रष्ट राजनैतिक मंडलियों को ऐसा तगड़ा झटका पहले कभी नहीं लगा था. इससे आम आदमी का भरोसा फिर से जागेगा, जिसने इतने लंबे समय तक घनघोर भ्रष्टाचार को सीना तान कर घूमते देखा है." सिंह ने देवीलाल और ओपी चौटाला के बीच तुलना करते हुए बताया था कि देवीलाल जनता के नेता थे और जनता के बीच ही वे खुश रहते थे.
सिंह के मुताबिक, चौटाला घराने के दिवंगत मुखिया (देवीलाल) ने अपने लिए कुछ बुनियादी नियम बना रखे थे, जैसे यह कि किसी समर्थक के घर दावत खाने कभी नहीं जाना क्योंकि उन्हें लगता था कि उनके लंबे काफिले को खिलाने-पिलाने पर मेजबान को अनावश्यक पैसे खर्च करने पड़ जाएंगे. सिंह बताते हैं कि चौटाला ने अपने पिता के इन बुनियादी नियमों का कभी पालन नहीं किया.
असित लिखते हैं कि ओपी चौटाला के साथ विवादों का सिलसिला 1977 से ही शुरू हो गया था जब उन पर घड़ियों की स्मगलिंग का आरोप लगा. रिपोर्ट के मुताबिक, "1977 में जापान से लौटते हुए चौटाला को दिल्ली के पालम एयरपोर्ट पर दर्जनों इलेक्ट्रॉनिक कलाई घड़ियों के साथ हिरासत में लिया गया था. उनके पूर्व सहयोगियों का कहना था कि वे रिश्तेदारों और समर्थकों के लिए लाए जा रहे तोहफे थे. बाद में उन्हें भारी जुर्माना अदा करने के बाद छोड़ा गया था."
जब चौटाला को एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया तो उनके पिता चौधरी देवीलाल ने उनको घर से बेदखल कर दिया था. हालांकि, जब दो दिसंबर 1989 को 'ताऊ' को केंद्र में उप प्रधानमंत्री का पद मिला तो उनका पुत्र प्रेम वापस जाग उठा. देवीलाल ने अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद दिया, और खुद डिप्टी पीएम बने.
असित दर्ज करते हैं कि घड़ियों की स्मगलिंग के अलावा ओपी चौटाला पर 1978 में एक और आरोप लगा. इसमें कहा गया कि चौटाला ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन को मनाने के लिए लोगों से पैसों की उगाही की. साल 1990 में रोहतक जिले के मेहम में हुई चुनावी हिंसा में चौटाला के खास रहे अमीर सिंह की हत्या हो गई थी. इस हत्याकांड की जांच करने के लिए जस्टिस सैकिया आयोग का गठन हुआ. साल 1996 में सैकिया आयोग ने चौटाला को दोषी ठहराया, हालांकि अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था.