
उस शाम 4:25 बजे जब इंडियन एयरलाइंस का आईसी-814 विमान काठमांडू से दिल्ली की ओर उड़ा तो वो अपने निर्धारित समय से दो घंटे देर से चल रहा था. कुछ देर बाद जब विमान अपनी निर्धारित ऊंचाई पर पहुंच गया, और यात्री अभी सेटल हो ही रहे थे कि तेज आवाज गूंजी, "यह विमान हाईजैक कर लिया गया है, और हम विमान को दिल्ली से दूर ले जा रहे हैं."
यह उन पांच युवकों के सरदार की कड़कती आवाज थी, और सबने कोट, टाई और मंकी कैप पहन रखा था. उनके पास कुछ पुरानी पिस्तौलें थीं, हाथों में लपलपाते चाकू, जिन्हें लेकर वे काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हड्डे के सुरक्षा तंत्र से मिलीभगत करके विमान में सवार हुए थे. हाइजैकर्स ने ऐलान के बाद यह जताने के लिए हथगोला दिखाया कि उनकी बात न मानने का हश्र क्या हो सकता है.
24 दिसंबर, 1999 की यह शाम प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत पूरे देश के लिए सिरदर्द बन गई. विमान में चालक दल के 11 सदस्यों के अलावा 155 यात्री थे, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. अपहरण किए गए यात्रियों के परिजन परेशान और हताश हो रहे थे. मीडिया के लिए यह तब की सबसे बड़ी घटना बन चुकी थी. प्रधानमंत्री ने तुरंत आपात प्रबंधन की बैठक बुलाई, और घटना के पल-पल की समीक्षा की जाने लगी.

आखिरकार कंधार पहुंचा आईसी-814 विमान
हाइजैकर्स ने पहले विमान को लाहौर ले जाने का निर्देश दिया, लेकिन क्लीयरेंस नहीं मिला. विमान में ईंधन भी कम हो रहा था, सो अमृतसर में ईंधन भरने के लिए विमान उतारा गया. इधर भारत सरकार का यह प्लान था कि विमान को किसी भी तरह वहां फंसाए रखा जाए, औैर तब तक एनएसजी के कमांडो और पंजाब पुलिस वहां पहुंचकर एक्शन की तैयारी करे. लेकिन हाईजैकर्स ने ये प्लान भांप लिया. जब तक कमांडो वहां पहुंचे, विमान वहां से उड़ चुका था.
लाहौर से ईंधन लेने के बाद विमान काबुल उतरने वाला था, लेकिन उसे वहां अनुमति नहीं मिली. रात 1 बजे विमान दुबई के पास अल-मिन्हाद हवाई अड्डे पर उतरा, जहां 25 दिसंबर को सुबह सवा 6 बजे 27 यात्रियों को रिहा भी किया गया. लेकिन अगले एक घंटे में विमान फिर रवाना हुआ, और अपने आखिरी गंतव्य कंधार जा उतरा. वहां पहुंचने के बाद अपहर्ताओं ने संदेश भेजा - सौदे के लिए वार्ताकारों को तुरंत कंधार आना होगा.

आतंकियों की डिमांड और तालिबान की दोहरी भूमिका
विमान अपहरण के बाद आतंकी सौदे के रूप में 36 आतंकवादियों की रिहाई, 20 करोड़ डॉलर (860 करोड़ रुपये) और पिछले जून में जम्मू में मारे गए आतंकवादी सज्जाद अफगानी का शव चाह रहे थे. इधर सरकार आतंकियों से कैसे भी संपर्क करना चाहती थी, लेकिन पहले उसे उस तालिबान सरकार से बात करनी होती, जिसने 1996 में वहां सत्ता हासिल कर ली थी, और भारत ने अभी तक उसे मान्यता नहीं दी थी.
इस सिलसिले में यूएन के अधिकारी भी विमान का मुआयना करने गए, लेकिन असली मध्यस्थकर्ता तालिबान साबित हुआ. इधर 27 दिसंबर को विवेक काटजू के नेतृत्व में भारतीय दल भी कंधार पहुंच गया. तालिबान की हाइजैकर्स तक सीधी पहुंच थी. लेकिन शुरू में उसने ऐसा दिखाया कि उनसे से उसका कोई लेना-देना नहीं है. सौदे के बाद एक वार्ताकार ने कहा, "आतंकवादियों की रिहाई के मामले में तालिबान हमेशा हाइजैकर्स के पक्ष में रहा."
कैसे हुई डील?
बार-बार अपना बयान बदल रहे हाइजैकर्स से डील इस बात पर खत्म हुई कि अपहृत विमान के बदले भारत को तीन आतंकियों को छोड़ना होगा. ये आतंकी थे- उमर सईद शेख, मुश्ताक अहमद जरगर और मसूद अजहर. तालिबान के दखल के बाद हाइजैकर्स ने सज्जाद के शव और पैसों की डिमांड छोड़ दी. इस बीच एक बार बातचीत टूटी भी, लेकिन तालिबान की धमकी के बाद फिर बातचीत शुरू हुई, और अंजाम तक पहुंची. 31 दिसंबर को विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार रवाना हुए, और उसी रात बंधकों के साथ वतन लौट आए.

मसूद अजहर की कहानी
साल 1994 में जब मसूद को अनंतनाग में गिरफ्तार किया गया, तो उसने बड़े दंभ के साथ बीएसएफ के जवानों से कहा था- भारत सरकार मुझे ज्यादा दिनों तक जेल में नहीं रख पाएगी, मेरे साथी मुझे छुड़ा लेंगे. उसके साथ एक और आतंकी गिरफ्तार हुआ था- सज्जाद अफगानी. चार साल बाद इन्होंने जेल से भागने की कोशिश भी की थी, और इसी कोशिश में सज्जाद मारा गया था.
कंधार विमान अपहरण से पहले भी आतंकियों ने कुछ पर्यटकों को अगवा किया था, और डील न होने की स्थिति में उन्हें मार डाला था. लेकिन कंधार अपहरण इस सिलसिले में काफी बड़ा और अलहदा मामला था. उन पांच हाइजैकर्स में जो अगुआ था, वो कोई और नहीं मसूद अजहर का भाई इब्राहिम अतहर था. पाकिस्तान के बहावलपुर के बाशिंदे ये दोनों भाई कट्टरपंथी जमात के प्रतिनिधि चेहरे थे.
उमर सईद शेख की कहानी
साल 1994 से 1999 तक विभिन्न अपहरण मामलों में सईद शेख भारतीय जेलों में रहा. शेख का बचपन लंदन में गुजरा था. उसने बोस्निया के युद्ध के दौरान राहत कार्यों के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ दी थी. कंधार कांड में छूटने के बाद ये पाकिस्तान पहुंचा, जहां वो जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा. अलकायदा से भी इसके संबंध थे. साल 2002 में जब अलकायदा से जुड़े आतंकी संगठनों के बारे में एक रिपोर्ट छपी, तो रिपोर्ट लिखने वाले 38 वर्षीय अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल को कराची में 2002 में अगवा कर लिया गया था.
इस घटना के एक महीने बाद वॉल स्ट्रीट जर्नल में दक्षिण एशिया ब्यूरो रहे पर्ल का गला काटे जाने का एक खौफनाक वीडियो कराची स्थित अमेरिकी दूतावास में भेजा गया था. इस मामले में अमेरिका के दबाव पर मुशर्रफ प्रशासन को सईद शेख और उसके साथियों को गिरफ्तार करना पड़ा. इसके अलावा 9/11 मामले में भी इसका नाम जुड़ा. जब भारत में 26/11 हमला हुआ, तो प्रणव मुखर्जी को फोन पर धमकी देने के मामले में इसी सईद शेख का नाम सामने आया था.
मुश्ताक अहमद जरगर की कहानी
अल उमर का यह मुखिया पाकिस्तान में प्रशिक्षित पहले पांच आतंकवादियों में से था. 1992 में जब इसे गिरफ्तार किया गया था, तो इसके सिर पर 4 लाख का इनाम था. यह इतना क्रूर आतंकी था कि अपने लक्ष्य को मारने के बाद उसके शव को विस्फोटक से उड़ा देता था. इसने कई बीएसएफ जवानों की हत्या की थी. यही वजह है कि जब यह गिरफ्तार हुआ, तो सुरक्षाबलों ने काफी जश्न मनाया था.
अपहृत पीड़ितों की दास्तान
काठमांडू से जब विमान दिल्ली की ओर लौट रहा था, तो उसमें बैठे यात्रियों को क्या पता था कि उनके अगल-बगल वैसे दहशतगर्द बैठे थे, जो अगले आठ दिनों में उनकी जिंदगी जहन्नुम बना देने वाले थे. इन यात्रियों में एक कात्याल नवदंपति भी था, जो हनीमून मनाकर लौट रहा था और जिनकी शादी को अभी 20 दिन भी नहीं हुए थे. विमान जब अमृतसर में रुका था तो अपहर्ताओं ने रुपिन कात्याल की चाकू गोदकर हत्या कर दी, और दुबई में उनके शव को विमान से नीचे फेंक दिया. पत्नी रचना कात्याल उसमें अभी भी फंसी थीं.
ऐसे ही सतनाम सिंह को भी अपहर्ताओं ने चाकू मारा था, लेकिन वे बच गए थे. उस विमान में ऐसे भी लोग थे, जिनका पूरा परिवार सफर कर रहा था. दुबई में जब 27 लोगों की रिहाई हुई तो किसी की पत्नी विमान में फंसी रह गई तो किसी का बेटा सहित शौहर. तीन-चार दिनों के बाद विमान का शौचालय बुरी तरह दुर्गंध दे रहा था. अंदर लोग अपनी किस्मत को कोस रहे थे, और बाहर लोग सरकार को.

पहले भी हो चुकी थीं अपहरण की घटनाएं
दिसंबर में ही साल 1989 में वी.पी सिंह की सरकार में तब गृहमंत्री रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था. समझौता हुआ, और इस समझौते में आठ अलगाववादियों को रिहा कर दिया गया. कंधार विमान अपहरण के वक्त अपहर्ता बार-बार इसी रुबैया मामले का जिक्र कर रहे थे. मार्च,1991 में फिर ऐसी ही एक घटना और घटी जब नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा इम्तियाज का अपहरण कर लिया गया. इस सौदे में अलगाववादी मुश्ताक अहमद को छोड़ा गया, प्रधानमंत्री तब चंद्रशेखर थे.
अगस्त, 1991 में इख्वानुल मुसलमीन ने के. दुरैस्वामी का श्रीनगर से अपहरण किया. वे तब इंडियन ऑयल के कार्यकारी निदेशक थे. इस सौदे में 9 आतंकियों को छोड़ा गया. इसके दो साल बाद सितंबर-अक्टूबर 1993 में हजरतबल मामला सामने आया, जब जेकेएलएफ के 40 सशस्त्र आतंकवादियों ने 170 लोगों को बंधक बनाए रखा था. इन आतंकियों को सुरक्षित निकल जाने दिया गया था, तब प्रधानमंत्री पी.वी नरसिंह राव थे.
(कंधार विमान अपहरण पर विस्तृत रिपोर्ट इंडिया टुडे हिंदी मैगजीन के साल 2000 के 5,12 और 19 जनवरी के अंक में प्रकाशित की गई थी.)