
यही कोई चार दशक पहले की बात है, 1984 के आम चुनाव में बिजनौर लोकसभा सीट से कांग्रेस की टिकट पर गिरधारी लाल चुनाव जीतकर सांसद बने. लेकिन कुछ ही महीनों बाद उनकी मौत हो गई. इसकी वजह से सीट खाली हुई. चुनाव आयोग ने बिजनौर में उपचुनाव की घोषणा की. चुनावी मैदान में तीन दलित नेता आमने-सामने आ गए. जनता दल की ओर से रामविलास पासवान, बहुजन समाज पार्टी की युवा नेता मायावती और कांग्रेस की ओर से मीरा कुमार.
रामविलास पासवान तब तक दलित नेता के तौर पर उभरने लगे थे. मायावती साइकिल-साइकिल प्रचार कर खुद को दलित नेता के तौर पर पेश करने की जुगत में थीं. तो वहीं मीरा कुमार अभी-अभी विदेश में अपनी नौकरी छोड़कर भारत लौटी थीं. लेकिन उनके साथ एक तमगा था कि वो दलितों के बड़े कांग्रेस नेता जगजीवन राम की बेटी हैं.
चुनाव के नतीजे आए तो पता चला कि मीरा ने पासवान को पांच हज़ार से ज़्यादा वोटों के अंतर से हरा दिया है. और मायावती तीसरे पायदान पर चली गई हैं. 15 साल बाद 5 फरवरी, 2000 को टेलीग्राफ़ ने मीरा कुमार कुमार की प्रोफ़ाइल में इस जीत पर टिप्पणी करते हुए लिखा, 'कुछ समय के लिए यह प्रसिद्ध जीत जगजीवन राम की बेटी के लिए एकदम सही लॉन्चपैड लग रही थी. जयपुर के महारानी गायत्री देवी स्कूल से कॉन्वेंट में पढ़ीं मीरा कुमार Indian Foreign Service के लिए यूके और स्पेन में कुछ समय बिताकर आई थीं. उनके पास दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी थी. और ऐसा लग रहा था कि उनके पास क्लास और मास दोनों को प्रभावित करने के लिए सभी हथियार थे.'

ये राजीव गांधी ही थे जिन्होंने 1985 में ही इस IFS अधिकारी को अपने पिता की विरासत फिर से हासिल करने के लिए मनाया था. नेहरू-गांधी परिवार के इतने बड़े नेता की बात वो कैसे ही टाल सकती थीं. क्योंकि इस परिवार से उनका संबंध उस समय से था जब वे बच्ची थीं और अपने पिता जगजीवन राम के साथ जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात करने तीनमूर्ति भवन जाती थीं.
कट टू 2009. देश में आम चुनाव हुए. कांग्रेस नेतृत्व वाली United Progressive Alliance यानी UPA को लगातार दूसरी बार जनादेश मिला. मंत्रिमंडल ने शपथ ली. शपथ लेने वाले मंत्रियों में एक नाम मीरा कुमार का भी था. उन्हें जल संसाधन मंत्री बनाया गया था. लेकिन फिर उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि पार्टी ने उनके लिए कुछ और सोच लिया था.
इंडिया टुडे मैगज़ीन के 17 जून, 2009 के अंक में छपी रिपोर्ट में प्रिया सहगल लिखती हैं, "पहले 64 वर्षीय कुमार को कम तड़क-भड़क वाले जल संसाधन मंत्री के रूप में शपथ दिलवाने के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने पुनर्विचार किया और फैसला किया कि उन्हें देश की पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष बनवा दिया जाए. प्रधानमंत्री ने इसे ऐतिहासिक क्षण करार दिया. वैसे, यह चतुर चाल भी है. पहले भाजपा सोच रही थी कि उपाध्यक्ष पद पर किसी महिला को नामजद किया जाए, जबकि कांग्रेस ने जता दिया था कि उसकी पसंद आंध्र प्रदेश के आदिवासी समुदाय से संबंधित विद्वान किशोरचंद देव हैं. उस समय भाजपा की नजर इंदौर की नेता सुमित्रा महाजन पर थी. तभी कांग्रेस ने अपनी तुरुप चाल चल दी."
मीरा कुमार को लोकसभा स्पीकर बनाए जाने का दांव भाजपा की सोच पर भारी पड़ा. एक ही तीर से कांग्रेस ने कई निशाने साध लिए. एक दलित महिला नेता को स्पीकर बनाए जाने का विरोध विरोधी खेमा भी नहीं कर पाया.
हालांकि मीरा कुमार ने जब लोकसभा स्पीकर पद की शपथ ली और उसके बाद पहला ही भाषण दिया तो ये आरोप लगे कि कुमार पार्टी की भाषा बोल रही हैं. प्रिया सहगल की रिपोर्ट उनका बयान दर्ज है, “दो साल पहले हमने पहली महिला राष्ट्रपति को चुना था. अब भी हमने दिखा दिया है कि हमारा महज प्रतीक चिन्हों में विश्वास नहीं है.”

दिलचस्प है कि इस सियासी घटनाक्रम के क़रीब दो बरस पहले यानी नवंबर, 2006 में अमेरिका की संसद प्रतिनिधि सभा ने नैंसी पेलोसी के रूप में अपनी पहली महिला स्पीकर को चुना था. इस लिहाज से ‘किसकी डेमोक्रेसी कितनी प्रोग्रेसिव और मेच्योर’ की रेस में भारत के नेताओं को ऐतिहासिकता का बोध भी हो रहा था
लेकिन इंडिया टुडे की रिपोर्ट में तब ये चिंता साफ़ दर्ज मिलती है कि मृदुभाषी मीरा कुमार के लिए संसद सत्र को ठीक ढंग से चलाने की चुनौती थी. क्योंकि उनसे पहले 2004 से 2009 तक के स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के कुर्सी पर रहते हुए लोकसभा की कार्यवाही के 423 घंटे नष्ट हो गए थे. यानी इस दौरान लोकसभा की कार्यवाही चल नहीं पाई थी. सांसदों पर काबू रखने के सवाल पर मीरा कुमार ने कहा था, “मैं चिल्लाती नहीं हूं. हर किसी की तरह मुझे भी गुस्सा आता है, पर मैं कभी चिल्लाती नहीं.”
कभी उत्तर प्रदेश, कभी बिहार और कभी दिल्ली से सांसद रहीं मीरा कुमार के लिए पार्टी में रहते हुए 1999 के अलावा कभी ख़ास मुश्किलें नहीं हुईं. 1999 में भी वो तब असुरक्षित महसूस करने लगीं जब सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली. मीरा इतनी उपेक्षित महसूस कर रही थीं कि पार्टी ही छोड़ दी लेकिन 2002 में फिर उनकी कांग्रेस में वापसी हो गई.
5 साल स्पीकर का पद संभालने के बाद उन्होंने विदाई ले ली. अब उनके परिवार की राजनीति को मीरा कुमार के बेटे अंशुल अविजीत आगे बढ़ा रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार की पटना साहिब लोकसभा सीट से बीजेपी के रविंशकर प्रसाद के सामने अंशुल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे. हालांकि इस चुनाव में उनकी हार हो गई.