किन पांच बदलावों से होकर राष्ट्रीय ध्वज बना 'तिरंगा', जानिए तस्वीरों से
साल 1906 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था

इस साल भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. इस मौके पर देश के राष्ट्रपति नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा' फहराते हैं. इतिहास में जाएं तो साल 1906 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था. यह पहली बार था जब एक राष्ट्रीय ध्वज के तले लोग इकट्ठा होना शुरू हुए थे. इससे पहले विभिन्न रियासतें अपने-अपने झंडे का इस्तेमाल कर रही थीं. हालांकि, 1906 के बाद इस राष्ट्रीय ध्वज में समय-समय पर विभिन्न आंदोलनों के अनुरूप बदलाव होते गए. 22 जुलाई, 1947 को जब संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को अपनाया गया, उस समय तक इसमें 6 बार बदलाव हो चुके थे.
1906 में पहली बार फहराया गया राष्ट्रीय ध्वज
1905 में देश में बंगाल विभाजन हो चुका था. इसके बाद देश में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन जोर पकड़ रहा था. विभिन्न समुदायों के लोग एकता प्रदर्शित करने के लिए राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में एक राष्ट्रीय ध्वज के नीचे खड़ा होना चाहते थे. बंगाल विभाजन की पहली बरसी पर साल 1906 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान चौक पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया. इस झंडे में तीन रंग- हरे, पीले और लाल रंग की पट्टियां थीं. इसमें ऊपर की हरे रंग वाली पट्टी में आठ कमल के फूल थे, जिनका रंग सफेद था. बीच की पीली पट्टी में नीले रंग से वन्दे मातरम् लिखा हुआ था. इसके अलावा सबसे नीचे वाली लाल रंग की पट्टी में सफेद रंग से चांद और सूरज के चित्र अंकित थे.
1907 में बदल दिया गया राष्ट्रीय ध्वज
1906 में फहराए गए झंडे को एक साल बाद ही 1907 में बदल दिया गया. इस नए झंडे की संरचना पुराने झंडे से कुछ अलग थी. इस नए झंडे को मैडम भीकाजी कामा और उनके कुछ निर्वासित क्रांतिकारी साथियों ने मिलकर पेरिस (फ्रांस) में फहराया था. इसे बर्लिन में एक समाजवादी सम्मेलन में भी फहराया गया था. भारत के इस दूसरे नए झंडे में केसरिया, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियां थी. बीच में वन्दे मातरम् लिखा था. इसमें चांद और सूरज के साथ आठ सितारे भी बने थे.
होमरूल लीग आंदोलन से प्रभावित राष्ट्रीय ध्वज, 1917
1917 में देश में चल रहे होमरूल लीग आंदोलन के बीच एक नया राष्ट्रीय ध्वज सामने आया. इस नए राष्ट्रीय ध्वज को आंदोलन की अगुआ एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने फहराया. यह झंडा औपनिवेशिक शासन के भीतर स्वायत्त शासन का प्रतीक था. इस झंडे में पांच रंग लाल और चार हरे रंग की पट्टियां थीं, जबकि अंत की ओर काले रंग में त्रिकोणनुमा आकृति बनी थी. बाईं तरफ के कोने में यूनियन जैक भी था. इसमें एक चांद और तारे के साथ, सप्तऋषि को दर्शाते सात तारे भी शामिल किए गए थे.
महात्मा गांधी और राष्ट्रीय ध्वज, 1921
यह साल 1921 था. बेजवाड़ा (विजयवाड़ा) में कांग्रेस का सत्र चल रहा था. आंध्र प्रदेश का एक नवयुवक स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वैंकेया गांधी के पास आया, और उन्हें एक झंडा प्रस्तुत किया. यह हरे और लाल रंग का बना हुआ था. जहां लाल रंग एक समुदाय को प्रदर्शित कर रहा था, वहीं हरा दूसरे समुदाय को. गांधी ने बाकी समुदायों को भी प्रदर्शित करने के लिए इसमें एक तीसरा रंग (सफेद) जोड़ा. इसके अलावा इस झंडे में निरंतर प्रगति और विकास के प्रतीक के रूप में गांधी को पसंद चरखा भी शामिल किया गया.
1931, राष्ट्रीय ध्वज के लिए महत्वपूर्ण पड़ाव
पिंगली वैंकेया के ही झंडे को कुछ सुधार के साथ 1931 में औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया. इस नए झंडे में सफेद और हरे रंग को ज्यों का त्यों रखा गया था, लेकिन लाल रंग को भगवा से बदल दिया गया. केसरिया रंग जहां साहस का प्रतीक माना गया. वहीं सफेद शांति का और हरा हरियाली और समृद्धि का. इसमें बीच की सफेद पट्टी में छोटे आकार में पूरा चरखा भी दर्शाया गया. सफेद पट्टी में चरखा राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक बताया गया. इस नए झंडे को इंडियन नेशनल कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर अपनाया था.
22 जुलाई 1947, 'तिरंगा' आया सामने
देश को जब आजादी मिली तो एक नया राष्ट्रीय ध्वज भी सामने आया. इसे तिरंगा कहा गया. दरअसल, 1931 में पिंगली वैंकेया द्वारा निर्मित झंडे को ही सिर्फ एक बदलाव के साथ 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा की बैठक में आजाद भारत का नया राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार कर लिया गया. बदलाव के तौर पर इस नए झंडे में चरखे की जगह मौर्य सम्राट अशोक के धम्म चक्र को गहरे नीले रंग में दिखाया गया. 24 तीलियों वाले इस चक्र को विधि का चक्र भी कहते हैं. इसमें ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी है. तीनों समानुपात में है. इसकी लंबाई-चौड़ाई दो गुणा तीन है. 1947 के बाद से तिरंगे में कोई बदलाव नहीं हुआ.