जब कांशीराम ने मायावती को बनाया था अपना उत्तराधिकारी, देखें तस्वीरें
कांशीराम ने मायावती की प्रतिभा को तभी समझ लिया था जब वे दिल्ली के कांस्टिट्यूशनल क्लब में बड़े-बड़े नेताओं के बीच बोल रही थीं. उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण पर हमला बोला था. यह 1977 का साल था

वह साल 2001 था. महीना दिसंबर. उत्तर प्रदेश का सर्द मौसम विधानसभा चुनाव की आहट से गर्मी पा रहा था. चुनाव के लिए सभाएं-रैलियां शुरू हो गई थीं. 15 दिसंबर को ऐसी ही एक सभा लखनऊ में चल रही थी. यह बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा की सभा थी जिसमें पार्टी के संस्थापक कांशीराम के अलावा अन्य वरिष्ठ नेता भी मौजूद थे.
मंच से कांशीराम ने एलान किया कि कुमारी मायावती उनकी उत्तराधिकारी होंगी. उन्होंने कहा कि वे काफी समय से यूपी कम आ पा रहे हैं लेकिन कुमारी मायावती ने उनकी गैरहाजिरी महसूस नहीं होने दी. कांशीराम के इस फैसले पर सवाल उठे, पर अब राज्य की बागडोर मायावती के हवाले थी.
21 फरवरी को अंतिम दौर के मतदान के लिए 19 फरवरी चुनाव प्रचार का आखिरी दिन था. सभी दलों के बड़े नेता आखिरी क्षणों में लंबी-लंबी दूरियां तय कर सभाएं कर रहे थे. लेकिन लखनऊ स्थित अपने घर में मायावती आराम फरमा रही थीं. मायावती ने चुनाव आयोग की समय सीमा से 24 घंटे पहले ही सारी सभाएं कर ली थीं.
वे अपना काम पूरा करके संतुष्ट थीं. प्रतिद्वंद्वी उनके इस आत्मविश्वास पर हंस रहे थे लेकिन 24 फरवरी को जब चुनाव नतीजे आए तो मायावती ही मुस्कुरा रही थीं. अब प्रतिद्वंद्वी नेताओं के साथ-साथ पार्टी के अंसुष्ट नेता भी बगलें झांक रहे थे जिन्होंने कांशीराम के फैसले पर सवाल उठाया था.
साल 1993 और 1996 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बसपा 70 सीटें भी हासिल न कर पाई थी. लेकिन 2002 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 98 जा पहुंची थी. यानी अब प्रदेश में मायावती के बिना सरकार बनाना मुश्किल था. लेकिन मुसीबत यह कि मायावती पर एक मुश्किल साझेदार का ठप्पा था.
साल 1993 में चुनाव के लिए मायावती ने मुलायम सिंह के साथ गठजोड़ किया लेकिन भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने के लिए 1995 में उनकी सरकार गिरा दी. यह व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं चली. फिर 1997 में बसपा और भाजपा का गठबंधन हुआ, इस शर्त पर कि हर 6 महीने पर बारी-बारी से दोनों पार्टियों को मुख्यमंत्री पद मिलेगा.
पहले 6 महीने मायावती की बारी थी फिर जब कल्याण सिंह आए तो मायावती ने एक महीने बाद ही समर्थन वापस ले लिया. अप्रैल 1999 में मायावती ने एनडीए सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर वोट न डालने का वादा किया था. अगली सुबह उनके सांसदों ने वाजपेयी सरकार के विरुद्ध वोट डाल उन्हें बाहर कर दिया.
राजनीतिक गलियारों में कहा जाने लगा कि बसपा नेता को समझना मुश्किल है. लेकिन कांशीराम ने उनकी प्रतिभा को तभी समझ लिया था जब वो दिल्ली के कांस्टिट्यूशनल क्लब में बड़े-बड़े नेताओं के बीच बोल रही थीं. उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री राजनारायण पर हमला बोला था. यह 1977 का साल था.
राजनारायण दलितों को हरिजन कहकर संबोधित कर रहे थे. मायावती ने कहा कि आप हमें हरिजन कहकर अपमानित कर रहे हैं. कांशीराम ने जब यह बात सुनी तो वे मायावती के घर पहुंच गए. IAS की तैयारी कर रहीं मायावती को उन्होंने राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया. वे संघर्ष के दौर में कांशीराम के साथ जुड़ीं.
1984 में बसपा बनने पर उसमें शामिल हुईं और उसी साल पहला लोकसभा चुनाव कैराना से लड़ा. साल 1989 में पहली बार सांसद बनीं. साल 2007 वह साल रहा जब मायावती के नेतृत्व में बसपा ने 206 सीटें जीत कर पूर्णकालिक सरकार बनाई और मायावती चौथी बार मुख्यमंत्री बनीं.
लेकिन 2007 के चुनावी प्रदर्शन के बाद पार्टी की परफॉर्मेंस में लगातार गिरावट हुई है. 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी 2007 की 206 सीट से घटकर 80 सीटों पर आ गई. 2017 में तो इसमें और गिरावट हुई और पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई. 2022 में बीजेपी जब दूसरी बार सत्ता में आई तो बसपा को महज 1 सीट ही नसीब हुई.
हाल के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं है. पार्टी ने राजस्थान में पिछली बार की 6 सीटों के मुकाबले इस बार महज 2 ही सीट जीती है. वोट प्रतिशत में भी कमी दिखी है. तो क्या मायावती ने सही समय पर अपने भतीजे आकाश आनंद को उत्तराधिकार सौंपा है, कौन है आकाश आनंद? आइए जानते हैं.
बीते 10 दिसंबर को मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आकाश यूपी और उत्तराखंड छोड़कर सभी राज्यों में पार्टी को मजबूत करने का काम करेंगे. आकाश, मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं.
हालांकि कांशीराम ने अपना उत्तराधिकारी अपने परिवार से घोषित न कर एक मिसाल कायम की थी लेकिन मायावती इससे नहीं बच पाईं. आकाश के बारे में बात की जाए तो उन्होंने लंदन में एमबीए की पढ़ाई की है. उनकी स्कूलिंग दिल्ली में हुई. लंदन से लौटने के बाद आकाश पहली बार 2017 में राजनीतिक पटल पर सामने आए. बाद में पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक बनाए गए और अभी इसी पद पर काम कर रहे हैं.
हाल ही में संपन्न राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा चुनावों के लिए कार्यभार आकाश पर ही था. यूं तो बसपा में पदयात्रा की रवायत नहीं रही है लेकिन आकाश ने राजस्थान में अगस्त माह में 14 दिन की पदयात्रा का नेतृत्व किया था. पार्टी अपने बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में आकाश के सामने बड़ी चुनौती है. उन्हें खुद को साबित करने के साथ-साथ पार्टी को भी नई ऊंचाई पर ले जाना होगा.