कर्पूरी ठाकुर से पहले बिहार के चार और लोगों को मिला है भारत रत्न, क्या था इनका योगदान
अब तक 49 लोगों को भारत रत्न पुरस्कार मिला है, जिनमें से 17 पुरस्कार मरणोपरांत दिए गए हैं

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और 'जननायक' के तौर पर मशहूर कर्पूरी ठाकुर को भारत सरकार ने 'भारत रत्न' देने का फैसला किया है. 23 जनवरी को राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी प्रेस रिलीज में इसका ऐलान किया गया. यह घोषणा कर्पूरी ठाकुर की सौवीं जयंती से एक दिन पहले की गई है. इससे पहले भी बिहार की चार विभूतियों को देश का सर्वोच्च सम्मान हासिल हो चुका है. इनमें डॉ. बिधान चंद्र रॉय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण और उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का नाम शामिल है.
डॉ. बिधान चंद्र रॉय (बीसी रॉय)
डॉ. रॉय का जन्म 01 जुलाई 1882 को पटना में हुआ था. गणित विषय में स्नातक करने के बाद उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा की पढ़ाई की. वे पढ़ने के लिए विदेश भी गए. उन्होंने जादवपुर टीबी अस्पताल, चितरंजन सेवा सदन, कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल, विक्टोरिया इंस्टीट्यूशन और चितरंजन कैंसर अस्पताल की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे महात्मा गांधी के मित्र और उनके चिकित्सक थे. डॉ. रॉय ऐसे व्यक्ति थे जो पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ लोगों का इलाज भी करते थे. उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन भी किया. निधन के एक साल पहले 1961 में उन्हें भारत रत्न से नवाजा गया. डॉ. रॉय के ही सम्मान में 1991 से राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी.
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसंबर, 1884 को सीवान (बिहार) के जीरादेई में एक बड़े संयुक्त परिवार में हुआ था. वे एक वकील, शिक्षक, लेखक और स्वतंत्रता सेनानी थे. 1917 में जब गांधी बिहार में किसानों की मदद के लिए चंपारण गए तो राजेंद्र प्रसाद भी उनके साथ थे. वे गांधी के अनुयायी थे. 1920 में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो राजेंद्र प्रसाद वकालत छोड़ उसमें शामिल हो गए. उन्होंने 1931 के 'नमक सत्याग्रह' और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में सक्रिय रूप से भाग लिया था. वे देश के पहले और सबसे लंबे समय (1950-62) तक पद पर रहने वाले राष्ट्रपति हैं. साल 1962 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
जयप्रकाश नारायण (जेपी)
देश में 'लोकनायक' के नाम से मशहूर स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण को 1998 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. उनका जन्म बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गांव में 11 अक्टूबर, 1902 को हुआ था. ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई. आजादी के बाद आचार्य विनोबा भावे द्वारा शुरू भूदान आंदोलन में उन्होंने हिस्सा लिया. देश में जब आपातकाल घोषित हुआ, तो उन्होंने कांग्रेस की ज्यादतियों के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर दिया. जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल को रद्द करने और 1977 में आम चुनाव कराने का फैसला किया, तो जेपी ने विपक्षी दलों को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. तब 1977 में देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार अस्तित्व में आई.
उस्ताद बिस्मिल्ला खां
मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार राज्य के डुमरांव के ठठेरी बाजार में हुआ था. इनकी शहनाई खुशहाली का प्रतीक मानी गई. जब देश आजाद हुआ तो फिजा में उस्ताद की शहनाई की धुन दिल्ली के लालकिले से गूंजी. 26 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर नेहरू के अनुरोध पर उस्ताद ने आवाम का स्वागत अपनी खास धुनों से किया. न्यूयार्क के वर्ल्ड म्यूजिक इंस्टिट्यूट से लेकर कान फिल्म फेस्टिवल तक में इन्होंने अपने संगीत से लोगों को मंत्रमुग्ध किया. संगीत के क्षेत्र का शायद ही कोई ऐसा सम्मान हो, जो इन्हें न मिला हो. साल 2001 में इन्हें भारत रत्न मिला. इसके अलावा इन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1956), पद्मश्री (1961), पद्मभूषण (1968), पद्म विभूषण (1980), फेलो ऑफ संगीत नाटक अकादमी (1994), भारत रत्न (2001) सहित सैकड़ों पुरस्कार मिले. 21 अगस्त 2006 को काशी में 90 वर्ष की उम्र में उस्ताद ने अपनी आखिरी सांस ली.
कर्पूरी ठाकुर (जननायक)
24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्में कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे. 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे. 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया. इसके लिए उनकी खूब आलोचना हुई. उनकी कोशिशों के चलते ही मिशनरी स्कूलों ने हिंदी में पढ़ाना शुरू किया और आर्थिक तौर पर गरीब बच्चों की स्कूल फी को माफ करने का काम भी उन्होंने किया था. वो देश के पहले मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक मुफ्त पढ़ाई की घोषणा की थी. उन्होंने राज्य में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा देने का काम किया. 1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बड़ी राहत देते हुए उन्होंने गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया. 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू करके पिछड़ा वर्ग के लिए पहली बार राज्य की नौकरियों में आरक्षण लागू किया. इसके लिए उनकी खूब आलोचना हुई, लेकिन वे समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे. 17 फरवरी, 1988 को 64 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. मरणोपरांत अब उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की गई है.
देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' की स्थापना 02 जनवरी 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की थी. यह सम्मान उन महान शख्सियतों को दिया जाता है, जिन्होंने कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा और खेल के क्षेत्र में अपने असाधारण योगदान से देश सेवा की हो. इसके लिए नामों की सिफारिश भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से करते हैं जिसके बाद राष्ट्रपति की ओर से उस व्यक्ति को यह सम्मान दिया जाता है. इस पुरस्कार के तहत प्राप्तकर्ता को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता है. पुरस्कार में कोई राशि नहीं होती.