रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला जाति के इर्दगिर्द क्यों घूम रहा है?

हाल ही में रोहित वेमुला के केस को तेलंगाना पुलिस ने यह कहकर बंद कर दिया था कि उनकी जाति दलित थी ही नहीं और इसी के डर से उन्होंने आत्महत्या कर ली. अब राज्य के डीजीपी ने इस केस में दोबारा जांच करने की बात कही है

हॉस्टल से निलंबित किए जाने के बाद आंबेडकर की तस्वीर के साथ रोहित वेमुला/तस्वीर - सोशल मीडिया
हॉस्टल से निलंबित किए जाने के बाद आंबेडकर की तस्वीर के साथ रोहित वेमुला/तस्वीर - सोशल मीडिया

'इंसानी वजूद को उसकी तात्कालिक पहचान तक समेट दिया गया. एक वोट तक, एक संख्या तक, एक वस्तु तक. ब्रह्मांड के कण से निर्मित इंसान को कभी उसके मस्तिष्क से नहीं आंका गया, चाहे वह पढ़ाई में हो, समाज में, राजनीति में या जीवन-मृत्य के (अपरिहार्य चक्र) में.'

ये किसी शानदार रिसर्च वर्क की शुरुआती पंक्तियां हो सकती थीं मगर अफ़सोस कि इन्हें एक ‘दलित’ रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला की सुसाइड नोट का हिस्सा बनना पड़ा. हाल ही में तेलंगाना पुलिस ने रोहित के केस की फिर से जांच का फैसला लिया है जिसे पहले यह बताकर बंद कर दिया गया था कि रोहित दलित थे ही नहीं और यही बात उनकी आत्महत्या का कारण बनी. 

रोहित वेमुला की जाति पर छिड़ी इस बहस से पहले यह समझना जरूरी है कि ये सब शुरू कैसे हुआ था. तीन अगस्त, 2015 की रात, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कैंपस में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) और एबीवीपी के तत्कालीन अध्यक्ष एन सुशील कुमार के बीच बहस हुई. बहस का कारण था एक फेसबुक पोस्ट जिसमें सुशील ने एएसए के सदस्यों को गुंडा बताया था और एएसए के सदस्य (जिनमें रोहित वेमुला भी शामिल थे) उसे हटाने की मांग कर रहे थे. आखिरकार कैंपस के ड्यूटी सिक्योरिटी अफसर दिलीप सिंह के सामने सुशील ने वह पोस्ट डिलीट कर दी और इसे लेकर एक माफीनामा भी लिखा. 

इस घटना के कुछ ही दिनों बाद सुशील कुमार पास के प्राइवेट अस्पताल अर्चना हॉस्पिटल में भर्ती हुए जहां 7 अगस्त को उनके अपेंडिक्स की सर्जरी हुई. इस सर्जरी को तीन अगस्त की घटना से जोड़ते हुए पास के गाचीबोवली पुलिस थाने में रोहित वेमुला समेत पांच दलित छात्रों के खिलाफ मारपीट की रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. इसके बाद भाजपा नेता और तत्कालीन एमएलसी रामचंदर राव ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी में धरना दिया और इन छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. 

हैदराबाद यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ड्यूटी सिक्योरिटी अफसर और चीफ मेडिकल अफसर दोनों से ही इस मामले में रिपोर्ट तलब की जिसमें दोनों ने ही सुशील कुमार की बात को गलत बताया. हैदराबाद विश्वविद्यालय की वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ. अनुपमा राव, जो तत्कालीन कुलपति आरपी शर्मा के साथ, सुशील कुमार से आठ अगस्त को मिलने गई थीं, उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "सुशील कुमार की सभी मेडिकल रिपोर्ट देखने और उनकी जांच करने के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी कि कथित हमले के कारण उन्हें अपेंडिसाइटिस हो गया है. हालांकि उनके बाएं कंधे पर चोट का निशान था. मैं यह नहीं कह सकती कि उसे कथित तौर पर मुक्का मारा गया था या पीटा गया था. मैंने उसकी जांच नहीं की क्योंकि वह मेरे पास नहीं आया था और अस्पताल की रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं है कि उसे कोई बाहरी चोट थी."

एबीवीपी नेता सुशील कुमार ने पीटीआई को दिए एक बयान में कहा था, "मुझे नहीं पता कि हैदराबाद पुलिस ने क्या कहा. लेकिन मुझे अस्पताल में भर्ती कराया गया और आप मेरे शरीर पर चोटें देख सकते हैं. आप अभी भी मेरे शरीर पर ऑपरेशन के निशान देख सकते हैं. हो सकता है कि कोई बाहरी चोट न हो, लेकिन ऐसे पुख्ता प्रमाण हैं जो कहते हैं कि मुझे ऑपरेशन कराना पड़ा."

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के कुलपति आरपी शर्मा ने पहले तो रोहित समेत पांचों छात्रों को हॉस्टल से निलंबित कर दिया था मगर इन रिपोर्ट्स और कुछ छात्र संगठनों के विरोध के बाद उन्होंने निलंबन वापस लेते हुए फिर से मामले की जांच करने का आदेश दिया. आरोप लगाया गया कि एबीवीपी ने भाजपा नेता और तत्कालीन केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय की मदद से तब स्मृति ईरानी के अंतर्गत आने वाले मानव संसाधन मंत्रालय पर दबाव बनाया और अप्पा राव को विश्वविद्यालय का नया कुलपति बना दिया गया. अप्पा राव ने नए सिरे से जांच किए बिना ही रोहित वेमुला समेत पांचों दलित छात्रों को उनका कोर्स खत्म होने तक ना केवल हॉस्टल बल्कि कैंपस के भी कुछ हिस्सों में जाने से प्रतिबंधित कर दिया. 

द न्यूज मिनट से 2016 में बात करते हुए सुशील कुमार ने कहा था, "मैंने बंडारू दत्तात्रेय से मुलाकात की और उनसे मदद करने को कहा था. हमने अपने कई नेताओं से मुलाकात की और एएसए ने भी उनके नेताओं से मुलाकात की."

रोहित ने इस कदम के कुछ दिनों बाद कुलपति अप्पा राव को चिट्ठी लिखकर पांचों छात्रों के लिए यूथेनेसिया (इच्छा मृत्यु) की मांग की और कहा कि अब हमारे लिए कोई और रास्ता नहीं बचा है. कुलपति ने इस चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया और 17 जनवरी, 2016 को रोहित वेमुला ने कैंपस में ही आत्महत्या कर ली. इस आत्महत्या को कइयों ने 'संस्थागत हत्या' की भी संज्ञा दी.

जंतर-मंतर पर रोहित वेमुला के लिए न्याय मांगते जेएनयू स्टूडेंट्स

रोहित वेमुला की आत्महत्या से आक्रोशित होकर जेएनयू समेत देशभर के विश्वविद्यालयों में आंदोलन शुरू हो गए और रोहित को न्याय दिलाने की मांग ने जोर पकड़ लिया. इसी बीच आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और एससी/एसटी एक्ट के तहत सिकंदराबाद के सांसद बंडारू दत्तात्रेय, एमएलसी एन रामचंदर राव और कुलपति अप्पा राव, एबीवीपी के नेताओं और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. 

पुलिस ने इस केस की रिपोर्ट 21 मार्च, 2024 को तेलंगाना हाई कोर्ट में प्रस्तुत करते हुए सभी दोषियों को क्लीन चिट दे दी. 3 मई को जब यह रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो इस पर बवाल मच गया. रिपोर्ट में वेमुला की आत्महत्या की जगह उसकी जाति को केंद्र में रखा गया. तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, "रिकॉर्ड पर ऐसे किसी भी तथ्य या परिस्थिति का कोई सबूत उपलब्ध नहीं है जिसने उसे (रोहित वेमुला को) आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया हो और उनकी मौत के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं है."

रिपोर्ट में कहा गया कि रोहित को पता था कि वे अनुसूचित जाति से नहीं हैं और उनकी मां ने उन्हें एससी प्रमाणपत्र दिलाया था. इसमें कहा गया कि हो सकता है कि यह बात रोहित के डर का कारण हो क्योंकि इस बात के बाहर आने के बाद उनकी शैक्षणिक डिग्री रद्द कर उन पर मुकदमा चलाया जा सकता था.

द न्यूज मिनट की रिपोर्ट के मुताबिक, रोहित की मां राधिका वेमुला ने हमेशा कहा है कि वे एससी माला जाति से हैं और बचपन से ही वड्डेरा ओबीसी परिवार में घरेलू नौकर के रूप में उनका पालन-पोषण हुआ था. रोहित के पिता मणि कुमार भी वड्डेरा समुदाय से थे और जब उन्हें दलित पहचान का पता चला तो उन्होंने राधिका और उसके बच्चों को छोड़ दिया. 

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान रोहित की मां राधिका वेमुला के साथ राहुल गांधी

वेमुला की आत्महत्या पर शैक्षणिक परिसरों में राष्ट्रव्यापी आक्रोश के बीच, इसके कारणों की जांच के लिए रूपनवाल आयोग का गठन किया गया था. रूपनवाल पैनल ने 2016 में ही यूजीसी को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. आयोग ने माना था कि वेमुला दलित नहीं थे. 

रोहित वेमुला की आत्महत्या पर न्यायिक आयोग की इस रिपोर्ट को 'फर्जी और काल्पनिक' बताते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के तत्कालीन अध्यक्ष पीएल पुनिया ने कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय का रिसर्च स्कॉलर (रोहित) दलित था. पीएल पुनिया ने कहा, "इसके (आयोग की जांच के) निष्कर्ष फर्जी और काल्पनिक हैं. जाति पर अंतिम प्राधिकारी जिला कलेक्टर है, और कलेक्टर ने निर्णायक सबूतों के साथ हमें रिपोर्ट दी है कि वे अनुसूचित जाति के व्यक्ति हैं ना कि पिछड़े वर्ग के."

इसी मामले में द डायलॉग बॉक्स पर दिल्ली यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर सौंदर्या ने लिखा, "रोहित वेमुला के मामले में, विश्वविद्यालयों में टॉक्सिक कल्चर की वजह से आत्महत्या से होने वाली मौतों के मुद्दे को पूरी तरह से दबा दिया गया और वेमुला की जाति पर यह दावा करते हुए ध्यान केंद्रित कर दिया गया कि वे मूल रूप से दलित नहीं थे. भले ही राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) ने वेमुला की जाति पर झूठे आरोपों को खारिज कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि वेमुला के साथ हुए भेदभाव की जगह इस मुद्दे को उठाने की क्या जरूरत थी. रोहित की फेलोशिप को निलंबित करके और उसे परिसर में एक तंबू में रहने के लिए मजबूर करके संस्था की तरफ से जान-बूझकर उन पर हमला किया गया. कुलपति ने तो अपना पद फिर से पा लिया और एक पुरस्कार भी प्राप्त किया मगर वेमुला की मां अभी भी अपने बेटे के साथ हुए अन्याय के लिए लड़ रही हैं.”

जाति के अलावा एक और बात जो पुलिस रिपोर्ट में दर्ज थी, वह रोहित वेमुला के अकादमिक प्रदर्शन को लेकर थी. रिपोर्ट में कहा गया कि एक पीएचडी को छोड़कर रोहित ने दूसरे विषय में पीएचडी करना पसंद किया. इंडियन एक्सप्रेस की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "रोहित ने लाइफ साइंसेज में अपनी थीसिस शुरू की, लेकिन उनके दोस्तों का कहना था कि उन्हें एहसास हुआ कि वे पूरे दिन प्रयोगशाला में काम नहीं करना चाहते और इसलिए उन्होंने सामाजिक विज्ञान विभाग में ट्रांसफर ले लिया."

रही बात अकादमिक प्रदर्शन की तो रोहित वेमुला ने अपनी दोनों पीएचडी के लिए अलग-अलग जेआरएफ हासिल की थी. बारहवीं में रोहित के 86 प्रतिशत नंबर आए थे. 

दलित लेखिका डॉ मीना कंडासामी ने तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट पर अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, "एक प्रतिभाशाली युवा क्रांतिकारी दिमाग की जाति पर विवाद करके उसे बदनाम करना बहुत ही अपमानजनक और पूरी तरह से गलत है. रोहित वेमुला और उनकी अम्मा लगातार कहते रहे कि वे दलित हैं: उनकी मृत्यु के बाद भी उत्पीड़न जारी है. उसे न्याय चाहिए."

 

तेलंगाना पुलिस की रिपोर्ट के बाद लोगों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर राहुल गांधी और कांग्रेस को घेरना शुरू किया. लोगों ने याद दिलाना शुरू किया कि कैसे राहुल गांधी ने रोहित वेमुला को न्याय दिलाने की बात करते हुए अपने 2024 लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में 'रोहित एक्ट' बनाने का वादा किया था जिससे शैक्षणिक संस्थानों में होने वाले जातिगत भेदभाव पर लगाम लगाई जा सके. 

सिर्फ यही नहीं, केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मांग की कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी 2016 में मारे गए हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का 'राजनीतिकरण' करने के लिए माफी मांगें, क्योंकि उनकी ही पार्टी द्वारा शासित राज्य की पुलिस ने अब कहा है कि यह था दलित मुद्दा नहीं था.

इसके बाद तेलंगाना पुलिस ने दोबारा रोहित वेमुला के केस की जांच करने का निर्णय लिया और कहा कि यह रिपोर्ट (कांग्रेस की सरकार बनने से पहले) नवंबर, 2023 में ही तैयार की गई थी. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि जांच में कई गड़बड़ियां पाई गई थीं और कांग्रेस हमेशा से ही रोहित वेमुला के परिवार के साथ खड़ी है. 

 

तेलंगाना के डीजीपी रवि गुप्ता ने एक बयान जारी कर कहा, "चूंकि मृतक रोहित वेमुला की मां और अन्य लोगों की ओर से जांच पर संदेह व्यक्त किए गए हैं, इसलिए मामले की आगे की जांच करने का निर्णय लिया गया है. माननीय मजिस्ट्रेट से मामले में आगे की जांच की अनुमति के लिए अनुरोध करते हुए संबंधित अदालत में एक याचिका दायर की जाएगी."

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