पश्चिम बंगाल: ममता बनर्जी ने पहली बार RSS को खुलकर निशाने पर क्यों लिया?
प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुर्शिदाबाद में हुए सांप्रदायिक दंगों को लेकर चार पन्नों का एक पत्र जारी किया है जिसमें RSS पर खुलकर आरोप लगाए गए हैं

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वक्फ कानून में संशोधन के बाद मुर्शिदाबाद में हुए सांप्रदायिक दंगों को लेकर चार पन्नों का एक पत्र जारी किया है. इसमें उन्होंने सीधे तौर पर BJP और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS पर हिंसा भड़काने और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने का आरोप लगाया है.
मुख्यमंत्री के आधिकारिक लेटरहेड पर लिखे गए इस संदेश में BJP और RSS पर आरोप लगाया गया है कि वे सांप्रदायिक उकसावे की आड़ में “घृणित और झूठा अभियान” चलाने के साथ भड़काऊ बयानबाजी कर प्रदेश का माहौल बिगाड़ रहे हैं.
ममता ने 19 अप्रैल को जारी पत्र में लिखा है, “यह भयावह है. BJP और RSS के लोगों ने उकसावे में हुई एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल करके पूरे प्रदेश में दंगा भड़काने की कोशिश की.”
हालांकि, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन घटनाओं में बीजेपी और आरएसएस के शामिल होने को लेकर विस्तृत जानकारी नहीं दी, लेकिन उनके पत्र में मुर्शिदाबाद में हाल ही में हुई झड़पों का जिक्र था, जिससे राज्य में तनाव बढ़ गया. अपने पत्र में ममता ने शांति और सभी धर्मों के बीच एकजुटता की अपील की. साथ ही उन्होंने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदायों से आपसी विश्वास और भाईचारा कायम करने और किसी भी तरह के अविश्वास से बचने का आह्वान किया.
उन्होंने पत्र में आगे लिखा, "हम सांप्रदायिक दंगों की निंदा करते हैं और उन्हें रोकना चाहिए. दंगों के पीछे अपराधियों से सख्ती से निपटा जा रहा है. दंगे न तो हिंदुओं द्वारा किए जाते हैं और न ही मुसलमानों द्वारा, बल्कि सच तो ये है कि दंगे अपराधियों द्वारा करवाए जाते हैं."
इससे पहले ममता बनर्जी RSS पर नाम लिए बिना हमला करती थीं, लेकिन इस बार अपने पत्र में उन्होंने खुलकर RSS का नाम लिया है. उन्होंने कहा है, "बीजेपी और उसके सहयोगी अपने तथाकथित राजनीतिक एजेंडे के नाम पर हमारे सार्वभौमिक हिंदू धर्म को बदनाम कर रहे हैं."
इतना ही नहीं ममता बनर्जी ने रामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद जैसे संतों की समावेशी आध्यात्मिकता की तुलना संघ-संबद्ध संगठनों से किए जाने को गलत और संकीर्ण बताया है.
ममता ने BJP पर आरोप लगाते हुए कहा कि उसने रामनवमी के दिन राज्य में दंगा भड़काने की योजना बनाई थी, लेकिन पश्चिम बंगाल में यह उत्सव बेहद शांतिपूर्ण तरीके से मनाया गया. उनके अनुसार, जब बीजेपी का यह प्लान विफल हो गया, तो उसने वक्फ कानून पर हो रहे आंदोलन को धार्मिक रूप देना शुरू कर दिया.
मणिपुर हिंसा का जिक्र करते हुए ममता ने कहा, "मणिपुर पिछले कई महीनों से जल रहा है, असम और त्रिपुरा भी गहरी उथल-पुथल में हैं. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बलात्कार और अत्याचार हमें बहुत शर्मिंदा करते हैं. लेकिन, इससे इतर पश्चिम बंगाल देश के शासन और विकास मैट्रिक्स में अग्रणी है."
ममता बनर्जी के इस पत्र पर भाजपा ने जोरदार पलटवार किया है. बंगाल में पार्टी के सह-नेता अमित मालवीय ने ममता पर राजनीतिक लाभ के लिए अपने संवैधानिक पद का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.
उन्होंने कहा, "पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के तौर पर जिनसे सभी नागरिकों की निष्पक्ष सेवा करने की उम्मीद की जाती है, वे ममता बनर्जी अपने अपने प्रशासन की विफलताओं को छुपाने के लिए आधिकारिक लेटरहेड का इस्तेमाल मुख्य विपक्षी दल और एक गैर-राजनीतिक संगठन को दोषी ठहराने के लिए कर रही हैं."
मालवीय ने दावा किया कि मुर्शिदाबाद में हिंसा को भड़काने वाले "बाहरी तत्वों" के बारे में ममता जो कहानी बना रही है, उसे पश्चिम बंगाल पुलिस ही खारिज कर चुकी है. उन्होंने ममता बनर्जी से सवाल पूछते हुए कहा, "पश्चिम बंगाल पुलिस को वक्फ के खिलाफ रैलियों के बारे में पहले से ही पता था, फिर उन्हें क्यों नहीं रोका गया? क्या भीड़, हथियार और पत्थर हवा से आ गए?"
मालवीय के मुताबिक ममता की राजनीतिक रणनीति में बार-बार एक जैसे पैटर्न देखने को मिलते हैं. वे बीजेपी और आरएसएस पर लगातार और निराधार हमला करती रहती हैं. 2014 के खगरागढ़ आतंकी विस्फोट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “कथित तौर पर एक टीएमसी पदाधिकारी द्वारा किराए पर लिए गए घर में बम विस्फोट हुआ था. ममता ने इस मामले में भी बिना सबूत के जल्दबाजी में आरएसएस को दोषी ठहराया था. ऐसा लगता है कि जब भी उनकी राजनीतिक स्थिति खतरे में होती है, तो वह हिंदू समुदाय को निशाना बनाने का सहारा लेती हैं."
मालवीय ने ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री दोनों के रूप में विश्वसनीयता पर सवाल उठाए. खासकर तब जब मुर्शिदाबाद हिंसा की जांच करने वाला आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) और विशेष जांच दल (एसआईटी) सीधे उनकी निगरानी में काम करते हैं. उन्होंने कहा, "इससे निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठता है. हिंसा को लेकर जवाबदेही बहुत पहले ही तय हो चुकी है. अब ममता बनर्जी को पद छोड़ देना चाहिए."
ममता ने 22 अप्रैल को घोषणा की थी कि वे मई के पहले सप्ताह में मुर्शिदाबाद के प्रभावित क्षेत्र धुलियान का दौरा करेंगी. हिंसा में बाहरी लोगों का हाथ होने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा. "हम साजिश का पर्दाफाश करेंगे."
ममता के पत्र में आरएसएस के खिलाफ तीखे रुख का संकेत दिया गया है, लेकिन कुछ जानकार इसे लंबे समय से चले आ रहे रुख के बजाय एक रणनीतिक बदलाव के रूप में देखते हैं.
स्वतंत्र पत्रकार स्निग्धेंदु भट्टाचार्य ने कहा, “ममता पहले भी अपने राजनीतिक रणनीति में बदलाव करती रही हैं. उन्होंने पहले भी कई बार आरएसएस का नाम लिया है, लेकिन उनका रुख हमेशा एक जैसा नहीं रहा है. कुछ मौकों पर उन्होंने सांप्रदायिक नफरत फैलाने के लिए आरएसएस को दोषी ठहराया, जबकि अन्य मौकों पर उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि आरएसएस में सभी लोग बुरे हैं."
भट्टाचार्य ने आगे कहा कि ममता की दुविधा शायद राजनीतिक गणित से उपजी है. उनका दृष्टिकोण आरएसएस के साथ एक पिछला रास्ता खुला रखने का प्रतीत होता है ताकि पूर्ण टकराव से बचा जा सके. हालांकि, ममता को ये अंदाजा भी नहीं है कि आरएसएस का नेटवर्क उनकी नाक के नीचे किस हद तक बढ़ रहा है. आरएसएस को चुनौती देना तो दूर ममता के कार्यकर्ता इस संगठन के तेजी से हो रहे विस्तार तक का अंदाजा नहीं लगा सके.
बढ़ती राजनीतिक गर्मी के बावजूद ममता ने अपने पत्र का अंत राज्य के लोगों से आग्रह और निवेदन करते हुए किया है. ममता ने पत्र में लिखा है, "शांत रहें, एकजुट रहें. उनके झूठे सांप्रदायिक बयानों से विचलित न हों. आइए हम सब एक साथ रहें और उनके बुरे प्रचार का मुकाबला करें. आइए हम उनकी गुंडागर्दी और झूठ से लड़ें."
फिर भी जैसे-जैसे बंगाल चुनाव के करीब जा रहा है, सियासी सरगर्मी तो तेज हो ही गई है. मुर्शिदाबाद हिंसा और इस पर जारी सियासी बयानबाजी आने वाले महीनों में इस राजनीतिक कलह को और आगे ले जा सकती है. असली सवाल यह है कि क्या ममता द्वारा बंगाल की बहुलवादी परंपराओं का आह्वान भाजपा के प्रशासनिक विफलता के आरोपों के सामने टिक पाएगा?
अकर्मय दत्ता मजूमदार