लोकसभा चुनाव 2024 : इस बार अमरोहा किसकी जीत पर 'ढोलक' बजाएगा?

अमरोहा लोकसभा सीट पर 2019 में बसपा-सपा के गठबंधन के तहत बसपा के उम्मीदवार दानिश अली चुनाव जीते थे. वे इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, लेकिन 1984 के बाद से इस लोकसभा सीट से कोई उम्मीदवार लगातार दो बार चुनाव नहीं जीता है

अमरोहा रैली में पीएम मोदी को ढोलक भेंट करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
अमरोहा रैली में पीएम मोदी को ढोलक भेंट करते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

जन्म हो विवाह हो या कोई भी और मांगलिक कार्यक्रम, भारत में ढोलक की थाप जरूर सुनाई देती है और जब बात ढोलक की हो तो पश्च‍िमी यूपी में उत्तराखंड की सीमा से सटे अमरोहा का जिक्र होना स्वाभाविक है.

एक तरफ मुरादाबाद तो दूसरी ओर गंगा नदी से सटा यह जिला ढोलक के अलावा आम के बागों के भी लिए मशहूर है. मुरादाबाद से सटे होने की वजह से अमरोहा में पीतल के बर्तन उद्योग भी है. गजरौला यहां का एक औद्योगिक क्षेत्र है जिसमें वासुदेव तीर्थस्थल भी है.

इसका संबंध महाभारत काल के पांडवों के गुप्त वनवास से माना जाता है. माना जाता है कि इस जगह का नाम संभवतः वंशी साम्राज्य के राजा अमरजोध के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने 474 ईसा पूर्व इस क्षेत्र पर शासन किया था. 

ऐसा भी कहा जाता है कि मुगल शासक शाहजहां के काल में संभल के गवर्नर रुस्तम खान ने एक किला बनवाया था और उसके आसपास कुछ व्यापारियों और किसानों को बसाया था. कई प्रसिद्ध हस्तियां जिले के साथ अपने संबंधों को दर्शाने के लिए अपने नाम के साथ अमरोहा या अमरोहवी का इस्तेमाल भी करती हैं. 

अप्रैल 1997 में जिला घोषित किए गए अमरोहा ने पिछले कुछ वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. जिले में नाम परिवर्तन की राजनीति तब देखी गई जब मायावती सरकार ने इसका नाम ज्योतिबा फुले नगर रखा. लेकिन अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार ने इसे वापस बदलकर अमरोहा करने का फैसला किया. यूपी सरकार की एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत एक उत्पाद के रूप में सूचीबद्ध, यहां के 'ढोलक' ने 1984 के बाद से हर लोकसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक धुन बदल दी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 19 अप्रैल को सुबह सवा दस बजे जब अमरोहा के गजरौला इलाके में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर के पक्ष में रैली करने आए तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ढोलक भेंट करके ही उनका स्वागत किया. राम-राम कहकर अपना संबोधन शुरू करने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने ढोलक को अमरोहा की पहचान बताया और कहा कि इसकी थाप दूर तक गूंजती है. 

ढोलक को जीआई टैग दिलवाने में बड़ी भूमिका निभाने पर पीएम ने योगी सरकार की मंच से तारीफ भी की. मोदी ने क्रिकेटर मोहम्मद शमी की तारीफ करते हुए तीन तलाक के जरिये मुसलमानों को भी साधा तो वहीं जरूर वोट डालने की अपील के साथ युवाओं को जोड़ने की कोशिश भी की. प्रधानमंत्री ने अपने 30 मिनट के संबोधन में 25 बार अमरोहा का नाम लिया. 

विपक्षियों पर हमला करने के साथ मोदी बार-बार जनता से सीधे संवाद करते दिखे. इस तरह प्रधानमंत्री ओर सीएम योगी ने अमरोहा में भाजपा के उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर के लिए वोट मांगने में अपनी सरकार के सारे काम भी गिनाए. अमरोहा लोकसभा सीट पर कुल मतदाता 17.13 लाख हैं. 

राजनीतिक दलों के अनुमान के मुताबिक इनमें साढ़े छह लाख मुस्ल‍िम, ढाई लाख जाटव-दलित, डेढ़ लाख जाट, डेढ़ लाख गुर्जर, सवा लाख चौहान, सवा लाख सैनी व अन्य जातियां हैं. बसपा से निलंबित सांसद कुंवर दानिश अली को कांग्रेस-समाजवादी पार्टी गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरने से अमरोहा लोकसभा सीट एक बार फिर चर्चा में है. 

सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने 1984 के बाद से यह सीट नहीं जीती है. आखिरी बार पार्टी के उम्मीदवार राम पाल सिंह ने 39.86% वोटों के साथ जीत दर्ज की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में कुंवर दानिश अली ने 51.39% वोट हासिल कर सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में सीट जीती थी. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मित्रा के निष्कासन पर एनडीए सरकार के प्रस्ताव पर उनके रुख के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने अली को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित कर दिया. 

इस चुनाव में दानिश अली को गुर्जर जाति से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के कंवर सिंह तंवर से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जिन्होंने 2014 में 48.26% वोटों के साथ सीट जीती थी. दानिश अली के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की यूपी में पहली संयुक्त जनसभा 20 अप्रैल को अमरोहा में ही हुई. 

अमरोहा में इंडिया गठबंधन की रैली

मिनी स्टेडियम में अखिलेश यादव के साथ जनसभा में पहुंचे राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी पर जमकर बरसे. वे सामने मौजूद लोगों को गरीबी का बारीकी से गणित समझाते रहे. राहुल गांधी ने 22 लोगों के पास देश के 70 करोड़ लोगों के बराबर धन होने की बात कही और देश की योजनाएं बनाने में महज 90 आईएएस की भूमिका भी बताई. इनमें भी जातीय तड़का लगाते हुए कहा कि 90 आईएएस में दलित, पिछड़ा व आदिवासियों की संख्या ही नहीं है. 

अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने युवाओं व किसानों को रिझाने का भरपूर प्रयास किया. अखिलेश ने कहा कि भाजपा सरकार युवाओं को बेरोजगार रखना चाहती है. वे बोले, "10 साल में भाजपा ने 60 लाख युवाओं का भविष्य अंधकार में डाल दिया है. यह चुनाव हम सबके भविष्य का नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए है."

वहीं राहुल ने कहा कि देश में 30 लाख सरकारी पद खाली हैं. सत्ता में आने पर उन्हें भरा जाएगा. स्नातक पास युवाओं को प्रशिक्षित कर नौकरी पक्की करेंगे. अग्निवीर योजना को खत्म करना प्राथमिकता और पेपर लीक के मामले में कमीशन बनाकर कार्रवाई करने की बात कहकर दोनों नेताओं ने युवा मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

बसपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से डॉक्टर मुजाहिद हुसैन को मैदान में उतारा है. उनकी पत्नी डासना नगर पंचायत की चेयरमैन हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के अलावा, बसपा ने 1999 में भी यह सीट जीती थी जब उसके उम्मीदवार राशिद अल्वी 43.87% वोट हासिल करके निर्वाचित हुए थे. 2024 के चुनाव में पार्टी के इस कदम से मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना है. 

बसपा सुप्रीमो मायावती अमरोहा में दलित-मुस्ल‍िम मतदाताओं के गठजोड़ पर भरोसा कर रही हैं. 21 अप्रैल को अमरोहा के जोया इलाके में मायावती की रैली ने इसकी झलक भी दिखाई. मायावती ने मंच से सीधे तीर मुस्लिम मतदाताओं पर चलाए.

सांसद दानिश अली का नाम लिए बगैर उन्होंने स्पष्ट किया कि बसपा ने इसके पहले चुनाव में भी मुसलमानों को मान-सम्मान दिया था, लेकिन वे लोग (दानिश अली) जीतकर विश्वासघात कर गए. मायावती ने दानिश अली के पाला बदल को मुसलमानों के अलावा दलितों के साथ भी विश्वासघात ठहराने की हर संभव कोशिश की. बसपा सुप्रीमो ने मुस्लिम मतदाताओं की नब्ज पकड़ते हुए कहा कि इस बार भी बसपा ने मुजाहिद हुसैन को प्रत्याशी बनाकर मुस्ल‍िम मतदाताओं का सम्मान किया है.

अमरोहा में मायावती की रैली

अमरोहा में मुस्ल‍िम वोट किसी भी उम्मीदवार को बढ़त दिलाने में निर्णायक साबित हो सकते हैं. अमरोहा के हसनपुर इलाके के एक सरकारी इंटर कॉलेज में प्रवक्ता मंजूर आलम कहते हैं, "पिछले चुनाव में जितनी शिद्दत के साथ मुस्ल‍िम मतदाता तत्कालीन सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के साथ खड़ा रहा, उतना इस बार सपा-कांग्रेस के साथ नहीं है. ज्यादातर वोट भले ही गठबंधन को जा रहा हो लेकिन बसपा उम्मीदवार भी इसमें सेंधमारी करने मे कामयाब हो रहे हैं. इसके अलावा काफी कम लेकिन कुछ संख्या में मुस्ल‍िम लाभार्थ‍ियों का वोट भाजपा को भी मिलने की उम्मीद है.

मंजूर आलम बताते हैं कि दानिश अली ने पिछली बार बसपा के साथ 51 प्रतिशत वोट पाकर भाजपा उम्मीदवार को 60 हजार से अधिक मतों से हराया था. वर्ष 2014 और 2019 में भाजपा को अमरोह लोकसभा सीट पर क्रमश: 48% और 46% वोट मिले थे. जबकि वर्ष 2014 में सपा उम्मीदवार को करीब 34 प्रतिशत और बसपा उम्मीदवार को करीब 15 प्रतिशत वोट मिले थे. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवार के पक्ष में सपा के साथ बसपा और रालोद का परंपरागत वोट एकजुट होने से दानिश अली 51 प्रतिशत वोट पाकर जीत गए थे. 

मंजूर आलम भाजपा के वोट शेयर पर बात करते हुए कहते हैं कि, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वोट में कोई ज्यादा अंतर नहीं आया लेकिन विपक्षी गठबंधन में काफी अंतर दिखाई पड़ा है. इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन को बसपा और रालोद के बगैर कम से कम उतने 46 प्रतिशत वोट पाने की चुनौती है जितना पिछली बार भाजपा ने पाया था.

वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में अमरोहा लोकसभा सीट के तहत आने वाली धनौरा, हसनपुर और गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा सीटें भाजपा ने जीती थीं तो नौगवां सादाता और अमरोहा विधानसभा सीट पर सपा ने कब्जा जमाया था.

अगर सपा-कांग्रेस गठबंधन बसपा से मुस्लिम वोट बचाकर दलित वोट खींचने में कामयाब हो गई तो कमल की राह मुश्क‍िल हो सकती है, नहीं तो त्रिकोणीय चुनावी जंग में रालोद के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी भाजपा को वर्ष 2014 की तरह बड़े अंतर से जीत मिल सकती है. स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक कुछ ऐसा ही गुणा-गणित कर रहे हैं.

अमरोहा लोकसभा सीट के चुनाव परिणामों पर नजर डालने से पता चलता है कि इस क्षेत्र ने पिछले 40 वर्षों के दौरान कभी भी किसी उम्मीदवार को लगातार दो बार जीत नहीं दी है. वर्ष 1984 में यह सीट जीतने वाले कांग्रेस के राम पाल सिंह के बाद, 1989 में जनता दल के हर गोविंद को 50.16% वोटों के साथ निर्वाचित घोषित किया गया था. 

क्रिकेटर से राजनेता बने और यूपी के पूर्व मंत्री चेतन चौहान 1991 और 1998 में भाजपा के टिकट पर दो बार इस सीट से चुने गए और 1996 में समाजवादी पार्टी के प्रताप सिंह ने जीत हासिल की. वर्ष 2004 में हरीश नागपाल निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सांसद बने, जबकि 2009 में रालोद के देवेंद्र नागपाल ने सीट जीती थी. अब वर्तमान सांसद दानिश अली के सामने अमरोहा सीट से जुड़ा मिथक भी तोड़ने की चुनौती भी है.

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