छत्तीसगढ़ में बवाल करने वाले 'सतनामी' कौन हैं जिनका इतिहास ही आंदोलन से भरा है?
सतनामी संप्रदाय का इतिहास गुरु घासीदास से भी पुराना है जिसकी जड़ें कबीर तक भी पहुंचती हैं

अपने धार्मिक प्रतीक 'जैतखंभ' को तोड़े जाने के विरोध में छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज ने बलौदा बाजार जिले के कलेक्ट्रेट ऑफिस में 10 जून को आग लगा दी. सीबीआई जांच की मांग कर रहे लोगों का आरोप था कि प्रशासन दोषियों को बचा रहा है. इस घटना के एक दिन पहले 9 जून को छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा ने घटना की न्यायिक जांच करवाने की बात कही थी.
दरअसल उस दिन बलौदा बाजार में विरोध प्रदर्शन के लिए जुटे सतनामी समुदाय के सदस्यों की छत्तीसगढ़ पुलिस के साथ झड़प हो गई थी. इसके बाद पूरे मामले ने अलग ही मोड़ ले लिया. लेकिन ये सतनामी हैं कौन और किस बात पर आहत होकर इन्होंने पुलिस कप्तान से लेकर कलेक्टर तक का दफ्तर जला दिया? इसके अलावा बाबा घासीदास कौन हैं जिनकी जन्मस्थली इस पूरे मामले की जड़ में है?
सतनामी संप्रदाय का इतिहास गुरु घासीदास से भी पुराना है जिनका जन्म 1756 में हुआ था. इस संप्रदाय की जड़ें कबीर तक भी पहुंचती हैं. कबीर ने निर्गुण भक्ति के सहारे एक निराकार ब्रह्म की पूजा की बात की और इसे उन्होंने अपनी कई कविताओं में सत नाम या सत्य नाम के रूप में संदर्भित किया.
1657 में, कबीर की शिक्षाओं से प्रेरित होकर बीरभान नाम के एक भिक्षु ने वर्तमान हरियाणा के नारनौल में एक सतनामी समुदाय की स्थापना की. शुरुआत में सतनामी संप्रदाय के ज्यादातर लोग 'चमार' जाति से थे. हालांकि, जिस पेशे की वजह से इस जाति का नाम पड़ा, समय के साथ यह समुदाय इसे पेशे से भी दूर जाता रहा है.
मुगलिया दौर की बात करें तो हरियाणा और पंजाब में रहने वाले सतनामियों ने औरंगजेब के शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई और हिंसक तरीके से आंदोलन किया. औरंगजेब ने पूरी ताकत से इस आंदोलन को कुचला और लगभग इस पूरे संप्रदाय का ही खात्मा कर दिया. इसके बाद सीधे अठारहवीं सदी के मध्य में मौजूदा उत्तर प्रदेश में जगजीवनदास और छत्तीसगढ़ में घासीदास ने इस संप्रदाय को फिर से खड़ा किया.
गुरु घासीदास की बात करें तो उनका धार्मिक दर्शन पुराने सतनामियों के दर्शन से मिलता था. 'सतनाम' के जाप से निराकार ईश्वर की पूजा करना ही उनकी सबसे अहम शिक्षा थी. घासीदास की इस शिक्षा ने तथाकथित 'अछूत' सतनामियों को मंदिर में घुसने जैसे प्रतिबंधों के खिलाफ मजबूत किया. इसके अलावा उन्होंने अपने अनुयायियों से मांस खाने और शराब पीने, धूम्रपान करने या तंबाकू चबाने से भी परहेज करने को कहा. कुछ सतनामी अनुयायियों के मुताबिक, घासीदास ने ऐसा संप्रदाय के लोगों में फैली गरीबी को देखते हुए कहा था.
सतनामी समुदाय के इस गुरु ने अपने अनुयायियों को मिट्टी के बर्तनों के बजाय पीतल के बर्तनों का उपयोग करने, चमड़े और शवों के साथ काम करना बंद करने और तुलसी से बने मनकों की माला पहनने के लिए कहा, जैसे वैष्णव और कबीरपंथी पहनते हैं. साथ ही उन्होंने अपनी जाति का नाम छोड़कर 'सतनामी' का इस्तेमाल करने पर जोर दिया.
पिछले कुछ सालों में, कई सतनामियों ने जाति, सहित हिंदू प्रथाओं, विश्वासों और रीति-रिवाजों को अपनाया और खुद को हिंदू धार्मिक मुख्यधारा का हिस्सा मानने लगे. कुछ ने हिंदू देवताओं की मूर्तियों की पूजा करना भी शुरू कर दिया और राजपूत या ब्राह्मण वंश से होने का दावा किया.
अभी की बात करें तो सतनामी एक मुखर राजनीतिक समूह बन चुका है जिसके नेताओं का न केवल संप्रदाय के सदस्यों पर बल्कि छत्तीसगढ़ की बाकी 13 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी पर भी दबदबा है. यह संप्रदाय ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस से जुड़ा रहा, लेकिन 2013 के बाद से, कुछ सतनामी गुरुओं ने कई बार अपनी निष्ठा बदली. आज छत्तीसगढ़ में सतनामी वोट अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच बंटा हुआ है.
छत्तीसगढ़ में सतनामियों की आबादी 25 लाख के करीब है. रविदासिया संप्रदाय की एक शाखा माने जाने वाले इस संप्रदाय से छत्तीसगढ़ के 98फीसदी अनुसूचित जाति के लोग ताल्लुक रखते हैं (हमने ऊपर लिखा है कि 13 फीसदी आबादी पर दबदबा है. यहां लिख रहे हैं कि 98 फीसदी एससी के लोग ताल्लुक रखते हैं). सतनाम समाज के बाबा गुरु घासीदास का जन्मस्थान गिरौदपुरी में है जो इस समाज का एक अहम तीर्थस्थान भी है. 10 जून की घटना गिरौदपुरी से ही जुड़ी हुई है.
हालिया घटना की बात करें तो इंडिया टुडे की सुमी राजप्पन अपनी रिपोर्ट में बताती हैं कि 15-16 मई की रात गिरौदपुरी के अमर गुफा में कुछ लोगों ने तोड़-फोड़ की. यहां सतनामी समाज के प्रतीक चिन्ह जैतखंभ को तोड़ दिया गया था. दरअसल सतनामी समाज के लोग हर गांव में किसी ऊंची या प्रमुख जगह पर खंभे में सफेद झंडा लगाते हैं. इसी झंडे को मूलरूप से जैतखंभ कहते हैं जो इस समाज का प्रतीक है. सबसे बड़ा जैतखंभ गिरौदपुरी में ही है (करीब 77 मीटर) जिसे तोड़ने के बाद से सतनामी संप्रदाय के लोग गुस्साए.
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर बलौदा बाजार में 10 जून को प्रदर्शनकारियों की एक बड़ी भीड़ ने जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) के कार्यालय में आग लगा दी. आगजनी में करीब 100 वाहन जल गए, जबकि पथराव और हिंसा में 50 लोग घायल हो गए.
यह भीड़ सतनामी समुदाय के एक संगठन ‘भीम रेजिमेंट’ ने बुलाई थी. आंदोलन हिंसक हो गया और कलेक्ट्रेट और एसपी कार्यालयों को जला दिया गया. भीड़ ने विरोध जताते हुए डीएम कार्यालय के ध्वज स्तंभ से सतनामी समुदाय से जुड़ा एक सफेद झंडा भी फहराया. घटना के बाद पुलिस ने एक केस दर्ज कर 3 लोगों को गिरफ्तार भी किया था. लेकिन समाज के लोग शांत नहीं हुए. उनका आरोप है कि प्रशासन दोषियों को बचा रहा है. वे सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.
इधर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने घटना के बाद सरकार पर सवाल उठाए और साथ ही लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की.
इस घटना के बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने डीजीपी को बुलाकर एक बैठक की जिसमें उन्होंने घटना को लेकर पूरी रिपोर्ट मांगी है.