पश्च‍िमी यूपी के रण में मायावती चला रहीं जातियों के तीर, क्या है बसपा का गणित?

बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक आधा दर्जन से ज्यादा रैलियां कर चुकी हैं और सभी में जातियों के समीकरण दुरुस्त करने की कोशिश करती दिख रही हैं

Mayawati
बिजनौर की रैली में बसपा प्रमुख मायावती

लोकसभा चुनाव में अकेले उतरी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती की रैलियों का अंदाज इस बार कुछ जुदा है. मतदान के तीन दिन पहले 16 अप्रैल को बिजनौर के नुमाइश मैदान में मायावती की रैली में यह साफ दिख रहा था. 

आमतौर पर बसपा की रैलियों में कांशीराम, डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ दलित महापुरुषों के चित्र दिखाई पड़ते थे लेकिन बिजनौर में इन महानुभावों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का भी चित्र सबको चौंका रहा था. 

बिजनौर लोकसभा सीट पर बसपा के जाट उम्मीदवार चौधरी विजेंद्र सिंह की ताकत बढ़ाने के लिए एक रणनीति के तहत सभा स्थल पर चौधरी चरण सिंह के चित्रों के होर्डिंग लगाए गए थे. सभा में पहुंची मायावती ने मंच से अपने संबोधन की शुरुआत में ‘अपार संख्या और उत्साही भीड़’ का जिक्र करके मौजूद समर्थकों से भावनात्मक रिश्ता जोड़ने की कोशिश की. करीब आधे घंटे के भाषण में मायावती ने डॉ. भीमराव आंबेडकर, कांशीराम के साथ चौधरी चरण सिंह का भी नाम लिया. 

बसपा प्रमुख ने समाजवादी पार्टी (सपा) के शासनकाल में मुजफ्फरनगर के दंगे में जाट समाज का उत्पीड़न होने की बात कहकर सपा को निशाने पर लिया तो अपने शासनकाल में पुलिस भर्ती में बड़ी संख्या में जाट समाज को रोजगार देने की बात कही. इससे दो दिन पहले डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करने वाली मायावती ने वर्ष 2013 में सांप्रदायिक दंगों का दंश झेलने वाले मुजफ्फरनगर की रैली में भी जाट समाज के साथ मुस्ल‍िमों को साधने की हर संभव कोशिश की. उन्होंने सपा पर जाटों और मुसलमानों को लड़ाने का आरोप लगाया. उनका आगे यह भी कहना था, “मुजफ्फरनगर में विरोधी प्रचार करते थे कि बसपा जाटों के खिलाफ है. बसपा जब से बनी है तब से हमने पश्चिम यूपी में जाटों के साथ कोई फसाद नहीं होने दिया.” मुजफ्फरनगर की रैली में अपने भाषण में मायावती ने 11 बार जाट बोलकर इनके साथ दलित, जाट, मुस्लिम, अति पिछड़ा वर्ग का समीकरण बनाने की भरपूर कोशिश की.

बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने 14 अप्रैल को मुजफ्फरनगर के साथ सहारनपुर में रैलियों को संबोधित करके यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की थी. उन्होंने मतदाताओं से यह सुनिश्चित करने की अपील की कि पार्टी का प्रदर्शन यूपी में 2019 के लोकसभा चुनावों जैसा अच्छा रहे. बीते लोकसभा चुनाव में बसपा ने सहारनपुर सहित 10 सीटें जीतीं थीं. सहारनपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं से अपनी पार्टी के लिए वोट करने की अपील की और पार्टी के सहारनपुर उम्मीदवार माजिद अली और कैराना उम्मीदवार श्रीपाल सिंह राणा, जो कि क्षत्रिय वर्ग से आते हैं, के लिए वोट मांगे. 

सहारनपुर और मुजफ्फरनगर की रैलियों के जरिए बसपा सुप्रीमो ने पश्चिम यूपी में मुसलमानों, जाटों, ओबीसी और ठाकुरों तक पहुंच बनाने की कोशि‍श की और बताया कि पार्टी इनमें से हर एक समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों के टिकट वितरण में कैसे निष्पक्ष रही है. उन्होंने अपने भाषण में जोर दिया, "अगर जाट, दलित और मुस्लिम एक साथ आ जाएं तो उन्हें कोई नहीं हरा सकता."

मायावती इस बार उन क्षेत्रों में रैली कर रही हैं जहां पर वे पिछले चुनावों में नहीं पहुंच पाई थीं. बसपा नेता ने इससे पहले वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर में रैली और जनसभा की थी. हालांकि उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनाव में वे यहां कोई जनसभा करने नहीं आईं. इस बार मायावती मुजफ्फरनगर से बसपा के उम्मीवार दारा सिंह प्रजापति के समर्थन में रैली करने पहुंची थीं. मुस्ल‍िम मतदाताओं की खासी आबादी होने के बावजूद बसपा द्वारा ओबीसी उम्मीदवार पर दांव लगाने की वजह भी मायावती ने स्पष्ट की. उन्होंने कहा, “हमारी तमन्ना थी कि इस बार मुस्लिम को मुजफ्फनगर से लोकसभा चुनाव लड़ाया जाए, लेकिन मुस्लिम इस सरकार से इतने डरे हैं कि कोई टिकट के लिए सामने ही नहीं आया. ऐसे में हमें अति पिछड़ा समाज से प्रत्याशी को लड़ाना पड़ा.” 

यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री ने मंच से यह भी बताया कि बसपा ने मुजफ्फरनगर के मूल निवासी मौलाना जमील अहमद कासमी को हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है. “हरिद्वार लोकसभा सीट मुजफ्फरनगर सीट से लगभग सटी हुई है. वे एक सांसद के रूप में हरिद्वार और मुजफ्फरनगर दोनों का प्रतिनिधित्व करेंगे, ” मायावती ने कहा. बसपा प्रमुख भाजपा पर धर्म की आड़ में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करने का आरोप भी अपनी हर रैलियों में लगा रही हैं. वे कहती हैं कि कांग्रेस की तरह भाजपा भी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है. किसानों को साधने के लिए मायावती अपनी रैलियों में यह बताना नहीं भूलतीं कि बसपा सरकार में जितना गन्ने का भाव किसानों को मिला है आज तक किसी सरकार ने नहीं दिया.

इस तरह 14 अप्रैल से यूपी में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर मायावती सोशल इंजीनियरिंग का नया प्रयोग करते हुए जातीय गुलदस्ता सजाती नजर आ रही हैं. पश्चिम की राजनीतिक प्रयोगशाला में उन्होंने जहां मुजफ्फरनगर में मुस्लिम, ठाकुर, त्यागी व ओबीसी मतदाताओं को साधा, वहीं बिजनौर को दोनों सीटों - बिजनौर और नगीना लोकसभा सीट पर पर मुसलमानों के साथ जाट वोटों को जोड़कर बड़ा चुनावी दांव चला. 

अपने भाषण में मायावती ने अपने परंपरागत दलित मतदाताओं को भी चेताया कि “भाजपा और कांग्रेस आपको बांटने और तोड़ने के लिए साम-दाम-दंड और भेद सभी तरीके अपनाएंगी. डराएंगे, धमकाएंगे, इनके झांसे में नहीं आना है.” इसतरह मायावती सहारनपुर, मुजफ्फरनगर से बसपा के चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत करके पहले दो चरण के मतदान में आने वाली लोकसभा सीटों पीलीभीत, मुरादाबाद, बिजनौर में रैली कर चुकी हैं. 

मायावती की रैलियों में दिख रहे बदलाव के बारे राजनीतिक विश्लेषक एक सधी रणनीति देख रहे हैं. बड़ौत (बागपत) के दिगंबर जैन कालेज में प्रोफेसर स्नेहवीर पुंडीर कहते हैं, “यूपी का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ रहीं बसपा प्रमुख जमीनी हकीकत के हिसाब से जातियों को साध रही हैं. पश्च‍िमी यूपी में मुस्ल‍िम के साथ जाट और दलित मतदाता उनकी रैलियों के केंद्र बिंदु हैं. साल 2019 में सपा के साथ गठबंधन से इन्हीं मतदाताओं के समर्थन के जरिए बसपा ने पश्चि‍मी यूपी की चार लोकसभा सीटें जीती थीं. सपा से राहें भले ही अलग हो गई हों लेकिन वे अपने चुनाव प्रचार में 2019 में समर्थन देने वाले मतदाताओं को थामे रखना चाहती हैं.”  पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस मतदाता वर्ग में सभी पार्टियां सेंध लगाना चाहते हैं, जाहिर है कि ऐसे में बसपा के लिए इनको लुभाना आसान तो कतई नहीं है.

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