अगर राज और उद्धव ठाकरे साथ आए तो महाराष्ट्र की राजनीति पर कितना असर पड़ेगा?

महाराष्ट्र की राजनीति में 20 साल बाद एक बार फिर से दोनों भाईयों उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने की चर्चा तेज हो गई है

बाल ठाकरे के साथ उद्धव और राज ठाकरे (फाइल फोटो)
बाल ठाकरे के साथ उद्धव और राज ठाकरे (फाइल फोटो)

19 अप्रैल को फिल्म निर्देशक और अभिनेता महेश मांजरेकर ने अपने यूट्यूब चैनल पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे का इंटरव्यू प्रसारित किया. इस इसमें उद्धव ठाकरे के साथ गठबंधन के सवाल पर राज ठाकरे ने बेबाकी से जवाब दिया.

राज ने कहा, "किसी भी बड़ी बात के सामने हमारे विवाद या हमारे झगड़े बहुत छोटे हैं. महाराष्ट्र बहुत बड़ा है. महाराष्ट्र के अस्तित्व, मराठी लोगों के अस्तित्व के सामने ये झगड़े और विवाद बहुत ही मामूली हैं. मुझे नहीं लगता कि साथ आने या साथ रहने में कोई मुश्किल है, लेकिन मुद्दा केवल इच्छा का है."

उद्धव ठाकरे ने भी एक जनसभा को संबोधित करते हुए राज के बयान पर कहा, “अगर कोई छोटा-मोटा विवाद हो, तो भी मैं महाराष्ट्र के हित के लिए मिलकर काम करने को तैयार हूं." हालांकि, उन्होंने एक शर्त ये भी रखी है कि राज ठाकरे महाराष्ट्र और शिवसेना (UBT) के दुश्मनों को अपने घर में जगह न दें.

उद्धव और राज के इन बयानों के बाद से ही एक बार फिर से महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों भाईयों के साथ आने की चर्चा तेज हो गई है. लेकिन, क्या सच में दोनों भाई साथ आ सकते हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में इसका कितना असर पड़ सकता है?

इस सवाल का जवाब शिवसेना (UBT) के मुखपत्र ‘सामना' के संपादकीय में मिलता है. इस बार के संपादकीय में उद्धव-राज के बीच पुराने विवादों के कारणों का जिक्र करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि महाराष्ट्र के व्यापक हित के लिए दोनों नेता एकजुट होने को तैयार हैं, लेकिन कुछ शर्तों के साथ.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार का कहना है कि पिछले दो-तीन दिनों में दोनों ओर से जिस तरह की खबरें सामने आई, उसे देखकर यही लगता है कि दोनों भाई एक बार फिर साथ आ सकते हैं.

अगर बिहार में लालू और नीतीश साथ आ सकते हैं, दिल्ली में आप और कांग्रेस मिलकर सरकार बना सकती है तो ऐसे में उद्धव और राज साथ आ जाएं तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी.

वहीं, पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई कहते हैं कि हमारे देश में गठबंधन की राजनीति दलों के मजबूती के आधार पर होती है, कमजोरी के आधार पर नहीं होती है. इस समय ठाकरे परिवार के दोनों नेता राज हों या उद्धव कमजोर हैं. ये साथ आ सकते हैं, लेकिन कमजोर होकर इनका साथ आना कितना असर दिखाएगा, ये वक्त बताएगा.

रशीद आगे बताते हैं कि अरबी भाषा में एक कहावत है कि 'मी एंड माय ब्रदर्श अगेंस्ट कजिन' और 'मी एंड माय कजिन अगेंस्ट अर्स'. इसका मतलब ये हुआ कि मैं और मेरा भाई मेरे चचेरे भाईयों के खिलाफ साथ होते हैं, जबकि दूसरों के खिलाफ लड़ाई में मैं और चचेरे भाई साथ होते हैं. कुछ इसी तरह का राजनीतिक गठबंधन इन दोनों भाईयों के बीच होता हुआ दिख रहा है.  

ठाकरे बंधुओं के मिलने पर महाराष्ट्र की राजनीति पर कितना असर पड़ सकता है?

शिवसेना से अलग होने के बाद मार्च 2006 में राज ठाकरे ने MNS के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बनाई. करीब 4 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में राज की पार्टी प्रदेश की सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ी. इनमें से 13 सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई. 5.71 फीसद वोट के साथ पार्ट राज्य की पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई.

2014 विधानसभा चुनाव में दोबारा उनकी पार्टी ने जोर लगाया और 219 सीटों पर चुनाव लड़ा. इस बार सिर्फ 1 सीट पर MNS के नेता को जीत हासिल हुई. पिछली विधानसभा की तुलना में इस बार 12 सीटों का नुकसान हो गया. लेकिन एक बार फिर से MNS को राज्य की 3.15 फीसद लोगों का वोट हासिल हुआ.

2019 विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी 218 सीटों पर चुनाव लड़ी और इस बार भी सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल कर सकी. हालांकि, इस बार MNS को सिर्फ 2.25 फीसद वोट हासिल हुए.

हाल में हुए 2024 विधानसभा चुनाव में 125 सीटों पर MNS ने अपने उम्मीदवार उतारे. इनमें से एक भी कैंडिडेट को जीत नहीं हासिल हुई. हालांकि, इस बार भी पार्टी को राज्य में 1.6 फीसद वोट हासिल हुए.

अगर सिर्फ विधानसभा चुनाव के ही डेटा को देखें तो भी साफ है कि राज ठाकरे की पार्टी भले शून्य या एक सीट पर जीत हासिल करे, लेकिन उसके पास औसतन 2 से सवा 2 फीसदी वोटबैंक जरूर है.  

इतना ही नहीं प्रदेश की करीब 19 सीटें ऐसी है, जहां पहले और दूसरे नंबर पर रहे कैंडिडेट के वोटों के अंतर से ज्यादा MNS को वोट मिले हैं. मतलब ये हुआ कि अगर इन सीटों पर दूसरे नंबर के दलों को MNS का समर्थन हासिल होता तो वो पार्टी इन सीटों पर जीत सकती थी.

इन 19 सीटों में से 11 सीटें तो उद्धव की पार्टी को ही मिलीं, जबकि 8 सीटों पर NDA उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई. इनमें 3 बीजेपी, 3 एनसीपी (अजित गुट) और 2 शिंदे की शिवसेना को मिले. मतलब अगर उद्धव और राज साथ होते तो शायद प्रदेश की इन 8 सीटों पर जीत हासिल कर सकते थे.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार के मुताबिक अगर दोनों भाई साथ आते हैं तो दोनों का फायदा ही है. कम से कम 2 से ढाई फीसद वोट उद्धव की पार्टी के साथ आ सकता है. 2024 विधानसभा चुनाव में 12.5 फीसद वोट के साथ कांग्रेस और शिंदे की शिवसेना राज्य में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने में दूसरे स्थान पर रही थी. वहीं, 10 फीसद वोट के साथ उद्धव ठाकरे चौथे स्थान पर रहे थे. ऐसे में राज के साथ आने पर ढाई फीसद और वोट मिलने पर शिवसेना दूसरी या तीसरी सबसे ज्यादा वोट हासिल करने वाली पार्टी बन सकती है.

इसके साथ ही संजय कुमार ने कहा कि दोनों भाईयों के साथ आने पर फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति पर दो तरह से असर पड़ने की संभावना है:

1. मराठी मानुष की राजनीति मजबूत होगी और मुंबई समेत इसके आसपास के क्षेत्रों में एक बार फिर से ठाकरे परिवार का राजनीतिक कद बढ़ सकता है. शहर में मराठी भाषी आबादी 30-35 फीसदी है और अगर उद्धव और राज की संयुक्त ताकत इस वोट बैंक को मजबूत करने में कामयाब हो जाती है, तो वह अपने आप ही एक प्रमुख खिलाड़ी बन जाएगी.

2. गठबंधन की सरकार में एकनाथ शिंदे की हैसियत काफी कम रह गई है. ऐसे में शिवसेना और बाल साहेब के नाम से वह जो वोट हासिल कर रहे थे, उनमें बड़ा हिस्सा ठाकरे परिवार की पार्टी की तरफ शिफ्ट कर सकता है.

दोनों भाईयों के साथ आने के बावजूद फिलहाल ऐसा नहीं लगता है कि वो महाराष्ट्र की सत्ता तक पहुंच पाएंगे. हालांकि, इस गठबंधन की वजह से मुंबई म्युनिसिपल चुनाव में उन्हें जरूर फायदा मिल सकता है.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है कि बाला साहेब ने जब पार्टी बनाकर राजनीति की शुरुआत की थी, तब वॉर्ड और म्यूनिसिपल का चुनाव उनके लिए बेहद अहम था. उनका मानना था कि इन लोकल चुनावों में जीत हासिल करने से पार्टी की ताकत बढ़ती है और इसी के बल पर वो राज्य की सत्ता तक पहुंच पाए थे. अगर इन दोनों भाईयों के बीच गठबंधन होता है तो आने वाले म्युनिसिपल चुनाव में उन्हें इसका काफी फायदा मिलेगा.

दोनों भाइयों को साथ लाने के लिए काम कर रहे शिवसेना (यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं, "उद्धव और राज दोनों ही फिसलन भरी जमीन पर खड़े हैं. अगर वे अकेले चुनाव लड़ते हैं, तो हार लगभग तय है. जैसा कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आपने देखा कि हमारी पार्टी 20 सीटों पर ही रह गई. लेकिन, अगर दोनों नेता परिपक्वता दिखाते हैं और हाथ मिलाते हैं, तो उनके मजबूत होकर उभरने की काफी अच्छी संभावना है."

क्या नेतृत्व को लेकर दोनों भाई दोबारा टकरा सकते हैं?

पॉलिटिकल एक्सपर्ट संजय कुमार का कहना है कि टकराव पद के लिए होती है. जब आप सत्ता में होते हैं तब पद के लिए आपस में ठनती है. अभी शिवसेना के लिए संघर्ष की घड़ी है. इसलिए अगर ठाकरे बंधु साथ आते हैं तो फिलहाल दो-तीन साल सब आसानी से चल सकता है.

उन्होंने कहा कि क्रिकेट की तरह भारतीय राजनीति में भी अगर किसी दल के पास एक एग्रेसिव और दूसरा डिफेंसिव नेचर का नेता है तो उसे बेहतर माना जाता है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह इसके उदाहरण हैं. हर कोई जानता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में राज ठाकरे एग्रेसिव नेता हैं और उद्धव डिफेंसिव मोड में आगे बढ़ते हैं. अगर दोनों भाईयों की ये जोड़ी साथ आती है तो इसका फायदा मिलना तय है, हालांकि यह कितना मिलेगा यह उनकी राजनीति के तौर तरीके पर निर्भर करेगा.

आने वाले समय में अगर वो सत्ता में आते हैं, तब पद के लिए टकराव हो सकता है कि कौन सबसे ताकतवर पद पर बैठेगा. फिलहाल ऐसी स्थिति नहीं है. अभी तो दोनों भाई अपने बच्चों के लिए राजनीतिक साख बचाने की कोशिश कर रहे हैं.

राज ठाकरे के बेटे अमित चुनाव हार चुके हैं. आदित्य की पैठ भी जनता में ज्यादा मजबूत नहीं है. ऐसे में फिलहाल वारिस को सत्ता ट्रांसफर की लड़ाई भी नहीं होनी है.

आखिर कब और क्यों उद्धव से अलग हुए थे राज ठाकरे?

साल 2002 में शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने अपने भतीजे के बजाय बेटे उद्धव को मुंबई महानगर पालिका (BMC) के चुनाव की जिम्मेदारी दी. उनके इस फैसले से राज ठाकरे को काफी नाराजगी हुई. राज ने एक इंटरव्यू में बालासाहेब के फैसले के खिलाफ खुलकर नाराजगी जाहिर की थी.  

अगले ही साल 2003 की शुरुआत में महाबलेश्वर में आयोजित पार्टी की एक बैठक में उद्धव को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पेश कर बालासाहेब ने अपनी मंशा साफ कर दी. शिवसेना प्रमुख के इस फैसले से राज ठाकरे काफी नाराज हुए क्योंकि इससे पहले पार्टी में उनकी नंबर दो की हैसियत थी.

2005 में आखिरकार उन्होंने शिवसेना से अलग होने का फैसला किया. मार्च 2006 में राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी MNS के नाम से एक नई पार्टी बनाई थी. अब करीब 19 साल बाद एक बार फिर से दोनों भाईयों के साथ आने की चर्चा हो रही है.

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