यूपी की वे लोकसभा सीटें जो रहीं प्रधानमंत्रियों की पहली पसंद, इस बार कौन हैं उम्मीदवार?

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उत्तर प्रदेश ने अभी तक कुल 9 प्रधानमंत्रियों को अलग-अलग सीटों से जिताया है

उत्तर प्रदेश की वे सीटें जहां से प्रधानमंत्रियों ने लड़ा चुनाव
उत्तर प्रदेश की वे सीटें जहां से प्रधानमंत्रियों ने लड़ा चुनाव

लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल से शुरू होनी है. इलेक्शन कमीशन के ऐलान के मुताबिक यह आम चुनाव 7 चरणों की वोटिंग में कराया जाएगा वहीं नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे. बिहार और पश्चिम बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जिसमें सभी सातों चरणों में वोटिंग कराई जाएगी.

इसके अलावा सबसे ज्यादा, 80 लोकसभा सीटें होने की वजह से यह सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों के लिए सबसे अहम राज्य भी है. राजनीतिक रूप से उत्तर प्रदेश के महत्व को इस बात से भी समझा जाता है कि हमेशा से ही यह सूबा प्रधानमंत्रियों की पहली पसंद भी रहा है.

उत्तर प्रदेश ने अभी तक कुल 9 प्रधानमंत्रियों को अलग-अलग सीटों से जिताया है. यहां हम उन सीटों का जिक्र कर रहे हैं जहां से प्रधानमंत्री बनने वाले या इस पद के दावेदारों ने चुनाव लड़ा था.

फूलपुर

इस लिस्ट में सबसे पहला नाम आता है प्रयागराज (इलाहाबाद) जिले के अंदर आने वाली फूलपुर सीट का. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1952 में अपना पहला चुनाव इसी सीट से लड़ा था और यहीं से वे लगातार तीन बार संसद भी पहुंचे. नेहरू के अलावा यह सीट साल 1971 में भारत के एक और पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी जिताकर संसद का रास्ता दिखा चुकी है. जवाहरलाल नेहरू साल 1951 से लेकर 1964 तक देश के प्रधानमंत्री रहे.

लंबे वक्त तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रही थी. यहां तक कि जब बीजेपी 'राम मंदिर' के रथ पर सवार हो चुनावी मैदान में उतरी उस वक्त भी फूलपुर ने बीजेपी को जीत का हार नहीं पहनाया. लेकिन साल 2014 में भगवा पार्टी 'मोदी लहर' की बदौलत कांग्रेस के इस गढ़ को भेदने में कामयाब रही. साल 2014 में फूलपुर से बीजेपी के केशव प्रसाद मौर्य ने जीत दर्ज की.

वहीं साल 2019 में बीजेपी की केशरी देवी पटेल ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया. केशरी देवी ने सपा के पंधारी यादव और कांग्रेस के पंकज पटेल को हराते हुए 54,4701 वोटों से जीत दर्ज की थी. वहीं अगर 2024 की बात करें तो बीजेपी ने इस बार यहां से फूलपुर की विधानसभा सीट के विधायक प्रवीण पटेल को उम्मीदवार बनाया है. वहीं सपा से अमरनाथ मौर्य उनके खिलाफ मैदान में हैं. हालांकि अभी तक कांग्रेस और बसपा ने इस सीट से अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. 

इलाहाबाद (प्रयागराज)

स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त क्रांतिकारियों का गढ़ रहा यह शहर देश और उत्तर प्रदेश की राजनीति का भी केंद्र रहा. जहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसी जिले की फूलपुर सीट से सांसद थे तो वहीं लालबहादुर शास्त्री ने भी संसद और प्रधानमंत्री तक की कुर्सी के सफर को तय करने के लिए इलाहाबाद को ही चुना.

साल 1957 और 1962 के लोकसभा चुनाव में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री इलाहाबाद से जीत कर संसद तक पहुंचे. लाल बहादुर शास्त्री 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे. 

इसके अलावा साल 1980 और 1988 के चुनावों में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने भी इसी सीट से जीत दर्ज की थी. अगर 2019 लोकसभा चुनावों की बात करें तो यहां से रीता बहुगुणा जोशी ने जीत दर्ज की थी. जोशी ने इस चुनाव में सपा के राजेंद्र सिंह पटेल और कांग्रेस के योगेश शुक्ला को हराया था. वहीं 2024 की बात करें तो इस सीट पर छठे चरण के तहत 26 मई को वोट डाले जाएंगे. जहां कांग्रेस की तरफ से पूर्व समाजवादी नेता उज्जवल रमण सिंह मैदान में हैं तो वहीं बीजेपी ने पूर्व राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी पर अपना दांव खेला है. 

रायबरेली

रायबरेली ना सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत की सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में से एक मानी जाती है. इसकी दो बड़ी वजहें हैं. पहली है पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और दूसरी उनकी ही बहू सोनिया गांधी. कांग्रेस के सबसे मजबूत किलों में से एक यह सीट केवल तीन बार गैर-कांग्रेसी नेताओं के पाले में गई है. 1951 के पहले आम चुनाव में यहां इंदिरा गांधी के पति फीरोज गांधी ने जीत दर्ज की थी.

साल 1967 के आम चुनावों में इंदिरा गांधी ने यहां सबसे पहले अपनी किस्मत आजमाई जिसमें वे कामयाब भी रहीं. इंदिरा ने इस सीट से साल 1971 और फिर 1980 में भी जीत दर्ज की. इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं. इसके अलावा 1980 से 1984 तक के कार्यकाल में भी इंदिरा ने देश के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला.

वहीं साल 2004 से लेकर 2019 तक लगातार यह सीट सोनिया गांधी के कब्जे में रही. 2019 में सोनिया ने यहां से बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह को हराया था. हालांकि 2024 के चुनाव में रायबरेली को एक नया सांसद मिलेगा, क्योंकि सोनिया गांधी अब यहां से चुनाव नहीं लड़ रही हैं. अभी तक किसी भी पार्टी ने रायबरेली सीट से अपने उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया है.

अमेठी

रायबरेली के अलावा अमेठी भी कांग्रेस के सबसे मजबूत किलों में से एक रही है. एक वक्त यह सीट और कांग्रेस एक दूसरे का पर्याय भी समझे जाते थे. यह सीट 1967 से अस्तित्व में आई थी. 1977 में संजय गांधी ने यहां से चुनाव लड़ा था हालांकि वे अपने विरोधी रविंद्र प्रताप सिंह से हार गए थे. वहीं साल 1984 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी चुनाव लड़ने के लिए अमेठी को ही चुना था. साल 1984 से लेकर 1989 तक राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री रहे. 

इसके बाद साल 2004 में राहुल गांधी ने भी अपने राजनीतिक करियर का आगाज अमेठी की सीट से ही किया था. हालांकि साल 2019 के चुनाव में राहुल ने अपने सबसे मजबूत किलों में से एक अमेठी को स्मृति ईरानी के हाथों गंवा भी दिया. स्मृति 2024 में भी अमेठी से ही चुनावी मैदान में हैं लेकिन कांग्रेस ने अभी तक इस सीट पर किसी उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है.

बलिया

इस सीट को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की राजनातिक कर्मभूमि भी कहा जाता है. साल 1977 के चुनाव में उन्होंने पहली बार यहां से जीत दर्ज की थी. इसके बाद वे इसी सीट से 8 बार जीतकर संसद तक पहुंचे. चंद्रशेखर 1990 से लेकर 1991 तक देश के प्रधानमंत्री रहे. वहीं 2019 के चुनावों में इस सीट से बीजेपी के वीरेंद्र सिंह 'मस्त' ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सनातन पांडे को 15 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. हालांकि 2024 के आम चुनावों में बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर पर दांव खेला है.

फतेहपुर

साल 1957 में इस सीट पर पहली बार चुनाव हुआ था. वहीं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह भी 1989 और फिर 1991 के चुनाव में यहां से जीत कर सांसद बने थे. वीपी सिंह 1990 से 1991 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे थे. 2019 के आम चुनावों मे इस सीट से बीजेपी की साध्वी निरंजन ज्योति ने बहुजन समाज पार्टी के सुखदेव प्रसाद वर्मा को हराया था. 2024 के चुनावों में भी बीजेपी ने इन पर भरोसा जताया है.

बागपत

बागपत सीट पहली बार साल 1967 में वजूद में आई थी. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह 1977 से लेकर 1984 तक इसी सीट से सांसद रहे. वहीं 1979 से लेकर 1980 तक चरण सिंह प्रधानमंत्री भी रहे. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने आरएलडी के जयंत चौधरी को इस सीट पर हराया था. 2024 के आम चुनावों में इस सीट से आरएलडी और एनडीए उम्मीदवार राजकुमार सांगवान का मुकाबला इंडिया गठबंधन के अमरपाल शर्मा और बसपा के प्रवीण बैंसला से होगा.

लखनऊ

लखनऊ लोकसभा सीट बीजेपी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पारंपरिक सीट माना जाती है. 90 के दशक से ही इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 1991 में यहां से चुनाव लड़ा और 1 लाख से भी ज्यादा वोटों से जीते.

हालांकि लखनऊ से पहले वाजपेयी बलरामपुर सीट से जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे. साल 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 16 दिनों के लिए प्रधानमंत्री बने. इसके बाद 1998 में वे एक बार फिर से प्रधानमंत्री चुने गए और फिर 199 में अटल बिहारी वाजपेयी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बने. 

वहीं अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो लखनऊ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सपा की पूनम शत्रुघ्न सिन्हा को हराया था. 2024 के लोकसभा चुनावों में इस सीट से अभी तक किसी भी पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.

वाराणसी

साल 2014 से पहले शायद ही कभी वाराणसी सीट की गूंज देश के राजनीतिक गलियारों में सुनाई दी हो. हालांकि 2009 के चुनाव में भाजपा के ही वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने यहां से जीत दर्ज की थी. लेकिन 2014 में जब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी को चुना तभी से यह सीट भारत की सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल है. 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के अजय राय को हराया और वाराणसी के सांसद सहित देश के प्रधानमंत्री भी बने. वहीं 2019 के चुनावों में भी मोदी अजय राय को हराते हुए पीएम बने. 2024 के चुनावों में एक बार फिर प्रधानमंत्री वाराणसी सीट से ही चुनाव लड़ने जा रहे हैं. मोदी के खिलाफ इंडिया गठबंधन के अजय राय और बसपा के अतहर जमाल लारी मैदान में हैं.

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