राजस्थान का मेहरानगढ़ हादसा: 200 से ज्यादा की मौत, 16 साल इंतजार, लेकिन दोषी कोई नहीं!

राजस्थान में मेहरानगढ़ हादसा साल 2008 में हुआ था और इसकी रिपोर्ट 2011 में सरकार को सौंपी गई, लेकिन इसे आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया

मेहरानगढ़ किले में मची भगदड़ के बाद घायल को कंधे पर ले जाता पुलिसकर्मी, 30 सितंबर, 2008 (इंडिया टुडे)
मेहरानगढ़ किले में मची भगदड़ के बाद घायल को कंधे पर ले जाता पुलिसकर्मी, 30 सितंबर, 2008 (इंडिया टुडे)

उत्तर प्रदेश में हाथरस की घटना ने राजस्थान के मेहरानगढ़ फोर्ट हादसे की याद ताजा कर दी है. 30 सितंबर 2008 को शारदीय नवरात्र के दिन मेहरानगढ़ किले के चामुंडा माता मंदिर में खूनी भगदड़ मचने से 216 लोगों की जान चली गई थी और 400 से ज्यादा लोग घायल हुए.

आजादी के बाद यह देश की इस तरह की तीसरी सबसे बड़ी त्रासदी थी. मेहरानगढ़ हादसे का जिक्र इसलिए भी किया जा रहा है कि 16 साल बाद भी इस घटना में यह तय नहीं हो पाया है कि इस हादसे के लिए जिम्मेदार और दोषी कौन था?

2 अक्टूबर 2008 को तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने इस मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था. जस्टिस जसराज चोपड़ा को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. चोपड़ा आयोग ने 11 मई 2011 को तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

ताज्जुब की बात ये है कि 2011 के बाद से राजस्थान में तीन सरकारें आईं, लेकिन किसी ने भी न तो चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक की और न ही इस हादसे के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जहमत उठाई.

ग्राउंड जीरो की तसवीर, मेहरानगढ़ किला, 30 सितंबर, 2008/इंडिया टुडे

जस्टिस चोपड़ा का कहना था कि उन्होंने विस्तृत जांच के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में प्रमुखता के साथ यह बताया गया था कि इस हादसे के जिम्मेदार और दोषी कौन हैं. भविष्य में मेहरानगढ़ जैसे हादसे न हों, इसके लिए भी रिपोर्ट में सुझाव दिए गए थे.

जस्टिस चोपड़ा का यह भी कहना था कि जांच के दौरान मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट, पुलिस और प्रशासन ने एक दूसरे के खिलाफ विरोधाभासी बयान दिए थे, लेकिन आयोग ने गहन पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी. चोपड़ा आयोग ने 222 पीड़ित परिवारों, 59 अफसरों और मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के पदाधिकारियों के बयान लेकर यह रिपोर्ट तैयार की थी जिस पर करीब ढाई करोड़ रुपये खर्च हुए.

उस वक्त ट्रस्ट ने यह बयान दिया था कि कुछ दर्शनार्थी शराब के नशे में थे, और इन्हीं लोगों की वजह से हादसा हुआ. हालांकि ट्रस्ट के इस बयान पर पीड़ित परिवारों का कहना था कि सुबह चार बजे शराब पीकर कौन मंदिर जाता है? इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले आत्म प्रकाश चौहान ने ट्रस्ट के इस जवाब पर कहा था, "हादसे में मरने वाले लोगों को जिम्मेदार ठहराकर ट्रस्ट अपनी गलती छिपा रहा है."

मेहरानगढ़ हादसे की फिलहाल राजस्थान हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस मामले में एक आयोग और दो कैबिनेट उप समितियों की रिपोर्ट कोर्ट में पेश हो चुकी है. एक माह पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद ने कोर्ट में यह हवाला दिया कि सामाजिक सद्भाव और शांति व्यवस्था के मद्देनजर इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाए. वहीं पीड़ित पक्ष की ओर से सवाल उठाया गया कि 216 लोगों की मौत के जिम्मेदार लोगों के नाम उजागर करने में आखिर सद्भाव बिगड़ने में किस तरह का डर है. इस मामले में अगली सुनवाई अब 29 जुलाई को रखी गई है.

राजस्थान में अब तक तीन सरकारें इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से मुकर चुकी हैं. पहले पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने मेहरानगढ़ त्रासदी की जांच के लिए गठित जस्टिस चोपड़ा रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया. वसुंधरा राजे सरकार ने भी कानून और व्यवस्था बिगड़ने का हवाला देकर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया. अब मौजूदा भजन लाल सरकार भी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से मना कर चुकी है.

पिछले 15-16 सालों से मेहरानगढ़ हादसा लगातार सुर्खियों में बना रहा है. पीड़ित परिवार रिपोर्ट सार्वजनिक करने और हादसे के दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते रहे हैं. पीड़ित परिवार हादसे के बाद पुनर्वास और मुआवजे में भी भेदभाव के आरोप लगाते रहे हैं जिसे लेकर अगस्त 2022 में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने पीड़ित परिवारों को राहत मिली या नहीं, इसके आकलन के लिए 10 सर्वे दलों का गठन किया था.

मेहरानगढ़ हादसे के 15 साल बाद सरकार ने सार्वजनिक मेलों के आयोजन के लिए कानून बनाया. इस कानून में बिना पुलिस और प्रशासन की अनुमति के मेलों का आयोजन नहीं किए जाने, मेला स्थल पर सुरक्षा, पार्किंग, अग्निशमन और एम्बुलेंस की व्यवस्था करने, बिना अनुमति मेला आयोजन करने वाले लोगों को एक वर्ष तक की सजा और मेला स्थल पर लापरवाही होने पर आयोजकों को दो साल की जेल से दंडित किए जाने का प्रावधान किया गया था.

मेहरानगढ़ : एक ऐसा गढ़ जिसकी नींव मानव बलि पर रखी गई!

मेहरानगढ़ किला जोधपुर में 410 फीट ऊंची एक समतल पहाड़ी पर बना है. इस किले का निर्माण 1459 ईस्वी में जोधपुर के राजपूत राठौड़ वंश के राजा राव जोधा के समय प्रारंभ हुआ और महाराज जसवंत सिंह के काल में पूरा हुआ. किले का नाम मेहरानगढ़ रखा गया, जिसका अर्थ है -  'सूर्य का किला'. यह देश के सबसे बड़े किलो में से एक है जो पहाड़ी पर करीब पांच किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है.

राजस्थान का मेहरानगढ़ किला

इस किले को मेहरानगढ़ के अलावा कागमुखीगढ़, सूर्यगढ़, चिड़ियाटुक गढ़, चिंतामणि गढ़ और मयूरध्वज गढ़ के नाम से भी जाना जाता है. मेहरानगढ़ किले में चामुंडा माता का मंदिर और भूरे खां की मजार है. चामुंडा माता के मंदिर में 2008 तक शारदीय नवरात्र के अवसर पर विशाल मेला लगता था जिसमें जोधपुर ही नहीं बल्कि आस-पास के अन्य जिलों से भी बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते थे.

2008 के हादसे के बाद यहां मेले का आयोजन बंद कर दिया गया. पौराणिक किंवदंतियों के अनुसार मेहरानगढ़ किले की नींव राजाराम मेघवाल नाम के एक दलित ग्वाले की बलि देकर रखी गई थी.

राजस्थान के राजनीतिक विश्लेषक त्रिभुवन ने अपनी किताब 'शूद्र' में इस किले का जिक्र करते हुए लिखा है, "कलुषित कथा मेहरानगढ़ की/किले के लिए मानव वध की/ पहली मई 1459 की घड़ी थी/नभ से फूटी रक्त की झड़ी थी/गाढ़ी नींद में उठाया उसे/और नींव में जमाया उसे/वह आधारशिला बन गया/और उस पर दुर्ग चिन गया."

हाथरस त्रासदी के बाद अब फिर से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या मेहरानगढ़ में 216 लोगों की मौत के जिम्मेदार और दोषी लोगों के नाम कभी सार्वजनिक हो पाएंगे?

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