दिल्ली चुनाव : आंकड़ों में AAP को बीजेपी पर बढ़त, लेकिन नैरेटिव में कांटे की टक्कर!
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पांच फरवरी को वोट डाले जाएंगे जबकि 8 फरवरी को नतीजों की घोषणा होगी

दिल्ली में जिस 'शीशमहल' (आजकल सीएम हाउस को यही कहा जा रहा है) पर कब्जा जमाने के लिए जिन दो मुख्य पार्टियों में रस्साकशी चल रही है, वे हैं - आम आदमी पार्टी यानी आप और बीजेपी. तीसरी प्रमुख पार्टी कांग्रेस भी विधानसभा के इस चुनावी अखाड़े में अपना पूरा दमखम ठोक रही है, हालांकि इस रस्साकशी के खेल में उसे फिलहाल सत्ता का दावेदार तो नहीं ही माना जा रहा. हालांकि इसका मतलब ये नहीं है कि नतीजों में उसका कोई योगदान नहीं होगा.
पांच फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के तीन दिन बाद 8 फरवरी को नतीजे जारी होंगे. इसके बाद साफ हो जाएगा कि दिल्ली का ताज किस पार्टी के नेता के सिर पर होगा. हालांकि दिल्ली में हुए पिछले तीन चुनावों के डेटा का एनालिसिस करें तो इससे कुछ बड़े ही दिलचस्प नतीजे निकलते हैं.
दिल्ली विधानसभा की मौजूदा स्थिति
इन आंकड़ों के तीन बड़े रुझान
1. केजरीवाल को हराने के लिए BJP को दोहराना होगा लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन
दिल्ली में हुए पिछले चुनावों के डेटा पर गौर करें तो एक सीधी और साफ बात ये समझ में आती है कि दिल्लीवासियों का मूड लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुताबिक बदलता रहता है.
कभी दिल्ली के विधानसभा स्टेटस के लिए लड़ाई लड़ने वाली बीजेपी ने 1993 में 49 सीटें जीतकर मदनलाल खुराना की अगुआई में सरकार बनाई थी, लेकिन यह कहानी लंबी नहीं चली. 1998 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की शीला दीक्षित ने बीजेपी को ऐसा बाहर का रास्ता दिखाया कि भगवा दल अब भी वापसी के लिए जद्दोजहद में है. 2013 में शीला दीक्षित से कमान लेने के बाद आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी अब तक प्रदेश की दशा-दिशा तय कर रही है.
लेकिन लोकसभा चुनावों की बात करें तो 2014 के बाद अब आप या फिर कांग्रेस, भगवा दल के आगे कहीं नहीं ठहरते. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की सभी सात लोकसभा सीटें जीतीं.
डेटा पर नजर फिराएं तो 2014 के बाद से बीजेपी को हर चुनाव में 33 फीसद से ज्यादा वोट मिले हैं. 2014 में करीब 46 फीसद तो उसके बाद लगातार दोनों लोकसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 50 फीसद से ऊपर रहा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में 56 और 2024 के आम चुनाव में ये 54 फीसद रहा. यही वजह है कि बीजेपी आम चुनावों में दिल्ली में कमाल का प्रदर्शन करती रही है.
लेकिन बात जब विधानसभा की आती है तब बीजेपी का वोट शेयर अपने कोर वोटरों (33-39 फीसद) के गिर्द ही सिमटता नजर आता है. जैसे 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 39 फीसद के करीब रहा. वोट शेयर में इस कमी का सीधा फायदा या तो आप या फिर कांग्रेस को होता है. जैसे कि बीते विधानसभा चुनाव में आप का वोट शेयर करीब 53 फीसद था. यही वजह है कि आप प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को अब तक हराती आई है.
अगर बीजेपी को विधानसभा चुनाव 2025 में जीतकर दिल्ली में सरकार बनानी है तो इसके लिए उसे लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराना होगा. अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली के चुनाव परिणाम पैटर्न में 1998 के बाद इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.
2. 2020 के बाद दिल्ली में लगातार बढ़ रहा कांग्रेस का वोट शेयर
2013 में कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार जाने के बाद दिल्ली में पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन साल 2020 के विधानसभा चुनावों में रहा. इसमें कांग्रेस की झोली में महज 4.26 फीसद वोट ही गिरे. 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की तरह इस बार भी कांग्रेस का एक भी विधायक सदन में नहीं पहुंचा. लेकिन इसके बाद हुए दो और चुनावों में आंकड़ों को देखें तो कांग्रेस के लिए थोड़ी राहत की बात जरूर हुई है. 2022 के एमसीडी चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर 12 फीसद जा पहुंचा. यानी दो साल पहले हुए विधानसभा चुनावों की तुलना में इसमें आठ फीसद की बढ़ोत्तरी हुई.
2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े कांग्रेस के लिए और भी सुहावने रहे. पार्टी का वोट शेयर 18.91 फीसद जा पहुंचा. कह सकते हैं कि कांग्रेस को आप के साथ गठबंधन का भी फायदा मिला, क्योंकि 2024 का आम चुनाव इन दोनों ने साथ मिलकर लड़ा था.
3. कांग्रेस की परफॉर्मेंस से तय होगा दिल्ली में केजरीवाल कितने मजबूत या कितने कमजोर
देश के अन्य हिस्सों की तरह दिल्ली में भी लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे ज्यादा अहमियत रखते हैं. वहीं विधानसभा और एमसीडी चुनावों में लोकल मुद्दों को ज्यादा तरजीह मिलती है. 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 38.51 फीसद वोट शेयर हासिल हुए थे. दो साल बाद हुए प्रदेश के एमसीडी चुनावों में भी बीजेपी के वोट शेयर में कुछ बड़ा बदलाव नहीं हुआ और पार्टी को 39.09 फीसद वोट हासिल हुए.
वहीं, आप को 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में 53.57 फीसद वोट शेयर मिले थे. लेकिन जब 2022 में प्रदेश में एमसीडी के चुनाव हुए तब वोट शेयर घटकर 42.05 फीसद पर आ पहुंचा. यानी आप के वोट शेयर में जो गिरावट हुई उसने बीजेपी के खाते में कोई बढ़ोतरी नहीं की.
दरअसल इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस और अन्य दलों को हुआ. कांग्रेस को 2020 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में महज 4.26 फीसद ही वोट शेयर मिल पाया था. लेकिन दो साल बाद 2022 में हुए एमसीडी के चुनावों में यह आंकड़ा सवा चार फीसद से बढ़कर 11.68 फीसद जा पहुंचा. जाहिर है कि आप के वोट शेयर में जो गिरावट हुई, वोट के लिहाज से उसका बड़ा फायदा कांग्रेस को मिला, हालांकि ध्यान देने वाली बात है कि इससे आप और बीजेपी उम्मीदवारों के बीच हार-जीत का फासला भी घट गया.
कांग्रेस ने इस बार भी दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रदेश की टॉप लीडरशिप को मैदान में उतारा है. जहां एक ओर संदीप दीक्षित नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. और यहां बीजेपी की ओर से प्रवेश सिंह वर्मा मैदान में हैं. वहीं, अलका लांबा कालकाजी सीट से आतिशी के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं. बीजेपी की ओर से यहां रमेश बिधूड़ी को उतारा गया है. इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देविंदर यादव बादली सीट से ताल ठोक रहे हैं.
अगर एमसीडी 2022 चुनाव और लोकसभा चुनाव 2024 की तरह कांग्रेस इस बार भी दिल्ली में अपने वोट शेयर में इजाफा करने में कामयाब रही तो इसका सीधा खामियाजा आप को भुगतना पड़ सकता है. ऐसा पिछले चुनावों के नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है.
कांग्रेस दिल्ली में AAP को कितना नुकसान पहुंचा सकती है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई का कहना है कि दिल्ली में सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस के पास भी केजरीवाल के खिलाफ कोई मजबूत सीएम फेस नहीं है. इसके अलावा कांग्रेस के बड़े नेता और स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने दिल्ली में अब तक सिर्फ दो रैलियां की हैं. पहली रैली 13 जनवरी को सीलमपुर में की थी. उसके बाद 14 दिन तक वे चुनावी सभा से दूर रहे.
प्रियंका गांधी भी अब तक चुनावी मैदान में नहीं उतरी हैं. यह कुछ वैसा ही है जिस तरह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस को वॉक ओवर दे दिया था. ऐसे में कहा जा सकता है कि कांग्रेस मौजूदा दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी सत्ताधारी पार्टी आप को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाने जा रही.
एमसीडी चुनाव के हिसाब से ही देखें तो आप (42%) और बीजेपी (39%) के बीच 3 फीसद वोट शेयर का अंतर है. इन आंकड़ों के लिहाज से हार-जीत का नतीजा करीब 3 फीसद वोटों से तय हो सकता है. कांग्रेस के पास 12 फीसद वोट शेयर था और आज की परिस्थिति में उसे चुनाव जीतने के लिए और करीब 28 फीसद वोटों की जरूरत होगी. ऐसा उलटफेर भारत के चुनावी इतिहास में आजतक नहीं हुआ, यानी पार्टी को अपने दम पर सरकार बनाने की लड़ाई से पूरी तरह बाहर माना जा सकता है. अब बची आप और बीजेपी, इनके बीच वोटों का अंतर पाटने में अहम भूमिका इस बात की होगी कि दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ क्या नैरेटिव तैयार किया है.
नैरेटिव की लड़ाई कैसे लड़ रही हैं पार्टियां
कथित शराब नीति घोटाला, सीएम हाउस के मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर 'शीशमहल' बनाना, स्कूल और मोहल्ला क्लिनिक में घपलेबाजी ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर बीजेपी ने आप के खिलाफ आक्रामक रुख दिखाया है. खासकर 'शीशमहल' को लेकर भगवा दल ने अपने पोस्टर से लेकर वीडियो प्रचार अभियानों में एक जबरदस्त नैरेटिव तैयार करने की कोशिश की है. इसके अलावा पीएम मोदी से लेकर अमित शाह के भाषणों में भी 'शीशमहल' का खूब जिक्र किया गया.
बीजेपी कहती रही है कि केजरीवाल ने मरम्मत के नाम पर मुख्यमंत्री आवास को 7 स्टार रिसॉर्ट में बदल दिया. पार्टी कहती है कि ये वही केजरीवाल हैं जो अपनी राजनीति की शुरुआत में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति रहते हुए 300 से ज्यादा कमरे वाले मकान पर सवाल उठाते थे. बीजेपी कहती रही है कि आम आदमी पार्टी के मुखिया केवल कहने के लिए आम आदमी बनते हैं. कथित शराब नीति मामले को लेकर भी केंद्र में बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार की आक्रामकता लगातार देखने को मिली है. आप के टॉप 3 नेताओं को इस मामले में जेल तक जाना पड़ा.
लुब्बेलुबाब ये कि बीजेपी का पूरा ध्यान केजरीवाल को भ्रष्ट साबित करने पर टिका है. और अब भगवा दल को ये भी समझ में आने लगा है कि प्रदेश के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों से ज्यादा स्थानीय मुद्दे असर रखते हैं. यही वजह है कि 'फ्रीबीज' को लेकर आलोचनात्मक रुख रखने वाली बीजेपी ने भी अपने मैनिफेस्टो में मुफ्त सुविधाओं की भरपूर घोषणा की है.
इधर, अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल तो चुप्पी साधे हैं लेकिन वे बीजेपी को पूंजीपतियों, धनाढ्य लोगों की पार्टी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केजरीवाल ने कहा, "दिल्ली चुनाव दो विपरीत विचारधाराओं के बीच की लड़ाई है. एक आम जनता के कल्याण पर केंद्रित है और दूसरी चुनिंदा धनी व्यक्तियों के समूह को लाभ पहुंचाने पर केंद्रित है."
केजरीवाल ने आगे कहा कि बीजेपी की विचारधारा अपने करीबी सहयोगियों के लिए हजारों करोड़ रुपये के ऋण माफ करने के लिए सरकारी धन का इस्तेमाल करती है. दूसरी, हमारा आप मॉडल है जो आम आदमी को लाभ पहुंचाने के लिए मुफ्त बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और परिवहन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करता है. यानी यहां केजरीवाल बीजेपी को आम जनता की विरोधी पार्टी होने का नैरेटिव तैयार कर रहे हैं.
रेवड़ियों की नैरेटिव में बराबरी की टक्कर
दिल्ली की जनता को 'रेवड़ी' देने के लिए बीजेपी, AAP और कांग्रेस के बीच मानो होड़ मची है. ऐसा लग रहा कि विधानसभा चुनाव 2025 पूरी तरह से मुफ्त योजनाओं के मुद्दे पर ही लड़ा जा रहा है.
आइए देखते हैं कि तीनों मुख्य पार्टियों में रेवड़ी घोषणाओं से जुड़े नैरेटिव की लड़ाई में कौन कहां है...
महिला: आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के लिए फ्री बस योजना को जारी रखने के साथ ही 2100 रुपए प्रतिमाह देने का वादा किया. इसके जवाब में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए देने की घोषणा की. बीजेपी ने तो दिल्ली की गर्भवती महिलाओं को भी 21 हजार रुपये देने का वादा किया है.
बिजली-पानी: AAP ने घर के मालिकों के बाद अब किरायेदारों को भी फ्री बिजली-पानी देने का एलान किया है. इसके जवाब में बीजेपी ने मुफ्त बिजली योजना को जारी रखने की बात कही है, जबकि कांग्रेस ने 200 यूनिट के बजाय 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने की बात कही.
बुजुर्ग पेंशन: AAP ने बुजुर्गों को 2500 रुपए प्रति माह वृद्धा पेंशन देने की बात कही. इसके जवाब में बीजेपी ने 70 से ज्यादा उम्र वालों को 3 हजार और 60 से ज्यादा उम्र के लोगों को 2500 रुपया देने का वादा किया है. कांग्रेस ने ऐसा कोई वादा नहीं किया.
छात्र: AAP ने छात्रों के लिए बसों में फ्री सफर के साथ ही मेट्रो में 50 फीसद छूट देने की बात कही है. वहीं, बीजेपी ने प्रतियोगी परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों को 15 हजार रुपये देने की बात कही है. कांग्रेस ने शिक्षित बेरोजगारों को 8500 रुपए प्रति माह देने की बात कही है.
स्वास्थ्य: AAP ने संजीवनी योजना से बुजुर्गों को सरकारी और निजी अस्पताल में मुफ्त इलाज की सुविधा देने की बात कही. वहीं बीजेपी ने आयुष्मान योजना लागू कर 5 लाख रुपये तक मुफ्त इलाज देने की बात कही है. कांग्रेस ने 25 लाख रुपए तक की मुफ्त इलाज कराने का वादा किया है.
इस तरह फ्रीबीज घोषणाओं की लड़ाई में देखें तो कोई भी दल किसी से कम नहीं नजर आ रहा. तीनों ही पार्टियां दिल्ली जीतने के लिए पूरा जोर-शोर लगा रही हैं.
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