बिहार : BPSC ने कोचिंग संस्थानों के साथ क्यों की बैठक; पटना में आंदोलन कर रहे छात्रों की क्या है मांग?
बिहार लोकसेवा आयोग (BPSC) के 13 दिसंबर को आयोजित प्री-एग्जाम से पहले ही पटना में छात्रों का आंदोलन शुरू हो गया था और यह अब भी जारी है

पटना के गर्दनीबाग में पिछले 7 दिनों से BPSC अभ्यर्थी धरना पर बैठे हैं. ये छात्र दोबारा से BPSC की 70वीं प्री एग्जाम आयोजित कराने की मांग कर रहे हैं. इनमें से कुछ की हालात इतनी बिगड़ गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा है. सांसद पप्पू यादव, विपक्षी नेता तेजस्वी यादव, अब्दुल बारी सिद्दीकी भी प्रदर्शन स्थल पर पहुंच कर अपना समर्थन जाहिर कर चुके हैं.
यहां प्रदर्शन कर रहे सीतामढ़ी के एक अभ्यर्थी सौरभ सुमन हैं. सौरभ सुमन इस मसले पर बात करते हुए सवाल उठाते हैं, “BPSC की परीक्षा में स्टूडेंट्स, कमीशन और बिहार की जनता स्टेक होल्डर हो सकती है, लेकिन प्राइवेट कोई कोचिंग चलाने वाले इसके स्टेक होल्डर कैसे हो सकते हैं? इस परीक्षा में उनका क्या रोल हो सकता है?”
सौरभ का कहना है कि आयोग ने परीक्षा से पहले इन कोचिंग वालों की एक मीटिंग बुलाई थी. उनसे यह पूछा गया था कि परीक्षा में सवाल कैसे पूछे जाएं, परीक्षा कैसे ली जाए. पूरे देश में कभी ऐसा नहीं हुआ था, जो बिहार में हुआ. अब आप ऐसा करेंगे तो लोग आपको संदेह की निगाह से देखेंगे ही ना।
13 दिसंबर को आयोजित बिहार लोकसेवा आयोग की 70वीं परीक्षा की प्रारंभिक परीक्षा से पहले शुरू होने वाला छात्रों का आंदोलन परीक्षा के बाद भी जारी है. लगभग पूरा दिसंबर महीना इन छात्रों के लिए आंदोलन करते ही गुजरा है.
परीक्षा आयोजित होने से पहले ये छात्र नॉर्मलाइजेशन (सामान्यीकरण) को लागू करने का विरोध कर रहे थे. अब परीक्षा के दौरान पटना के बापू परीक्षा परिसर में हुई अनियमितता के विरोध में ये प्रदर्शन कर रहे हैं. ये छात्र प्री परीक्षा को पूरी तरह से रद्द करने की मांग कर रहे हैं, जबकि BPSC ने सिर्फ बापू परीक्षा परिसर की परीक्षा को रद्द किया है. बापू परीक्षा परिसर के परीक्षार्थियों की चार जनवरी को फिर से परीक्षा होने वाली है.
दरअसल, BPSC की 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा शुरुआत से ही विवादों में रही है. जानकार इसकी वजह बताते हुए कहते हैं कि इस परीक्षा में पहली दफा 2027 सीटें थीं, जो बीपीएससी सिविल सेवा की अब तक हुई परीक्षाओं में सर्वाधिक थी.
सौरभ सुमन के मुताबिक, “जब भी बीपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में एसडीएम और डीएसपी की बड़े पैमाने पर वैकेंसी आती है, तो गड़बड़ी होती ही है. इस बार तो इतिहास में सबसे अधिक पदों पर नियुक्ति हो रही है.”
इस बात से इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे छात्र नेता दिलीप भी सहमत दिखते हैं. दिलीप कहते हैं, “56वीं और 59वीं बीपीएससी परीक्षा में अचानक एक विषय की परीक्षा रद्द कर दी गई और काफी समय बाद उसकी परीक्षा ली गई. उस परीक्षा में इंटरव्यू में 25-25 लाख रुपए लिए जाने की भी खबरें सामने आईं थीं. 64वीं बीपीएससी परीक्षा में भी भयानक खेल हुआ था. 67वीं बीपीएससी में पेपर लीक की घटना हुई ही थी.”
बिहार में नौकरी परीक्षाओं में गडबड़ी का आरोप पहली बार नहीं लगा है. इससे पहले बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने भी हाल में प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर यह कहा था कि हाल के वर्षों में परीक्षाओं में पेपर लीक के मामले बढ़े हैं. 2012 से अब तक पेपर लीक के दस बड़े मामले सामने आए हैं, उनकी जांच चल रही है.
67वीं बीपीएससी परीक्षा में हुए पेपर लीक की बात भी स्वीकार की गई है. इस मामले में 21 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कराया गया है. अगर 70वीं BPSC प्री परीक्षा की बात की जाए तो बिहार पुलिस का कहना है कि 13 दिसंबर को बापू परीक्षा परिसर में हुए हंगामे में भी 60 से अधिक परीक्षार्थियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया है, जांच चल रही है.
इस पूरे मामले की शुरुआत 30 अक्तूबर 2024 को हुई, जब बिहार लोकसेवा आयोग ने राजधानी पटना के कुछ निजी कोचिंग संचालकों की बैठक बुलाई थी. इसके लिए बकायदा उन्हें पत्र भेजा गया था. ऐसा BPSC के इतिहास में पहली बार हुआ, जब परीक्षा के संबंध में राय लेने के लिए निजी कोचिंग संचालकों को बुलाया गया.
परफेक्शन IAS की पटना शाखा के निदेशक चंदन प्रिय आयोग के साथ हुई बैठक में शामिल थे. वो बताते हैं कि इस बैठक में बीपीएससी की तरफ से मुख्यतः दो बातें कही गईं…पहली बात यह कि BPSC की पूरी परीक्षा संचालन प्रक्रिया हमें समझाई गई. हमें बताया गया कि इसमें पेपर लीक होने की कोई गुंजाइश नहीं रहती है. आप इस बारे में अपने कोचिंग के छात्रों को समझाएं.
चंदन के मुताबिक, " दूसरी बात यह कही गई कि हम इस बार की प्रारंभिक परीक्षा में नार्मलाइजेशन को लागू कर सकते हैं. यह प्रक्रिया काफी टेस्टेड है, इसमें गड़बड़ी की कोई गुंजाइश नहीं रहती और हम यह बात भी छात्रों को समझाएं."
इससे जाहिर है कि बीपीएससी परीक्षा के बाद पेपर लीक और परीक्षा के दौरान नार्मलाइजेशन को लेकर संभावित छात्रों के आंदोलन से बचना चाहती थी. इसके लिए वह कोचिंग संचालकों की मदद लेना चाहती थी, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बिहार में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों पर कोचिंग संचालकों का अच्छा प्रभाव रहता है.
मगर उस बैठक में नॉर्मलाइजेशन को लेकर कोचिंग संचालकों में एक राय नहीं थी. चंदन कहते हैं, “जहां ज्यादातर कोचिंग संचालक इस प्रोसेस का विरोध करते हुए कह रहे थे कि बीपीएससी जैसी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन नहीं होना चाहिए. वहीं खान और रहमान नॉर्मलाइजेशन के लिए राजी हो गए.”
चंदन के मुताबिक, "वे दोनों ग्रुप सी और डी की परीक्षाओं की तैयारी कराते हैं, इसलिए उन्हें समझ नहीं आया कि बीपीएससी जैसी परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन लागू कराने के क्या खतरे हो सकते हैं. शायद इसलिए दोनों राजी हो गए. इन्हें बुलाना ही नहीं चाहिए था, मगर शायद इनकी पॉपुलैरिटी की वजह से बीपीएससी ने इन्हें बुला लिया था."
इस मसले पर गुरु रहमान के नाम से चर्चित रहमान सर कहते हैं, “ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हम नॉर्मलाइजेशन के पक्ष में राजी हो गए थे? हमदोनों ने बस इतना कहा था कि अगर आप इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन को लागू कराना चाहते हैं तो आप खुद मीडिया में इस बात को रखें. तब बीपीएससी अध्यक्ष परमार रवि ने कहा कि वे 15 नवंबर को ज्ञान भवन में छात्रों के साथ बैठक करेंगे और उन्हें अपनी बात समझायेंगे. मगर इनलोगों ने छात्रों से बैठक नहीं की और हमें उलझा दिया.”
वे आगे जोड़ते हैं, "बीपीएससी के अध्यक्ष और सचिव दोनों के मन में पहले से नॉर्मलाइजेशन की बात थी, वे बस हमलोगों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना चाहते थे. मगर यह बैठक हमदोनों के लिए मुसीबत की वजह साबित हो गई. दो महीने से हमलोग लगातार टेंशन में हैं. इसी वजह से हमलोगों ने नॉर्मलाइजेशन के खिलाफ आंदोलन में छात्रों का सहयोग किया. हमें हिरासत में भी लिया गया मगर हमने इसे हटवाकर दम लिया. अब भी हमलोग इस परीक्षा को पूरी तरह कैंसिल किये जाने के पक्ष में हैं. बस आंदोलन स्थल पर इसलिए नहीं जा रहे, क्योंकि इसका स्वरूप राजनीतिक हो गया है. मगर अब तय कर लिया है कि बीपीएससी कभी इस तरह की बैठक बुलायेगी तो हमलोग नहीं जाएंगे."
दरअसल, कोचिंग संचालकों के जरिए छात्रों तक यह खबर जब पहुंची कि बीपीएससी इस परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू कराने वाली है, तब से वे 15 नंवबर की प्रस्तावित बैठक का इंतजार करने लगे. मगर वह बैठक कभी नहीं हुई और परीक्षा की तारीख नजदीक आने लगी.
13 दिसंबर को परीक्षा होनी थी, इसलिए पहली दिसंबर से ही छात्र बीपीएससी चेयरमैन से मिलकर विरोध जताने पहुंचने लगे. मगर चेयरमैन उनसे नहीं मिलते, छात्रों को गेट से भी वापस कर दिया जाता है. ऐसे में छह दिसंबर को बड़ी संख्या में छात्रों ने बीपीएससी के गेट पर पहुंचकर विरोध प्रदर्शन किया.
बिहार पुलिस ने इस बिना पर कि इस जगह धरना प्रदर्शन नहीं किया जा सकता, छात्रों पर लाठी चार्ज कर दी. इसमें कई छात्रों को चोट आई. इसके बाद छात्रों को खदेड़ कर गर्दनीबाग पहुंचा दिया गया, जो जगह धरना प्रदर्शनों के लिए नियत है. वहां बड़ी संख्या में एकजुट होकर छात्र जोरदार प्रदर्शन करने लगे. इस प्रदर्शन का समर्थन करने खान और रहमान जैसे कोचिंग संचालक भी पहुंच गए.
इस आंदोलन में चोटिल हुए छात्र नेता दिलीप कुमार बताते हैं, "हमलोग बीपीएससी कार्यालय के दूसरी तरफ वाली सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे. तभी बीपीएससी ने चार छात्रों को बातचीत करने के लिए बुलाया. उन छात्रों में एक मैं भी था. हमलोग जा ही रहे थे कि गर्दनीबाग थाना के दारोगा ने मेरी पिटाई शुरू कर दी. मुझे उल्टी आने लगी. मेरे साथियों ने फिर मुझे पास के एलएनजेपी अस्पताल पहुंचाया और पुलिस छात्रों को लेकर गर्दनीबाग चली गई."
गर्दनीबाग धरनास्थल पर उस रोज दिन भर छात्रों का जोरदार प्रदर्शन हुआ. उनके समर्थन में कोचिंग संचालक भी आ गए थे और अस्पताल से लौटकर दिलीप भी पहुंच गए थे.
शाम सात बजे पुलिस ने दिलीप को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उन्हें जेल भेज दिया गया. कोचिंग संचालक रहमान बताते हैं कि उस शाम छह बजे खान बीपीएससी के चेयरमैन से मिलने जा रहे थे कि बीपीएससी के गेट पर उन्हें पुलिस ने डिटेन कर लिया. रात आठ बजे पुलिस रहमान को भी थाने ले गई. खान और रहमान को तो पुलिस ने कुछ घंटों बाद छोड़ दिया, मगर दिलीप को जेल भेज दिया गया. जहां से छह दिन बाद उन्हें जमानत मिली.
बहरहाल इस आंदोलन का छात्रों को फायदा यह हुआ कि उसी शाम बीपीएससी ने नॉर्मलाइजेशन को वापस लेने की घोषणा कर दी. मगर इस वजह से छात्रों को परीक्षा के महज एक हफ्ते पहले इस तरह के आंदोलन के लिए विवश होना पड़ा. छात्रों ने फिर परीक्षा की तारीख बढ़ाने की मांग की, जिसे नहीं माना गया.
मगर 13 दिसंबर को परीक्षा के दिन एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ. राजधानी पटना के बापू परीक्षा परिसर में जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है, जहां 12 हजार से अधिक परीक्षार्थी एक साथ परीक्षा दे रहे थे. परीक्षा के दिन यहां मचे बवाल की वजह कई परीक्षा भवनों में देर से प्रश्न पत्रों का पहुंचना बताया गया. छात्रों का कहना था कि 25 मिनट से आधे घंटे तक की देरी हो गई थी. इसके बाद छात्र हंगामा करने लगे, यह भी कहा गया कि जो प्रश्नपत्र बांटे जा रहे थे, उनमें से एक का पैकेट पहले से फटा था.
पेपर लीक की अफवाहें फैलने लगी. छात्र दूसरे कक्षों में जाकर छात्रों को कहने लगे कि पेपर लीक हो गया है. समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण प्रशासन इस अव्यवस्था को संभाल नहीं पाया और छात्र बाहर से मोबाइल लाकर शूट करने लगे, वहां के वीडियो वायरल होने लगे. इस हंगामे और अफरा-तफरी में एक इनविजिलेटर की हार्टअटैक से मौत भी हो गई. जिला प्रशासन ने फिर आनन-फानन में इस मामले की जांच कराई और 15 दिसंबर को बीपीएससी को जांच की रिपोर्ट सौंपी.
इस रिपोर्ट में प्रशासन ने स्वीकार किया कि प्रश्नपत्रों के वितरण में 15 मिनट की देरी हो गई थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वहां हर कक्ष में 273 छात्रों के बैठने की व्यवस्था थी, जबकि हर बॉक्स में 192 प्रश्नपत्र ही थे. ऐसे में बार-बार दूसरे कक्ष से प्रश्नपत्र लाकर बांटना पड़ता था. छात्र अपने ही कक्ष में बॉक्स का सील नहीं तोड़े जाने का विरोध कर रहे थे. उन्हें अतिरिक्त समय का वादा किया गया, मगर तब भी वे नहीं माने. ऐसा लगता है कि उनमें कुछ असमाजिक तत्व थे, जिन्होंने हंगामा शुरू कर दिया.
प्रशासन ने अपनी तरफ से कुछ सुझाव भी दिए, उनमें पहला यह था कि चूंकि बापू परीक्षा परिसर बड़ा केंद्र है, इसलिए पूरे केंद्र को एक यूनिट न मान कर उसे पांच फ्लोर के हिसाब से पांच यूनिट माना जाए और पांच केंद्राधीक्षक रखकर परीक्षा कराई जाए. दूसरा जिला प्रशासन की अनुशंसा और देख-रेख में ही आगे वहां परीक्षा हो. दरअसल, बीपीएससी अब तक हर जगह जिला प्रशासन की देख-रेख में ही परीक्षा कराती थी. आयोग हर जिला प्रशासन को प्रश्नपत्र सौंप देता था और परीक्षा कराने का काम प्रशासन का होता था.
मगर इस बार बापू परीक्षा परिसर के मामले में अलग तरीका अपनाया गया. यह परीक्षा परिसर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अंतर्गत आता है. समिति ने इस साल के अप्रैल महीने में विज्ञापन निकालकर सहायक केंद्राधीक्षक, वीक्षक, सहायक और पदचर के लिए पैनल तैयार करने की घोषणा की थी और आवेदन मांगे थे.
इसमें स्कूलों के सेवानिवृत शिक्षक या गैर सरकारी संस्थानों के शिक्षकों को इम्पैनल किया गया और उनके लिए प्रति पाली मानदेय तय किया गया. वहां परीक्षा करा रहे इनविजिलेटर राम इकबाल सिंह की परीक्षा के दौरान मौत हुई. वे भी एक वित्त रहित कॉलेज के शिक्षक थे. जिला प्रशासन का मानना है कि अनुभव नहीं होने के कारण यह पैनल परीक्षा को संभाल नहीं पाया.
जिला प्रशासन के सूत्रों का यह भी कहना है कि बीपीएससी को इस बात की जानकारी थी कि बापू परिसर में हर कक्ष में 273 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है. बैठक में उनकी तरफ से यह भी कहा गया कि वे हर कक्ष के लिए 288 प्रश्न पत्र बॉक्स में रखेंगे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. जिससे सारी दिक्कतें हुईं.
जिला प्रशासन के जरिए सब्मिट किए गए रिपोर्ट के बाद बीपीएससी के चेयरमैन परमान रवि मनुभाई ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर बापू परीक्षा परिसर की परीक्षा को रद्द करने की घोषणा कर दी.
मनुभाई ने कहा कि चूंकि इस परीक्षा में 912 केंद्रों पर 4.83 लाख छात्रों ने परीक्षा दी है, इसलिए वे 12 हजार छात्रों के लिए उन 4.80 लाख छात्रों को परेशान नहीं करेंगे. बापू परिसर वाली परीक्षा बाद में होगी और वह परीक्षा अब बापू परीक्षा परिसर में नहीं होगी. उन्होंने यह भी कहा कि बापू परिसर में उपद्रव करने वालों की पहचान की जा रही है, उन्हें बीपीएससी अपनी परीक्षाओं में शामिल होने से डिबार करेगा.
चार जनवरी को दोबारा परीक्षा होने की घोषणा हो गई. इंडिया टुडे से बातचीत में बीपीएससी के सचिव सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा, “हमारी भूमिका सिर्फ प्रश्नपत्र जिला प्रशासन तक पहुंचाने की होती है. इसलिए बापू परिसर में जो हुआ उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है. हमारे चेयरमैन ने सदाशयता में कोचिंग संस्थानों के साथ बैठक बुलाई थी. अभी सिर्फ पटना में आंदोलन चल रहे हैं, दूसरे जगह से छात्र हमें लगातार मेल कर रहे हैं कि फिर से परीक्षा न कराई जाये. इसलिए हमलोग सिर्फ बापू परिसर वाली परीक्षा को ही फिर से कराने जा रहे हैं.”