तमिलनाडु : BJP का AIADMK के साथ फिर बना गठबंधन क्या स्टालिन को सत्ता से हटा पाएगा?

पिछले साल लोकसभा चुनाव में आक्रामक प्रचार के बावजूद भाजपा को केवल 11.2 फीसद वोट ही मिल पाए, जबकि AIADMK को 20.5 फीसद वोट मिले थे

तमिलनाडु में AIADMK से गठबंधन के बाद मंच पर सहयोगी दलों के नेता के साथ गृह मंत्री अमित शाह (Photo credit: ANI)
तमिलनाडु में AIADMK से गठबंधन के बाद मंच पर सहयोगी दलों के नेता के साथ गृह मंत्री अमित शाह (Photo credit: ANI)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी AIADMK के नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) में शामिल होने पर सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर एक पोस्ट शेयर की.

इसमें पीएम मोदी ने लिखा, “मुझे खुशी है कि AIADMK भी अब NDA परिवार में शामिल हो गई है. अपने सभी सहयोगियों के साथ मिलकर हम पूरी लगन से राज्य की सेवा करेंगे और तमिलनाडु को विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जाएंगे. हम राज्य में एक ऐसी सरकार स्थापित करेंगे, जो MGR और जयललिता के सपने को साकार करेगी.”

इसके साथ ही पीएम मोदी ने यह दिखाने की कोशिश की है कि BJP और AIADMK का गठबंधन तमिलनाडु को एकजुट करने के साथ ही प्रगतिशील बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा. दोनों दलों के बीच गठबंधन के ऐलान से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दो दिनों के लिए तमिलनाडु के दौरे पर पहुंचे थे. उन्होंने चेन्नई में प्रदेश स्तर के नेताओं से आगामी चुनाव और AIADMK के साथ गठबंधन को लेकर चर्चा की थी.

इसके साथ ही उन्होंने तमिलनाडु में भाजपा के प्रदेश स्तरीय संगठन में बदलाव को हरी झंडी दी. इसके बाद ही BJP प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई की जगह तिरुनेलवेली से भाजपा विधायक नयनार नागेंद्रन को पार्टी का अगला प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के बयानों और तीखी टिप्पणियों के कारण अन्नामलाई से AIADMK पार्टी नाराज हो गई थी. यही वजह था कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले AIADMK ने BJP से गठबंधन तोड़ लिया था. दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ीं और एक भी सीटें नहीं जीत पाई.

लोकसभा चुनाव के बाद एक बार फिर से BJP और AIADMK के बीच गठबंधन की चर्चा चलने लगी थी, लेकिन अन्नामलाई इस राह में रोड़ा बने हुए थे. यही वजह है कि अप्रैल की 13 तारीख को अमित शाह की मौजूदगी में तमिलनाडु BJP संगठन में बदलाव करते हुए अन्नामलाई को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया. भाजपा-AIADMK का यह गठबंधन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया है.

एम.के. स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ DMK यानी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम द्वारा राष्ट्रीय और संघीय मुद्दों पर दिए जा रहे विवादित बयानों के बाद सत्ता में वापसी के लिए यह गठबंधन किया गया है. हाल ही में मुख्यमंत्री स्टालिन ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी NEP 2020 के त्रि-भाषा फॉर्मूले पर आपत्ति जताई है और इसे केंद्र द्वारा तमिलनाडु पर हिंदी थोपने का प्रयास बताया है.

उन्होंने प्रस्तावित परिसीमन फॉर्मूले के खिलाफ भी बयान दिया है. उनका कहना है कि संसद में इससे दक्षिण राज्यों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा. इसके अलावा डीएमके नेताओं ने हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और लगातार 'सनातन धर्म' को लेकर ऐसे बयान दे रहे हैं जिनसे विवाद खड़ा हो रहा है.

आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेतृत्व का मानना ​​है कि तमिलनाडु में डीएमके का मुकाबला करने के लिए भाजपा के पास मजबूत कैडर बेस की कमी है. वहीं, भाजपा का मानना ​​है कि AIADMK के साथ उनकी पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में स्टालिन सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था को प्रमुख मुद्दा बनाकर मजबूती से चुनाव लड़ेगी.  

बीजेपी के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, "अब आजीविका, रोजगार और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही जनता वोट करती हैं. इसके अलावा हिंदी, हिंदू और हिंदुत्व के खिलाफ भावनाओं का भड़कना भी बड़ा मुद्दा है."

अन्नामलाई और AIADMK नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के. पलानीस्वामी दोनों ही गौंडर समुदाय से हैं और एक ही क्षेत्र से आते हैं. अन्नामलाई के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने की एक वजह यह भी रही. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना था कि गठबंधन में एक ही समुदाय से आने वाले दो नेताओं के कारण अन्य प्रमुख जाति समूहों, विशेषकर थेवरों में गलत संदेश गया.

परिणाम ये हुआ कि पिछले कुछ समय में थेवर समुदाय के कई AIADMK नेताओं का झुकाव पार्टी के ही नाराज चल रहे नेता ओ. पन्नीरसेल्वम या फिर अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम के नेता टी.टी.वी. दिनाकरण की तरफ देखा गया.

पिछले साल लोकसभा चुनाव में आक्रामक प्रचार के बावजूद भाजपा को केवल 11.2 फीसद वोट ही मिल पाए, जबकि AIADMK को 20.5 फीसद वोट मिले. दोनों ही पार्टियां राज्य के 39 सीटों में से एक पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि अगर गठबंधन होता तो एनडीए के उम्मीदवारों को प्रदेश की 15 लोकसभा सीटों पर जीत मिल सकती थी.

अमित शाह के दो दिवसीय तमिलनाडु यात्रा के बाद दोनों सहयोगी दल एक साथ काम करने के लिए तैयार हैं. शाह ने घोषणा की है कि तमिलनाडु में एनडीए अभियान का नेतृत्व राज्य स्तर पर पलानीस्वामी करेंगे, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय चेहरा होंगे.

हालांकि, भाजपा की चुनौतियों में से एक तमिलनाडु में अपने गुटों पर लगाम लगाना और उन्हें AIADMK कैडर के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार करना होगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले 5 साल में बीजेपी को प्रदेश में जो बढ़त मिली है, वो AIADMK की कीमत पर ही मिली है. दिसंबर 2016 में जे. जयललिता की मौत के बाद AIADMK पार्टी लगातार कमजोर होती चली गई. 2021 में DMK के हाथों सत्ता गंवाने के बाद AIADMK में कलह मची और पार्टी में फूट पड़ गई.

भाजपा AIADMK पर बहुत अधिक निर्भर करेगी, जबकि उसे इस बात का पूरा अहसास है कि उसका सहयोगी दल अभी भी अंदरूनी कलह का सामना कर रहा है. इनमें एक पार्टी के ताकतवर नेता ओ. पन्नीरसेल्वम हैं, जिनके नेतृत्व वाले गुट का प्रदेश के कुछ खास क्षेत्रों पर राजनीतिक रूप से दबदबा है. वहीं पलानीस्वामी को राज्य में एनडीए के चेहरे के रूप में पेश करने पर भी सहयोगी दल पट्टाली मक्कल काची को नाराजगी है, लेकिन भाजपा तमिलनाडु की जाति आधारित पार्टी पट्टाली मक्कल काची (PMK)  को साथ लाने के लिए लगातार बात कर रही है.

इसके अलावा मरुमालर्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK) के साथ भी संवाद के रास्ते खोल रही है. PMK पार्टी संस्थापक एस. रामदास और बेटे अंबुमणि रामदास के बीच पारिवारिक झगड़े में उलझी हुई है. दोनों के बीच भाजपा के साथ संबंधों को लेकर पहले भी मतभेद रहे हैं. स्पष्ट रूप से भाजपा को 2026 की चुनावी लड़ाई में सभी सहयोगियों को एक साथ लाने के लिए गोंद की तरह काम करना होगा.
 

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