क्या है संविधान का आर्टिकल-142, जो चंडीगढ़ मेयर पर फैसले के दौरान चर्चा में आया?
चंडीगढ़ मेयर के चुनाव को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जब आप उम्मीदवार कुलदीप कुमार को चुनाव का विजेता घोषित किया तो संविधान के आर्टिकल-142 का जिक्र किया था

20 फरवरी यानी मंगलवार को दिए अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को चंडीगढ़ मेयर चुनाव का विजेता घोषित किया. साथ ही, SC ने चुनाव के रिटर्निंग ऑफिसर अनिल मसीह को फटकार लगाते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया. मसीह पर आरोप है कि उन्होंने 'आप' उम्मीदवार को मिले आठ वोटों के साथ छेड़छाड़ की थी. अब उन्हें तीन हफ्तों के भीतर जवाब देना है.
इससे पहले 30 जनवरी को जब चंडीगढ़ मेयर चुनाव का परिणाम जारी हुआ था तो उसमें भारतीय जनता पार्टी के मनोज कुमार सोनकर को विजेता घोषित किया गया. उन्हें कुल 16 वोट मिले थे. चंडीगढ़ नगर निगम में 35 वोट हैं जबकि एक वोट चंडीगढ़ के लोकसभा सांसद का होता है यानी कुल 36 वोट. आप के उम्मीदवार कुलदीप कुमार टीटा को 20 वोट मिले थे. लेकिन पीठासीन अधिकारी ने मतपत्रों पर निशान की बात कहते हुए 8 वोटों को अमान्य करार दिया था जिसके चलते कुलदीप चुनाव हार गए थे.
इस विवादित नतीजे के खिलाफ आप और कांग्रेस पहले हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं. याचिका पर सुनवाई करते हुए SC ने इन अमान्य घोषित किए गए आठ वोटों को वैध करार दिया, और मनोज सोनकर की जीत को रद्द करते हुए कुलदीप कुमार को विजेता घोषित कर दिया. मामले में तीन जजों की बेंच की अगुवाई कर रहे चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, "रिजल्ट शीट से ये जाहिर है कि याचिकाकर्ता को 12 वोट मिले. आठ वोटों को अवैध बताया गया. ऐसा गलत तरीके से किया गया. अवैध वोट में से हर एक वैध तरीके से याचिकाकर्ता के पक्ष में डाला गया था."
इस दौरान चंद्रचूड़ ने आर्टिकल 142 का जिक्र करते हुए कहा कि ये यह कोर्ट कर्तव्य से बंधा है, खासकर आर्टिकल 142 में लिखित ड्यूटी जिसमें 'पूर्ण न्याय' करने की बात कही गई है. चुनावी लोकतंत्र की प्रक्रिया को छल से नाकाम नहीं किया जा सकता है. अब यहां सवाल उठता है कि आर्टिकल 142 में ऐसा क्या है जो सुप्रीम कोर्ट को इतनी शक्ति प्रदान करता है?
दरअसल, संविधान का आर्टिकल 142, एक ऐसा प्रावधान है जो सुप्रीम कोर्ट को उसके सामने लंबित पड़े किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए जरूरी आदेश जारी करने का अधिकार देता है. ये आदेश देश में कहीं भी लागू किए जा सकते हैं. यह सर्वोच्च अदालत को उन स्थितियों में पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने की असाधारण शक्ति प्रदान करता है जहां मौजूदा कानूनों का अभाव हो सकता है.
उदाहरण के तौर पर, 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी आर्टिकल का उपयोग करते हुए बाबरी मस्जिद मामले को स्थानांतरित किया था. तब उसने आर्टिकल 142 की व्यापक शक्ति को एक लैटिन कहावत में समाहित करते हुए कहा था- 'फिएट जस्टिटिया रुआट कैलम' यानी आसमान गिरने पर भी न्याय किया जाए. हालांकि इस आर्टिकल की इतनी शक्ति के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने 2023 के एक फैसले में स्पष्ट किया कि इसे हर मामले में लागू नहीं किया जा सकता है.
बहरहाल, जिन कुलदीप कुमार को सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ का मेयर घोषित किया है, वो 2018 में चंडीगढ़ के सेक्टर 22 में सफाई कर्मचारी का काम कर चुके हैं. वे वहां गली, चौक-चौराहों की सफाई करते थे. एक समय में वे भाजपा के एससी मोर्चा के साथ भी जुड़े रहे थे. इस दौरान उन्हें दादूमाजरा से वाल्मीकि समुदाय का अध्यक्ष भी चुना गया. 2019 में दादूमाजरा से ही उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर आरडब्ल्यूए का चुनाव लड़ा था जिसमें उन्हें जीत मिली. 2021 में वे 'आप' से जुड़े थे.
आसान नहीं है आगे की राह...
भले ही सुप्रीम कोर्ट ने आप और कांग्रेस के गठजोड़ वाले उम्मीदवार कुलदीप को चंडीगढ़ का मेयर घोषित कर दिया है लेकिन उनके लिए आगे की राह आसान नहीं है. वो इसलिए क्योंकि पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के तीन पार्षद भाजपा में शामिल हो गए. इससे जो जादुई आंकड़ा है वो भाजपा के पक्ष में चला गया है. आप-कांग्रेस गठजोड़ की सीटें 20 से घटकर 17 हो गई हैं. जबकि भाजपा की सीटें 14 से बढ़कर 17 हो गई हैं.
इसके अलावा भाजपा के पास सांसद किरण खेर का भी वोट मौजूद है. अकाली दल के एकमात्र पार्षद भी भाजपा को ही वोट कर सकते हैं. कुलदीप कुमार के लिए पहली चुनौती यही है कि अगर अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो वे किस प्रकार उसका मुकाबला कर पाएंगे? मीडिया से बातचीत में चंडीगढ़ में पूर्व भाजपा अध्यक्ष और पूर्व मेयर अरुण सूद ने कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानते हैं और उसकी इज्जत करते हैं, लेकिन, "बहुमत वाली पार्टी यानी बीजेपी विपक्ष में हैं, 10 सदस्यों वाली (आप) और सात सदस्यों वाली (कांग्रेस) पार्टी नेतृत्व कर रही है. वो बिना भाजपा की सहमति के कैसे काम करेंगे? हमारे पास संख्या है. हम फैसला करेंगे लेकिन हमारा मेयर नहीं है."
अब सवाल है कि अगर कुलदीप कुमार के खिलाफ नगर निगम में अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो क्या होगा? इस सवाल पर इंडिया टुडे टीवी से बात करते हुए कांग्रेस नेता और आप उम्मीदवार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है, "मेयर का चुनाव एक साल की निश्चित अवधि के लिए होता है. और नगर निगम में अविश्वास प्रस्ताव जैसा कोई प्रावधान नहीं है." इस लिहाज से कुलदीप मेयर तो पूरे साल भर रह सकते हैं, लेकिन यह जरूर है कि उन्हें बतौर मेयर अपना काम करने में दिक्कतें आएंगी.