दिल्ली के सीएम : आईआईटी में थिएटर सोसाइटी के अध्यक्ष रहे केजरीवाल कैसे बने दिल्ली में पॉलिटिकल ड्रामा के नायक?

दिल्ली के सीएम सीरीज में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कहानी जो कॉलेज में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी का विरोध किया करते थे और तब उनकी राजनीतिक समझ इससे खासी प्रभावित हुई थी

दिल्ली के सीएम सीरीज में अरविंद केजरीवाल की कहानी
दिल्ली के सीएम सीरीज में अरविंद केजरीवाल की कहानी

अभिषेक बांठिया नाम के एक 27 साल के शख्स ने 2013 में अपनी अच्छी सैलरी वाली नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था. वजह यह थी कि अभिषेक दिल्ली जाकर कुछ दिनों के लिए एक नेता की नई-नवेली पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करना चाहता था. इस 'आम' नेता के लिए ऐसा करने वाला अभिषेक अकेला नहीं बल्कि लगभग 7000 युवक-युवतियां थे जिन्होंने या तो अपने काम से छुट्टी ली, या नौकरी ही छोड़ दी.

इस नेता का नाम था अरविंद केजरीवाल जिसने अपनी भूमिका पूरे देश के जेहन में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले एक नायक की बना ली थी. यह भरोसा कितना टिका, कितना हिला, इसका हिसाब-किताब तो चल ही रहा है, मगर इसके इर्द-गिर्द बड़ी दिलचस्प कहानी उभरती गई.

इस कहानी में 15 साल तक सत्ता में रही एक मुख्यमंत्री की बौखलाहट भरी फ़ोन कॉल है, चेहरे पर सालों बाद उम्मीद महसूस रहे झुग्गियों के कुछ लोग हैं, आईआईटी में पढ़ रहा हिसार का एक लड़का है जो नौकरशाह बनता है तो अपने ही विभाग के खिलाफ धरने पर बैठ जाता है और जब मुख्यमंत्री बनता है तो अपने ही राज्य में धरना देता है. दिल्ली के सीएम सीरीज में ये कहानी है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की.

हिसार से आईआईटी और मदर टेरेसा

16 अगस्त 1968 को हरियाणा के हिसार के बारा मोहल्ले में गीता देवी और गोविंद राम के यहां एक लड़का पैदा हुआ. उस दिन जन्माष्टमी थी सो दादा-दादी ने बच्चे का नाम कृष्ण रखा जो 45 साल बाद 2013 में दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुआ और लोगों ने उसे अरविंद केजरीवाल के नाम से पहचाना. अंग्रेजी माध्यम के मिशनरी स्कूल में पढ़ने वाले अरविंद को शतरंज और किताबों का शौक था. वे जब दसवीं में गए तो उनकी बायोलॉजी की टीचर मिसेज चोपड़ा ने एक नाटक में भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया.

जब केजरीवाल आईआईटी गए तब स्कूल और मिसेज चोपड़ा की पढ़ाई तो पीछे रह गई मगर नाटक ने साथ नहीं छोड़ा. आईआईटी-खड़गपुर के अंतिम वर्ष में वे हिंदी ड्रामा सोसाइटी के गवर्नर बनाए गए. आईआईटी-खड़गपुर में अरविंद केजरीवाल के हॉस्टल का नाम था 'नेहरू हॉल हॉस्टल'. यहीं के उनके साथी जॉर्ज लोबो ने 2013 में इंडिया टुडे मैगजीन को बताया कि वीपी सिंह की राजनीति, बोफोर्स घोटाला और मंडल आयोग की रिपोर्ट की आधार पर आरक्षण के प्रावधान ने अरविंद की निजी राजनीति पर खूब असर डाला. मगर राम मंदिर आंदोलन की भूमिका इसमें अहम थी. केजरीवाल ने राम मंदिर आंदोलन के लिए बीजेपी का कड़ा विरोध किया था.

कॉलेज बीता और 1989 जमशेदपुर में टाटा स्टील में उन्हें नौकरी मिल गई थी. लेकिन 1992 में अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफ़ा दे दिया और कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी के साथ काम किया. यहीं उन्हें मदर टेरेसा से मिलने का मौका मिला. उन्हीं के कहने पर अरविंद ने कालीघाट आश्रम में भी कुछ दिनों तक काम किया.

आईआरएस की नौकरी और 'परिवर्तन'

साल 1992 में ही अरविंद केजरीवाल ने सिविल सेवा की परीक्षा दी और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के लिए चुन लिए गए. साल 1993 में मसूरी में ट्रेनिंग के दौरान उनकी मुलाक़ात सुनीता से हुई जिनसे आगे चलकर उनकी शादी हो गई.

दिल्ली के इनकम टैक्स ऑफिस में अरविंद केजरीवाल/इंडिया टुडे

आयकर विभाग में काम करते हुए दिसंबर, 1999 में उन्होंने मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर 'परिवर्तन' नाम से एनजीओ लॉन्च किया. इसी एनजीओ के जरिए उन्होंने अपने आयकर विभाग के खिलाफ ही सही से काम करने का दबाव बनाने लगे. प्राण कुरूप की किताब 'अरविंद केजरीवाल एंड द आम आदमी पार्टी' में अरविंद केजरीवाल का एक बयान है जिसमें अपने ही विभाग के खिलाफ सत्याग्रह करने पर वे कहते हैं, "मैं ऐसा इसलिए कर पाता हूं क्योंकि मेरी पत्नी सुनीता मेरे साथ होती हैं. मेरे इस फैसले से मेरे दोस्त, मेरे पड़ोसी हर कोई हैरान थे. कौन माता-पिता चाहेंगे कि बेटा अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारे?"

31 मार्च, 2024 को इंडिया अलायंस की 'लोकतंत्र बचाओ रैली' के दौरान सुनीता केजरीवाल (बीच में), कल्पना सोरेन और सोनिया गांधी/इंडिया

साल 2000 में केजरीवाल सूचना के अधिकार आंदोलन (आरटीआई मूवमेंट) से जुड़ गए. पूर्व आईएएस अधिकारी अरुणा रॉय के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा. आरटीआई कानून 2001 में दिल्ली और 2005 में पूरे देश में लागू हुआ.

अपने एनजीओ 'परिवर्तन' की मदद से केजरीवाल ने आरटीआई कानून का इस्तेमाल करते हुए सरकारी महकमों में लोगों के काम करवाए और घोटालों का पर्दाफाश किया. हालांकि आरटीआई कानून की मदद से भ्रष्टाचार सामने आने के बावजूद कार्रवाई को लेकर सख्त कानून नहीं होने के केजरीवाल को निराशा हाथ लगी. उनका अगला मिशन भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून बनाना था.

इंडिया अगेंस्ट करप्शन और अन्ना हजारे

फरवरी, 2006 में केजरीवाल ने नई दिल्ली में इनकम टैक्स के जॉइंट कमिश्नर पद से इस्तीफ़ा दे दिया. उसी साल उन्होंने आरटीआई आंदोलन को बिल्कुल जमीनी स्तर पर मजबूत करने और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में दिल्ली के गरीबों को सशक्त बनाने की अपनी कोशिशों के लिए इमर्जेंट लीडरशिप का मैग्सेसे अवार्ड जीता. इसके कुछ ही महीनों बाद दिसंबर, 2006 में उन्होंने मैग्सेसे अवार्ड की पुरस्कार धनराशि से पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की.

अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल - 2007/इंडिया टुडे

साल 2010 में जब कॉमनवेल्थ घोटाला सामने आया तब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया. अगले ही साल, 2011 में केजरीवाल ने अन्ना हजारे व अन्य लोगों के साथ मिलकर इंडिया अगेंस्ट करप्शन की स्थापना की. इसी इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने सरकार से जन लोकपाल विधेयक लागू करने की मांग की. 27 अगस्त, 2011 को जन लोकपाल बिल लाने का प्रस्ताव संसद में पास होने के बाद यह आंदोलन ख़त्म तो हुआ मगर बाद में केंद्र सरकार बिल पेश करने से मुकर गई. जहां एक तरफ सरकार ने आंदोलन को ख़त्म मान लिया था तो वहीं अरविंद केजरीवाल इस लड़ाई को 'नेक्स्ट लेवल' पर ले जाने की तैयारी कर रहे थे.

आम आदमी पार्टी और 'आप' की सरकार

26 नवंबर, 2012 को अन्ना हजारे से अलग होकर अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की शुरुआत की. पार्टी की शुरुआत करते हुए उनका बयान था, "हमें लगता है कि देश की राजनीति बदले बिना किसी समस्या को जड़ से ख़त्म नहीं किया जा सकत, इसीलिए हमें नई राजनीतिक पार्टी बनाने की जरूरत महसूस हुई."

आम आदमी पार्टी लॉन्च करने के बाद मनीष सिसोदिया, अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास (बाएं से)/इंडिया टुडे

अपनी पार्टी खड़ी करने के लिए इस पूर्व आईआरएस अफसर के पास एक साल का वक्त था. अगले साल 2013 के अंत में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे. योगेंद्र यादव के अनुसार, आम आदमी पार्टी ने अपने भविष्य के लिए बीएसपी संस्थापक कांशीराम के इस जुमले को पथप्रदर्शक माना, "पहला चुनाव हारने के लिए. दूसरा चुनाव हराने के लिए. तीसरा जीतने के लिए."

सभी सोच रहे थे कि इस पार्टी को राजनीति में जड़ें जमाने के लिए लंबा वक्त लगेगा. दिल्ली चुनावों से पहले इंडिया टुडे-सी वोटर देश का मिजाज सर्वे में भी कांग्रेस और बीजेपी के बाद आप तीसरे नंबर की पार्टी थी. लेकिन तब भी इस सर्वे में केजरीवाल को दूसरा सबसे पॉपुलर मुख्यमंत्री बताया जा रहा था.

इंडिया टुडे मैगजीन के 30 अक्टूबर, 2013 के अंक में असित जॉली ने अपनी रिपोर्ट में अरविंद केजरीवाल के चुनावी अभियान के बारे में विस्तार से बताया था. वे लिखते हैं, "पारंपरिक साधनों से हटकर उनका प्रचार पार्टी के 7000 से ज्यादा निष्ठावान स्वयंसेवकों पर निर्भर है. इनमें छात्र, फैक्ट्री कामगार, अपनी नौकरियों से छुट्टी लेकर आए युवक-युवतियां, टैक्सी ड्राइवर और रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी शामिल हैं."

असित ने बताया कि केजरीवाल ने अपनी चुनावी रणनीति 1999 में स्थापित अपने एनजीओ 'परिवर्तन' और अन्ना हजारे के जन लोकपाल आंदोलन के अनुभवों के आधार पर बनाई. नुक्कड़ सभाओं के जरिए मतदाताओं को जोड़ा जा रहा था. घर-घर जाकर लोगों से मुलाक़ात की जा रही थी और हर इलाके में जाकर पूछा जा रहा था कि वहां प्रशासन को बेहतर करने के लिए और क्या किया जा सकता है.

धर्म और जाति की राजनीति के बीच अचानक एक पार्टी बड़े ही 'प्रोफेशनल' तरीके से चुनाव में नजर आ रही थी. सीधे सवालों के उनके पास सीधे जवाब थे. तभी तो शायद 15 साल से सीएम की कुर्सी पर बैठीं शीला दीक्षित भी घबराने लगी थीं. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 12 अक्टूबर, 2013 को सुबह के समय आप के चुनाव प्रभारी गोपाल मोहन के पास शीला दीक्षित का कॉल आया.

कॉल उठाते ही उधर से आवाज आई, "आप लोगों को गुमराह कर रहे हैं." पास ही केजरीवाल भी मौजूद थे. गोपाल ने अपने फोन का स्पीकर चालू कर दिया तो केजरीवाल सुनने लगे कि शीला दीक्षित किस तरह राजधानी में लोकपाल का पद बनाने के आप के चुनावी वादे पर आपत्ति जता रही थीं. उनकी जिद थी, "दिल्ली में पहले से अच्छा लोकायुक्त है, यह तुम ठीक नहीं कर रहे हो." 28 साल के गोपाल ने बड़ी विनम्रता से कहा कि मौजूदा लोकायुक्त के पास कोई अधिकार नहीं है. ये वही शीला दीक्षित थीं जिन्होंने कभी पूछा था, 'ये केजरीवाल कौन है?"

साल 2013 में पहली बार दिल्ली चुनाव जीतने के बाद शपथ ग्रहण के लिए जाते अरविंद केजरीवाल/इंडिया टुडे

केजरीवाल जल्दी ही इस बातचीत से ऊब गए और रिठाला में अपनी अगली चुनावी सभा के लिए रवाना हो गए. एक दिन बाद केजरीवाल ने ट्वीट किया, "शीलाजी ने नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र में मेरे प्रचार प्रबंधक को कल फ़ोन किया था. वे चाहती थीं कि गोपाल उन्हें लोकपाल के बारे में समझाए. पर अब क्यों? अब याद आई?"

खैर आम आदमी पार्टी ने 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा वोटों के मामले में 28 सीटें जीतकर दूसरे नंबर की पार्टी बनी. बीजेपी को सबसे ज्यादा 31 सीटें मिली थीं और  तीन बार से लगातार सत्ता में रही कांग्रेस महज 8 सीटों पर सिमट गई. इससे भी बुरा था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी ही सीट नहीं बचा पाई थीं और उन्हें नई दिल्ली विधानसभा सीट से खुद केजरीवाल ने हरा दिया था!

दिल्ली विधानसभा में अपने पहले कार्यकाल के दौरान मनीष सिसोदिया के साथ अरविंद केजरीवाल/इंडिया टुडे

बहुमत किसी के पास नहीं थी और ऐसे में कांग्रेस ने ही आम आदमी पार्टी को समर्थन दे दिया और केजरीवाल मुख्यमंत्री बने. हालांकि 49 दोनों बाद ही 14 फरवरी, 2014 को उन्होंने दिल्ली विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक नहीं ला पाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. सरकार गिर गई थी और दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा रहा.

इस बीच 2014 के लोकसभा चुनावों में केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव भी लड़ा था मगर वे भारी अंतर से हार गए. उस साल आम आदमी पार्टी ने लोकसभा की 432 सीटों पर चुनाव लड़ा था मगर केवल 4 सीटों (पंजाब में) पर उन्हें सफलता हाथ लगी.

2015 में जब दिल्ली में दोबारा चुनाव हुए तो इस बार आम आदमी पार्टी ने अभूतपूर्व जीत हासिल. दिल्ली विधानसभा की कुल 70 में 67 सीटें केजरीवाल की पार्टी के खाते में आई थीं. इसके बाद अरविंद केजरीवाल की सरकार तो चलती रही मगर एक-एक कर लोग बाहर होते गए. योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, शाजिया इल्मी और न जाने कितने ही नेताओं ने ही केजरीवाल पर कभी तानाशाही तो कभी भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर पार्टी छोड़ दी.

2019 के लोकसभा चुनावों में फिर एक बार आम आदमी पार्टी ने अपनी किस्मत आजमाई मगर दिल्ली की एक भी लोकसभा सीट उसके हाथ नहीं लगी. फिर जब 2020 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए तो 70 में से 62 सीटें आप की झोली में गिरीं. इस बीच मनीष सिसोदिया, आतिशी, सौरभ भारद्वाज, संजय सिंह जैसे नेता अरविंद केजरीवाल के साथ लगातार बने रहे.

2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी पर ऑक्सीजन प्लांट से जुड़ा घोटाला करने के आरोप लगे. इसके बाद 2021 में दिल्ली सरकार नई शराब नीति लेकर आई जिसके बाद कांग्रेस और बीजेपी ने पार्टी पर दिल्ली शराब घोटाला करने के आरोप लगाए. नतीजन केजरीवाल सरकार को यह नीति वापस लेनी पड़ी. मगर तब तक यह नासूर बन चुका था. बात इतनी बढ़ गई कि सबसे पहले तो पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले नेता मनीष सिसोदिया को जेल जाना पड़ा और फिर खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल तिहाड़ की सलाखों के पीछे गए.

पार्टी कमजोर होने लगी थी और अब अरविंद केजरीवाल की कमी पार्टी को खेलने लगी थी. साल 2024 में लोकसभा के चुनाव होने थे और इसी में प्रचार के लिए अरविंद केजरीवाल को जमानत दी गई. केजरीवाल बाहर आए और आते ही खेल पलट दिया. जेल से बाहर आने के बाद देश की जनता को सम्बोधित करते हुए उन्होंने शिगूफा छेड़ दिया कि लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी योगी आदित्यनाथ को यूपी के सीएम के पद से हटाने वाली है. कई पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक यूपी में बीजेपी को इस बयान से काफी नुक्सान हुआ.

जेल से बाहर आने के बाद अरविंद केजरीवाल/इंडिया टुडे

हालांकि केजरीवाल पहले भी इस तरह के कारनामे कर चुके हैं. जब बीजेपी के 'जय श्री राम' की काट खोजनी थी तब से हनुमान मंदिर में नजर आने लगे. इसके अलावा जिस जाति-धर्म की राजनीति के बीच केजरीवाल की 'रेवड़ी' राजनीति को असंभव माना जा रहा था, उसी राजनीति के दम पर देश की दोनों बड़ी पार्टियां चुनाव जीत रही हैं.

177 दिन जेल में बिताने के बाद जब 13 सितंबर, 2024 को दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर निकले तो अगले चार दिनों के भीतर ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद से आतिशी दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं. हालांकि पद छोड़ते हुए केजरीवाल ने यह भी अल्टीमेटम दे दिया था कि 2025 में दिल्ली की जनता उन्हें चुनकर भेजेगी तो वे दोबारा सीएम की गद्दी पर जरूर बैठेंगे.

अब 5 फरवरी, 2025 को एक बार फिर चुनाव हैं. झुग्गियों से लेकर दिल्ली के बंगलों तक में चुनाव प्रचार की गूंज पहुंच चुकी है. अब देखना है कि दिल्ली की राजनीतिक स्टेज के सबसे करामाती कलाकार अरविंद केजरीवाल को जनता कौन सा किरदार निभाने की जिम्मेदारी देती है.

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साल 1953 की बात है. एक रोज दिल्ली में रहने वाली 15 साल की एक लड़की अपने घर से पैदल निकली और तीन मूर्ति आवास पहुंच गई. यहां देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रहा करते थे. वो लड़की जैसे ही गेट पर पहुंची उसे रोक दिया गया.

सुरक्षाकर्मियों ने उससे पूछा, “किससे मिलना है?” आत्मविश्वास से भरी वो लड़की बोली, "पंडित जी से मिलना है." गार्ड ने लड़की को PM आवास में नहीं जाने दिया तो वह चिरौरी करने लगी. 

कुछ देर बाद इजाजत मिलते ही वह खुशी से दौड़ते हुए तीन मूर्ति भवन के कैंपस में घुस गई. उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू कहीं जाने के लिए अपनी सफेद कार में सवार हो रहे थे. पूरी स्टोरी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

 

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