भारतीय वायुसेना के बाद अब नौसेना भी अपने लिए राफेल क्यों खरीदना चाहती है?

भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन जेट विमानों का सौदा इस महीने होने की उम्मीद है

नौसेना के बेड़े में जल्द शामिल हो सकता है 26 राफेल जेट (सांकेतिक फोटो)
नौसेना के बेड़े में जल्द शामिल हो सकता है 26 राफेल जेट (सांकेतिक फोटो)

भारत और फ्रांस की सरकारें भारतीय नौसेना के लिए 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमान खरीदने के समझौते को अंतिम रूप देने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. इस महीने के अंत तक सौदे पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है.

वहीं, दूसरी तरफ वायु भवन के गलियारे में भारतीय वायु सेना (IAF) द्वारा 40 अतिरिक्त राफेल जेट खरीदने पर भी चर्चा जोरों पर है. हालांकि, भारतीय वायुसेना के किसी वरिष्ठ अधिकारी ने आधिकारिक तौर पर इस तरह की किसी खरीदारी की पुष्टि नहीं की है.

इसमें कोई दो राय नहीं कि विमान की लागत ऐसी किसी भी संभावित खरीद पर विचार-विमर्श में निर्णायक होगी. मिल रही जानकारी के मुताबिक, भारतीय वायुसेना 114 मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) हासिल करना चाहती है और फ्रांस ने इसकी आपूर्ति में दिलचस्पी दिखाई है.

राफेल की निर्माता दसॉल्ट एविएशन ने भारत में असेंबली लाइन स्थापित करने की इच्छा जताई है, बशर्ते कंपनी को बड़ा ऑर्डर मिले.
दसॉल्ट एविएशन का यह प्रस्ताव रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत के प्रयास के अनुरूप है. इससे भारत और फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूती मिल सकती है, लेकिन यह सब कुछ दोनों देशों के बीच चल रही बातचीत और लागत के मसले सुलझने पर निर्भर है.

देश के लिए यह सौदा बहुत जरूरी है. इसकी वजह यह है कि पिछले कुछ दशकों में भारतीय वायुसेना की लड़ाकू ताकत घटकर सिर्फ 31 स्क्वाड्रन (प्रत्येक में 18 विमान) रह गई है, जो 1965 के बाद सबसे कम है.

2016 में भारतीय वायुसेना ने ‘इंडिया स्पेसिफिक एनहांसमेंट’ प्रोग्राम के तहत 36 राफेल जेट विमानों का लगभग 59,000 करोड़ रुपए का सौदा किया था, जिसकी ज्यादा कीमत को लेकर विपक्षी नेताओं सहित कई लोगों की भौंहें तन गई थीं.

अब एक बार फिर, 63,000 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत वाले 26 राफेल मरीन जेट विमानों के सौदे ने भी सैन्य योजनाकारों के बीच चिंता पैदा कर दी है, खासकर उनलोगों के बीच जो ऊंची कीमत का हवाला देते हैं.

हालांकि मरीन के लिए राफेल सौदे के समय फ्रांसीसी पक्ष भारतीय नौसेना को ये समझाने में सफल रहा है कि राफेल में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा डिजाइन किए गए सेंसर और रडार को लगाने के बजाय, उसमें पहले से लगे रडार और सेंसर को ही रहने दिया जाए.

भारतीय नौसेना इसके लिए तैयार हो गई, लेकिन कुछ सैन्य योजनाकारों ने इसे ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के लिए एक झटका बताया था.
9 अप्रैल को सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने नौसेना के मल्टी-रोल कैरियर बोर्न फाइटर (MRCBF) कार्यक्रम के तहत 26 राफेल मरीन जेट खरीदने को हरी झंडी दे दी है. यह सौदा 22 सिंगल-सीटर और चार ट्विन-सीटर जेट के साथ-साथ हथियारों, सिमुलेटर, स्पेयर पार्ट्स, क्रू ट्रेनिंग और पांच साल की लॉजिस्टिक्स सहायता के लिए है.

राफेल मरीन जेट को भारत के दो विमानवाहक पोतों, आईएनएस विक्रमादित्य और स्वदेशी आईएनएस विक्रांत पर तैनात किया जाएगा. इस विमान की तुलना अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट जेट से होती है.

रक्षा अधिकारियों का कहना है कि चूंकि भारतीय वायुसेना पहले से ही राफेल जेट विमानों का उपयोग कर रही है और राफेल मरीन में 80 फीसद से अधिक समान कल-पुर्जे हैं, इसलिए भारतीय नौसेना के इस सौदे से प्रशिक्षण और रखरखाव पर बचत भी होगी.

भारतीय वायुसेना के लिए 36 राफेल जेट विमानों की खरीद के लिए 2016 में हुए सौदे में हथियार, फ्लाइट सिमुलेटर, स्पेयर पार्ट्स, रखरखाव और प्रशिक्षण शामिल थे. यह सौदा उन विमानों के लिए था, जिसमें कोई टेक्नोलॉजी शेयर करने या स्थानीय स्तर पर देश में उत्पादन से जुड़ा नहीं था. इन सभी 36 जेट विमानों की आपूर्ति हो चुकी है.

सैन्य विमान से जुड़े जानकारों का मानना ​​है कि राफेल मरीन शायद दुनिया का सबसे उन्नत फाइटर जेट हैं जो विमानवाहक पोत पर तैनात किए जाते हैं और भारतीय नौसेना के लिए इसके अधिग्रहण से हमले, रक्षा और टोही के मामले में अपार क्षमताएं जुड़ेंगी. हालांकि, इन सबके साथ विमान की उच्च लागत भी एक मुद्दा रही है.

राफेल मरीन लड़ाकू विमानों की खरीद को आपातकालीन उपाय के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि भारतीय नौसेना के पास अपने विमानवाहक पोतों के लिए पर्याप्त जेट नहीं हैं.

नौसेना रूसी मूल के मिकोयान-गुरेविच मिग-29 K का उपयोग कर रही है, जबकि ब्रिटिश निर्मित सी हैरियर को लगभग तीन दशकों तक की तैनाती के बाद सिस्टमैटिक तरीके से हटा दिया गया था.

रक्षा सूत्रों का दावा है कि 26 राफेल मरीन जेट की खरीद अभी फिलहाल हमारी नौसेना के बेड़े में फाइटर जेट की कमियों को पूरा करेगी, लेकिन यह अस्थाई व्यवस्था है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत का स्वदेशी ट्विन इंजन डेक बेस्ड फाइटर (TEDBF) पर अभी काम चल रहा है.

अगले कुछ महीने में इसके बनकर तैयार होने की उम्मीद है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो पहला प्रोटोटाइप 2027-28 में तैयार होने की उम्मीद है. TEDBF परियोजना का नेतृत्व भारत सरकार की DRDO की एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी कर रही है.

चूंकि भारत TEDBF जैसे कार्यक्रमों के जरिए रक्षा क्षेत्र में इस तरह के जेट को बनाकर आत्मनिर्भर होना चाहता है. ऐसे में कोई दो राय नहीं कि भविष्य में होने वाले इस रक्षा सौदे में राफेल की ज्यादा कीमत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी.

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