दिल्ली के सीएम : ऑक्सफोर्ड की आंदोलनकारी से दिल्ली की सीएम तक, आतिशी की कहानी
फरवरी 2023 में मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद आतिशी को दिल्ली कैबिनेट में शामिल किया गया था और कुछ ही महीनों में उन्होंने केजरीवाल सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत कायम कर ली

साल था 2020. दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिल्ली की 70 में से 62 सीटों पर जीत हासिल की. खास बात यह थी कि इन 62 सीटों में से 8 पर आप की महिला विधायकों ने बाजी मारी, मगर जब मंत्री पद बंटने लगे तो पूरी कैबिनेट में एक भी महिला नहीं थी. आप की इन्हीं 8 महिला विधायकों में से एक ऐसी थी जो आगे चलकर 1-2 नहीं बल्कि पूरे 12 विभाग संभालने वाली थी. नाम था- आतिशी.
कथित शराब नीति घोटाले के मामले में जेल से बाहर निकलने के बाद जब दिल्ली के तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दिया, तब अधिकतर लोग मान चुके थे कि सीएम पद आतिशी को ही मिलने वाला है. लेकिन यह सब कैसे हुआ? कैसे ऑक्सफोर्ड से पढ़ी एक लड़की दिल्ली की सत्ता में सबसे ऊंची गद्दी पर जा बैठी? दिल्ली में हुआ आंदोलन तो बाद की बात है लेकिन कैसे वो 2003 में लंदन में इराक के समर्थन में प्रदर्शन कर रही थीं. दिल्ली के सीएम सीरीज में आज कहानी आतिशी की.
कभी सेंट स्टीफेंस कभी ऑक्सफोर्ड
साल 1981 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार सिंह और त्रिप्ता वाही के घर एक बच्ची ने जन्म लिया. माता-पिता ने वामपंथ की धारा से अपने जुड़ाव की वजह से अपनी बेटी आतिशी के आगे मार्लेना जोड़ा. 'मार्लेना' यानी मार्क्स और लेनिन के मेल से बना शब्द. दिलचस्प है कि आतिशी की बड़ी बहन के नाम के साथ भी उनके माता-पिता ने ऐसे ही प्रयोग किए थे. अल-जज़ीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आतिशी की बड़ी बहन का नाम पॉलिश समाजवादी रोज़ा लक्जमबर्ग के नाम पर रोज़ा बसंती रखा गया.
आतिशी ने नई दिल्ली के स्प्रिंगडेल स्कूल में शुरुआती पढ़ाई की. फिर इतिहास में डिग्री के लिए वे सेंट स्टीफंस कॉलेज गईं जहां अपने विषय में उन्होंने पूरे विश्वविद्यालय में टॉप किया था. इसके बाद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उन्हें शेवनिंग छात्रवृत्ति मिली, जहां उन्होंने अपनी पहली मास्टर्स डिग्री हासिल की. ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ने का मौका उन्हें दोबारा तब मिला जब वे रोड्स स्कॉलर बनकर लंदन लौटीं और ऑक्सफ़ोर्ड के मैग्डालेन कॉलेज से एजुकेशनल रिसर्च में अपनी दूसरी मास्टर्स डिग्री पूरी की. इस बीच उन्होंने एक साल कर्नाटक के ऋषि वैली स्कूल में पढ़ाया भी.
साल 2018 में 'न्यूज़ 18' को दिए एक इंटरव्यू में आतिशी ने बताया था कि ऑक्सफ़ोर्ड में पढ़ने के दौरान उन्होंने 2003 में इराक युद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ प्रदर्शन में भी हिस्सा लिया था. एक तरह से यह उनके आंदोलनकारी रूप शुरुआत थी. 2005 में वे भारत लौट आईं.
भारत में सोशल वर्क, शादी और आम आदमी पार्टी
भारत लौटने के बाद, आतिशी ने मध्य प्रदेश में सामाजिक विकास के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. यहां उनका ज़ोर ग्रामीण समुदायों पर था. इसी दौरान 2007 में उन्होंने एक साथी सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण सिंह से शादी कर ली. प्रवीण आईआईटी दिल्ली और आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व छात्र रह चुके हैं, और आतिशी के साथ वे मध्य प्रदेश में ग्रामीण विकास की कई परियोजनाओं में भी शामिल थे.
2010 में आतिशी की मुलाकात मनीष सिसोदिया से हुई, जो एक न्यूज़ चैनल की नौकरी छोड़ने के बाद केजरीवाल के साथ एक एनजीओ चला रहे थे. इसी मुलाकात के बाद आतिशी कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल होने के लिए तैयार हुईं. कई राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस आंदोलन की वजह से 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस की हार हुई और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी का उभार हुआ.
साल 2012 में जब आतिशी अपने गृहनगर दिल्ली लौटीं, तो उन्होंने सोचा था कि आम आदमी पार्टी के साथ अपना काम खत्म करने के बाद ग्राम स्वराज परियोजना में वापस लौट जाएंगी. मगर सब सोचा हुआ हो जाए तो नियति शब्द बेमानी हो जाएगा!
आतिशी पहले दिन से ही आम आदमी पार्टी के मुख्य रणनीतिकारों में से एक बन गई थीं. 2013 में जब आप ने दिल्ली में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा तब वे घोषणापत्र मसौदा समिति का हिस्सा थीं. उस दौरान पार्टी की प्रवक्ता के रूप में आतिशी कई कार्यालयों में लगातार मौजूद रहती थीं, चाहे वह नॉर्थ एवेन्यू हो या ईस्ट पटेल नगर कार्यालय.
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी दो धड़ों में बंट चुकी थी - एक केजरीवाल के वफादार और दूसरे योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के अनुयायी. इन दोनों धड़ों के बीच वैचारिक रूप से अस्पष्ट बनी अंदरूनी लड़ाई की वजह से एक समय पार्टी में आतिशी के करियर पर भी खतरा था. शुरू में उन्होंने चुप्पी साध रखी थी. मगर लंबे समय से प्रशांत भूषण खेमे की सदस्य मानी जाने वाली आतिशी ने उस समय केजरीवाल का साथ देकर सबको चौंका दिया. उन्होंने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को एक चिट्ठी भेजी और लिखा, "मुझे नहीं लगता कि अब हमारे रास्ते एक हो सकते हैं."
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 7 अप्रैल, 2015 को भेजी इस चिट्ठी में आतिशी ने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव पर अपनी मांगों को लेकर अड़े रहने और पार्टी की छवि खराब करने का आरोप लगाया.
आम आदमी पार्टी में दूसरी पारी और 1 रुपए की सैलरी
आतिशी की विवादित चिट्ठी से ही पार्टी में उनकी दूसरी पारी की शुरुआत हुई. आप ने तब तक लगभग सभी बागी नेताओं को बाहर कर दिया था और अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से पार्टी के निर्विवाद नेता बन चुके थे. तब से आतिशी ने दिल्ली सरकार में शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया के साथ शिक्षा सलाहकार के रूप में काम करना शुरू किया और इसके बदले में वे 1 रुपए का सांकेतिक वेतन लेती थीं.
इस कार्यकाल के दौरान दिल्ली के सरकारी स्कूलों में बदलाव लाने का श्रेय मनीष सिसोदिया और आतिशी को दिया जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मनीष सिसोदिया और आतिशी ने अधिकारियों और कुछ एनजीओ के साथ हर हफ्ते क़रीब 8 बैठकें कीं जिससे दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सका. ये दोनों नेता मिलकर 8 परियोजनाओं को लीड कर रहे थे. इसमें मिशन बुनियाद, टीचर डेवलपमेंट को-ऑर्डिनेटर कार्यक्रम और स्कूल मैनेजमेंट कमेटी की ओर से इनपुट लेने जैसे कार्यक्रम शामिल थे. दिल्ली सरकार की ओर से चलाए जा रहे 'हैपीनेस करिकुलम' को भी डिज़ाइन करने में आतिशी की अहम भूमिका थी. इसके अलावा दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों के फीस रेगुलेशन को लेकर भी आतिशी के काम की वाहवाही होती है.
यह सब चल ही रहा था कि तभी अप्रैल 2018 में, केंद्र सरकार ने आतिशी सहित दिल्ली सरकार के अन्य दूसरे विभागों में सलाहकार की भूमिका निभा रहे नौ लोगों को उनके पदों से हटा दिया. इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से सलाहकारों के पदों के सृजन के लिए पूर्व अनुमति के ना होने की बात कही गई थी.
इसके तीन महीने बाद, आतिशी को पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के लिए आप का प्रभारी नामित किया गया. यह पूर्वी दिल्ली सीट से ही उनके 2019 के लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत थी.
मार्क्स और लेनिन से तौबा
चुनाव अभियान में उन्होंने अपना उपनाम, मार्लेना छोड़ दिया और अपनी राजपूत-क्षत्रिय जड़ों को आगे बढ़ाया. उनका यह कदम, कथित तौर पर, बीजेपी के इस प्रोपगेंडा की हवा-निकालना था कि वे क्रिश्चियन हैं. हालांकि भारतीय राजनीति में जातिवाद की अपनी अहमियत के चलते इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वे अपने उपनाम के जरिए कुछ अतिरिक्त वोटरों को खुद से जोड़ना चाह रही हों.
वे बीच-बीच में अपने उपनाम के तौर पर सिंह का इस्तेमाल करती हैं जो उनके पिता के नाम से राजपूत जाति की पहचान है. लेकिन वे ज़्यादातर अपने पहले नाम का ही इस्तेमाल करती हैं. अगस्त 2018 में, उन्होंने एक बार सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था, "मार्लेना मेरा उपनाम नहीं है. मेरा उपनाम सिंह है जिसे मैंने कभी इस्तेमाल नहीं किया. दूसरा नाम मेरे माता-पिता ने दिया था. मैंने अपने चुनाव अभियान के लिए सिर्फ़ आतिशी का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है."
लोकसभा चुनाव में वे बीजेपी के गौतम गंभीर और तब कांग्रेस के साथ रहे अरविंदर सिंह लवली के बाद तीसरे स्थान पर रहीं.
दिल्ली सरकार में बढ़ता कद
साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आतिशी फिर से चुनावी मैदान में लौटीं और इस बार कालकाजी सीट से विधायक बनीं. 2022 तक आप के पदचिह्न दिल्ली से आगे बढ़ते दिखाई दिए. उसी साल पार्टी पंजाब में सत्ता में आई. इसके अलावा पार्टी के उम्मीदवारों ने गोवा में दो सीटें और मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी पांच सीटें जीतीं.
लेकिन एक साल के भीतर ही पार्टी संकट में आ गई. ईडी ने दिल्ली की शराब नीति की जांच शुरू कर दी जिसमें आप पर रिश्वत लेने और कथित तौर पर चुनाव अभियानों के लिए पैसे का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया. इसी केस के सिलसिले में सिसोदिया को फरवरी 2023 में, सांसद संजय सिंह को अक्टूबर 2023 में और केजरीवाल को 2024 के मार्च में गिरफ्तार किया गया.
वहीं दिल्ली के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन मई 2022 से एक अलग मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में अभी तक बंद हैं. इसके अलावा पार्टी विधायक अमानतुल्लाह खान को भी कथित मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था.
गिरफ़्तारियों के इस सिलसिले ने आम आदमी पार्टी में नेतृत्व का संकट पैदा कर दिया था. सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद ही आतिशी को दिल्ली कैबिनेट में शामिल किया गया था. साल 2023 की जुलाई तक, उनके पास शिक्षा, वित्त और पीडब्लूडी सहित 12 महत्वपूर्ण विभाग थे और तब तक उन्होंने केजरीवाल सरकार में दूसरे नंबर की हैसियत कायम कर ली थी.
जब मार्च 2024 में केजरीवाल को जेल भेजा गया, तो आतिशी की ज़िम्मेदारियां कई गुना बढ़ गईं. पार्टी से जुड़े हर तरह के मसले में मीडिया में आतिशी का ही चेहरा दिख रहा था. चाहे सुनीता केजरीवाल के साथ जनता को संबोधित करना हो, या संजय सिंह के जेल से छूटने के बाद के जश्न का मामला, आतिशी हर जगह थीं.
15 सितंबर, 2024 को जब अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आए और उन्होंने इस्तीफा देने और दिल्ली में अगले विधानसभा चुनाव तक अपनी जगह किसी नए मुख्यमंत्री को नियुक्त करने का फैसला सुनाया, तो यह स्पष्ट हो गया था कि आतिशी ही दिल्ली की कमान संभालने जा रही हैं. इसके बाद 17 सितंबर को जब केजरीवाल ने आप विधायक दल की बैठक में आतिशी के नाम का प्रस्ताव रखा, तो सभी हाथ तुरंत उठ गए और दिल्ली को नया मुख्यमंत्री मिल गया. 42 साल की उम्र में वे दिल्ली की अब तक की सबसे कम उम्र की सीएम बनीं.
मुख्यमंत्री बनने के बाद जब अख़बारों में सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित के बाद दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री होने की बात आतिशी के बारे में लिखी जा रही थी, तभी एक बयान में उन्होंने कहा कि वे पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कुर्सी पर नहीं बैठेंगी और उसके बगल में कुर्सी लगाकर उनके वापस आने तक सीएम का प्रभार संभालेंगी. ठीक उसी तरह जैसे भरत ने राम के खड़ाऊं रखकर अयोध्या में राज किया था.
विवादित होने के साथ ही आतिशी का यह बयान स्पष्ट कर रहा था कि 2025 के विधानसभा चुनावों में अगर आप की जीत होती है तो सीएम केजरीवाल ही होंगे. चाहे केजरीवाल के पैर छूने हों या कुर्सी पर ना बैठने वाला बयान, जब-जब सीएम आतिशी केजरीवाल के साथ नजर आईं उन्होंने 19 ही दिखने की कोशिश की.
अब 5 फरवरी को होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों के बाद ही पता चलेगा कि आतिशी का राजनैतिक भविष्य क्या होगा. क्या वे दोबारा सरकार में मंत्रालय संभालती दिखेंगी या विपक्ष की बेंच पर नजर आएंगी.
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