कैसे सामने आया कोविशील्ड वैक्सीन के साइड इफेक्ट का मामला?

ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने कोविशील्ड वैक्सीन बनाई थी. कंपनी की तरफ से भारत में इसका उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने किया था

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

कोविड-19 की भयावह यादें अभी भी लोगों के जेहन में बासी नहीं हुई हैं. इस संक्रामक बीमारी की चरम स्थिति में जब विभिन्न देशों के नीति-नियंताओं ने इससे बचाव के लिए वैक्सीन का आसरा दिखाया तो लोगों में एक उम्मीद जगी. 16 जनवरी, 2021 से भारत में सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई. दिल्ली एम्स के सफाईकर्मी मनीष कुमार पहले व्यक्ति बने जिन्हें कोविड वैक्सीन लगी.

इसके बाद देश भर में करोड़ों लोगों ने अलग-अलग कंपनियों की कोविड वैक्सीन ली. करीब 175 करोड़ डोज तो केवल कोविशील्ड के लगे. लेकिन अब इसी कोविशील्ड वैक्सीन को बनाने वाली ब्रिटिश फार्मास्युटिकल कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी इस वैक्सीन से खतरनाक साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. हालांकि ऐसा बहुत दुर्लभ मामलों में ही होगा. ऐसे में पूरा मामला क्या है, साथ ही क्या और भी वैक्सीन के साथ ये मसले सामने आए हैं? आइए समझते हैं. 

अप्रैल 2021 की बात है. पिछले एक साल (जून 2020-अप्रैल 21) के दौरान इंग्लैंड में 36 लाख से ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ चुके थे. इसी अवधि में 91 हजार से ज्यादा लोग इस बीमारी के चलते काल के गाल में समा गए थे. इस भयावह स्थिति को देखते हुए एक ब्रिटिश शख्स जेम्स स्कॉट ने कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई. इसके बाद उनकी हालत खराब हो गई. शरीर में खून के थक्के बने जिसका सीधा असर उनके दिमाग पर पड़ा. इसके अलावा स्कॉट के ब्रेन में इंटर्नल ब्लीडिंग भी हुई. डॉक्टर्स ने उनकी पत्नी से कहा कि वो स्कॉट को नहीं बचा पाएंगे. स्कॉट की बीमारी के ये सभी लक्षण थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी TTS के थे. 

खैर, स्कॉट किसी तरह बीमारी से उबरे और पिछले साल उन्होंने वैक्सीन बनाने वाली कंपनी एस्ट्राजेनेका के खिलाफ ब्रिटिश हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज कराई. मई 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया कि उनकी वैक्सीन से TTS नहीं हो सकता है. लेकिन इस साल फरवरी में जब कंपनी ने हाईकोर्ट में दस्तावेज जमा किए तो उसमें माना कि उनकी कोरोना वैक्सीन से कुछ मामलों में TTS हो सकता है. अब यहां आगे बढ़ने से पहले जरा TTS के बारे में समझ लेते हैं. 

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. जगदीश जे हीरेमथ बताते हैं, "TTS एक ऐसी दुर्लभ स्थिति होती है जब शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है. इसे कुछ खास कोविड वैक्सीन से जुड़े एक दुर्लभ साइड इफेक्ट्स के रूप में देखा गया है. खासकर उन वैक्सीन से जो एडेनोवायरस वैक्टर का इस्तेमाल करते हैं. कोविशील्ड भी इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल करता है." थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम में थ्रोम्बोसिस का मतलब होता है - खून के थक्के जमना, जबकि थ्रोम्बोसाइटोपेनिया से आशय प्लेटलेट्स की संख्या कम होने से है. 

बहरहाल, अभी तक यह बात सामने नहीं आई है कि वैक्सीन में किस चीज की वजह से यह बीमारी होती है. लेकिन तथ्य यह है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल अब ब्रिटेन में नहीं हो रहा है. ब्रिटिश अखबार टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाजार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के खतरे को भांप लिया था. इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज दिया जाए. ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे.

इस पूरे प्रकरण पर एस्ट्राजेनेका का दावा है कि उसने वैक्सीन से जुड़ी सभी सुरक्षा मानकों का पालन किया है. कंपनी ने कहा, "उन लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है या जिन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा. मरीजों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है. हमारी रेगुलेटरी अथॉरिटी सभी दवाइयों और वैक्सीन के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए सभी मानकों का पालन करती है." 

कंपनी ने आगे कहा, "क्लिनिकल ट्रायल और अलग-अलग देशों के डेटा से यह साबित हुआ है कि हमारी वैक्सीन सुरक्षा से जुड़े मानकों को पूरा करती है. दुनियाभर के रेगुलेटर्स ने भी माना है कि वैक्सीन से होने वाले फायदे इसके दुर्लभ साइड इफैक्ट्स से कहीं ज्यादा हैं." अब यहां सवाल उठता है कि क्या और भी वैक्सीन की शिकायतें देश-दुनिया से सामने आई हैं? 

पिछले साल दिसंबर में टेक्सास के अटॉर्नी जनरल केन पैक्सटन ने वैक्सीन बनाने वाली एक और फार्मास्युटिकल कंपनी फाइजर पर मुकदमा दायर किया. पैक्सटन ने कंपनी पर आरोप लगाया कि उसने अपने कोविड वैक्सीन की प्रभावशीलता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और जनता को धोखा दिया. उनका कहना था कि कंपनी ने जिस तरह के दावे किए कि वो कोविड महामारी को पूरी तरह खत्म कर देगी. लेकिन सामने आने के एक साल बाद भी वो ऐसा करने में नाकाम रही है. भारत ने फाइजर वैक्सीन को देश में बैन कर दिया था. भारत बायोटेक की स्वदेशी वैक्सीन कोवैक्सीन को लेकर भी तब विवाद हुए थे जब आधे-अधूरे क्लीनिकल ट्रायल के बाद देश में उसके इस्तेमाल को मंजूरी दी गई थी. 

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