गुजरात में कितने हैं एशियाई शेर! नए सेंसस में किन हाईटेक तरीकों से होगी गिनती?
गुजरात सरकार हर पांच साल में एशियाई शेरों की जनगणना कराती है. इस बार 16वां लायन सेंसस 10 से 13 मई तक दो चरणों में आयोजित किया जाएगा

गुजरात सरकार का वन विभाग हर पांच साल में एशियाई शेरों की जनगणना कराता है. इसके तहत 'एशियाई शेर-2025' की 16वीं जनसंख्या गणना 10 से 13 मई तक दो चरणों में आयोजित की जाएगी. यह गणना राज्य के 11 जिलों के 58 तालुकाओं में 35,000 वर्ग किमी के इलाके में होगी.
एशियाई शेरों की यह गणना एक ऐसे अहम मोड़ पर हो रही है जब गुजरात में शेरों की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. इससे यह बात साफ है कि राज्य में शेरों के संरक्षण में सफलता मिल रही है. लेकिन साथ ही, इससे मानव-वन्यजीवन सह-अस्तित्व में बढ़ती चुनौतियां भी सामने आ रही हैं.
यह पांच वर्षीय लॉयन सेंसस (शेर जनगणना) पहली बार 1936 में आयोजित हुआ था. इस बार के सेंसस में पहली बार पारंपरिक डायरेक्ट साइटिंग मेथड (प्रत्यक्ष दृष्टि विधि) के साथ क्लोज-सर्किट टेलीविजन यानी CCTV सर्विलांस का भी इस्तेमाल किया जाएगा.
इसके अलावा, डायरेक्ट बीट वेरिफिकेशन (DBV) विधि का भी इस्तेमाल किया जाएगा. इसे ब्लॉक काउंट विधि के रूप में भी जाना जाता है, जिसका उपयोग साल 2000 से किया जाता रहा है.
शेरों के मूवमेंट के ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर जनगणना क्षेत्र को मूल गणना इकाइयों में बांटा गया है—वन के अंदर बीट्स और बाहर तीन से 10 गांवों के समूह. इस गणना प्रक्रिया में रीजनल, जोनल और सब-जोनल अधिकारियों के साथ करीब 3000 प्रशिक्षित वोलंटियर्स शामिल होंगे.
इसमें भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के भी हिस्सा लेने की उम्मीद है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह संस्थान वन्यजीव जनगणना में अपनी विशेषज्ञता रखता है. गणना के वक्त शेर के मूवमेंट की दिशा, लिंग, आयु, पहचान चिह्न, जीपीएस स्थान और समूह संरचना जैसे विवरण भी दर्ज किए जाएंगे.
हालांकि फाइंडिंग्स की पुष्टि के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, प्राइमरी डेटा 'DBV' (डेटा बेस्ड वैल्यू) मेथड के जरिए इकट्ठा किया जाएगा. DBV मेथड लंबे समय से इस्तेमाल में रहा है, और अपनी प्रभावशीलता साबित कर चुका है.
गुजरात के वन विभाग ने एक बयान में दावा किया है कि यह विधि सांख्यिकीय विश्लेषण और कार्यान्वयन की आसानी के कारण 100 फीसद सटीकता सुनिश्चित करती है. इसका इस्तेमाल तीन दशकों से अधिक समय से जंगलों, घास के मैदानों, तटीय इलाकों और राजस्व भूमि में किया जा रहा है.
स्टडी किए जाने वाले इलाके को रीजनल, जोनल और सब-जोनल इकाइयों में बांटा गया है. इसमें वॉलंटियर्स के साथ-साथ अधिकारी, गणनाकार, सहायक गणनाकार और पर्यवेक्षक शामिल हैं, जिन्हें ऑब्जर्वेशन टाइम, मूवमेंट डायरेक्शन, लिंग, आयु, पहचान चिह्न, जीपीएस स्थान और समूह संरचना जैसे विवरण रिकॉर्ड करने के लिए निर्दिष्ट फॉर्म और मैप प्रदान किए जाएंगे.
साथ ही, शेरों की पहचान के लिए हाई-रिजॉल्यूशन कैमरे और कैमरा ट्रैप का इस्तेमाल किया जाएगा. कुछ शेरों को उनके स्थान और समूह की गतिविधियों को ट्रैक करने के लिए रेडियो कॉलर लगाए गए हैं. ई-गुजफॉरेस्ट ऐप जीपीएस लोकेशन और फोटो सहित रीयल टाइम में डेटा एंट्री की सुविधा प्रदान करेगा. बयान में कहा गया है कि सर्वे इलाकों का नक्शा बनाने, शेरों की गतिविधियों, वितरण पैटर्न और आवास उपयोग को ट्रैक करने के लिए जीआईएस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाएगा.
पिछले तीन दशकों में शेरों की आबादी हर पांच साल में 25-30 फीसद की स्थिर दर से बढ़ी है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 1995 में की गई गणना में वयस्क नर, मादा, शावक सहित कुल 304 शेर दर्ज किए गए थे. इसी प्रकार, वर्ष 2001 में 327, वर्ष 2005 में 359, वर्ष 2010 में 411, वर्ष 2015 में 523 और वर्ष 2020 में कुल 674 शेर दर्ज किए गए.
2020 में एशियाई शेरों की आबादी में 28.87 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, जो 2015 में 523 से बढ़कर 674 हो गई. कुछ तार्किक अनुमानों से संकेत मिलता है कि आबादी अब 800 के आसपास है.
हालांकि राज्य सरकार के संरक्षण प्रयासों के चलते शेरों की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन यह तथ्य परेशान करने वाला है कि ये प्रजातियां पूरी तरह से सौराष्ट्र प्रायद्वीप में ही सीमित हैं. इसने कई चुनौतियां पेश की हैं जिनका कोई निश्चित समाधान नहीं है.
मानव आवास, कृषि भूमि, ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए भूमि इस्तेमाल की बढ़ती मांग के दबाव में शेरों का आवास लगातार कम हो रहा है. सौराष्ट्र इलाके के पांच वन्यजीव अभयारण्यों की वहन क्षमता 15 साल पहले ही खत्म हो चुकी थी. पिछले जनगणना के डेटा का एनालिसिस करने पर पता चलता है कि 2015 और 2020 के बीच जंगली इलाकों के बाहर शेरों की आबादी में 97 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई, जबकि जंगली इलाकों के भीतर तीन फीसद की कमी आई.
राज्य में शिकार ढूंढ़ते शेरों के झुंड के कस्बों और गांवों की कंक्रीट सड़कों पर घूमने, तेज गति के हाईवे को पार करने और तेज रफ्तार ट्रेनों का खुद शिकार बनने की कहानियां आम हो गई हैं.
नए दावा किए गए इलाकों में जानवरों के लिए जरूरी प्रे बेस (शिकार आधार) की कमी है, जिसके चलते उनका मानव बस्तियों के साथ और अधिक संघर्ष हो रहा है. सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात के गिर जंगल में शेरों द्वारा पालतू जानवरों को मारने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं, जो 2023-24 में 4,385 के साथ सबसे ज्यादा थीं. यह तब है जब पिछले छह सालों में गिर जंगल में प्रे एनिमल (शिकार बनने वाले जानवरों) की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है.
बढ़ती चुनौतियों के बीच, इस लॉयन सेंसस से इस बात पर ठोस डेटा मिलने की उम्मीद है कि एशियाई शेर कहां और कैसे अपने इलाके का विस्तार कर रहे हैं. इससे आने वाले वर्षों में इलाके के लिए विकास योजनाओं और वन्यजीव संरक्षण रणनीतियों को आकार देने में मदद मिलेगी.