क्रिकेट से लेकर शतरंज तक, मेंटल कोच पैडी अप्टन देश के शीर्ष खिलाड़ियों की कैसे मदद कर रहे हैं?
शतरंज विश्व चैम्पियनशिप में जीत के बाद डी गुकेश ने पैडी अप्टन का विशेष तौर पर जिक्र किया. पूर्व दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर अप्टन भारत की 2011 विश्व कप विजेता टीम का भी हिस्सा रहे थे

शायद मेंटल कोच पैडी अप्टन ने चैंपियन खिलाड़ियों को एक शानदार आकार में ढालने की आदत-सी बना ली है. बात चाहे 2011 क्रिकेट विश्व कप (विजेता भारत) के लिए भारतीय टीम की मानसिक मजबूती के पीछे जिम्मेदार चेहरे की करें, या फिर टोक्यो ओलंपिक में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीतने के लिए पुरुष हॉकी टीम को प्रेरित करने तक, अप्टन की विशेषज्ञता सभी जगह कारगर साबित हुई है.
अप्टन की इस लगातार सफलता में अब एक नया चैप्टर जुड़ा है. उन्होंने भारतीय किशोर ग्रैंडमास्टर डी. गुकेश को विश्व शतरंज चैम्पियनशिप में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. गुकेश और अप्टन इसी साल के मध्य में साथ आए थे. इसमें उनकी मदद वेस्टब्रिज-आनंद शतरंज अकादमी (WACA) के सह-संस्थापक संदीप सिंघल ने की. वैसे तो गुकेश के पास शतरंज के महान खिलाड़ियों और मार्गदर्शकों से भरी टीम थी, लेकिन WACA ने उनके लिए एक मेंटल कंडीशनिंग एक्सपर्ट की जरूरत को भी पहचाना.
और यही वजह रही कि इसने उन्हें अप्टन से संपर्क साधने के लिए प्रेरित किया. अप्टन के पिछले शानदार कामों को देखते हुए इस काम में एकमात्र विकल्प वही हो सकते थे. सिंगापुर में मिली इस ऐतिहासिक जीत के तुरंत बाद गुकेश ने अपनी सेकेंड टीम (पेशेवर खिलाड़ी जो दूसरों की सहायता करते हैं) का खुलासा किया और अप्टन का विशेष तौर पर जिक्र किया. गुकेश ने इस बात पर जोर दिया कि पूर्व दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर ने उनकी सफलता की यात्रा में अहम भूमिका निभाई.
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर अप्टन को शतरंज के बारे में बहुत कम जानकारी थी, लेकिन उन्होंने गुकेश की मानसिक मजबूती को आकार देने पर काम किया.
गुकेश को विश्व चैंपियनशिप के लिए अपने मानसिक रूप से सर्वश्रेष्ठ होने की जरूरत थी, खासकर चैंपियनशिप से पहले जब लोग उनके विपक्षी डिंग लिरेन की खराब स्थिति के बारे में चर्चा कर रहे थे. कुछ जानकारों ने अनुमान लगाया था कि डिंग अपने ताज को नहीं बचा पाएंगे.
हालांकि, चीनी ग्रैंडमास्टर ने सिंगापुर में शुरुआती गेम में असाधारण प्रदर्शन करके सभी को चौंका दिया. डिंग ने पिछले दो साल में अपना सर्वश्रेष्ठ शतरंज खेला. निर्णायक गेम 14 में, डिंग चैम्पियनशिप में टाईब्रेकर के लिए मजबूर करने से बस कुछ ही मिनट दूर थे, लेकिन गुकेश की दृढ़ता, फोकस और डिंग की एक महत्वपूर्ण गलती ने 12 दिसंबर को खेल को उनके पक्ष में कर दिया.
गुकेश ने कहा, "पिछले छह महीनों में पैडी ने मेरा बहुत साथ दिया है. हालांकि वे मेरी शतरंज टीम का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन इस यात्रा में वह बहुत ही अहम व्यक्ति रहे हैं. हमने जिस महत्वपूर्ण पहलू पर काम किया, वह था मेरे विपक्षी के फॉर्म और नजरिए के बारे में अनिश्चितता को मैनेज करना. पैडी शतरंज को गहराई से नहीं समझते, लेकिन वे खेल और इसके पीछे के मनोविज्ञान को समझते हैं."
अप्टन और गुकेश ने मेंटल क्लैरिटी को धारदार बनाने और दबाव में संयम बनाए रखने पर केंद्रित साप्ताहिक सत्र आयोजित किए, जो चैंपियनशिप स्तर के खेल के लिए जरूरी चीजें हैं. अप्टन का सिपंलिसिटी (सादगी) पर जोर उनकी रणनीति का आधार बन गया.
गुकेश की विश्व चैम्पियनशिप जीत ने न सिर्फ शतरंज के शीर्ष खिलाड़ियों के बीच उनकी जगह पक्की कर दी है, बल्कि आधुनिक खेलों में मानसिक अनुकूलन यानी स्थितियों के मुताबिक ढलने के बढ़ते महत्व को भी रेखांकित किया है. जैसा कि गुकेश ने कहा भी, "यह वास्तव में अच्छा है कि पैडी ने भारत को 2011 विश्व कप जीतने में मदद की. तेरह साल बाद उन्होंने भारत को शतरंज चैंपियनशिप जीतने में मदद की है."
चेस24 से बात करते हुए अप्टन ने कहा, "बड़े आयोजनों में नए खिलाड़ियों द्वारा की जाने वाली सबसे बड़ी गलतियों में से एक यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें कुछ खास करने की जरूरत है. मुख्य बात है निरंतरता - आप जो कर रहे हैं उसे एक बार में एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसे अच्छे से करते रहें."
यह फिलॉसफी विश्व चैम्पियनशिप के मुश्किल मैचों में अहम साबित हुई, जहां दबाव में शांत रहने की गुकेश की क्षमता ने आखिरकार उनके पक्ष में पलड़ा झुका दिया.
मानसिक तैयारी के अलावा अप्टन ने गुकेश को चुस्त और संतुलित बनाए रखने के लिए शारीरिक कसरत भी शुरू की. गुकेश ने बताया, "न केवल मानसिक, बल्कि उन्होंने मुझे शारीरिक रूप से फिट रखने के लिए भी वर्कआउट की योजना बनाई. हमारे सत्र बातचीत करने, विचारों को साझा करने और प्रतिक्रिया हासिल करने के बारे में थे. पैडी ने मेरे विचारों को सुना और मुझे अमूल्य जानकारी दी."
जब अप्टन ने क्रिकेट और हॉकी को चैंपियन बनाया
दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों के साथ अप्टन की ये जर्नी मेंटल कंडीशनिंग की सार्वभौमिक जरूरत को उजागर करती है. क्रिकेट में वे गैरी कर्स्टन की कोचिंग टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने भारत की 2011 विश्व कप जीत का नेतृत्व किया, एक ऐसी जीत जो देश की साझा स्मृति में अभी तक दर्ज है.
2011 विश्व कप के दौरान भारत को भारी दबाव का सामना करना पड़ा, खासकर 2007 की हार के बाद. 2011 तक किसी भी टीम ने घरेलू मैदान पर पुरुष वनडे विश्व कप नहीं जीता था, लेकिन भारत ने इतिहास फिर से लिखा.
कई क्रिकेटरों ने राष्ट्रीय टीम के साथ अपने कार्यकाल के दौरान अप्टन के काम की प्रशंसा की है. यहां तक कि 2022 में राहुल द्रविड़ के मुख्य कोच के रूप में कार्यकाल के दौरान भी वह थोड़े समय के लिए टीम में लौटे थे.
अप्टन ने टोक्यो ओलंपिक के दौरान भारतीय पुरुष हॉकी टीम को चार दशकों में अपना पहला ओलंपिक पदक जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वहां भी उन्होंने कई सुपर-टैलेंटेड सितारों को एक बड़ी मानसिक बाधा को पार करने और पोडियम पर खड़े होने में मदद की.
अब तक के अपने शानदार करियर में, गुकेश की जीत में अप्टन का योगदान असल में डिस्पलिन की परवाह किए बिना व्यक्तियों की क्षमता को अनलॉक करने की उनकी क्षमता का उदाहरण है. जैसा कि भारत एक और विश्व चैंपियन का जश्न मना रहा है, अप्टन का काम यह याद दिला रहा है कि दिमाग अक्सर एक एथलीट के शस्त्रागार में सबसे मजबूत उपकरण होता है.