दिल्ली के सीएम: पंजाब की बेटी और UP की बहू शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री बनने की कहानी

शीला दीक्षित 1984 में यूपी से संसदीय चुनाव जीतीं और इसके साथ ही वो केंद्र में मंत्री बन गईं. 1998 में कांग्रेस के अंदर 'शीला फॉर दिल्ली' का नारा गूंजने लगा. इस तरह यूपी की बहू की दिल्ली की राजनीति में एंट्री हुई

शीला दीक्षित  (31.03.1938 – 20.07.2019)
दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित (31.03.1938 – 20.07.2019)

साल 1953 की बात है. एक रोज दिल्ली में रहने वाली 15 साल की एक लड़की अपने घर से पैदल निकली और तीन मूर्ति आवास पहुंच गई. यहां देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रहा करते थे. वो लड़की जैसे ही गेट पर पहुंची उसे रोक दिया गया.

सुरक्षाकर्मियों ने उससे पूछा, “किससे मिलना है?” आत्मविश्वास से भरी वो लड़की बोली, "पंडित जी से मिलना है." गार्ड ने लड़की को PM आवास में नहीं जाने दिया तो वह चिरौरी करने लगी. 

कुछ देर बाद इजाजत मिलते ही वह खुशी से दौड़ते हुए तीन मूर्ति भवन के कैंपस में घुस गई. उस वक्त प्रधानमंत्री नेहरू कहीं जाने के लिए अपनी सफेद कार में सवार हो रहे थे.

इस लड़की ने नेहरू की ओर देखकर खुशी से हाथ हिलाते हुए उनका अभिवादन किया. नेहरू ने जवाब में मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर उसका अभिवादन स्वीकार किया.

नेहरू से मिलने के लिए छोटी उम्र में प्रधानमंत्री आवास पहुंचने वाली ये लड़की कोई और नहीं बल्कि आगे चलकर 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित थीं. इस कहानी का जिक्र उन्होंने खुद अपनी किताब 'सिटीजन दिल्ली: माय टाइम्स, माय लाइफ' में किया था.

दिल्ली के सीएम’ सीरीज में आज कहानी पंजाबी बेटी और यूपी की बहू शीला दीक्षित की…

मार्च 1957 की तस्वीर में शीला दीक्षित (सबसे बायीं ओर) अपनी दोस्त नट, रजनी, एना और अंजलि के साथ। (सौजन्य: ब्लूम्सबरी)

पंजाब के हिंदू खत्री परिवार में पैदा हुई शीला ने यूपी के लड़के से की शादी

31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में संजय कपूर नाम के एक हिंदू खत्री परिवार में एक लड़की का जन्म हुआ था. इसका नाम शीला कपूर रखा गया. नई दिल्ली के कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद शीला ने दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से मास्टर की पढ़ाई पूरी की. 

पढ़ाई के समय में ही दिल्ली विश्वविद्यालय में शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित नाम के एक लड़के से हुई. विनोद दीक्षित कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे. विनोद अक्सर शीला के साथ डीटीसी बस में बैठकर कॉलेज जाया करते थे. 

बचपन से राजनीति में दिलचस्पी होने की वजह से शीला और विनोद के बीच घंटों राजनीति पर बातचीत होती थी. एक रोज डीटीसी की ही 10 नंबर बस पर सफर करने के दौरान ही विनोद ने शीला दीक्षित को प्रपोज कर दिया. 

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र करते हुए लिखा कि उस रोज विनोद ने कहा, "आज मैं अपनी मां से कहने वाला हूं कि मुझे मेरी जीवनसाथी मिल गई है." ये सुनकर शीला ने उससे पूछा, "क्या तुमने उस लड़की से बात कर ली है?" इसके जवाब में विनोद ने कहा, "हां, वो लड़की मेरे बगल में बैठी है." 

इस वक्त विनोद बेरोजगार थे. हालांकि, 11 जुलाई 1962 को शादी होने से 3 साल पहले विनोद IAS बन गए. उन्हें यूपी कैडर में नौकरी मिली. 

बीजेपी विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह ने एक्स पर दावा किया है कि ये शीला और विनोद दीक्षित के रिसेप्शन (11.07.1962) की तस्वीर है.

1984 में पहली बार लड़ी संसदीय चुनाव और जीतकर बनीं केंद्रीय मंत्री 

1980 के दशक के शुरुआती सालों में यूपी के जिस भी शहर में पति की पोस्टिंग होती, शीला उनके साथ एक शहर से दूसरे शहर जाती रहीं. फिर आया साल 1984. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़क गए. इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी चाहते थे कि शीला दीक्षित यूपी की कन्नौज सीट से चुनाव लड़ें. 

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट मुताबिक, इस वक्त शीला अपने पारिवारिक जीवन में व्यस्त थीं और उन्हें पोलिंग बूथ तक के बारे में कुछ नहीं पता था. हालांकि, राजीव गांधी के कहने पर वे कन्नौज से चुनाव लड़ीं और जीत गईं. इसके बाद वे राजीव सरकार में केंद्रीय मंत्री बनीं. 

यूपी कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के साथ उनके IAS बेटे की पत्नी शीला दीक्षित (इंडिया टुडे फोटो)

1985 में जिस कार में बैठी थीं शीला उसी में हुआ ब्लास्ट

1985 में राजीव गांधी और पंजाब के खालिस्तान समर्थक नेता संत हरचरण सिंह लोंगोवाल के बीच पंजाब पीस अकॉर्ड हुआ. इसके कुछ दिनों बाद ही लोंगोवाल की हत्या कर दी गई. इन सबके बीच 25 सितंबर को पंजाब में विधानसभा चुनाव होना था. 

शीला दीक्षित को भी चुनाव प्रचार के लिए पंजाब भेजा गया. अंतिम रैली खत्म करके वे एक सांसद की कार में बैठकर बटाला से अमृतसर के लिए रवाना हुईं. दिन के करीब एक बजे थे. ड्राइवर ने दोपहर के खाने के लिए एक रेस्तरां पर कार रोकी. कहा. शीला रेस्तरां के भीतर कुर्सी पर बैठकर सॉफ्ट ड्रिंक का पहला घूंट गले में भरने ही जा रही थीं कि तभी एक जोर की आवाज़ आई. एक धमाका हुआ था. उसी कार के अंदर, जिसमें कुछ मिनटों पहले शीला दीक्षित बैठी हुई थीं. 

चुनाव हारने के बाद यूपी से हुई बहू की विदाई और दिल्ली में एंट्री

यूपी में लगातार तीन लोकसभा चुनाव में हार के बाद शीला दीक्षित की दिल्ली की राजनीति में एंट्री हुई. साल 1998 में दिल्ली कांग्रेस की फूट आलाकमान को साफ दिखाई दे रहा थी. इस वक्त किसी ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जिसे कांग्रेस की ओर से दिल्ली में चेहरा बनाया जा सके.

इसी वक्त इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्रस्ट की एक बैठक आयोजित हुई. इसमें शामिल होने के लिए शीला दीक्षित भी पहुंची थीं. गांधी परिवार की ओर से 'शीला फॉर दिल्ली' का प्रस्ताव आया. सोनिया गांधी के हाथ में इस वक्त पार्टी की कमान थी. 

अगस्त 1998 की इस तस्वीर में चुनाव प्रचार के दौरान एक छाते में सोनिया गांधी के साथ शीला दीक्षित और गुलाम नबी आजाद (इंडिया टुडे फो

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक प्रियंका गांधी की ओर से शीला के समर्थन ये प्रस्ताव लाया गया था. यह प्रस्ताव सोनिया गांधी को भी काफी पसंद आया. हालांकि, शीला पहले इसके लिए तैयार नहीं हुईं, लेकिन नटवर सिंह के समझाने पर वे मान गईं.

साल 1998 के आखिर में दिल्ली विधानसभा चुनाव होना था. इससे पहले दिल्ली में प्याज की कीमत तेजी से बढ़ रही थी. लोगों में बीजेपी सरकार के खिलाफ गुस्सा था. शीला इस गुस्से को वोट में कनवर्ट करने में सफल रहीं.

3 अक्टूबर 1999 को एक मीटिंग के दौरान शीला दीक्षित और अटल बिहारी वाजपेयी हंसी-मजाक करते हुए (इंडिया टुडे फोटो)

परिणाम ये हुआ कि इस चुनाव में कांग्रेस को 52, बीजेपी को 15, जनता दल को एक और निर्दलीयों को दो सीटों पर जीत मिली. इस तरह 3 दिसंबर 1998 को दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनीं. जो अगले 15 सालों तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रही. 

3 दिसंबर 1998 को पहली बार दिल्ली के सीएम पद की शपथ लेते हुए शीला दीक्षित (इंडिया टुडे फोटो)

केजरीवाल लहर में शीला दीक्षित को मिली करारी हार

4 अप्रैल 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर एक आंदोलन की शुरुआत हुई. आंदोलन के नेतृत्व कर रहे कई लोगों में से एक अरविंद केजरीवाल ने अक्टूबर 2012 में आम आदमी पार्टी के नाम से एक नई पार्टी बनाई.

पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक इस पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया. अन्ना आंदोलन की सहानुभूति हासिल की. ये वो वक्त था, जब देश की जनता वैकल्पिक राजनीति तलाश रही थी. केजरीवाल इस बात को समझ रहे थे.

2013 में दिल्ली विधानसभा में चुनाव होना था. नई दिल्ली सीट पर सीएम शीला के खिलाफ अरविंद केजरीवाल उतरे. इस चुनाव में केजरीवाल ने शीला को 25 हजार वोटों से हरा दिया. इस विधानसभा चुनाव में 32 सीट जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. वहीं 28 सीटों के साथ आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर और 8 सीटों वाली कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही. आप ने कुछ समय के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इस तरह 15 साल बाद दिल्ली की सत्ता से शीला दीक्षित की विदाई हुई. 

15 अगस्त 2013 को लाल किला पर आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए एक साथ पहुंची शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज (इंडिया टुडे फोट

बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जब शीला से पूछा गया कि 2013 में उनके चुनाव हारने के पीछे क्या वजह क्या थी? शीला दीक्षित का जवाब था, "केजरीवाल जी ने फ्री पानी, फ्री बिजली देने का वादा किया. जनता पर इसका बहुत असर हुआ. लोग उनकी बातों में आ गए. दूसरा जितनी गंभीरता से हमें उन्हें लेना चाहिए था, उतनी गंभीरता से हमने उन्हें नहीं लिया.''

जब शीला दीक्षित पर लगे कॉमनवेल्थ घोटालों के आरोप

दिल्ली में शीला सरकार गिरने की एक मुख्य वजह भ्रष्टाचार को बताया गया. दरअसल, 2013 दिल्ली चुनाव के दौरान विपक्षी दलों ने कथित कोयला घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले और 2जी घोटाले को मुख्य मुद्दा बनाया. इन घोटालों की वजह से केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की इमेज पर काफी असर पड़ा था.

शीला दीक्षित के लिए भी इस चुनौती से पार पाना ज्यादा मुश्किल हो गया. भाजपा ने उनके खिलाफ कॉमनवेल्थ गेम्स में गड़बड़ियों के आरोप लगाए.

30 सितंबर 2010 की तस्वीर में इंडियन ओलंपिक एसोसिएशन के चीफ सुरेश कलमाड़ी के साथ दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित (इंडिया टुडे फोटो)

आम आदमी पार्टी के बनने से पहले अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे पर अन्ना हजारे के साथ मिलकर आंदोलन किया था. बाद में दिल्ली चुनाव जीतने के बाद केजरीवाल ने प्रभावी लोकायुक्त के जरिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात कही थी.

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