चीन बोला-'ड्रैगन-हाथी मिलकर दुनिया बदल सकते हैं'; आखिर ‘हाथी’ भारत की पहचान कैसे बना?

दुनिया के कई देशों में 'हाथी' के सिंबल से भारत की पहचान होती है. अब चीन के विदेश मंत्री ने भी भारत के लिए हाथी शब्द का इस्तेमाल किया है

पीएम मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग
पीएम मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग

"चीन और भारत को मिलकर एक साझेदार के रूप में काम करना चाहिए, जो एक-दूसरे की कामयाबी में योगदान दें. ड्रैगन और हाथी की कदमताल ही दोनों देशों के लिए सही विकल्प होगा. एक दूसरे की राह में रोड़े अटकाने के बजाए हमें एक दूसरे को आगे बढ़ने में सहयोग करना चाहिए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ड्रैगन-हाथी मिलकर दुनिया बदल सकते हैं."

7 मार्च, 2025 को चीन के विदेश मंत्री और पोलित ब्यूरो के सदस्य वांग यी ने भारत-चीन संबंधों पर ये बात कही है. उनका ये बयान तब आया है, जब अमेरिका चीन के साथ-साथ भारत पर भी टैरिफ लगाने की धमकी दे रहा है. हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को 'हाथी' के प्रतीक रूप में पेश किया गया हो.

इससे पहले 6 दिसंबर 2015 को अमेरिकी अखबार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने एक कार्टून के जरिए भारत को हाथी के प्रतीक रूप में पेश किया था. तब उस कार्टून में एक ऐसा विशाल और सुस्त हाथी दिखाया गया था, जो 'पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन' ट्रेन की रफ्तार को रोकने के लिए रेलवे ट्रैक पर खड़ा है. इसके जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गलत छवि पेश करने की कोशिश हुई थी.

बहरहाल, क्या आप जानते हैं कि पहली बार भारत के लिए 'हाथी' सिंबल का इस्तेमाल कब हुआ था? अमेरिका के लिए बॉल्ड ईगल, चीन के लिए ड्रैगन और भारत के लिए प्रतीक के रूप में हाथी का इस्तेमाल क्यों होता है? इन सवालों के जवाब जानने से पहले 9 साल पहले एक अमेरिकी अखबार में छपे इस कार्टून को देखिए- 

6 दिसंबर 2015 को अमेरिकी अखबार “न्यूयॉर्क टाइम्स‘ में भारत को हाथी के रूप में पेश करते हुए ये कार्टून बनाया गया था.

पहली बार भारत के लिए 'हाथी' सिंबल का इस्तेमाल कब हुआ?

अमेरिका के इंडियाना यूनिवर्सिटी ब्लूमिंगटन के रिसर्च स्कॉलर अंबुज साहू के मुताबिक भारत के लिए अक्सर हाथी सिंबल का इस्तेमाल यहां की अर्थव्यवस्था से जोड़कर किया जाता है. इस सिंबल का इस्तेमाल 1990 के दशक से हो रहा है.

शुरुआती बहस इस बात पर केंद्रित थी कि क्या भारत 1991 के आर्थिक सुधारों के जरिए एक बार फिर से अपनी 'पूर्वी एशियाई टाइगर्स' की पहचान बना पाएगा. इसी समय भारत के लिए 'हाथी' शब्द का जिक्र मिलता है. 1993 में सैन फ्रांसिस्को यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा ने अपने एक लेख में भारत के लिए 'लंगड़ा हाथी' शब्द का इस्तेमाल किया.

उन्होंने अपने आर्टिकल "लंगड़ा हाथी - विशाल, सुस्त और अस्पष्टता की ओर बढ़ता हुआ" में लिखा था कि कैसे जब दुनिया के देश तेजी से आर्थिक विकास कर रहे हैं तो भारत एक हाथी की तरह धीरे-धीरे और झूमकर आगे बढ़ रहा है.

फिर आया 1997 का साल. इस वक्त ज्यादातर एशियाई देश वित्तीय संकट का सामना कर रहे थे. हालांकि, अगले कुछ सालों में यानी 2000 के दशक में चीन एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा था. चीन के इस उदय ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट की लहर पैदा कर दी. इसका सीधा असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा.

2000 के दशक के मध्य में 6 फीसदी से 8 फीसदी की दर से सालाना ग्रोथ के बावजूद भारत चीन से पीछे रह गया. यही वो समय था, जब भारत के लिए इस्तेमाल होने वाले 'लंगड़ा हाथी' या 'हाथी' के सिंबल पर एक तरह से मुहर लग गई.

2006 में अमेरिका के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रणब वर्धन ने अपने एक लेख "चौकन्ने शेर के विरुद्ध भारी हाथी" में भारत को हाथी और चीन को फुर्तीले छुपकर हमला करने वाले शेर के रूप में पेश किया.

इसी साल ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट के रिसर्चर मार्क थर्लवेल ने एक रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया. इसकी हेडिंग कुछ इस तरह से थी, 'दहाड़ता हुआ बाघ या भारी भरकम हाथी?' इस रिसर्च पेपर ने भारत की हाथी की छवि को दुनियाभर में और ज्यादा मजबूत किया.

कनाडा के लेखक डेविड एम. मालोन ने अपनी किताब 'डज द एलीफेंट डांस?' में भारत को हाथी बताया. उन्होंने लिखा कि कैसे जो भारत 20 साल पहले तक दुनिया की अर्थव्यवस्था में कहीं दिखाई नहीं देता था, अब हाथी की चाल से चलकर 21वीं सदी में दुनिया की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभा सकता है. वहीं, 2012 में एचएसबीसी ने भी अपनी एक रिपोर्ट में भारत के लिए "हांफता हुआ हाथी" शब्द का इस्तेमाल किया था.

इस तरह धीरे-धीरे दुनिया भर के एकेडमिक और पॉलिसी मेकर्स के बीच भारत के लिए हाथी शब्द के इस्तेमाल को बढ़ावा मिला. लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि ज्यादातर विदेशी लेखकों ने भारत के लिए हाथी शब्द का निगेटिव रूप में ही इस्तेमाल किया.

अमेरिका के लिए 'बॉल्ड ईगल', चीन के लिए 'ड्रैगन' तो भारत के लिए 'हाथी' ही क्यों?

अमेरिकी शक्ति के प्रतीक के रूप में मशहूर बॉल्ड ईगल 1782 से अमरीका की ग्रेट मुहर में शामिल है, लेकिन 2024 में पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार ने इसे आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय पक्षी की मान्यता दी. अमेरिकी लोग इसे स्वतंत्रता और ताकत से जोड़ कर देखते हैं.

इसी तरह करीब 1800 साल पहले चीन पर शासन करने वाले हान राजवंश (206 ईसा पूर्व से 220 ई.) ने पहली बार ड्रैगन को शाही प्रतीक के रूप में अपनाया था. तब चीनी सम्राट अपने राजवंश के प्रतीक के रूप में पांच-पंजे वाले ड्रैगन का इस्तेमाल करते थे. इतिहासकार क्रिस्टोफर हेनरी डावसन के मुताबिक चीनी जनता ड्रैगन को भाग्यशाली और धन लाने वाले प्रतीक के रूप में मानती है. वहीं, अमेरिका में ड्रैगन से जुड़ी कहानियों में इसे प्रेत या बुरी आत्मा के रूप में दिखाया जाता है.

जहां तक भारत की बात है, रिसर्च स्कॉलर अंबुज साहू के मुताबिक भारत का हाथियों से काफी पुराना रिश्ता है. अपने देश में पालतू हाथियों का इतिहास 6 हजार ईसा पूर्व में सिंधु घाटी सभ्यता के शैलचित्रों और मुहरों में मिलता है. हाथी के रूप में भारत को दिखाने से कोई समस्या नहीं है. असल समस्या ये है कि हाथी को गलत स्वरूप में भारत से जोड़कर दुनिया में दिखाया जाता रहा है.

साहू बताते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत जैसे विशाल देश के लिए हाथी की उपमा अंतरराष्ट्रीय और सामरिक तौर पर काफी हद तक सही है. इससे भारत का पुराना जुड़ाव भी है. किसी देश की पहचान के तौर पर पेश होने वाले जानवर उस देश की लोकप्रिय कल्पना को आकार देने के साथ ही लोगों में राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक विरासत की भावना पैदा करते हैं.

चाहे वह संयुक्त राज्य अमेरिका का ऊंची उड़ान भरने वाला बाज हो, चीन का आग उगलने वाला ड्रैगन हो, या रूस का क्रूर भालू हो. क्या भारत के लिए भी यही तर्क दिया जा सकता है? क्या हाथी दुनिया के सामने हमारे सर्वोत्तम गुणों का प्रतिनिधित्व करता है? दुर्भाग्य से इसका जवाब है - नहीं.

हाथी हिंदू सभ्यता की प्रतीक-पद्धति का अभिन्न अंग हैं. उन्हें शुभ शुरुआत के देवता 'गणेश' के रूप में पूजा जाता है. इतना ही नहीं सफेद हाथी ऐरावत देवों के राजा इंद्र की सवारी है. कुछ कहानियों में गौतम बुद्ध को भी एक स्वर्गीय हाथी का अवतार माना जाता है.

हाथियों में उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता, शारीरिक शक्ति और शांतिपूर्ण व्यवहार जैसे सराहनीय गुण होते हैं. साथ ही, वह एक क्रूर जानवर भी है, जिसे कभी युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया जाता था. लेकिन अफसोस है कि भारत के संदर्भ में हाथी को इस तरह से पेश किए जाने के बजाय वैश्विक स्तर पर भारत की आर्थिक असमर्थता, धीमी आर्थिक वृद्धि से जोड़कर दिखाया जाता है.

भारत कैसे डिप्लोमेसी के तौर पर हाथी का इस्तेमाल करता रहा है?

भारत लंबे समय से हाथियों को डिप्लोमेसी के तौर पर इस्तेमाल करता रहा है. 'कारवां' पर लिखे एक आर्टिकल में इतिहासकार निखिल मेनन ने इस बात का जिक्र किया है कि कैसे देश की आजादी के ठीक बाद हाथी एक डिप्लोमेटिक जानवर बन गया था. उन्होंने एक कहानी के जरिए इसका जिक्र किया है.

दरअसल, 1953 में भारत के उस वक्त के पीएम जवाहर लाल नेहरू को कनाडा के एक पांच साल के बच्चे का पत्र मिला. पीटर मार्मोरेक नाम के बच्चे ने इस पत्र में लिखा था, "प्रिय नेहरू, यहां कनाडा के एक छोटे से शहर ग्रैनबी में हमारे पास एक प्यारा चिड़ियाघर है, लेकिन हमारे पास कोई हाथी नहीं है."

1955 में 'अंबिका' नाम के दो साल के हाथी के बच्चे को मद्रास के जंगलों से ग्रैनबी चिड़ियाघर ले जाया गया. इस दौरान हजारों बच्चों ने वहां ताली बजाकर अंबिका का स्वागत किया था. हालांकि, इससे 6 साल पहले 1949 में जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा के नाम पर एक हथिनी को जापान के बच्चों के लिए उपहार के रूप में टोक्यो के यूनो चिड़ियाघर में भेजा था. नेहरू के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री रहते हुए इस 'एनिमल डिप्लोमेसी' का सबसे अधिक प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया गया था.

हालांकि, 2005 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार जानवरों को उपहार के रूप में स्थानांतरित करने पर प्रतिबंध लगाने से भारत की दशकों पुरानी एनिमल डिप्लोमेसी का अंत हो गया. लेकिन तब तक दुनिया में 'हाथी' भारतीय प्रतीक के तौर पर देखा जाने लगा था.

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