फिर गुस्से में आदिवासी कहा, प्राण जाएं पर 'पहाड़' न जाए!

दंतेवाड़ा के बैलाडीला पहाड़ के खनन का पट्टा अदाणी को देने का फिर उठा मुद्दा, आदिवासी समुदाय ने कहा, रिपोर्ट नहीं सौंपी तो इस बार जून से भी बड़ा करेंगे आंदोलन. डीएम ने दिया आश्वासन 10 दिन के भीतर सामने आएगी जांच रिपोर्ट

आदिवासी आंदोलन
आदिवासी आंदोलन

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित बैलाडिला पहाड़ की 13 नंबर डिपोजिट खदान का ठेका अडानी समूह को कैसे दिया गया? स्थानीय आदिवासियों से क्या रायशुमारी की गई? झूठा कौन, सरकार या आदिवासी? जून, 2019 में हजारों आदिवासियों आंदोलन किया, नतीजतन सरकार को अदाणी समूह के खनन के काम को रोकना पड़ा. सरकार ने आदिवासियों को भरोसा दिलाया कि इस बात की जांच होगी कि आदिवासियों से रायशुमारी की गई या नहीं? उस वक्त 15-20 दिन के भीतर जांच कर रिपोर्ट लाने का आश्वासन भी दिया गया. लेकिन छह महीने बीतने के बाद भी यह रिपोर्ट नहीं सार्वजनिक की गई तो सर्व आदिवासी समाज फिर गुस्से में आया और कहा रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए नहीं तो फिर आंदोलन होगा.

सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष सुरेश कर्मा कहते हैं, ‘‘ हम पूरी तरह संकल्पित हैं, हमारे प्राण भले चले जाएं लेकिन पहाड़ देवता को खत्म नहीं होने देंगे.’’ दरअसल जिस पहाड़ पर खनन का पट्टा सरकार ने अदाणी समूह को दिया था, उसे यह लोग नंदराज पर्वत कहते हैं. इस पर्वत को यह लोग अपना देवता मानते हैं. सुरेश कर्मा ने बताया, ‘‘आदिवासियों के एक प्रतिनिधी मंडल ने डीएम दंतेवाड़ा सौरभ कुमार से मुलाकात कर रिपोर्ट की मांग की. लेकिन डीएम ने रिपोर्ट अधूरी होने की जानकारी दी. उन्होंने कहा, जांच टीम का मुखिया एसडीएम दंतेवाड़ा को बनाया गया था. लेकिन उनका ट्रांसफर हो गया. लेकिन उन्होंने 10 दिन के भीतर जांच पूरी कर रिपोर्ट देने का आश्वासन दिया है.’’  कर्मा ने बताया अगर 10 दिन के भीतर रिपोर्ट सामने नहीं आई तो एक बार फिर से आंदोलन होगा. इस बार जून से ज्यादा आदिवासी एकत्र होंगे.

आदिवासी समाज का आरोप

आदिवासी समाज का आरोप है कि खनन करने के लिए सरकार जिस ग्राम सभा द्वारा अनुमति लेकर (पेसा-प्रोविजन्स ऑफ द पंचायत, एक्सटेंशन टू स्यूड्यूल एरिआस) प्रोजेक्ट शुरू करने की बात कर रही वह झूठ है. हिलोली ग्राम सभा के लोगों का कहना है कि हमसे किसी ने भी रायशुमारी नहीं की है. कोई भी हमसे इस बारे में पूछने नहीं आया. सरकार ने हमारे फर्जी दस्तखतों के सहारे अदाणी समूह को यह पहाड़ खनन के लिए बेच दिया.

दरअसल 8 जून, 2019 से लेकर 15 जून तक पिछली बार आंदोलन चला था. आरोप की जांच का आश्वासन पाने के बाद आदिवासी समूह न विरोध प्रदर्शन इस उम्मीद से खत्म किया था कि सरकार की रिपोर्ट में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

पहाड़ के असली लुटेरे कौन?

राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जून में हुए आंदोलन की आंच को परखते हुए उस वक्त कहा था, ‘‘भले ही राज्य सरकार की एनसीएल कंपनी ने खनन का ठेका अदाणी को दिया है लेकिन इस खनन के प्रोजेक्ट की शुरुआत भाजपा काल में हुई थी. 2015 में जब पहली बार नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ पहुंचे तभी इस प्रोजेक्ट को अनापत्ति सर्टिफिकेट दिए गए. 2015 में पर्यावरण संबंधी मंजूरी और जनवरी 2017 में वन मंजूरी दी गई.’’ उधर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इसका जवाब देते हुए कहा था, ''अगर इस खदान से आपत्ति थी,  इतना विरोध था तो इस साल अप्रैल में इस खदान को ‘कंसेंट टू ऑपरेट’ नहीं देना चाहिए था. भूपेश बघेल की सरकार के पर्यावरण विभाग के मंत्री ने इस साल अप्रैल में सहमति दी है. अब नाटक करने का कोई मतलब नहीं है."

पूर्व और मौजूदा मुख्यमंत्री ने उस वक्त गेंद एक दूसरे की पार्टी के पाले में फेंकने की भरसक कोशिश की थी. लेकिन अब देखना यह है कि क्या आंदोलन अगर दोबारा हुआ तो मौजूदा सरकार इसे फिर कैसे ठंडा करेगी?

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