योगी का लुक, बनारस की पृष्ठभूमि, नक्काशों की जिंदगी

युवा डायरेक्टर सैयद जैगम इमाम की तीसरी फिल्म 'नक्काश' बनारस और उत्तर प्रदेश के उन मुस्लिम शिल्पकारों की जिंदगी और सामाजिक संघर्षों पर आधारित है जो मंदिरों में नक्काशी करते हैं. इसमें भगवान दास वेदांती नामक किरदार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरित होकर गढ़ा गया है.

फोटोः मनीष दीक्षित
फोटोः मनीष दीक्षित

पत्रकारिता छोड़कर फिल्मों की दुनिया में आए युवा डायरेक्टर सैयद जैगम इमाम की तीसरी फिल्म 'नक्काश' बनारस और उत्तर प्रदेश के उन मुस्लिम शिल्पकारों की जिंदगी और सामाजिक संघर्षों पर आधारित है जो मंदिरों में नक्काशी करते हैं. इसमें भगवान दास वेदांती नामक किरदार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरित होकर गढ़ा गया है, जो फिल्म में एक मठ का संचालक है और नक्काशों से उसकी हमदर्दी है. चंदौली के रहने वाले जैगम बताते हैं, "अपनी पहली फिल्म 'दोजख' की शूटिंग के दौरान करीब पांच साल पहले उनकी मुलाकात एक नक्काश से हुई थी." जैगम बताते हैं, "बनारस में करीब सौ से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लोग ये काम करते हैं. और उनमें से अनेक को वे खुद जानते हैं." फिल्म 31 मई को रिलीज हो रही है.   

दरअसल, मंदिरों की भीतरी दीवारों पर सोने-चांदी और पारे का काम होता है. मुस्लिम समुदाय के इन कलाकारों के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है. ये लोग भी सामने आना पसंद नहीं करते हैं. अब भी सोना उनके घर में पहुंचा दिया जाता है और वे पत्थर में लगा देते हैं और फिर वो पत्थर वहां से लेकर मंदिर में लगा दिए जाते हैं. इन नक्काशों को मुस्लिम समुदाय में भी बहुत अच्छे नजरिये से नहीं देखा जाता है. 

जैगम बताते हैं, "फिल्म की कहानी लिखने से पहले उन्होंने बनारस की गलियों की खाक इन लोगों की जिंदगी समझने में महीनों तक छानी थी. ये फिल्म योगी की बायोपिक नहीं है, लेकिन उनके बाहरी आवरण से हमें प्रेरणा मिली. फिल्म कई तरह के पूर्वाग्रहों को तोड़ती है. खासकर रंगों से जुड़े पूर्वाग्रहों को. जरूरी नहीं कि भगवा पहनने वाला हिंदुओं का शुभचिंतक और मुसलमानों का दुश्मन ही हो. इसी तरह हरे रंग के कपड़े पहनने और गोल टोपी लगाने वाला मुसलमानों का शुभचिंतक हो ये भी कोई स्थायी भाव नहीं है." 

नक्काशों से मुलाकात का जिक्र करते हुए जैगम बताते हैं, "मैं ऐसे परिवार से भी मिला जो ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर की मरम्मत करने हवाई जहाज से अमृतसर ले जाए गए थे. इनमें से कुछ तो वहां का माहौल देखकर डर के कारण वापस बनारस आ गए थे." 

जैगम ने 3 करोड़ रु. से ये फिल्म बनाई है और इसके लिए उनके साथ अन्य प्रोड्यूसर्स भी हैं. जैगम 'नक्काश' और 'दोजख' के अलावा 'अलिफ' नामक फिल्म बना चुके हैं. उनकी फिल्मों में हमेशा नया विषय और कहानी होती है. 

जैगम बताते हैं, "नक्काश बनारस में बेस्ड है और इसके केंद्र में एक मुस्लिम किरदार अल्लाह रक्खा सिद्दीकी है जो मंदिरों में नक्काशी का काम करता है. अल्लाह रक्खा और उसके पूर्वज लंबे अर्से से ये काम करते आ रहे हैं." 

फिल्म में अल्लाह रक्खा को उसके काम में ट्रस्टी भगवान दास वेदांती का संरक्षण प्यार है. मठ के अध्यक्ष वेदांती अल्लाह रक्खा से प्यार करते हैं और बतौर कलाकार उसे बड़ा सम्मान देते हैं लेकिन बदलती हुई राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के बाद अल्लाह रक्खा का मंदिर में जाना कितना मुश्किल होता है और उसे दोनों समुदायों का कट्टरपंथियों का विरोध भी झेलना पड़ता है. उसके अपने लोग यानि मुसलमान उससे इस बात से नाखुश हैं कि वो एक मुस्लिम होते हुए भी मंदिर में काम करता है तो वहीं हिंदू धर्म के कुछ लोगों को इस बात से आपत्ति है कि मंदिर के गर्भगृह में मुसलमान का काम करना सही नहीं है. कबीर के शहर बनारस में दोनों समुदायों के बीच पिस रहे अल्ला रक्खा का क्या होता है यही आगे की कहानी है. क्या वो नक्काशी जारी रख पाता है या फिर उसे हालात के आगे सिर झुकाना पड़ता है. 

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