यहां मशहूर है 'कुतिया महारानी' का मंदिर !

भूख से मर गई कुतिया तो बना डाला मंदिर

कुतिया महारानी का मंदिर
कुतिया महारानी का मंदिर

बुंदेलखंड में भूख से इंसानी मौत की खबरें तो आम हैं, लेकिन यहां एक 'कुतिया' की मौत जब भूख से हो गई तो वह इबादत बन गई. गांव के लोगों ने उसके नाम पर एक मंदिर बना दिया. अब रोज 'कुतिया महारानी' की पूजा इसलिए की जाने लगी है कि गांव में किसी की भूख से मौत न हो. नव दुर्गा शुरू होने के बाद यहां ग्रामीण देवी की तरह ही मंदिर में पहुंचकर मन्नतें मांग रहे हैं.

महिलाएं वहां पहुंचकर जल चढ़ा रहीं हैं. लगातार भजन कीर्तन जारी है. आलम यह है कि इलाके के लोग उस मंदिर और 'कुतिया महारानी' के प्रति उतनी ही आस्था दिखा रहे हैं, जितनी दूसरे हिन्दु देवी देवताओं के प्रति दिखाते हैं. लोगों के लिए इस मंदिर में दर्शन करना दिलचस्प है.

दो गांव के बीच बना है मन्दिर

मऊरानीपुर के रेवन गांव और ककवारा गांव के बीच सड़क के किनारे काले रंग की कुतिया की मूर्ति स्थापित करके छोटा सा मंदिर बनाया गया है. ये मंदिर एक चबूतरे के ऊपर बनाया गया है. इस मंदिर को देखकर चौंकना लाजमी है.

यहां पहली बार पहुंचने वाले लोगों में मंदिर का इतिहास और मान्यता जानने की जिज्ञासा और बढ़ जाती है. आखिर यहां किसी 'कुतिया' का मंदिर क्यों बनाया गया है. इसके पीछे की कहानी रेवन गांव की शांति देवी बताती हैं कि कुतिया का मंदिर यहां के लोगों की आस्था का केंद्र है.

कुतिया महारानी उनकी हर मनोकामना पूरी करती हैं. पिछले कई सालों से यहां इसकी पूजा की जा रही है. कई गांवों के लोग इस मंदिर में पूजा करने आते हैं. दशहरा और दीवाली पर यहां की पूजा का खास महत्व है. यह है मंदिर के पीछे की कहानी-

यह घटना कई साल पुरानी है. झांसी जिले के मऊरानीपुर के रेवन और ककवारा गांव के बीच एक कुतिया की मौत हो गई थी. स्थानीय लोग बताते हैं कि उस समय गांव में सामूहिक भोज की परंपरा थी. गांव के भोज में एक काली कुतिया को खिलाने की परंपरा थी और लोग भी उसे पूरे सम्मान से खाना खिलाते थे.

एक बार रेवन और ककवारा गांव में एक ही दिन भोज का आयोजन किया गया. उस समय खाना खाने के लिए बैठने वाले लोगों की हर पारी पूरी होने के बाद रमतूला प्राचीन वाद्ययंत्र बचता था. वहां के जानवर भी रमतूला की आवाज सुनकर वहां पहुंचकर खाना खाने पहुंच जाते थे.

इसी समय एक कुतिया भी थी जो आवाज सुनकर रेवन गांव के करीब पहुंची तो ककवारा गांव का रमतूला बच गया और ककवारा पहुंची तो रेवन गांव से खाना के लिए वाद्ययंत्र की आवाज आ गई. इसी पशोपेश में कुतिया दोनों ही गांव के भोज से वंचित रह गई. गांव के बुजुर्ग मंगल

सिंह बताते हैं कि कुतिया बीमार थी. दौड़ते-दौड़ते थककर दोनों गांव के बीच में बैठ गई. भूख और बीमारी की वजह से उसने वहीं दम तोड़ दिया. गांव के लोगों ने कुतिया को उसी जगह पर जमीन में दफन कर दिया। बताते हैं कि जिस जगह उसे दफनाया गया, वो स्थान पत्थर में तब्दील हो गया.

लोगों ने इसे चमत्कार माना और वहां पर एक मंदिर की स्थापना कर दी. ककवारा गांव की कटरी देवी बताती हैं कि आने वाली दीवाली पर यहां धूमधाम से पूजा-अर्चना की जाती है, क्योंकि उसकी मौत इन्हीं दिनों में हुई थी. यहां मांगने से हर मुराद पूरी हो जाती है.

कुछ लोग इसे अंधविश्वास भी मानते हैं

दो गांव में इस मंदिर को लेकर काफी आस्था है. वहीं मऊरानीपुर के कुछ लोग इसे अंधविश्वास ही मानते हैं. पत्रकार प्रमोद चतुर्वेदी कहते हैं कि लोग दूसरे की कही बातों पर जल्दी विश्वास कर लेता है. इस मंदिर को भूख से मौत नहीं होने और घर में समृद्धि लाने की मुराद पूरी होने से जोड़ दिया गया है, इसीलिए 'कुतिया महारानी' की कहानी पर न सिर्फ लोगों ने विश्वास किया बल्कि उसकी पूजा भी शुरू कर दी गई. ये अंधविश्वास है.

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