बिहार: तेजस्वी ने क्यों कहा- 'चुराए गए आरक्षण' की कीमत पर नौकरी दे रहे नीतीश कुमार?

तेजस्वी ने बिहार के मतदाताओं को 65 फीसद आरक्षण का अधूरा वादा याद दिलाया है, जिसे पिछले साल पटना हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया था

जवाबी हमला तेजस्वी पटना में 9 मार्च को एक विरोध रैली के दौरान

जब आप जीत न रहे हों तो खेल के नियम ही बदल दीजिए. बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ठीक यही कर रहे हैं. मार्च की 9 तारीख को जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पटना के गांधी मैदान में बहुत एहतियात से आयोजित सुशासन के प्रदर्शन की अध्यक्षता करते हुए 51,000 नवनियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र बांट रहे थे, महज तीन किलोमीटर दूर तेजस्वी ने बिल्कुल अलग नैरेटिव पेश किया.

विरोध प्रदर्शन में बैठे तेजस्वी ने नीतीश पर राजनैतिक छलकपट का आरोप लगाया और दावा किया कि ये बहुप्रचारित नौकरियां 'चुराए गए आरक्षण' की कीमत पर दी गई हैं. नीतीश जहां खुद को रोजगार के चैंपियन के सांचे में ढाल रहे हैं, तेजस्वी ने बिहार के मतदाताओं को 65 फीसद आरक्षण का अधूरा वादा याद दिलाया, जिसे पिछले साल पटना हाइकोर्ट ने रद्द कर दिया था और दिल्ली तथा पटना दोनों जगह काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकारों को निकम्मेपन का दोषी ठहराया.

एक दिन का विरोध प्रदर्शन तेजस्वी की चुनावी रणनीति में व्यापक बदलाव का इशारा था. उनका रणक्षेत्र अब जाति है और हथियार यह आरोप कि सरकार अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) और अति पिछड़े वर्गों (ईबीसी) से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में 15 फीसद आरक्षण का उनका हक जान-बूझकर छीन रही है.

बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और ऐसे में तेजस्वी को अच्छी तरह पता है कि वे नीतीश को राजनैतिक विमर्श पर निर्विरोध हावी नहीं होने दे सकते. सत्तारूढ़ नेता के 'रोजगार मतलब नीतीश सरकार' नैरेटिव को खासा जनसमर्थन मिल रहा है, और इसे तोड़ा न गया तो यह तेजस्वी के अपने वादों पर भारी पड़ सकता है.

2020 में उनके दस लाख नौकरियों के वादे ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को उछालकर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बना दिया, जब उसने 243 में से 75 सीटें जीत ली थीं. पांच साल बाद नीतीश ने न केवल इस वादे को हथिया लिया, बल्कि इसे कई गुना बढ़ाकर लागू करने का दावा करते हुए कहा कि उनके प्रशासन के तहत 9,00,000 से ज्यादा नौकरियां दी गई हैं. 9 मार्च का आयोजन पहले से चले आ रहे इसी राजनैतिक रंगमंच का ताजातरीन आयोजन था.

बहस को नया मोड़ देते हुए तेजस्वी ने कहा है कि जो नौकरियां दी जा रही हैं, वे ओबीसी और ईबीसी के उसी कोटे से काटकर निकाली जा रही हैं जिसका वादा किया गया था लेकिन कभी पूरा नहीं किया गया. इस दलील का रहस्य बिहार सरकार के नवंबर 2023 के उस फैसले में है जिसमें उसने अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और ओबीसी का आरक्षण 50 फीसद से बढ़ाकर 65 फीसद किया था. तब तेजस्वी नीतीश की अगुआई वाली सरकार में उपमुख्यमंत्री थे और इस नीति को आगे बढ़ाने में उनकी भूमिका थी.

अलबत्ता जनवरी 2024 में राजनैतिक परिदृश्य बदल गया जब नीतीश ने अचानक राजद, कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों से नाता तोड़कर एनडीए से फिर हाथ मिला लिया. यह कदम राजनैतिक तौर पर फायदेमंद साबित हुआ, जब जनता दल (यूनाइटेड) ने लोकसभा की 16 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 जीत लीं. मगर इसने कानूनी और राजनैतिक उलझन को भी न्योता दिया. पटना हाइकोर्ट ने जनवरी 2024 में 65 फीसद आरक्षण के कदम को यह कहकर रद्द कर दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसद की सीमा का उल्लंघन और इसलिए असंवैधानिक है. नीतीश की सरकार को बड़ा झटका देते हुए सर्वोच्च अदालत ने भी इस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

बिहार सरीखे जातियों को लेकर सजग राज्य में नीतीश की सियासी हैसियत को चोट पहुंचाने के लिए तेजस्वी ने आरक्षण के रास्ते में आई इसी रुकावट को झपट लिया. उनकी अपील नपी-तुली है: वे बिहार की सबसे निर्णायक चुनावी जनसांख्यिकी ओबीसी और ईबीसी को रिझाने में बढ़-चढ़कर लगे हुए हैं, जिनकी मिली-जुली तादाद राज्य के 13 करोड़ बाशिंदों में 63 फीसद से ज्यादा है. हाल के जाति सर्वे से भी तादाद के लिहाज से उनके जबरदस्त दबदबे की तस्दीक हुई, जिसमें ओबीसी राज्य की आबादी के 36.01 फीसद और ईबीसी 27.12 फीसद बताए गए. उनके असंतोष की आग को हवा देकर तेजस्वी चुनावी परिदृश्य को बुनियादी तौर पर नई शक्ल देने की उम्मीद कर रहे हैं. 

इसी गेमप्लान के तहत 9 मार्च को तेजस्वी ने 65 फीसद कोटा बहाल करने की मांग की. राजद मुख्यालय के बाहर पार्टी के वफादारों की भारी भीड़ के सामने खड़े होकर उन्होंने कहा, ''इस सरकार की आरक्षण की चोरी की वजह से लोगों से 50,000 नौकरियां छीन ली गई हैं.'' 65 फीसद आरक्षण को लेकर यह विवाद पिछले साल पटना हाइकोर्ट के फैसले के साथ ही खदबदाने लगा था. अब जब मामला सर्वोच्च अदालत में है. राजग ने इसे विधायिका और न्यायपालिका दोनों जगह चुनौती देने की ठान ली है. तेजस्वी ने ऐलान किया, ''हम अपने वकीलों के जरिए कार्यवाही पर पूरी नजर रखे हैं. हम आरक्षण को खत्म नहीं होने देंगे—यह हमारी प्रतिबद्धता भी है और हमारी प्रतिज्ञा भी.''

फिर भी राजद के नेता की रणनीति का मतलब आरक्षण से कहीं ज्यादा है. राजद की विरासत से दूरी बरतने के बजाए उसे गले लगाने का उनका फैसला उनके राजनैतिक नजरिए में नई स्पष्टता की तरफ इशारा करता है. तकरीबन दो दशकों से नीतीश-भाजपा का गठबंधन इस सीधी-सादी चुनावी दलील पर भरोसा करता रहा है कि 2005 से पहले बिहार लालू प्रसाद यादव के मातहत अराजकता का बंजर प्रदेश था और नीतीश के मातहत ही सुशासन और विकास ने जड़ पकड़ी. यहां तक कि 2020 के चुनावों के दौरान तेजस्वी ने भी सधी हुई नीति पर चलने का जतन करते हुए अपने पिता के कार्यकाल के लिए हल्की-सी माफी मांगी और इस तरह अपने लिए नई पहचान गढ़ने की कोशिश की.

अब उस संयम को उन्होंने ताक पर रख दिया है. बचाव की मुद्रा अपनाने के बजाए वे लालू की विरासत पर बढ़-चढ़कर दावा कर रहे हैं, जो उनके लिए बोझ नहीं बल्कि सम्मान का तमगा है. तेजस्वी अब उन अपरिहार्य हमलों से कतरा नहीं रहे जिनमें पूछा जाता था कि '2005 से पहले कुछ था भी?' इसके बजाए पटकथा को पलटने के लिए उन्होंने अपने को ऐतिहासिक दस्तावेजों से लैस कर लिया है. उनका कहना है कि लालू का कार्यकाल सामाजिक कायापलट का दौर था.

उन्होंने ऐलान किया, ''लालू प्रसाद की पहली उपलब्धि यह थी कि उन्होंने 1990 के बाद स्थिर सरकार दी जबकि उससे पहले 1961 के बाद बिहार में 22 बार सरकारें बदलीं और पांच बार राष्ट्रपति शासन रहा. उन्होंने सामाजिक सशक्तीकरण का तानाबाना रचा और यह उपलब्धि उससे पहले के 150 साल में कभी हासिल नहीं हुई थी. लालू प्रसाद के कार्यकाल में ही ईबीसी, ओबीसी और एससी समुदायों के लोग सांसद, मंत्री और बोर्ड तथा आयोगों के प्रमुख की भूमिकाओं में ऊपर पहुंचे.''

यह सोचा-समझा बदलाव बिहार के चुनावी विमर्श में बुनियादी कायापलट है. ज्यों-ज्यों राज्य एक और ऊंचे दांव वाले चुनाव की तरफ बढ़ रहा है, तेजस्वी नुक्सान की भरपाई के खांचे में पीछे नहीं हट रहे हैं बल्कि नियम और रणनीति ही बिल्कुल नए सिरे से तय करने का जतन कर रहे हैं.

नौकरी लो नीतीश कुमार पटना में 9 मार्च को एक नियुक्ति पत्र सौंपते हुए

तेजस्वी का राजद की विरासत अपनाने का फैसला उनके नजरिए में नए किस्म की स्पष्टता का इशारा करता है.

नई रणनीति

> नीतीश कुमार का दावा है कि उनके कार्यकाल में 9,00,000 नियुक्तियां हुईं; तेजस्वी उन पर आरक्षण में चोरी का आरोप लगाते हैं.

> नीतीश प्रशासन ने 51,000 शिक्षक नियुक्त किए पर तेजस्वी ने आरक्षण खत्म करने का आरोप मढ़ा.

> राजद ने 65 फीसद आरक्षण बहाल करने के लिए कानूनी और सियासी लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया.

> तेजस्वी ने लालू की विरासत को कुशासन के बजाए सामाजिक बदलाव बताकर एनडीए की पुरानी रणनीति की काट के तौर पर पेश किया.

Read more!