राजस्थान : पढ़ाई के लिए कोटा क्यों नहीं आ रहे छात्र, करोड़पति हॉस्टल मालिकों ने क्यों पकड़ा माथा?
कोचिंग का मक्का बने राजस्थान के कोटा शहर में बदलने लगा हवा का रुख. ढाई लाख सालाना के मुकाबले इस साल आधे छात्र ही आए. भारी निवेश कर चुके हॉस्टल संचालकों के माथे पर पसरी चिंता की लकीरें

कोचिंग शिक्षा की काशी माना जाता है कोटा शहर. यहां से बारां रोड पर करीब 11-12 किलोमीटर चलने के बाद मुंबई और दुबई की तरह बहुमंजिला इमारतों वाला एक अलग कस्बा नजर आता है. यह कोटा का कोरल पार्क इलाका है जिसे मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए आने वाले छात्रों को लग्जरी हॉस्टल सुविधा देने को बसाया गया है. 1,500 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से बना यह इलाका इन दिनों किसी भुतहा शहर जैसा नजर आ रहा है. यहां की अमूमन हर इमारत पर टू-लेट के बोर्ड लटके हैं और लग्जरी कमरों में वीरानी छाई है.
इस वीरानी की वजह यह है कि इस बार कोटा में पिछले सालों के मुकाबले करीब 40 फीसद स्टुडेंट्स कम आए हैं. कोरल पार्क जैसा ही हाल शहर के राजीव नगर, जवाहर नगर और लैंडमार्क सिटी (कुन्हाड़ी) इलाकों का है. पिछले साल तक कोटा शहर के ये इलाके देश के अलग-अलग हिस्सों से मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग करने के लिए आने वाले छात्र-छात्राओं से गुलजार थे, मगर इस बार कोटा की तरफ छात्रों का रुझान कम होने के कारण कोरल पार्क, राजीव नगर और जवाहर नगर इलाकों के हॉस्टल्स में 40-50 फीसद तक कमरे खाली पड़े हैं.
पिछले साल ढाई लाख से ज्यादा स्टुडेंट्स मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के लिए कोटा आए थे. इस साल अभी तक महज 1.30 लाख स्टुडेंट्स ने ही यहां का रुख किया है. इस तेज गिरावट की आखिर वजह क्या है? दशकों से तैयारी का एक अहम अड्डा बने इस शहर से छात्र क्यों मुंह मोड़ने लगे हैं?
दरअसल, एलन, अनअकेडमी, आकाश बंसल और नारायणा जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल के जिन नामी कोचिंग संस्थानों में छात्र पढ़ने आते थे, उन्होंने धीरे-धीरे देश के अलग-अलग राज्यों में शाखाएं खोलनी शुरू कर दीं. इनके सेंटर्स की सूची पर नजर डालने से तस्वीर साफ हो जाती है. 35 साल पहले राजस्थान के कोटा से अपने सफर की शुरुआत करने वाला और सबसे चर्चित संस्थान एलन अब देश के 22 राज्यों में 64 शहरों तक फैल चुका है.
पीडब्ल्यू विद्यापीठ यानी कि फिजिक्सवाला, अनअकेडमी, मोशन, आकाश और बंसल क्लासेज जैसे कोचिंग संस्थानों की शुरुआत कोटा से ही हुई थी पर अब वे 15-20 राज्यों में औसतन 60-70 शाखाएं खोल चुके हैं. आकाश इंस्टीट्यूट ने देश के 18 राज्यों में सबसे ज्यादा 210 शाखाएं खोली हैं. कोटा में सबसे ज्यादा स्टुडेंट्स बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और दिल्ली सरीखे राज्यों से आते थे, लेकिन अब इन राज्यों में सभी कोचिंग संस्थानों की कई-कई शाखाएं खुल चुकी हैं. फिर क्यों आएंगे वहां के छात्र यहां पढ़ने?
छात्रों के यहां से छिटकने की दूसरी वजह मनोवैज्ञानिक है. पिछले कुछ वर्षों में यहां हुई छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं ने छात्रों और उनके मां-बाप दोनों में डर पैदा कर दिया. पिछले तीन साल में कोटा में 59 छात्रों ने खुदकुशी की है. वैसे, कोटा के हॉस्टल संचालकों का इस मामले में अलग मत है. उनका तर्क है कि छात्रों की खुदकुशी की घटनाएं जयपुर, दिल्ली और सीकर जैसे शहरों में कोई कम थोड़े ही हो रही हैं. पर दूसरे शहरों के कोचिंग माफिया ने कोटा को बदनाम करने के लिए षड्यंत्र रचा और कामयाब हो गए.
छात्रों की घटती तादाद का सबसे तगड़ा असर शहर की अर्थव्यवस्था पर पड़ना था. पिछले 25 साल में कोचिंग के क्षेत्र में कोटा ने जिस तरह से पहचान बनाई, उसके कारण यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कोचिंग संस्थानों और हॉस्टल पर निर्भर हो गई थी. शहर की अर्थव्यवस्था में कोचिंग इंडस्ट्री की 65-70 फीसद हिस्सेदारी मानी जाती है. पिछले कुछ वर्षों में जिस पैमाने पर छात्रों की संख्या बढ़ रही थी उसके मद्देजनर यहां 60,000 से ज्यादा नए कमरों का निर्माण हुआ. लेकिन अब छात्रों की संख्या घट जाने से 1 लाख से ज्यादा कमरे खाली पड़े हैं.
ऐसे में हॉस्टल संचालकों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरना लाजिमी है. कोचिंग संस्थानों ने तो दूसरे राज्यों का रुख करके यहां आई कमाई में कमी की भरपाई कर ली, लेकिन हॉस्टल संचालकों के लिए यह दौर किसी वज्रपात से कम नहीं है. उन्होंने कितनी हसरतों से भारी निवेश के साथ लग्जरी हॉस्टल खड़े किए थे.
कोटा की लग्जरी हॉस्टल योजना कोरल पार्क सोसाइटी के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल कहते हैं, "पिछले साल मेरी महीने की आमदनी 3 लाख रुपए से भी ज्यादा थी, लेकिन इस बार यह घटकर 30,000 रुपए रह गई है. इतनी कम आमदनी में तो हॉस्टल की साफ-सफाई होना भी मुश्किल है."
अग्रवाल जैसा ही दर्द हॉस्टल संचालक कमल गोयल का है. उन्हें तो सूझ ही नहीं रहा कि अब वे करें क्या! वे कहते हैं, ''साढ़े तीन करोड़ रुपए लगाकर मैंने 109 कमरों का लग्जरी हॉस्टल बनवाया था, लेकिन इस साल हॉस्टल में सिर्फ पांच छात्र आए हैं. वह भी किराया 20,000 रुपए महीने से घटाकर 5,000 रुपए कर देने पर. इस किराए से तो हॉस्टल का बिजली बिल भी चुकाना मुश्किल है. ऐसे में मैनेजर, वार्डन, सिक्योरिटी गार्ड, कुक और स्वीपर का वेतन कहां से चुकाएं? बैंक से लिए कर्ज ने रातों की नींद हराम कर दी है.''
कोटा कोरल पार्क सहित विभिन्न इलाकों में हॉस्टल्स पर टंगे टू-लेट के बोर्ड अग्रवाल और गोयल की इस चिंता की पुष्टि करते नजर आते हैं. कोरल पार्क योजना उस वक्त अस्तित्व में आई थी जब यहां एलन और फिजिक्सवाला ने अपनी नई ब्रांच खोली. उस वक्त तक यहां हॉस्टल और पीजी की सुविधा नहीं थी. इसी के चलते लग्जरी हॉस्टल के लिए 1,500 करोड़ रुपए की कोरल पार्क योजना बनाई गई. इस योजना में फाइव स्टार होटल जैसे 200 से ज्यादा लग्जरी हॉस्टल बनकर तैयार हो गए हैं जबकि 150 हॉस्टल्स का काम अभी चल रहा है, लेकिन छात्रों की संख्या घटने के कारण कई हॉस्टल्स का काम बीच में ही बंद हो गया है.
कोटा शहर में छोटे-बड़े तकरीबन 4,000 हॉस्टल हैं और करीब 50,000 कमरे पीजी के तौर पर इस्तेमाल होते हैं. लैंडमार्क इलाके को छोड़कर कोरल पार्क और अन्य सभी इलाकों में इस बार छात्रों की भारी कमी के चलते 80 से 100 कमरों वाले हॉस्टल पूरी तरह खाली पड़े हैं. किसी में 10 तो किसी में 15 छात्र ही रह रहे हैं. कोचिंग संस्थानों और छात्रों की दृष्टि से कोटा के सबसे व्यस्त माने जाने वाले इलाके लैंडमार्क सिटी में भी इस बार छात्रों की बेरुखी का असर दिख रहा है.
मिसाल के तौर पर फाइव स्टार होटल जैसे बने यहां के रामानुज हॉस्टल को ही देख लीजिए. 500 लग्जरी कमरों वाले इस हॉस्टल में पिछले साल 550 छात्र थे, मगर इस बार यहां 350 भी नहीं आए हैं. इस हॉस्टल का एक ब्लॉक छात्राओं के साथ उनकी मांओं के रहने के लिए बनाया गया था, वह भी इस बार खाली ही पड़ा है. हॉस्टल के सुपरवाइजर ओमप्रकाश गुर्जर कहते हैं, ''पिछले वर्षों में जनवरी माह में ही हॉस्टल के सभी कमरों की बुकिंग हो जाती थी, लेकिन इस बार जुलाई में नया सत्र शुरू होने के बाद भी कमरे खाली पड़े हैं. क्या होगा हमारा!''
पहले कमरा पाने और किराए में रियायत के लिए छात्रों को चिरौरी करनी पड़ती थी. अब हॉस्टल वाले किराया घटाकर छात्रों की दाढ़ी में हाथ लगाते हुए उन्हें बुला रहे हैं. पिछले साल तक कोटा में हर कमरे का औसतन किराया 15,000 रुपए महीने तक था जो अब घटकर 5,000 रुपए रह गया है.
जाहिर है, इस बदलते ईकोसिस्टम का असर कई स्तरों पर जुड़े लोगों के रोजगार पर भी पड़ा है. कोचिंग संस्थानों ने स्टाफ में 20 फीसद कमी करके कटौती की शुरुआत कर दी है. दूसरी ओर हॉस्टल्स में वार्डन, मैनेजर, सिक्योरिटी गार्ड, कुक, स्वीपर वगैरह के रूप में बड़ी तादाद में लगे लोग बेरोजगार हुए हैं. तनख्वाह में भी कटौती हुई है. इसके अलावा स्टेशनरी, रेस्तरां, टी स्टॉल, सब्जी-फल कारोबार, मोबाइल रिपेयरिंग, ऑटो, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक और टिफिन सेंटर्स जैसे व्यवसायों पर भी इसकी मार पड़ी है.
कोटा के कोरल पार्क, लैंडमार्क सिटी और राजीव नगर में कई हॉस्टल चलाने वाले दिनेश कुमार को अंदेशा है कि कोटा कहीं 25 साल पहले वाली स्थिति में न पहुंच जाए. वे कहते हैं, ''इस शहर ने पिछले 25 साल में दो छात्रों से ढाई लाख छात्रों तक का सफर देखा है. इन्फ्रास्ट्रक्चर, बच्चों की सुरक्षा और सुविधाओं के लिहाज से कोई भी शहर कोटा का मुकाबला नहीं कर सकता. इसके बाद भी बच्चों की संख्या घटना समझ से परे है. हमें उम्मीद है कि कोटा में जल्द ही पुरानी रौनक फिर से लौट आएगी.''