बिहार : दूसरी राजनैतिक पार्टियों से कैसे अलग है प्रशांत किशोर की जन सुराज?
दो साल से बिहार में चल रहा प्रशांत किशोर का जन सुराज अभियान गांधी जयंती के दिन पार्टी की शक्ल लेने जा रहा है

राजधानी पटना की पाटलिपुत्र कॉलोनी में बने जन सुराज के दफ्तर में घुसने पर आपको यह नहीं लगेगा कि आप किसी पोलिटिकल पार्टी के ऑफिस में आए हैं. न यहां झंडा बैनर दिखेगा, न खास रंग की टोपी और गमछा पहने खद्दरधारी. यहां दिखेंगे जींस, टी-शर्ट और कुर्ता पहने 20 से 35 साल के युवा, जो बैठे या चलते-फिरते गंभीर मसलों में उलझे हैं. मीटिंग कर रहे हैं, रणनीति बना रहे हैं.
इस दफ्तर पर राजनेता प्रशांत किशोर की नहीं बल्कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की छाप अधिक दिखती है. अभियान के दौरान जन सुराज से जुड़ने वाले लोग, जो कल को पार्टी की कमान संभालेंगे, कम ही नजर आते हैं. कमान यहां जन सुराज के स्वयंसेवकों और प्रोफेशनल्स के जिम्मे है. ये ही स्वयंसेवी और प्रोफेशनल प्रशांत किशोर (पीके) के पीछे की ताकत हैं.
2 अक्तूबर को वे जिस जन सुराज पार्टी को लेकर आ रहे हैं, उसके लिए रिसर्च, प्लानिंग और बेहतर एग्जीक्यूशन जैसे रणनीतिक उपायों को यही लोग अंजाम दे रहे हैं.
पहला नाम था 'बात बिहार की'
पीके के साथ पिछले पांच साल से जुड़ीं एक महिला प्रोफेशनल कहती हैं, "आपको याद होगा, फरवरी 2020 में प्रशांत ने 'बात बिहार की' के नाम से एक अभियान शुरू किया था. तभी उन्होंने तय कर लिया था कि वे पूरे बिहार में घूमेंगे और एक नया राजनैतिक विकल्प खड़ा करेंगे."
यह वही वक्त था जब पीके जद (यू) से औपचारिक रूप से अलग हो गए थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जद (यू) को उन्होंने रणनीतिक सेवाएं दी थीं. उस चुनावी जीत के बाद नीतीश उनके इस कदर मुरीद हुए कि उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानकर पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया और 'सात निश्चय कार्यक्रम' को लागू करने की जिम्मेदारी दे दी. पीके उनके आवास में रहा करते थे. कहते हैं, ऐसा सौभाग्य न पहले नीतीश ने किसी को दिया था, न बाद में. पर यह जोड़ी आखिरकार टूट गई.
पर क्यों? इसका इशारा नीतीश के करीबी मित्र उदय कांत की किताब नीतीश कुमार में मिलता है. इसके मुताबिक, पीके सरकार में बड़ी भूमिका चाहते थे. बिहार विकास मिशन की जिम्मेदारी से वे बहुत खुश नहीं थे. नीतीश झारखंड चुनाव में उनकी मदद चाहते थे, मगर उन्होंने इसे टाल दिया.
नीतीश के नजदीकी लोग कहते हैं, पीके जद (यू) छात्र विंग की बैठकों में कहा करते थे कि मैं तो पीएम और सीएम बनाया करता हूं. यह बात भी नीतीश को अखरती थी. दूरियां बढ़ने लगीं. पीके आइ पैक (इंडियन-पोलिटिकल ऐक्शन कमेटी) के प्रोजेक्ट में समय देने लगे. आखिरकार सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर जद (यू) के स्टैंड का उन्होंने सार्वजनिक विरोध किया और नीतीश ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया.
इसी अलगाव के बाद 18 फरवरी, 2020 को पीके ने ऐलान किया था कि वे दस लाख बिहारी युवाओं के साथ 'बात बिहार की' अभियान शुरू करने जा रहे हैं. उन्होंने उस वक्त बिहार में नीतीश के 15 साल के शासन पर गंभीर सवाल उठाए और आंकड़ों के जरिए बताया कि सामाजिक, आर्थिक और न्यायिक आंकड़ों में बिहार आज भी वहीं है, जहां 2005 में था.
मगर कोविड ने अभियान का रास्ता रोक दिया. साल भर के लिए उन्होंने चुनावी रणनीति के काम से खुद को अलग करके मंथन किया कि उन्हें क्या करना चाहिए. फिर वे इस नए कार्यक्रम के साथ अप्रैल, 2022 में बिहार आए और जन सुराज अभियान की शुरुआत की.
अभियान से पहले अध्ययन का दौर
पूर्व आईपीएस अधिकारी आर.के. मिश्र पाटलिपुत्र के जन सुराज दफ्तर में संचालक और अभिभावक के तौर पर अक्सर नजर आते हैं. वे कहते हैं, "प्रशांत एक साल बैठे नहीं. उन्होंने इस बीच बिहार में कई अध्ययन कराए. एक अध्ययन से पता चला कि बिहार के 67 फीसद लोग मौजूदा राजनैतिक विकल्पों से उकता गए हैं और नए विकल्प की तलाश में हैं. फिर उन्होंने हम जैसे बिहार के पूर्व नौकरशाहों के साथ मीटिंग की और अभियान से जुड़ने को कहा. कई नौकरशाह साथ आए, इनमें एक मैं भी हूं."
पहले आई-पैक और फिर जन सुराज प्रोफेशनल ग्रुप की कमान संभाल रहे प्रदीप कुमार सिंह बताते हैं, "हमने हर तरह की रणनीति तैयार की. पदयात्रा ही क्यों करनी है? करनी है तो कैसे करनी है? हमारे नायक कौन होंगे? चेहरा कौन होगा? सबके लिए रिसर्च हुई और तब मई, 2022 में प्रशांत किशोर ने जन सुराज अभियान की घोषणा की. देश के सर्वमान्य नेता गांधी को पोस्टर पर जगह दी और 2 अक्तूबर को चंपारण सत्याग्रह की भूमि भितिहरवा से पदयात्रा की शुरुआत की."
मिश्र बताते हैं कि मई से अक्तूबर तक पीके पूरे बिहार के लोगों से मिलते रहे. हर जिले में ऐसे लोगों की तलाश थी, जिनकी सामाजिक छवि अच्छी हो. उनसे पीके की मुलाकात कराकर इस अभियान से जुड़ने को कहा जाता.
फिर जन सुराज अभियान का कार्यक्रम तय हुआ. 12-15 महीने में 3,500 किमी की पदयात्रा. पूरा बिहार घूमना और जहां पदयात्रा रुके, वहां संगठन का निर्माण. संगठन में जन सुराज संस्थापक सदस्य होंगे, प्रखंड, अनुमंडल, जिला स्तर की कमेटियां होंगी. यूथ क्लब, आंबेडकर वाहिनी और ऐसे दूसरे सामाजिक संगठन होंगे. और फिर बड़े संगठन और सदस्यों के साथ एक दिन जन सुराज पार्टी की घोषणा कर दी जाएगी.
प्रदीप के शब्दों में, "हमने रिसर्च में पाया कि किसी भी राजनैतिक दल के लिए आम लोगों से जुड़ने का सबसे अच्छा टूल पदयात्रा है." वे गांधी की दांडी यात्रा और चंद्रशेखर की 1983 में की गई पदयात्रा का जिक्र करते हैं. मिश्र जोड़ते हैं, ''तैयारियों के सिलसिले में एक महीने मैं चंपारण इलाके में रहा. वहां एसपी रहा था तो मेरे पुराने संपर्क थे."
आई-पैक के प्रोफेशनल्स ने पदयात्रा का रूट चार्ट तैयार किया. रास्ते के गांवों में बैठकें कीं, प्रमुख लोगों को जोड़ा. 2 अक्तूबर, 2022 को पीके जब पश्चिमी चंपारण के भितिहरवा से पदयात्रा पर निकले तो उनके साथ युवा पदयात्रियों की टीम थी. इन्हें बाद में वाहिनी का नाम दिया गया. टीम में कई उच्च शिक्षित और अच्छी नौकरियां करने वाले युवा थे जो जन सुराज अभियान के मकसद से प्रभावित होकर यात्रा में शामिल थे. वे बिहार को बदलने का सपना लेकर यहां आए थे.
वाहिनी के लीडर विवेक के मुताबिक, उनका काम पदयात्रा का बेहतर प्रबंधन, कैंपों का संचालन और सभाओं में आने के लिए लोगों को प्रेरित करना है. शुरुआत में वाहिनी में सौ लोग होते थे. अब हम 3,000-4,000 तक हो गए हैं. विवेक स्वीकार करते हैं कि वाहिनी की भूमिका कुछ-कुछ भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसी है.
पदयात्रा मुश्किल काम है. रोजाना 10-15 किमी पैदल चलना होता है. इस बीच 3-4 जगह छोटी-छोटी सभाएं. शाम तक लोग निढाल हो जाते हैं. यात्रियों को आराम के लिए कैंपों की व्यवस्था बेहतर होती है. जर्मन हैंगर और आधुनिक टेंट में रहने-खाने की व्यवस्था. जिस जिले में पदयात्रा पहुंचती है, आस-पास के इलाकों में जन सुराज के स्टिकर और पोस्टर वाली गाड़ियां दिखने लगती हैं. ये पदयात्रियों की मदद और अभियान के लिए होती हैं. सुपौल कैंप के पास एक एसयूवी के ड्राइवर ने बताया कि 300 गाड़ियां हरियाणा की एक एजेंसी से आई हैं.
यात्रा की सभाओं में पीके का संबोधन तय रहता है. वे पलायन, शिक्षा, रोजगार जैसे मसलों पर बोलते हैं. मोदी, नीतीश और लालू तीनों पर हमला करते हैं. कांग्रेस को भी बिहार की बदहाली के लिए घेरे में लेते हैं. वे कहते हैं, बिहार की राजनीति पर 1,230 परिवारों का कब्जा है और वे इस कब्जे से बिहार को बाहर निकालने आए हैं. और आखिर में कहते हैं कि आपने धर्म के लिए वोट किया, जाति के लिए वोट किया अब अपने बच्चों के लिए वोट करें.
यात्राओं से बचे समय में संगठन तैयार करने का काम होता है. अभियान से जुड़ने वाले लोगों में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो राजनैतिक अभिरुचि रखते हैं, संसाधन और महत्वाकांक्षा की वजह से चुनाव भी लड़ना चाहते हैं, मगर कभी किसी राजनैतिक दल से जुड़े नहीं. इनमें स्थानीय बुद्धिजीवी, बौद्धिक पेशेवर जैसे लोग हैं. इसके अलावा अभियान से सबसे ज्यादा पंचायत और स्थानीय निकाय के प्रतिनिधि जुड़ रहे हैं.
इनमें मुखिया, सरपंच, प्रमुख और जिला परिषद के सदस्य वगैरह बड़ी संख्या में हैं. जनसभाओं का आयोजन अक्सर स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि ही करते हैं. फिलहाल पदयात्रा सुपौल जिले से गुजर रही है. 12-15 महीने में खत्म होने का लक्ष्य रखने वाली पदयात्रा अभी उत्तर बिहार के जिलों तक सीमित है. दक्षिण बिहार में उसे जाना है. यात्रा अभी जारी रहेगी.
जाहिर है, पार्टी की स्थापना 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए की जा रही है. अभियान का दावा है कि एक करोड़ संस्थापक सदस्यों के साथ उनकी पार्टी बनने जा रही है. जल्द ही पंचायत स्तरीय योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा. नवंबर तक हर विधानसभा के लिए पांच-पांच संभावित प्रत्याशियों की घोषणा भी कर दी जाएगी. आने वाले दिनों में इनके बीच स्पर्धा होगी और फिर अमेरिका के प्रेसिडेंशियल चुनाव की शैली में उम्मीदवार तय होगा.
असली ताकत प्रोफेशनल टीम
जन सुराज के साथी आज भी कहते हैं कि इस अभियान की असली ताकत पीके के साथ चुनावी रणनीति तैयार करने में जुटे प्रोफेशनल्स की टीम है. पहले यह काम आई-पैक संभालता था. अब एक नई टीम बनी है, जन सुराज प्रोफेशनल टीम (जेएसपीटी). इसका दफ्तर पटना के एग्जिबिशन रोड पर एक मार्केट कॉम्प्लेक्स की ऊपरी दो मंजिलों में है. प्रदीप सिंह इसे लीड करते हैं.
यह जन सुराज का वार रूम है. देश-विदेश के उच्च शिक्षा प्राप्त 100 से ज्यादा प्रोफेशनल यहां कंप्यूटर पर लगे दिखते हैं. प्रदीप कहते हैं, "आप किसी भी टॉप लेवल संस्थान का नाम लीजिए, उसके लोग यहां मिलेंगे." जाहिर है, उन्हें उम्दा सैलरी जो मिलती है. इस टीम के कई काम हैं: सर्वे करना, आंकड़े जुटाकर उनका विश्लेषण, जन सुराज के ग्रोथ का फुटप्रिंट तैयार करना, बन रहे संगठन को प्रेरित करना और पोलिटिकल टीम को प्रशिक्षित कर उन्हें जिम्मेदारी सौंपना.
प्रदीप कहते हैं, "जन सुराज से जुड़ने के लिए हमसे संपर्क करने वाले व्यक्ति से टीम चार दिन के अंदर बात करती है, जिले की टीम से उसकी मुलाकात करवाती है, फिर जन सुराज से जुड़ने में उसकी मदद करती है." पदयात्रा की योजना से लेकर प्रबंधन तक, मीडिया के साथ समन्वय, कार्यक्रमों का आयोजन. ऐसी कई जिम्मेदारियां इस प्रोफेशनल टीम के पास है. जन सुराज का अपना ऐप है: पीके कनेक्ट. जुड़ने वाले को इसे डाउनलोड करना होता है. इसी पर अभियान से जुड़े कन्टेंट मुहैया कराए जाते हैं.
दिलचस्प है कि पीके खुद न पाटलिपुत्र कॉलोनी के दफ्तर में दिखते हैं, न जेएसपीटी के दफ्तर में. यात्रा में न होने पर वे पटना के शेखपुरा हाउस में पाए जाते हैं. अभियान की शुरुआत से ही वही उनका हेडर्क्वाटर बना हुआ है. वे विश्वस्त साथियों के जरिए वहीं से नियंत्रण रखते हैं. वैसे तो जन सुराज नए लोगों के साथ राजनीति करने की बात करती है, मगर राजनीति के कुछ जाने-पहचाने चेहरे भी इससे जुड़ रहे हैं.
इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव, बिहार सरकार के पूर्व मंत्री मोनाजिर हसन, विधान पार्षद आफाक अहमद खान, पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना, पूर्व राजद विधायक रामबली चंद्रवंशी, बक्सर से चुनाव लड़ने वाले पूर्व आईएएस अफसर आनंद मिश्र और कर्पूरी ठाकुर की पोती ज्योति ठाकुर हैं. इनमें से कई लोगों को 21 सदस्यीय जन सुराज कार्यसमिति में जगह मिली है. एक समिति अभियान का संविधान बनाने में, तो एक निर्वाचन समिति जन सुराज अभियान के पहले अध्यक्ष के चयन में जुटी है.
मुद्दा नहीं, समीकरण भी
जनवरी, 2024 से जन सुराज अभियान के काम करने के तरीके में बड़ा बदलाव आया. पीके ने कर्पूरी ठाकुर जयंती के मौके पर पहली बार अपने वादों में जातियों के प्रतिनिधित्व को शामिल किया. उन्होंने ऐलान किया कि जन सुराज पार्टी 75 सीटों पर अति पिछड़ों को चुनाव लड़ाएगी. बाद में उन्होंने कम से कम 40 सीटें महिलाओं को और इतनी ही मुसलमानों को देने का वादा किया.
28 जुलाई, 2024 को पटना में उन्होंने घोषणा की कि जन सुराज पार्टी का पहला अध्यक्ष कोई काबिल दलित होगा, दूसरा अति पिछड़ा और तीसरा काबिल मुसलमान होगा. जानकारों ने इसे इस तरह डिकोड किया कि वे दलितों, अति पिछड़ों और मुसलमानों का समीकरण बना रहे हैं. आर.के. मिश्र कहते हैं, "प्रशांत तो लोहिया की उस बात को आगे बढ़ा रहे हैं, जिसमें उन्होंने कहा था, जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. वे आबादी के हिसाब से हर जातीय समूह को प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं."
प्रशांत इन दिनों राजद पर लगातार हमलावर हैं और मुसलमानों से कहते हैं कि आप लालटेन में तेल बनकर जलते रहे और रोशनी किसी और को मिलती रही. इस बात से मुसलमानों का एक बड़ा तबका उनकी तरफ आकर्षित हो रहा है.
उनके साथी अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं, "अभी तो बिहार ने पदयात्रा देखी है, रणनीतिकार प्रशांत किशोर का रोल अब शुरू होगा." पीके खुद भी कहते हैं, "अगर मैं दूसरी पार्टियों को जिता सकता हूं तो जन सुराज पार्टी को क्यों नहीं जिता सकता."
ऐसा माना जा रहा है कि अब वे ऐसे रणनीतिक दांव चलते रहेंगे. 2 अक्तूबर को पार्टी बनने के बाद उनकी पहली परीक्षा आने वाले दिनों में बिहार में चार विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में होगी. देखना होगा कि स्ट्रैटजी, रिसर्च और दूसरे पेशेवर तरीके से बनी इस पार्टी को बिहार की जनता किस रूप में देख रही है.
जन सुराज की ताकत
जन सुराज प्रोफेशनल टीम: देश-विदेश के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़े पेशेवरों की टीम अभियान की रीढ़ है. यह सर्वे, आंकड़े और दूसरे तरीकों से अभियान को पार्टी में बदलने में अहम भूमिका निभा रही.
वाहिनी: जनसुराज अभियान के दौरान कई युवा पदयात्रा में शामिल होने आए हैं. ये पदयात्री और प्रचारक हैं. इनकी संख्या 3,000-4,000 बताई जा रही है. इनकी भूमिका आरएसएस की तरह है.
संगठन: इसमें संस्थापक सदस्य, जिला, प्रखंड, अनुमंडल स्तर की कमेटियों में शामिल लोग हैं. पदयात्रा के दौरान इन्हें जोड़ा गया है. जब जन सुराज पार्टी बनेगी तो यही लोग पार्टी में होंगे.
जन सुराज फाउंडेशन: इसका काम जन सुराज की विचारधारा का युवाओं के बीच प्रसार करना है. बिहार के हर इलाके में यूथ क्लब बने हैं. जन सुराज फाउंडेशन में पेशेवरों की टीम इन यूथ क्लबों के लिए गतिविधियों का संचालन करती हैं.
पावरफुल टूल
पदयात्रा: पूरे बिहार में पैदल घूम कर लोगों के बीच बिहार में वैकल्पिक राजनीति की बात करना.
ऐप: जन सुराज से जुड़ने वालों को एकजुट रखना और उनके बीच जनसुराज की गतिविधियों का प्रसार.
सोशल मीडिया: कई सोशल मीडिया हैंडल से प्रशांत किशोर के भाषणों और जन सुराज की गतिविधियों का प्रसार.
सभा-सम्मेलन: पदयात्रा के दौरान गांवों में छोटी और पटना में बड़ी सभाएं इसकी गतिविधियों को विस्तार देती हैं.
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