जम्मू-कश्मीर में बिजली पर नया बवाल

स्मार्ट बिजली मीटरों को लगाए जाने को लेकर जम्मू क्षेत्र के भाजपा के मजबूत गढ़ में लोगों में भारी नाराजगी है

आक्रोश स्मार्ट बिजली मीटर लगाने के खिलाफ जम्मू में 26 अगस्त को प्रदर्शन करते लोग
आक्रोश स्मार्ट बिजली मीटर लगाने के खिलाफ जम्मू में 26 अगस्त को प्रदर्शन करते लोग

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन के लिए जम्मू और कश्मीर में स्मार्ट बिजली मीटर लगाना कठिन काम हो गया है. खासकर हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र में इस कदम के खिलाफ जनता में नाराजगी बढ़ रही है. स्मार्ट मीटरों को हटाने के लिए 26 अगस्त को एक दिन के बंद के बाद 1 सितंबर को जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर एक टोल प्लाजा को हटाने के लिए भी नाकाबंदी की गई. क्षेत्र के शीर्ष व्यापारिक संघ जम्मू चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री (जेसीसीआइ) की अगुआई में नागरिक समाज समूहों, वकीलों और सियासी दलों के विरोध-प्रदर्शन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गढ़ जम्मू, सांबा, कठुआ, उधमपुर और रियासी जिलों में जनजीवन को बाधित कर दिया था.

पर्यवेक्षकों का कहना है कि सड़कों पर हो रहे ये विरोध-प्रदर्शन चुनाव के समय जम्मू-कश्मीर में भगवा उम्मीदों को धूमिल कर सकते हैं. साल 2014 में तत्कालीन 87-सीटों वाली राज्य विधानसभा के लिए हुए पिछले चुनावों में भाजपा ने 23 फीसद की अपनी अब तक की सबसे अधिक वोट हिस्सेदारी के साथ रिकॉर्ड 25 सीटें हासिल की थीं. और ये सभी सीटें जम्मू क्षेत्र की थीं. अगस्त, 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख के रूप में दो केंद्रशासित प्रदेशों के गठन का जम्मू क्षेत्र में जोरदार स्वागत किया गया. इससे मुस्लिम बहुल कश्मीर के साथ इस क्षेत्र का विभाजन और बढ़ गया.

लेकिन उस पुनर्गठन के साथ बिजली समेत लगभग सभी क्षेत्रों में सुधार शुरू होने से अब जम्मू इलाके में बेचैनी देखी जा रही है. जेसीसीआइ अध्यक्ष अरुण गुप्ता का कहना है, ''प्रीपेड स्मार्ट मीटर हमें स्वीकार नहीं हैं. लोगों को बढ़े हुए बिल मिल रहे हैं क्योंकि अधिकतर मीटर तेज चल रहे हैं और बहुत ज्यादा रीडिंग दिखा रहे हैं.'' 8 अगस्त की एक बैठक के दौरान अधिकारियों की ओर से दिए गए मौखिक आश्वासनों से असंतुष्ट जेसीसीआइ ने उनसे 'लिखित' आश्वासन मांगा है और वह त्योहारी सीजन के बाद विरोध-प्रदर्शन तेज कर सकता है.

जम्मू-कश्मीर में बिजली सबसे अधिक ज्वलंत मुद्दा है. खासकर सर्दियों में जब कई हिस्सों में शून्य से नीचे तापमान के बीच हीटर, गीजर, रेडिएटर और क्रूड बॉयलर चलाने के लिए बिजली की मांग बढ़ जाती है. '90 के दशक की शुरुआत तक सरकार सर्दियों से पहले घरों में जलाने के लिए लकड़ी की आपूर्ति कर रही थी, लेकिन उसके बाद से वह काम बंद कर दिया गया. इससे बिजली की मांग बढ़ गई. अन्य कारकों ने भी बिजली के इस लगातार बने संकट में योगदान दिया है. इनमें बेरोकटोक चोरी, ट्रांसमिशन और वितरण में होने वाला नुक्सान (57 फीसद, देश में सबसे अधिक), और बाहर से बढ़ती बिजली खरीद (वित्त वर्ष 2020 में 13.3. अरब यूनिट से वित्त वर्ष 2022 में 16.2 अरब यूनिट) के बीच बढ़ता राजस्व घाटा शामिल है.

केवल कश्मीर घाटी में गर्मियों में 1,200 मेगावाट के मुकाबले बिजली की मांग सर्दियों में दोगुनी होकर अपने चरम पर 2,400 मेगावाट तक पहुंच जाती है. पिछले साल आपूर्ति केवल 1,850 मेगावाट तक ही पहुंच सकी. उसके नतीजतन ओवरलोडिंग या डिसकॉम से हुई लोड-शेडिंग के कारण ट्रांसफार्मर खराब हो रहे थे और बिजली की लंबी कटौती हो रही थी. लेकिन कश्मीर पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के मुख्य अभियंता जावेद यूसुफ डार को उम्मीद है कि साल 2025 तक 100 फीसद स्मार्ट मीटर स्थापित हो जाने के बाद हालात में सुधार होगा.

तत्कालीन मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुआई वाली पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सरकार ने ही साल 2005 में बिजली मीटर लगाने के साथ जम्मू-कश्मीर में बिजली आपूर्ति को नियमित करने की कोशिश की थी. लेकिन करीब 22 लाख कनेक्शनों में से अधिकतर बिना मीटर के ही बने रहे और उपभोक्ता केवल नाममात्र शुल्क ही दे रहे हैं. मसलन, जम्मू में पिछले वित्तीय वर्ष में 3,600 करोड़ रुपए के खर्च के मुकाबले, बिजली उपभोग से केवल 2,100 करोड़ रुपए का राजस्व मिल सका और 42 फीसद का भारी घाटा हुआ. इस नुक्सान को रोकने के लिए साल 2022 में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने दोनों क्षेत्रों में स्मार्ट मीटरिंग शुरू करने के लिए कहा. यह बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और स्थिरता में सुधार के लिए देशव्यापी रिवैक्वप्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम का एक हिस्सा है.

स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं को अपने दैनिक बिजली उपभोग और शुल्क की जांच की सुविधा देते हैं. इससे उन्हें अपनी जरूरतों और संसाधनों के हिसाब से खपत योजना बनाने में मदद मिल सकती है. वहीं, प्रीपेड सिस्टम में खपत से पहले भुगतान किया जाता है, जिससे बकाया और डिफॉल्ट से बचा जा सकता है और राजस्व संग्रह में सुधार हो सकता है. डार बताते हैं कि इस सिस्टम में मैनुअल मीटर रीडरों से मुक्ति मिलती है जिससे चोरी पर अंकुश लगता है. इसके पहले चरण में जम्मू-कश्मीर में 6,00,000 मीटर लगाए जाने हैं- जम्मू में 2,50,000 और कश्मीर के शहरी इलाकों में 3,50,000. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, दोनों क्षेत्रों में अब तक क्रमश: लगभग 2,00,000 और 1,90,000 मीटर लगाए जा चुके हैं.

घाटी में किसी भी तरह के विरोध- अधिकतर बेहद मामूली थे- से उस इलाके में बिजली आपूर्ति को रोककर निबटा गया था. लेकिन जम्मू में बढ़ते जनाक्रोश को देखते हुए अधिकारियों ने शिकायतों के समाधान के लिए 15 नोडल अधिकारी नियुक्त किए. जम्मू पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर अनंत तायल कहते हैं, ''हमने उपभोक्ताओं के सामने 5,000 मीटरों का परीक्षण किया और पाया कि कोई भी मीटर तेज नहीं चल रहा था.'' हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कुछ सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी थीं और उन्हें सुधार लिया गया, लेकिन 'बढ़े हुए बिल का कोई मामला नहीं मिला.'

इन उपायों और आश्वासनों के बावजूद, जम्मू में उपभोक्ता पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. इस मसले पर भाजपा को घिरता देखकर पार्टी के महासचिव विबोध गुप्ता की अगुआई में पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल ने 19 अगस्त को राजभवन में सिन्हा से मुलाकात की और उस कदम को वापस लेने की मांग की. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी पर लोगों का 'गुमराह' करने का आरोप लगाया और कहा, ''हम फिर उपराज्यपाल से मिलेंगे और इसको लेकर दबाव बनाएंगे.'' हालांकि उपराज्यपाल सिन्हा ने कहा है कि जिनके पास संसाधन हैं उन्हें उनके उपभोग के अनुसार बिजली शुल्क का भुगतान करना होगा, जबकि ''गरीबों का ध्यान प्रशासन रखेगा.'' उन्होंने कहा, ''किसी भी तरह के बहाने को नहीं सुना जाएगा. बेहतर सेवा हासिल करने के लिए लोगों को अपने बिलों का भुगतान करना होगा.'' मौजूदा गतिरोध को देखते हुए, इस मसले पर तनाव के और बढ़ने की आशंका है.

- मोअज्जम मोहम्मद

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