दत्तात्रेय होसबालेः समलैंगिकता दंडनीय अपराध नहीं है
संभावना है कि अब आरएसएस पूरी तरह पुरुषों का संगठन न रह जाए. वह महिलाओं को शाखाओं में शामिल करने को लेकर भी राजी होता दिख रहा है. हाल ही में उसने गणवेश को बदला है और खाकी हाफ पैंट की जगह पूरी लंबाई की पैंट को स्वीकार किया है.

जब आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले से 2020 के भारत के लिए आरएसएस के नजरिये के बारे में पूछा गया, तो होसबाले ने कहा, “ऐसे समृद्ध भारत का नजरिया जहां नागरिकों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो जाएं; जहां जाति, धर्म या लैंगिक भेदभाव मौजूद नहीं हो.”
होसबाले ठोस बात कह रहे थे. वे चाहते हैं कि आरएसएस इस दृष्टि को जमीन पर उतारने का एक प्रभावी औजार बने लेकिन बात जब आगे बढ़ने की आती है, तो बदलाव और वक्त के मुताबिक ढलना अहम हो जाते हैं. जाहिर है, बदलाव भीतर से ही लाया जाना होगा और आरएसएस नए माहौल में नए विचारों को अपनाने को राजी है. होसबाले भले एक ऐसा भारत चाहते हों जो अपनी सांस्कृतिक विरासत और सभ्यतागत योगदान पर गर्व करता हो, लेकिन विरासत के बोझ तले आगे बढ़ पाना मुमकिन नहीं है. इसीलिए बुनियादी बात साफ है कि बदलाव तो होना है. “हिंदू सभ्यता कहती है कि हमें समय की जरूरत के हिसाब से बदलना ही होगा.”
होसबाले ने इस बात के संकेत दिए कि संभव है, अब आरएसएस पूरी तरह पुरुषों का संगठन न रह जाए. उन्होंने माना कि जब आरएसस बना था, उस वक्त सामाजिक वातावावरण ऐसा था कि महिलाओं को संगठन में आने की छूट नहीं थी क्योंकि इसमें खेल जैसी कुछ शारीरिक गतिविधियां भी की जाती थीं. जैसे-जैसे वक्त बदलता गया है, आरएसएस महिलाओं को अपनी शाखाओं में शामिल करने को लेकर भी राजी होता दिख रहा है. हाल ही में उसने गणवेश को बदला है और खाकी हाफ पैंट की जगह पूरी लंबाई की पैंट को स्वीकार किया है. आज आरएसएस में सुबह की शाखा के अलावा हर गतिविधि में महिलाओं को शामिल होने की छूट है. उन्होंने कहा, “आने वाले एक साल में चीजें बदल सकती हैं. कुछ शाखाओं में तो हम परिवारों की भागीदारी को लेकर भी प्रयोग कर रहे हैं जहां पुरुषों, महिलाओं और बच्चों, सभी को छूट दी जाएगी.”
आरएसएस को लेकर व्याप्त कुछ “भ्रमों” को दूर करने और हिंदुत्व के उसके विचार को साफ करने के भी प्रयास जारी हैं. हिंदू होना जीवन शैली है. होसबाले ने कहा कि महात्मा गांधी हिंदू होने में गर्व महसूस करते थे. विवेकानंद को भी हिंदू होने पर गर्व था. उन्होंने एक हिंदू भारत के बारे में गैर-हिंदुओं के मन में व्याप्त डर को दूर करने की कोशिश की, “अतीत में हिंदुओं ने दुनिया भर में किसी पर कब्जा नहीं किया या किसी को भी गुलाम नहीं बनाया है. इसलिए हिंदू आक्रमकता को लेकर डर गलत है.”
होसबाले के लिए “भारत माता” सबसे पवित्र है और इसका नारा लगाने पर उनके हिसाब से कोई बहस नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कॉनक्लेव में कहा, “अगर कोई “भारत माता की जय” का नारा नहीं लगाता है तो वह राष्ट्रविरोधी है क्योंकि वह दूसरों को ऐसा करने के लिए उकसा रहा है.”
सबसे बड़ा खुलासा समलैंगिकता पर आरएसएस की बदली हुई सोच थी. होसबाले ने कहा कि वे नहीं मानते कि समलैंगिकता कोई दंडनीय अपराध है. उन्होंने कहा, “जब तक वह दूसरों के जीवन को प्रभावित नहीं करता, वह अपराध नहीं है.” बीफ खाने के मसले पर वे उतने उदार नहीं दिखे, “यह देश में सांस्कृतिक रूप से ठीक नहीं है. महात्मा गांधी भी गोवध का विरोध करते थे. तो क्या वे सांप्रदायिक थे?”
कुछ चीजें बेशक बदलाव के दायरे से बाहर हैं. राम मंदिर का ख्वाब अब भी जिंदा है, हालांकि आरएसएस इसमें अदालत की ओर से आखिरी निर्देश चाहता है.