आईएएस बनने को दूसरे नंबर पर रखते हैं विकास दिव्यकीर्ति, क्या है उनकी पहली करियर चॉइस?

पांच शहरों में अपने लर्निंग सेंटर खोल चुके दृष्टि आइएएस के संस्थापक डॉ. विकास दिव्यकीर्ति पढ़ने और पढ़ाने से एक आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं. हिंदी पट्टी के गांव-गांव में अपने यूट्यूब लेक्चर्स से मशहूर हो चुके दिव्यकीर्ति अपनी उद्यमिता पर भी गर्व करते हैं

दृष्टि आईएएस के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति

दृष्टि आइएएस के दफ्तर पहुंचने के लिए आपको दिल्ली के मुखर्जी नगर पर विचरते स्टूडेंट्स के सैलाब को चीरते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ना होता है. यह ऑफिस दृष्टि की मुख्य बिल्डिंग से कुछ 100 मीटर आगे है. यहां से उनके पांच सेंटर और ऑनलाइन कोर्सेज संचालित होते हैं. अंदर इस 'एजुकेशन' कंपनी का टॉप मैनेजमेंट बैठता है. इसके अलावा यहां पर वह क्रेश (शिशुगृह) भी दिखता है जिसे दृष्टि की कर्मचारी-केंद्रित पॉलिसीज के तहत बनाया गया है. 

मुखर्जी नगर की सड़कों पर लिखी जाने वाली सफलता की कहानियों के बारे में हम जब भी सोचते हैं, हम उन लाखों लड़के-लड़कियों की कल्पना करते हैं जो यहां के छोटे-छोटे कमरों में रहते हुए बड़े-बड़े अफसर बन जाते हैं. ऐसे ही एक और लड़के की तकदीर यहां '90 के दशक में लिखी गई थी. जो खुद तो अफसर नहीं बना, मगर हजारों को बनाया. दरअसल, खुद वह उद्यमी बना. 

क्या एक टीचर का उद्यमी होना उसके अध्यापन के मूल कर्तव्य में रोड़ा अटकाता है? विकास दिव्यकीर्ति अब ऐसा नहीं मानते. वे कहते हैं, "मैं ऐसे टीचर माता-पिता का बेटा हूं, जो मानते थे कि शिक्षा का व्यवसाय करना एक गलत काम है." शिक्षा देना और धन अर्जित करना एक-दूसरे की विरोधी बातें नहीं हैं, यह समझने में दिव्यकीर्ति को वक्त लगा. वे बताते हैं, "आज जब पाता हूं कि दृष्टि 1,800 स्टाफ सदस्यों (टीचिंग व गैर-टीचिंग) के परिवारों का सहारा बन पा रहा है तो यह अपराधबोध जाता रहता है. हम सभी एम्प्लॉईज को हेल्थ इंश्योरेंस देते हैं, सरकारी नियम के तहत पूरी मैटरनिटी लीव देते हैं. साथ ही नए पिताओं के लिए पैटरनिटी लीव और महिलाओं के लिए मेंस्ट्रूअल लीव देते हैं. हमने कोविड के समय किसी की नौकरी नहीं जाने दी."

विकास दिव्यकीर्ति हरियाणा के भिवानी के रहने वाले हैं. उनके पिता एक कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर थे और मां जिले के सबसे अच्छे स्कूल में टीचर. तीन भाइयों में सबसे छोटे विकास जब भिवानी से दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए निकले, उनका लक्ष्य था स्टूडेंट पॉलिटिक्स के जरिए देश का बड़ा नेता बनना. मगर कॉलेज का पहला साल खत्म होते-होते परिवार एक वित्तीय धोखाधड़ी का शिकार हो गया. ऐसी विपदा टूटी कि परिवार एक बड़े कर्ज के तले दब गया. पांच लोगों का परिवार उस वक्त फरीदाबाद में एक कमरे के घर में रहने लगा. 17 बरस के विकास ने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए अपनी पहली नौकरी शुरू की. वे दुकान पर और घर-घर जाकर कैलकुलेटर बेचते थे. दिव्यकीर्ति कहते हैं, "मैं काम में ठीक था. लेकिन मन नहीं लगता था. पहली बार आर्थिक तंगी देखी थी. मैं घंटों जंतर मंतर के पार्क में बैठा यह सोचा करता था कि क्या से क्या हो गया. वह मुश्किल वक्त था."

इसी मुश्किल वक्त में दिव्यकीर्ति और उनके बड़े भाई ने साथ मिलकर प्रिंटिंग का कारोबार शुरू किया. 'त्रिमूर्ति प्रिंटिंग' के नाम से. यह उनका पहला बिजनेस था. देखते ही देखते बिजनेस हजारों की कमाई देने लगा और परिवार की स्थिति सुधरने लगी. हालांकि दिव्यकीर्ति इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय में होने वाली हर डिबेट प्रतियोगिता में हिस्सा लेते, प्राइज जीतते और उससे अपने खर्च चलाते रहे. लगभग तीन साल प्रिंटिंग का काम करते हुए दिव्यकीर्ति ने नेट-जेआरएफ क्वालीफाइ किया और यूपीएससी की तैयारी शुरू की. उन्होंने कुछ वक्त के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के दो कॉलेजों में पढ़ाया भी. वह 1996 का साल था जब उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और अगले साल गृह मंत्रालय में नियुक्ति मिली. 

विकास दिव्यकीर्ति आज कुछ भी हो सकते थे—प्रिंटिंग की दुनिया के एक बड़े कारोबारी, भारत सरकार में एक बड़े ब्यूरोक्रेट या दिल्ली विश्वविद्यालय के एक अनुभवी प्रोफेसर. मगर तीनों ही कामों में उन्हें सुख नहीं मिल रहा था. और यूं उन्होंने छह महीने सरकारी नौकरी करने के बाद इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के बाद दिव्यकीर्ति को सरकार से रिलीविंग लेटर नहीं मिला, जिसके चलते वे कहीं और नौकरी नहीं कर पा रहे थे. बेरोजगारी के इन दिनों में उन्होंने अपनी पत्नी से सलाह ली और दोस्तों से 65 हजार रुपए उधार लेकर शुरुआत हुई 'दृष्टि' की. यह 1997 की बात है. 

शुरुआती दिनों में वे और उनकी पत्नी जगह-जगह पोस्टर लगाकर कोचिंग सेंटर का प्रचार करने लगे. मुखर्जी नगर में उन्होंने एक चार कमरे का घर किराए पर लिया, जिनमें से एक को क्लासरूम बनाया, एक को ऑफिस और बचे हुए दो कमरों में रहना शुरू किया. इस बीच दिव्यकीर्ति अपने स्टूडेंट्स के साथ खुद भी यूपीएससी की तैयारी करते रहे. वे बताते हैं, "2003 में मैं खुद भी परीक्षा दे रहा था. तब तक 12 बच्चों के साथ शुरू हुआ दृष्टि इतना बड़ा हो चुका था कि उस साल हिंदी मीडियम के करीब 250 बच्चे दृष्टि से इंटरव्यू के लिए गए थे." 

लेकिन नियति को यही मंजूर था कि दृष्टि हिंदी माध्यम के छात्रों के लिए उम्मीद की मशाल थामे रहे. कई बार सब कुछ छोड़कर प्रोफेसरी की ओर लौटने के ख्याल के साथ रस्साकशी करते हुए विकास दिव्यकीर्ति कोचिंग इंडस्ट्री में बने रहे. वे तब भी बने रहे जब उनके पूरे पांच टीचरों के स्टाफ ने एक साथ रिजाइन कर अपना कोचिंग सेंटर शुरू किया. और तब भी बने रहे जब कोविड के दौरान क्लासेज बंद कर दी गईं लेकिन 600 लोगों के स्टाफ में से किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला गया, न ही किसी की सैलरी रोकी गई. कोविड के दौरान दृष्टि की टीम ने अपने ऐप पर काम किया और कोर्सेज अपलोड करने शुरू किए. इस तरह दृष्टि के एडटेक विभाग का जन्म हुआ. दिव्यकीर्ति कहते हैं, "ऑनलाइन मोड पर आने के बाद यूट्यूब पर हमें इतनी रीच मिली जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे. हालांकि हमारे कोर्सेज लीक हुए और धड़ल्ले से टेलीग्राम सरीखे प्लेटफॉर्म्स पर चलने लगे. लेकिन लीक होने से हुए आर्थिक नुकसान के मुकाबले हमें यह फायदा हुआ कि पूरे देश भर में स्टूडेंट्स हमें जानने लगे हैं. हमारे लीक वीडियोज से कई चैनल लाखों की कमाई कर लेते हैं."

अफसरी से उद्यम तक 1999 में विकास दिव्यकीर्ति, उस दौर में वे खुद यूपीएससी की तैयारी करते हुए स्टूडेंट्स को साहित्य पढ़ा रहे थे
दिव्यकीर्ति बताते हैं कि हिंदी माध्यम की पढ़ाई में दृष्टि हमेशा से टॉप पर रहा है. लेकिन कोविड के दौर में मिली पब्लिसिटी के बाद अंग्रेजी माध्यम के स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाला दृष्टि का करोल बाग सेंटर रेवेन्यू के मामले में मुखर्जी नगर के मुख्य सेंटर को पीछे छोड़ चुका है. दृष्टि के फिलहाल पांच सेंटर हैं जो सुचारु रूप से चल रहे हैं—दिल्ली में दो, प्रयागराज, जयपुर और लखनऊ. छठा सेंटर इंदौर में खुलने को है. इसके अलावा पांच नए शहरों में दृष्टि की टीम सर्वे कर रही है. कोचिंग सेंटर के अलावा दृष्टि का अपना पब्लिकेशन है, साथ ही जूडिशयरी वर्टिकल की शुरुआत होने को है, जो जज की परीक्षा की तैयारी करवाएगा. इसके अलावा यूजीसी नेट और टीचिंग की अन्य परीक्षाओं से जुड़े कोर्स लाने की योजना है. दिव्यकीर्ति कहते हैं कि अब वे मैनेजमेंट के अनुभवी लोगों को दृष्टि में लाकर स्ट्रक्चर को बेहतर करना चाहते हैं. वे बताते हैं कि अगले दो वर्षों में वे अपना आइपीओ भी ला सकते हैं.

दृष्टि पिछले तीन साल से 'अस्मिता' योजना चला रहा है. इसके तहत वह देश भर के 60 हिंदी माध्यम से पढ़े छात्र-छात्राओं के लिए दो साल तक रहने, खाने और पढ़ाई का खर्च उठाता है.

कभी नेता बनने निकले दिव्यकीर्ति उद्यमी हुए, शिक्षक हुए और एक दिन ऐक्टर भी हो गए. हाल में ही रिलीज हुई विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 12वीं फेल में अपने ही किरदार में नजर आ रहे दिव्यकीर्ति अपने फोन में पिछले 15 साल में नोट किए हुए फिल्मी आइडियाज का अंतहीन स्क्रॉल दिखाते हुए बताते हैं, "मैं हमेशा से एक फिल्म बनाना चाहता था. डायरेक्टर बनने का ख्वाब है. एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब मेरे पास इतना वक्त होगा कि एक प्रभावशाली फिल्म बना पाऊंगा." विकास की स्टूडेंट रहीं बरेली की अपर आयुक्त आईएएस अफसर प्रीति जायसवाल कहती हैं कि मैं 1997 में उनकी पहली क्लास की विद्यार्थी रही हूं. वे मेरे लिए बड़े भाई, कोच, मित्र और संरक्षक, सभी भूमिकाओं में उपलब्ध रहे हैं. वे कठिन लक्ष्य को सरल, सुगम बना देने वाले अद्भुत व्यक्ति हैं. 

Read more!