किरणभाई ने साइकिल की चेन से शुरू किया इनोवेशन, आज है मशीनों का कारोबार

अपने घरवालों को खेतों में मूंगफली की बुआई के लिए घंटों जीतोड़ मेहनत करते देख किरणभाई ने सपना देखा कि नई मशीनों से खेती को आसान बनाना है. आज आठ राज्यों के किसान उनके सपने को जी रहे हैं.

किरणभाई माउजीभाई कथिरिया, 43 वर्ष संस्थापक, भूमि एग्रो हाइटेक
अपनी मशीन के साथ किरणभाई माउजीभाई कथिरिया

राजकोट के  एक छोटे से गांव उंदखिजड़िया में उस लड़के के पिताजी की पान की दुकान थी. वहां आसपास के बड़े लोग पान खाने आते थे. उन्हें पान खिलाते हुए लड़का पूछता, "आप क्या करते हैं?" तो अक्सर लोग बताते कि उनका कारोबार है. उनकी बातें सुनकर किरणभाई नाम के इस लड़केने भी सपना देखा कि उसे भी एक दिन बड़ा कारोबारी बनना है.

 "डॉक्टर या इंजीनियर बनने या सरकारी नौकरी में जाने का सपना मैंने कभी नहीं देखा," किरणभाई बताते हैं. हालांकि किरणभाई माउजीभाई कथिरिया के लिए इस सपने में रंग भरना बहुत मुश्किल था. उसे पूरा करने के लिए एक जोरदार बिजनेस आइडिया, पूंजी और बहुत ही अच्छी किस्मत की जरूरत थी. लेकिन इस राह पर वे आगे बढ़ते, इसके पहले ही परिवार की जो थोड़ी सी जमीन थी, उसमें खेती के काम में हाथ बंटाने की जिम्मेदारी उन पर आ गई. दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद अपने परिवार के दूसरे लोगों के साथ किरणभाई भी खेतों में काम करने के लिए जाने लगे. 

भावनाओं का निवेश कारोबार के शुरुआती दिनों में किसानों को अपनी मशीन के फायदे समझाते किरणभाई

किरणभाई का गांव गुजरात के जिस क्षेत्र में है, वहां मूंगफली की खेती बड़े पैमाने पर होती है. जब उन्होंने इन खेतों में काम करना शुरू किया तो उन्हें महसूस हुआ कि मूंगफली की खेती में बुआई के लिए काफी कम समय होता है. उतने कम समय में तीन बार जुताई करके खेत को तैयार करना होता था. सुबह पांच बजे काम शुरू होता था और अंधेरा होने तक चलता रहता था. इस दौरान खाने का समय भी नहीं मिलता था और कुछ लोग बीमार भी हो जाते थे.

किरणभाई ने यह सोचा कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि उनके पिता जैसे हजारों किसानों के लिए मूंगफली की खेती करना आसान हो जाए. उस समय न तो उनके पास जरूरी शिक्षा थी, न समझ थी और न ही जरूरी संसाधन. लेकिन एक मजबूत विचार हमेशा साथ था कि अपने परिजनों के लिए खेती को आसान बनाना है.

इस बीच उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई पूरी की. परिवार के लोगों ने उन्हें एक बेहतर भविष्य के लिए गांव से बाहर भेजा. रोजगार की तलाश में किरणभाई राजकोट पहुंचे जहां उन्हें स्टील फैब्रिकेशन फैक्ट्री में काम मिला. इस फैक्ट्री के मालिक ने किरणभाई से कहा कि चूंकि उन्हें इस काम के बारे में कुछ भी नहीं पता, इसलिए उन्हें रोज की मजदूरी सिर्फ 60 रुपए ही मिलेगी.

पान की दुकान चलाने वाले पिता के बेटे के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं था. इसलिए उन्होंने यह नौकरी स्वीकार कर ली. किरणभाई कहते हैं, "मुझे भरोसा था कि अगर मैंने अपने मन का उत्पाद बना दिया तो मेरे कारोबार को बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. दिमाग में यह बात भी थी कि अगर मैं यहां काम करता हूं तो मुझे अपने काम की चीज सीखने को मिलेगी.

बचपन से ही मेरा इंजीनियरिंग का दिमाग था. घड़ी हो या चाहे कुछ और, उसे पूरा खोलना और उसे फिर से कसने जैसे काम मैं करता रहता था. इसलिए मैंने सिर्फ 60 रुपए की मजदूरी वाला यह काम भी करने का निर्णय लिया. यहां रहते हुए मैंने वेल्डिंग और फैब्रिकेशन के काम में हाथ जमाया और छोटे-मोटे काम खुद करने लगा."

फैक्ट्री में आठ घंटे काम करने के बाद जब साइकिल से वे अपने किराए के कमरे में वापस आते तो फिर अपने उसी सपने से दो-चार होते. उनके मन में यह साफ था कि शुरुआत बुआई को आसान करने से करनी है. अलग-अलग तरह के बीजों की बुआई को लेकर जो भी तकनीक उपलब्ध थी, उन पर किरणभाई ने अध्ययन शुरू किया. इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी उसी साइकिल की पुरानी चेन का इस्तेमाल किया जिससे वे फैक्ट्री जाते थे.

कुछ पार्ट्स लकड़ी और कुछ स्टील से बनाए. इसमें एक पहिया लगाया. ऐसा करके उन्होंने पहली बार मूंगफली की बुआई को आसान करने के लिए एक मशीन का मॉडल खुद ही तैयार किया. इस मशीन को खेतों में जुताई करने वाले बैल के जोड़े से जुड़े हल के पास लगाया जाता था और उससे धीरे-धीरे बीज की बुआई होती थी. वे इस मॉडल को लेकर अपने पिता के पास गए. पिता ने इस मॉडल का परीक्षण किया और भरोसा दिलाया कि ऐक्युरेसी के मामले में इसे बेहतर किया जा सकता है. जब किरणभाई को यह विश्वास जगा कि उनके इस मॉडल में दम है, उन्होंने नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

किरणभाई का मॉडल बाजार में उतारने लायक तो हो गया था मगर मशीन के उत्पादन के लिए पूंजी नहीं थी. पिताजी के पास कोई बचत नहीं थी. फिर उन्होंने अपनी छोटी बहन के पति से बात की. वे किरणभाई के आइडिया में निवेश करने के लिए तैयार हो गए.

लेकिन इसके बाद भी इतने पैसे नहीं थे कि इन मशीनों को बनाने के लिए कोई जगह किराए पर ले सकें. उनके जीजा ने अपने घर से सटी 30 वर्ग मीटर पार्किंग की जगह इसके लिए दे दी, जिसमें किरणभाई ने 14 मशीनें बनाईं. लेकिन किसान इसे खरीदने के लिए तैयार नहीं थे. इसलिए किरणभाई ने ये मशीनें किसानों को उधार में बेचीं.

उन दिनों के अनुभव के बारे में किरणभाई बताते हैं, ''साइकिल वाली चेन मशीन से उतर जाती थी. फिर हमने मोटरसाइकिल की चेन लगाकर प्रयोग किया. कर्ज बढ़ता जा रहा था. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. इसी बीच मुझे कचरे के 300 बड़े डब्बों की सप्लाई का एक काम मिला. यह मेरे लिए टर्निंग पॉइंट था. इससे मेरे पास कुछ पैसे आए और मैंने अपनी मशीन के लिए इनोवेशन की फंडिंग की." लेकिन जब किरणभाई की नई मशीन बनकर तैयार हुई तो भुज का भूकंप आ गया. किसान इससे बहुत प्रभावित हुए और उनकी मशीनें धरी की धरी रह गईं.

समय के साथ स्थितियां सामान्य हुईं और किरणभाई की मशीनों को खरीददार मिलने लगे. लेकिन कारोबार में असली तेजी आनी शुरू हुई 2003 से जब किरणभाई ने ट्रैक्टर से जोड़कर बुआई करने वाली मशीन बनाई. उनकी कंपनी भूमि एग्रो हाइटेक प्राइवेट लिमिटेड आज दो दर्जन से अधिक ऐसी मशीनों का उत्पादन करती है जिनका इस्तेमाल कृषि कार्यों में दक्षता लाने के लिए किया जाता है.

इस कंपनी की उत्पादन इकाई आज कई एकड़ में फैली हुई है. आज कंपनी हर साल 20,000 से अधिक मशीनों का उत्पादन करती है और आठ राज्यों में बेचती है.  किरणभाई गर्व से बताते हैं, "साइकिल की चेन से मैंने इनोवेशन शुरू किया था और आज हमारी कंपनी में देश के चोटी के संस्थानों से पीएचडी करने वाले लोग भी इनोवेशन डिविजन में काम करते हैं."

एक वक्त आर्थिक तंगी की वजह से बहुत कम औपचारिक शिक्षा पाने वाले किरणभाई को जब काम से फुर्सत मिलती है तो उन्हें प्रेरक और मैनेजमेंट की पुस्तकें पढ़ना पसंद है. किरणभाई रतन टाटा के 'एथिकल मैनेजमेंट’ स्टाइल से बेहद प्रभावित रहते हैं और इसे वे अपने कारोबार में अपनाते हैं.

2018 में उन्होंने अपनी कंपनी के लिए 2028 तक का रोडमैप तैयार किया था. इसके तहत उन्होंने 2023 तक के लिए 'सात नए राज्य, सात नए उत्पाद’ का लक्ष्य तय किया था. वे कहते हैं कि कंपनी ने इसे 2022 में ही हासिल कर लिया. वे आज भी अपने मुश्किल वक्त के साथी अपने पिता और जीजा को अपना गुरू मानते हैं. 

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