मालदीव के बदलते माहौल ने भारत के लिए कैसे मुश्किल खड़ी कर दी?

नवनिर्वाचित चीन समर्थक राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के 'इंडिया आउट' अभियान और भारतीय कर्मियों की वापसी की मांग ने नई दिल्ली को चिंतित कर दिया है

केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू 18 नवंबर को माले में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के साथ वार्ता करते हुए
केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू 18 नवंबर को माले में मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के साथ वार्ता करते हुए

एक अक्टूबर को मालदीव की सरकारी प्रसारण सेवा ने मोहम्मद मुइज्जू को निर्वाचित राष्ट्रपति घोषित किया और कुछ ही मिनटों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई देने वाले 'पहले नेता' थे. मोदी ने अपने संदेश में स्पष्ट तौर पर कहा कि उनकी सरकार समय की कसौटी पर खरे उतरे भारत-मालदीव द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूती देने और 'हिंद महासागर क्षेत्र में समग्र सहयोग' बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, ताजा घटनाक्रम भारत के लिए एक सिरदर्द बन गया है. दरअसल, पीपल्स नेशनल कांग्रेस पार्टी के चीन समर्थक मुइज्जू का 'इंडिया आउट' अभियान के साथ मालदीव की सत्ता हासिल करना इन आशंकाओं को बल देता है कि ये द्वीप राष्ट्र चीन की 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' योजना का एक ठिकाना बन सकता है. इस योजना के साथ चीन क्षेत्र में अपना सैन्य और वाणिज्यिक दबदबा कायम करना चाहता है.

मुइज्जू का रुख इससे भी साफ जाहिर है कि उन्होंने 8 अक्टूबर को माले स्थित दूतावास में चीन के राष्ट्रीय दिवस समारोह में भाग लेने के तुरंत बाद घोषणा की, ''मालदीववासी नहीं चाहते कि कोई भी विदेशी सैनिक उनकी जमीन पर मौजूद रहे, चाहे वह भारत का हो या किसी अन्य देश का.'' हालांकि, उन्होंने यह जरूर दोहराया कि भारत के साथ सैन्य सहयोग जारी रहेगा. मोदी नवंबर, 2018 में भारत समर्थक इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने वाले एकमात्र प्रमुख राष्ट्राध्यक्ष थे. इस साल भारत विरोध को चुनावी मुद्दा बनाकर मैदान में उतरे मुइज्जू ने 17 नवंबर को जब शपथ ग्रहण की तो भारत का प्रतिनिधित्व केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरण रिजिजू ने किया. भारत की तरफ से प्रतिनिधित्व स्तर को घटाना एक तरह से मालदीव की नई सरकार के लिए एक संदेश माना जा रहा है.

मालदीव ने भारत से अपने सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का औपचारिक अनुरोध किया है, और 18 नवंबर को रिजिजू से मुलाकात के दौरान मुइज्जू अपने इसी रुख पर अड़े रहे. भारत का कहना है कि दोनों पक्ष इस मामले में 'उपयुक्त समाधान' निकालने की कोशिश करेंगे. नवंबर के आखिरी हफ्ते में अपनी पहली नई दिल्ली यात्रा से पहले मुइज्जू अभी भारतीय अधिकारियों के साथ इस पर चर्चा कर रहे हैं.

मुइज्जू ने इस बात का हौवा खड़ा कर रखा है कि भारतीय सैनिक 'मालदीव की संप्रभुता को क्षति पहुंचा रहे' हैं. उन्होंने 'इंडिया फर्स्ट' राजनैतिक रुख रखने वाले मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता सोलिह को हराने के लिए भी इसी हथियार का इस्तेमाल किया, जबकि पूरा मामला करीब 70 भारतीय सैन्य कर्मियों से जुड़ा है जो मालदीव में नई दिल्ली प्रायोजित रडार स्टेशन और निगरानी विमानों—खासकर पिछले दशक में भारत की तरफ से उपहार में दिए गए डोर्नियर विमान और दो ध्रुव हेलीकॉप्टरों—के रखरखाव और संचालन का जिम्मा संभाल रहे हैं. भारतीय कर्मियों की इस मामूली-सी मौजूदगी को भारतीय सैन्य अड्डे की स्थापना करार देकर मुइज्जू गुट इसे सुरक्षा खतरा बता रहा है. हालांकि, रिजिजू के समक्ष मुद्दा उठाने के दौरान मुइज्जू ने स्वीकार किया कि आपात चिकित्सा स्थितियों में मालदीव के नागरिकों के लिए ये हेलीकॉप्टर और विमान वरदान साबित हुए हैं.

मध्य हिंद महासागर में स्थित लक्षद्वीप के मिनिकॉय से बमुश्किल 70 समुद्री मील और भारत के पश्चिमी तट से लगभग 300 समुद्री मील की दूरी पर स्थित और पूर्व और पश्चिम में वाणिज्यिक समुद्री मार्गों तक फैला यह द्वीप-राष्ट्र माले के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले भारत के लिए रणनीतिक तौर पर खासी अहमियत रखता है. ऐसे में मुइज्जू का 'भारत विरोधी' रुख हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के साथ जारी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के लिहाज से भारत के लिए एक झटका है. चीन ने हाल में माले में अपना दखल बढ़ाया है.

2008 में मालदीव के बहुदलीय लोकतंत्र में बदलने के बाद से उसका झुकाव बीजिंग की तरफ बना रहा है. बीजिंग से निकटता के साये में मालदीव और नई दिल्ली के संबंधों ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. मोहम्मद नशीद के राष्ट्रपति काल (2008-12) में समय की कसौटी पर खरी 'इंडिया फर्स्ट' नीति और मजबूती हुई. लेकिन मोहम्मद वहीद के राष्ट्रपति बनने (2012-2013) के बाद मालदीव ने 2012 में माले हवाईअड्डे के निर्माण के लिए भारतीय कंपनी जीएमआर का अनुबंध रद्द कर दिया और चीन से दोस्ती गांठनी शुरू कर दी.

नशीद के उत्तराधिकारी अब्दुल्ला यामीन (2013-2018) के शासनकाल में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने, बुनियादी ढांचे पर चीन के साथ करार और एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने जैसे कदमों के साथ इस देश ने चीन के साथ अपने संबंधों का दायरा काफी व्यापक बना लिया. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत ने मालदीव को सहायता का अपना कार्यक्रम बदस्तूर जारी रखा. इसमें रक्षा सहयोग और मानवीय सहायता से लेकर बुनियादी ढांचे का निर्माण तक सब कुछ शामिल था. सोलिह के कार्यकाल (2018-2023) में भारत-मालदीव संबंध और इस देश में भारतीय निवेश उच्च स्तर पर पहुंच गया. एक अनुमान के मुताबिक भारतीय सहायता 1,000 करोड़ रुपए को पार कर गई है. 2021 में भारत ने रक्षा परियोजनाओं के लिए मालदीव को पांच करोड़ डॉलर (416 करोड़ रुपए) का कर्ज दिया.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के वरिष्ठ रिसर्च फेलो डॉ. हर्ष पंत कहते हैं कि मुइज्जू की भारत विरोधी मानसिकता को देखते हुए उनके हालिया बयान ज्यादा हैरान नहीं करते. लेकिन वहां भारतीयों की उपस्थिति नगण्य है.

भारतीय नौसेना में विदेशी सहयोग मामलों के पूर्व प्रमुख रियर एडमिरल सुदर्शन श्रीखंडे का कहना है कि भारतीय सैन्यकर्मी मेजबान (मालदीव) सरकार के साथ मिलकर विभिन्न कार्यों को अंजाम देने में लगे हैं. वे कहते हैं, ''मालदीव ने इस तरह के सहयोग को तवज्जो दी है और हमारी छोटी-छोटी टुकड़ियां एकदम पारदर्शी ढंग से वहां मौजूद हैं.''

बहरहाल, मालदीव में चीन की बड़ी भूमिका को लेकर सशंकित भारतीय सैन्य योजनाकारों ने आगे की रणनीति के लिहाज से अपने विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया है. कोच्चि स्थित दक्षिणी नौसेना कमान के पूर्व प्रमुख वाइस एडमिरल अनिल कुमार चावला कहते हैं, ''मालदीव को भारत की तरफ से संपूर्ण समुद्री समर्थन मिलता है. अब खतरा यह है कि अगर भारत इसे वापस ले लेता है और इस पर कोई और कब्जा कर लेता है, तो हालात नई दिल्ली के पक्ष में नहीं रहेंगे.''

रक्षा सहयोग
खूबसूरत समुद्री तटों और हॉलीडे रिजॉर्ट्स के लिए ख्यात मालदीव भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के सबसे बड़े लाभार्थियों में एक है. दोनों देशों के बीच 1988 में शुरू हुआ रक्षा सहयोग अब कई गुना बढ़ चुका है. माले अच्छी तरह जानता है कि वह अपने विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड)—यानी उसके संप्रभु अधिकार वाला समुद्र का करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र—में तस्करी, स्मगलिंग और समुद्री डकैती को रोकने में कितना सक्षम है और अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए नई दिल्ली पर आश्रित है. नशीद के राष्ट्रपति कार्यकाल में भारत और मालदीव ने एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसने भारतीय सहायता की राह खोली. इसके तहत सैन्य अस्पताल बनाने के अलावा, रडार और ध्रुव हेलीकॉप्टर मुहैया कराना शामिल है. चीन समर्थक यामीन शासन के दौरान भी रक्षा संबंध आगे बढ़े. नई दिल्ली के लिए मालदीव से नजदीकी रिश्तों का एक उद्देश्य चीनी दबदबे को रोकना भी रहा है.

बुनियादी ढांचा और सैन्य हार्डवेयर उपलब्ध कराने के अलावा दोनों देश मालदीव के ईईजेड के संयुक्त अभ्यास, गश्त और निगरानी में भी शामिल हैं. भारत चिकित्सा प्रशिक्षण, आपदा प्रतिक्रिया सहायता, खोज और बचाव कार्यों में सहायता, हाइड्रोग्राफिक मैपिंग और समुद्री क्षेत्र की निगरानी में भी मदद करता है. मालदीव को निगरानी के लिए उपलब्ध कराए डोर्नियर विमान के संचालन के लिए प्रशिक्षित पायलट, पर्यवेक्षक और इंजीनियर भी भेजे गए हैं.

2007 के बाद से भारत ने इसके द्वीपों पर 10 तटीय निगरानी रडार स्थापित किए हैं; विस्तारित तटीय निगरानी रडार प्रणाली (सीएसआरएस) इन रडार से मिली सूचनाएं एकत्रित करेगी. यह सिस्टम 1.58 करोड़ डॉलर (131 करोड़ रुपए) के भारतीय अनुदान से लगाया गया है. सीएसआरएस डेटा भारत के अंतरराष्ट्रीय म्यूजन सेंटर में फीड किया जाएगा और श्रीलंका, मॉरिशस और सेशेल्स में स्थापित समान सिस्टम से जोड़ा जाएगा. 2022 में सीएसआरएस सौंपने के लिए मालदीव का दौरा करने वाले विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने तब कहा था कि इससे पूरे क्षेत्र की सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिलेगी और यह भारत की 'सागर' (सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) योजना और नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का एक उदाहरण है.

मई 2023 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने माले का दौरा किया और मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) को एक फास्ट पैट्रोल वेसल और एक लैंडिंग क्राफ्ट असॉल्ट जहाज सौंपा. साथ ही उन्होंने एक द्वीप 'उथुरु थिला फाल्हू' (यूटीएफ) में एकथा हार्बर के निर्माण की आधारशिला भी रखी. वहीं, तेज गति से तटीय और अपतटीय निगरानी करने में सक्षम गश्ती जहाज को एमएनडीएफ तटरक्षक जहाज हुरावी के तौर पर शामिल किया गया. एकथा हार्बर मालदीव में भारत की सबसे बड़ी अनुदान सहायता परियोजनाओं में से एक है. भारत बंदरगाह के विकास और रखरखाव में मदद करेगा और इसके पूरा होने पर 15 वर्षों तक तकनीकी/लॉजिस्टिकल सहायता प्रदान करेगा. यह एमएनडीएफ को अपने तट रक्षक जहाजों को डॉक करने और उनकी मरम्मत करने में भी सक्षम बनाएगा.

हिंद महासागर स्थित मालदीव रणनीतिक रूप से काफी अहम है. यह ऐसा इलाका है जहां भारत और चीन दोनों अपना दबदबा चाहते हैं. इसका क्षेत्रफल सिर्फ 300 वर्ग किमी है और आबादी लगभग 4,80,000 है. यह उत्तर से दक्षिण तक चलने वाली 960 किमी लंबी पनडुब्बी रिज में फैला है, जो हिंद महासागर के बीच में एक दीवार बनाती है. इस द्वीप राष्ट्र के दक्षिणी भाग में सिर्फ दो मार्ग हैं जहां से जहाज सुरक्षित रूप से गुजर सकते हैं. ये समुद्री मार्ग पश्चिम एशिया में अदन की खाड़ी और होर्मुज की खाड़ी और दक्षिण पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार के लिए खासे महत्वपूर्ण हैं. हिंद महासागर वैश्विक व्यापार और ऊर्जा का राजमार्ग है, और मालदीव इसके केंद्र में एक द्वारपाल की तरह खड़ा है. मौजूदा स्थिति के मुताबिक, मालदीव की कनेक्टिविटी और 90,000 वर्ग किमी में फैले 1,100 द्वीपों पर नियंत्रण के लिए भारत से सैन्य और रसद सहायता खासी मायने रखती है.

2011 में माले में अपना दूतावास खोलने के बाद से चीन मालदीव में पहुंच बढ़ा रहा है. 2014 में मालदीव मैरीटाइम सिल्क रूट (एमएसआर) परियोजना, बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के साथ जुड़ा और 1.6 करोड़ डॉलर की चीनी सहायता प्राप्त की. 2017 में इसने बीजिंग के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता किया. 2018 तक बीजिंग ने मालदीव के मुख्य अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे के 3,400 मीटर के नए रनवे सहित एक बड़े अपग्रेड को अंजाम दिया और माले को हुलहुमले द्वीप से जोड़ने वाला नया पुल भी बनाया. हालांकि, 2018 तक विकास परियोजनाओं के लिए चीनी ऋणों के पुनर्भुगतान से माले पर लगभग 1.5 बिलियन डॉलर का कर्ज चढ़ गया, जो 9 बिलियन डॉलर से कम जीडीपी वाले देश के लिए एक बड़ा आंकड़ा है. चीन के पूर्व विदेश मंत्री वांग यी ने जनवरी, 2022 में माले का दौरा किया. तब दोनों देशों ने आवास परियोजनाओं और वेलाना अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे को अपग्रेड करने जैसे सहयोग को मजबूत करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए. चीन की मालदीव में बेसिंग (सैन्य संचालन केंद्र) सुविधाएं प्राप्त करने में काफी दिलचस्पी है. द्विपक्षीय व्यापार में चीन तेजी से भारत की बराबरी कर रहा है. 2021 में मालदीव को चीनी निर्यात 3,290 करोड़ रुपए था जबकि भारत के मामले में यह 3,465 करोड़ रुपए था.

मानवीय सहायता
किसी भी संकट के समय मालदीव की मदद करने वाला पहला देश भारत ही रहा है. 3 नवंबर, 1988 को तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम के अनुरोध पर तख्तापलट की कोशिश नाकाम करने के लिए ऑपरेशन कैक्टस के तहत भारतीय सेना ने दखल दिया. वहीं, 2004 में आई सुनामी के वक्त मालदीव की जरूरतें पूरी करने वाला पहला देश भारत ही था; 2020 में राष्ट्रीय आपदा से बचाने के लिए खसरा और रूबेला के 30,000 टीके उपलब्ध कराए. 2014 में यामीन के राष्ट्रपति रहने के दौरान मालदीव को भीषण जल संकट का सामना करना पड़ा जब उसके एकमात्र जल संयंत्र में आग लग गई. भारतीय विमानों और नौसैनिक जहाजों ने माले को 2,000 टन से अधिक पानी उपलब्ध कराया. जबकि चीन की तरफ से मदद पहुंचने में हफ्तों लग गए. 

भारतीय सेना चिकित्सा निकासी के लिए अपने द्वीपों के बीच हवाई संपर्क के जरिये अक्सर मालदीव की सहायता करती रही है. रियर एडमिरल श्रीखंडे कहते हैं, ''जनवरी, 2019 से 2023 के मध्य 470 मेड-इवैक (चिकित्सा निकासी) उड़ानों ने 495 लोगों की जान बचाने में मदद की. डोर्नियर और हेलिकॉप्टरों ने अवैध ढंग से मछलियां पकड़ने और नशीले पदार्थों का कारोबार रोकने के लिए ईईजेड की गश्त समेत 430 निगरानी उड़ानें भरी हैं.''

आगे की राह
भारतीय रणनीतिकारों का मानना है कि चूंकि मुइज्जू ने अपनी पारी की शुरुआत ही भारत विरोधी बयानबाजी के साथ की है, इसलिए सार्वजनिक तौर पर अपने रुख से पलटना उनके लिए थोड़ा मुश्किल होगा. लेकिन जमीनी स्तर पर शासन चलाने के दौरान मालदीव के रक्षा और रणनीतिक भागीदार के तौर पर भारत की भूमिका को नजरअंदाज करना मूर्खतापूर्ण होगा.

पंत की राय है कि अगर भारतीय सैनिक मालदीव छोड़ते हैं तो प्रतीकात्मक तौर पर एक सीमित अवधि के लिए इसे चीन के लिए लाभ के तौर पर देखा जाएगा. लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि दीर्घकालिक स्तर पर व्यापक भारत-मालदीव सुरक्षा संबंधों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. यामीन ने अपने भारत विरोधी रुख के बावजूद नई दिल्ली के साथ रक्षा संबंध बरकरार रखे थे. पंत कहते हैं, ''यह कहा जा सकता है कि मालदीव में आर्थिक और सैन्य दोनों मामलों में भारत की स्थिति काफी मजबूत है. मालदीव के लिए भारत जितना मायने रखता है, उसे देखते हुए चीन कभी भारत को उसकी जगह से हिला नहीं सकता.''

इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (पॉलिसी प्लानिंग ऐंड फोर्स डेवलपमेंट) के पूर्व उपप्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अनिल आहूजा का मानना है कि चूंकि मालदीव में भारतीय सेना का कोई अग्रिम ठिकाना नहीं है, इसलिए भारतीय सैनिकों को वहां से हटाने का मुद्दा रणनीतिक के बजाए राजनैतिक ही ज्यादा लगता है. लेफ्टिनेंट आहूजा कहते हैं, ''सैन्य कर्मियों की वापसी की घड़ी में भी भारत सूचनाएं साझा करने अथवा किसी अन्य व्यवस्था के माध्यम से मालदीव को हिंद महासागर सूचना तंत्र में शामिल करके अपनी सुरक्षा और समुद्री क्षेत्र से जुड़ी सूचना क्षमता बनाए रखने में कोई गुरेज नहीं करेगा.'' साथ ही वे यह भी जोड़ते हैं कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मालदीव रणनीतिक तौर पर हमारे निकट पड़ोसी की स्थिति रखता है.

मुइज्जू के चुने जाने के संदर्भ में जब मालदीव के कुछ राजनेताओं की राय जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने भारत-मालदीव संबंधों पर कोई टिप्पणी करने से विनम्रतापूर्वक इनकार कर दिया. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि मालदीव में राजनैतिक स्थिति अभी बहुत नाजुक है और दोनों देशों की सरकारें अपने मतभेदों को दूर करने की कोशिशों में लगी हैं.

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