विशेषांकः दूरदर्शी सेनापति
सुंदरजी ने सेना के जंगी लोकाचारों को नए रंग-ढंग में ढाला और वे शुरुआती परमाणु सिद्धांत का मसौदा तय करने वाले चुनिंदा समूह में शामिल थे.

75वां स्वतंत्रता दिवस विशेषांक-पथप्रवर्तक / प्रतिरक्षा
जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी (1928-1999)
लेफ्टिनेंट जनरल एस.एस. मेहता (सेवानिवृत्त)
जनरल कृष्णास्वामी सुंदरजी से मैं पहली बार अंबाला में मिला. मैं मेजर था और वे 1 आर्मर्ड डिविजन में सैंड मॉडल पर चर्चा कर रहे थे. उन्होंने मेरी राय पूछी तो मैंने कहा कि जिस योजना पर बात हो रही है, वह कारगर नहीं होगी और अपने कारण बताए. उनका जवाब: ''रणकौशल में सही या गलत कुछ नहीं होता.
असल जवाब तो लड़ाई में ही निकलकर आता है.’’ कई अफसरों को तब लगा कि मेरे जवाब का मतलब था मेरा सैन्य करियर खत्म हो गया. लेकिन मैं हैरान रह गया जब एक पखवाड़े बाद सुंदरजी के दफ्तर से फोन आया और मुझसे 33वीं कोर में, जहां वे पदोन्नत होकर आए थे, उनके निजी स्टाफ में आने के लिए पूछा गया. बाद में जब वे सेना प्रमुख बने तो मैं उनका सैन्य सहायक था.
जनरल सुंदरजी विचार, वचन और कर्म से सैनिक के सांचे में ढले थे. उनका दिमाग चुस्त व फुर्तीला और स्वभाव जिज्ञासु था. सैद्धांतिक और सामरिक दोनों सैन्य मामलों में उन्हें यथास्थिति से नफरत थी. वे हाजिरजवाब और सहज-सरल स्वभाव के थे.
सेना प्रमुख के नाते उन्होंने जो बदलाव शुरू किए, मसलन तेजी से लामबंदी और हमले के लिए मशीनीकरण, सैन्य विमानन, स्वतंत्र वायु रक्षा शाखा, कमांड और स्टाफ वर्ग, शिकायत सलाहकार बोर्ड और सीमित परमाणु भयप्रतिरोधक, सब समय की कसौटी पर खरे उतरे.
उन्होंने सेना को हमेशा नए ढंग से सोचने के लिए उकसाया. अनुष्ठान गौण और सामरिक सोच तथा उस पर अमल प्रमुख हो गए. इससे सेना की मानसिकता में बदलाव आना शुरू हुआ. जनरल सुंदरजी को 'विचारशील जनरल’ माना जाता था, पर वे उससे कहीं ज्यादा थे. सबके लिए वे 'हमारे प्रमुख’ थे. ठ्ठ
लेफ्टिनेंट जनरल एस.एस. मेहता (सेवानिवृत्त) पूर्व वेस्टर्न आर्मी कमांडर रह चुके हैं.