GDB सर्वे : नागरिक व्यवहार के मामले में देश का सबसे आदर्श राज्य कौन है?
नागरिकों के आचरण और बर्ताव के पैमाने पर देश भर के राज्यों में गहरा विरोधाभास देखने को मिला. कुछ राज्य अपने दीन-ईमान और जिम्मेदारियों को लेकर खासे दृढ़प्रतिज्ञ दिखे, जबकि दूसरी ओर कुछ राज्य भ्रष्टाचार और अनैतिकता के ऊहापोह में गोते लगाते दिखे

सभ्य आचार-व्यवहार ही समाज को बांधे रखने का माध्यम है. इसी से रोजमर्रा का लोकाचार तय होता है, जिससे सार्वजनिक जीवन की गुणवत्ता पता चलती है. सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान करने, संकट के समय मदद का हाथ बढ़ाने जैसे लोगों के तौर-तरीके ही राष्ट्र के सामूहिक चरित्र को प्रकट करते हैं.
इंडिया टुडे सकल घरेलू व्यवहार जनमत सर्वेक्षण में करीने से तैयार किए गए 12 सवालों के जरिए ईमानदारी, सामाजिक जिम्मेदारी और नागरिक मानदंडों के पालन के प्रति लोगों का नजरिया मापने की कोशिश की गई है.
इसके नतीजों से विभिन्न राज्यों में लोगों के आचार-व्यवहार की जटिल रूपरेखा के साथ सार्वजनिक आचरण में उत्साहजनक प्रवृत्तियां और चिंताजनक असमानताएं दोनों जाहिर होती हैं. तमिलनाडु नागरिक व्यवहार के मामले में आदर्श बनकर उभरा है, जिसे नंबर 1 रैंक हासिल हुई है, उसके बाद पश्चिम बंगाल और ओडिशा का स्थान है, जबकि पंजाब सबसे निचले पायदान यानी 22वें स्थान पर है. यह साफ अंतर हमारी अपनी नागरिक जिम्मेदारियों को निभाने के तरीके में क्षेत्रीय भिन्नताओं को रेखांकित करता है.
नतीजे कुछ मामलों में काफी उत्साहजनक तस्वीर भी पेश करते हैं. मसलन, 87 फीसद लोगों ने बिजली मीटरों से छेड़छाड़ का विरोध किया, 86 फीसद ने सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ा या गंदगी फैलाने को गलत बताया और 85 फीसद ने बस-ट्रेन में बिना टिकट यात्रा का विरोध किया. इससे पता चलता है कि लोग सामाजिक आचरण के आदर्शों को बहुत अच्छे से जानते-समझते हैं, भले ही उनका व्यवहार या तौर-तरीके हमेशा उसके मुताबिक न हों.
फिर भी निजी हित नैतिक विचारों से टकराते हैं तो ईमानदारी कमजोर पड़ जाती है. 61 फीसद ने माना कि वे नौकरशाही से जल्दी कामकाज कराने के लिए घूस देने को तैयार हैं. इस मामले में उत्तर प्रदेश की छवि सबसे कमजोर रही है. सार्वजनिक जिम्मेदारी के मामले में भी क्षेत्रीय विरोधाभास स्पष्ट दिखाई देते हैं. मसलन, परोपकार के मामले में पश्चिम बंगाल में 99 फीसद ने कहा कि वे दुर्घटना के शिकार व्यक्ति की मदद करने के लिए रुकेंगे, लेकिन यह आंकड़ा ओडिशा में गिरकर 22 फीसद हो गया.
कुल मिलाकर, सर्वेक्षण के ये नतीजे ऐसे देश की ओर इशारा करते हैं जो बदलाव के दौर से गुजर रहा है, जहां सामुदायिक सहायता के पारंपरिक मूल्य डिजिटल शासन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति विकसित होते नजरिए के साथ मौजूद हैं, फिर भी भ्रष्टाचार और कर चोरी की चुनौतियां नीति-निर्माताओं और लोगों दोनों से समान तवज्जो की मांग करती हैं.
नागरिक आचरण में जागरूकता और विरोधाभास दोनों का मेल दिखता है. व्यक्तिगत तौर पर लोग सार्वजनिक जिम्मेदारी की बात को स्वीकारते हैं लेकिन खुद के फायदे या सहूलत के लिए उन्हीं मूल्यों के पालन में वे अक्सर लड़खड़ाने लगते हैं.
सभ्य नागरिक आचरण के मामले में क्षेत्रीय दृष्टि से काफी फासला पाया गया. इससे जाहिर हुआ कि व्यापक कल्याण के लिए कदम उठाने की लोगों में चाहत विकसित होने के मामले में आसपास के सामाजिक परिवेश, स्थानीय शासन और सामुदायिक संस्कृति का कितना बड़ा हाथ होता है.