मारुति 800 : 'जनता की कार' कैसे बनी देश में ऑटो क्रांति की अगुआ?

देश में कार खरीदने को नितांत लोकतांत्रिक बनाने वाली इस छोटी-सी मारुति 800 कार ने भारत के ऑटोमोटिव उद्योग का चेहरा बदल दिया

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी (सबसे बाएं) और सुजुकी के चेयरपर्सन ओ. सुजुकी दिसंबर 1983 में नई दिल्ली में मारुति 800 कार के साथ
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी (सबसे बाएं) और सुजुकी के चेयरपर्सन ओ. सुजुकी दिसंबर 1983 में नई दिल्ली में मारुति 800 कार के साथ

आजादी के बाद के सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था के कायापलट को कम ही क्षेत्र उतने जोरदार ढंग से दिखा सकते हैं जितना ऑटोमोटिव उद्योग. यहां तक कि आजादी से पहले के सालों में भी प्राथमिक रूप से अमीरों के लिए कारों का आयातक होने से हटकर भारत ने हिंदुस्तान मोटर्स, प्रीमियर ऑटो, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा और टेल्को के रूप में बड़े घरेलू उद्यम देखे थे.

अलबत्ता, जापान के सुजुकी मोटर कॉर्पोरेशन के साथ मारुति उद्योग के संयुक्त उपक्रम के जरिए 1983 में मारुति 800 के आने तक भारत की ऑटो क्रांति ने अंगड़ाई नहीं ली थी. उसके बाद 1991 के औद्योगिक सुधारों ने ऑटोमोटिव के उत्पादन और बिक्री को और बढ़ावा दिया.

मारुति ऐसी परियोजना थी जो तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिल के करीब थी—उनके बेटे संजय गांधी ने कारों के कारोबार में हाथ आजमाया था और नाकाम रहे थे, और बाद में एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया. अध्यक्ष के रूप में वी. कृष्णमूर्ति और सेल्स तथा मार्केटिंग डायरेक्टर के रूप में आर.सी. भार्गव के साथ मारुति उद्योग की स्थापना 1981 में हुई.

भार्गव उस कंपनी के चेयरमैन बने हुए हैं जो अब मारुति सुजुकी हो गई है. पार्टनर के लिए उनकी नजरें दइहात्सु पर टिकी थीं, पर सुजुकी ने मौका झपट लिया. मारुति 800 के जन्म के साथ कार का मालिक होने का मतलब विलासिता की वस्तु से निजी आवागमन के लिए अनिवार्य साधन में बदल गया. कम कीमत, फ्लोर शिफ्ट गियर्स और बकेट सीट सरीखी नवीनताओं, और कार की विश्वसनीयता ने इसे 'जनता की कार’ में बदल दिया.

1991 में आर्थिक उदारीकरण के साथ ऑटो उद्योग में 100 फीसद एफडीआई की इजाजत दी गई. इसने नई टेक्नोलॉजी और मॉडलों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया, जिससे मांग ने और जोर पकड़ा. मर्सिडीज बेंज, जनरल मोटर्स, टोयोटा, फोर्ड, स्कोडा और फॉक्सवैगन सहित दिग्गज वैश्विक कंपनियां बड़ी तादाद में भारतीय बाजार में दाखिल हुईं.

1980 में महज 30,000 कारों की बिक्री से भारत में सवारी वाहनों की सालाना बिक्री वित्त वर्ष 2023-24 में 42.3 लाख इकाइयों पर पहुंच गई. कुल मिलाकर भारत ने सवारी और व्यावसायिक वाहनों और दोपहियों सहित 2.32 करोड़ से ज्यादा वाहनों का उत्पादन किया. हाल के वक्त में यूटिलिटी वीहिकल्स की बिक्री ने कई दशकों से पसंदीदा रही हैचबैक कारों की बिक्री को पीछे छोड़ दिया.

यही रुझान 1980 और 1990 के दशकों में दोपहिया वाहनों में मामले में भी देखा गया. जहां बजाज ऑटो की अगुआई में स्कूटरों और टीवीएस की मोपेड का बोलबाला हुआ करता था, हीरो होंडा, कावासाकी बजाज, इंड-सुजुकी (टीवीएस मोटर और सुजुकी के हाथ मिलाने से जन्मी) और यामहा की 100 सीसी की मोटरसाइकिलें लॉन्च होने के साथ दोपहिया बाजार में जबरदस्त उछाल आई.

भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा दोपहिया बाजार है, जहां वित्त वर्ष 2023-24 में 1.8 करोड़ यूनिट बिकीं. अक्तूबर 2024 में होंडा मोटरसाइकिल और स्कूटर इंडिया 28 फीसद बाजार हिस्सेदारी के साथ देश के सबसे बड़े दोपहिया निर्माता के रूप में उभरे. हीरो मोटोकॉर्प, टीवीएस मोटर, बजाज ऑटो और सुजुकी मोटरसाइकिल इंडिया बिक्री के लिहाज से अन्य शीर्ष दोपहिया निर्माता थे.

बदलता गियर

● मारुति 800 ने भारत में आवागमन को विलासिता के बजाए जरूरत बनाकर कार की मिल्कियत के मायने बदल दिए.

● सुजुकी के साथ मारुति के संयुक्त उद्यम ने, जिसमें जापानी टेक्नोलॉजी को भारत के कम लागत वाले उत्पादन से जोड़ा गया, दूसरी ऑटो भागीदारियों को भी प्रेरित किया, जिनमें टोयोटा-किर्लोस्कर का संयुक्त उद्यम भी है.

● उदारीकरण ने ऑटो सेक्टर को प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया, जिससे कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां आईं.

● अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाले नए और उन्नत उत्पाद भारतीय बाजार में आने लगे हैं.

672,105 यूनिट

सवारी वाहन वित्त वर्ष 2024 में भारत से निर्यात किए गए, जिनमें मारुति के 2,80,712 और हुंडई के 1,63,155 वाहन शामिल थे.

क्या आप जानते हैं?

मारुति ने 2023 में 20 लाख से अधिक वाहन बेचे और यह उपलब्धि उसने पहली बार हासिल की.

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