एसएलवी-3: अंतरिक्ष में भारत का दखल

भारत 1980 में एसएलवी-3 के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण ने भारत के अंतरिक्ष की एक ताकत बनकर उभरने का रास्ता खोला और इसके साथ ही हमारे सौर मंडल की बेहद गहराई तक खोज करने की यात्रा शुरू हुई

श्रीहरिकोटा रेंज से 18 जुलाई, 1980 को आरएस-1 के साथ रवाना होता एसएलवी-3
श्रीहरिकोटा रेंज से 18 जुलाई, 1980 को आरएस-1 के साथ रवाना होता एसएलवी-3

भारत ने अंतरिक्ष में पहला कदम 1975 में सोवियत संघ के प्रक्षेपण यान से अपने उपग्रह आर्यभट्ट को प्रक्षेपित करने के साथ रखा था. मगर किसी भी देश को उपग्रहों को प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष में अपनी यात्रा शुरू करने के लिए सबसे पहले तो खुद का रॉकेट विकसित करने की जरूरत पड़ती है.

इसलिए, 18 जुलाई, 1980 को स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 (एसएलवी-3) की सफलता ने वास्तव में एक नए युग की शुरुआत की. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की ओर से डिजाइन किए गए एसएलवी-3 ने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाले गिने-चुने देशों की कतार पर खड़ा कर दिया. इसने न केवल भारत की अपने प्रक्षेपण यान डिजाइन करने और बनाने की क्षमता को दर्शाया, बल्कि अधिक उन्नत प्रक्षेपण यानों के विकास की आधारशिला भी रखी. एसएलवी-3 मिशन ने इसरो को वैश्विक अंतरिक्ष समुदाय में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया.

एसएलवी-3 एक पूर्णतया चार चरणीय ठोस ईंधन संचालित प्रक्षेपण यान था जिसका वजन 17 टन था. यह पृथ्वी की निचली कक्षा में 40 किलोग्राम वर्ग के उपग्रह को स्थापित करने में सक्षम था. 1980 के उस अहम दिन को प्रक्षेपण यान ने रोहिणी उपग्रह (आरएस-1) को कक्षा में स्थापित किया था. एसएलवी-3 को प्रक्षेपण के लायक बनाने में करीब सात साल लगे.

इसके लिए प्रोपलेंट, प्रोपल्शन, वैमानिकी आदि क्षेत्रों से जुड़े बुनियादी ढांचे का निर्माण करना जरूरी था और यह समयबद्ध परियोजनाओं के जरिए हासिल किया गया. इसी प्रकार रॉकेट को प्रक्षेपित करने के बाद उसके मार्ग का निर्धारण करने संबधी अध्ययन, नियंत्रण प्रणाली और रॉकेट मोटर डिजाइन तथा लूप सिमुलेशन के लिए सॉफ्टवेयर विकास में बड़ी प्रगति हुई. कुल मिलाकर एसएलवी-3 को प्रक्षेपित करने में कुल 44 प्रमुख कार्यात्मक उप-प्रणालियों का सहयोग लिया गया.

सबसे अहम यह है कि एसएलवी-3 ने अधिक परिष्कृत प्रक्षेपण वाहनों के विकास का रास्ता खोला जो अधिक भार ले जाने में सक्षम थे. एसएलवी-3 के बाद 1992 में संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) आया और इसके बाद इसरो के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों ने उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने में सक्षम ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) पर काम शुरू किया. पीएसएलवी 1994 में पहले सफल प्रक्षेपण के बाद से भारत का विश्वसनीय और बहुआयामी प्रक्षेपण यान बना हुआ है.

पीएसएलवी के प्रदर्शन ने इसे विश्वस्तर पर सबसे भरोसेमंद अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान के तौर पर ख्याति दिलाई और इसरो को भारतीय धरती से विदेशी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के आकर्षक उद्योग में प्रवेश करने में सक्षम बनाया. भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) शृंखला के यान का पहला परीक्षण 2001 में किया गया. यह भूस्थिर कक्षा में भारी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में भारत की अहम सफलता का प्रतीक है.

प्रक्षेपण यान के साथ-साथ उपग्रहों को भी विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए इसरो ने खुद को विभिन्न उपग्रहों को डिजाइन करने, बनाने और संचालित करने में सक्षम बनाया. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम 1980 के दशक में शुरू हुआ और दुनियाभर में कम लागत और स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास के एक 'आदर्श’ के तौर पर इसने खासी सराहना हासिल की. कुल मिलाकर ये परियोजनाएं विकासशील राष्ट्र की जरूरतों के प्रति अपनी गहरी संवेदनशीलता तथा इसके वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की क्षमता की राष्ट्रव्यापी सराहना के कारण खासी विशिष्ट रही हैं.

क्या आप जानते हैं?

प्रथम अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष विक्रम साराभाई ने 21 नवंबर, 1963 को केरल में मछुआरों के गांव थुम्बा में एक प्रायोगिक रॉकेट के परीक्षण के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की. इसे प्रक्षेपण स्थल तक बैलगाड़ी में ले जाया गया था.

रॉकेट साइंस

● 1982 में एसएलवी-3 के जरिए पहला बहुउद्देशीय संचार उपग्रह इनसैट-1ए प्रक्षेपित हुआ, 1983 में इनसेट-1बी उपग्रह का प्रक्षेपण
● 1992 में एएसएलवी का पहला सफल प्रक्षेपण हुआ
● 1997 में पीएसएलवी प्रक्षेपित, जिसकी मदद से आइआरएस-1डी उपग्रह कक्षा में स्थापित हुआ
● 2000 में जीएसएलवी-डी1 का उपग्रह जीसेट-1 के साथ प्रक्षेपण
● 2017 में पीएसएलवी ने एक ही उड़ान में 104 उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करके विश्व रिकॉर्ड बनाया

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