कभी देश में सालाना 2 लाख बच्चे होते थे पोलियो के शिकार; फिर कैसे मिली इस खतरनाक वायरस पर जीत?

1980 के दशक में हर साल भारत में 2 लाख से ज्यादा पोलियोमाइलाइटिस के केस सामने आते थे. इस खतरनाक बीमारी के खात्मे के लिए 1995 में भारत सरकार ने पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान चलाया.

पोलियो की जंग दिल्ली के एक अस्पताल में 9 दिसंबर, 1995 को एक बच्चे को पोलियो ड्रॉप पिलाती नर्स

भारत उन चार देशों में शामिल था, जहां 1980 के दशक में पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करने वाली और उन्हें स्थायी विकलांगता का शिकार बनाने वाली खतरनाक बीमारी पोलियोमाइलाइटिस स्थानीय महामारी बन गई थी. इसकी वजह से हर साल 2,00,000 मामले सामने आते थे.

नाइजीरिया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान अन्य तीन देश थे, जहां यह संकट बड़े पैमाने पर फैला हुआ था. नर‌सिंह राव सरकार ने 1995 में पल्स पोलियो टीकाकरण अभियान शुरू किया. निरंतर और विभिन्न स्तरों पर प्रयास और एक सफल टीकाकरण कार्यक्रम ने इस वायरस को भारत से बाहर खदेड़ दिया.

देश में पोलियोवायरस का आखिरी मामला 14 साल पहले 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में सामने आया. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन साल तक एक भी मामला सामने नहीं आने के बाद 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हमला बोलकर बुरी तरह से पंगु बना देने वाला यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे को मल या मुंह के जरिए संक्रमित करता है.

साफ-सफाई की कमी, गरीबी और रहने-सहने की भीड़भाड़ वाली जगहों की वजह से भारत में पोलियो को खत्म करना आसान नहीं था. दुर्गम इलाकों, घुमंतू समुदायों के बीच इस बीमारी को ट्रैक करने की कोशिश के साथ ही टीका लगवाने में कुछ लोगों की हिचकिचाहट ने इसे और भी मुश्किल बना दिया था. जब तक एक भी बच्चा संक्रमित है, तब तक इस बीमारी को खत्म नहीं माना जा सकता.

भारत ने बड़े पैमाने पर अपना पहला टीकाकरण अभियान 2 अक्तूबर, गांधी जयंती, 1994 को दिल्ली में शुरू किया. अगले साल से इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया गया. इस कार्यक्रम के तहत एक ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) 10 लाख से ज्यादा बच्चों तक पहुंचनी थी. मगर बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान, जिसमें एक बार में 20 लाख से ज्यादा टीका लगाने वालों की जरूरत थी, हर घर तक पहुंच गया.

सरकार और डब्ल्यूएचओ ने 1997 में भारत में पोलियो के मामलों की रिपोर्टिंग की निगरानी के लिए राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना (एनपीएसपी) की शुरुआत की. ज्यादातर वित्त पोषण और संसाधन भी दो राज्यों—उत्तर प्रदेश और बिहार—में लगाए गए, जो देश में इस बीमारी का गढ़ बन गए थे.

सरकार ने 2017 में पोलियो उन्मूलन के फायदों को समेकित करने के लिए अपने टीकाकरण कार्यक्रम में निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आइपीवी) को भी पेश किया. यकीनन मुगालते की कोई गुंजाइश नहीं है. अभी अगस्त में ही मेघालय में एक बच्चे को वैक्सीन से पोलियो हो जाने का मामला सामने आया था.

अगर दुनिया पोलियो को खत्म करना चाहती है तो लगातार निगरानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. इस संकट को खत्म करने के लिए भारत की कोशिश से कई ऐसे निष्कर्ष निकले हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता. एक बात यह कि इसने सरकारी स्वास्थ्य सेवा, स्वास्थ्यकर्मियों और टीकों पर लोगों का भरोसा मजबूत किया. यह कार्यक्रम इसकी भी मिसाल है कि कैसे गैर-सरकारी ऐक्टर्स सरकार के साथ मिलकर सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की योजना बनाने से लेकर उन्हें लागू करने और उनके वित्त पोषण तक में भूमिका निभा सकते हैं.

क्या आप जानते हैं?
1977 में चेचक के उन्मूलन की घोषणा के बाद पोलियो दूसरा संक्रामक रोग है जिसके उन्मूलन का ऐलान किया गया

1 अरब 2011 में आखिरी मामले से पहले 4 साल में हर साल 17.2 करोड़ बच्चों को ओपीवी खुराक दी गई

इंडिया टुडे के पन्नों से

15 अक्तूबर, 2003
सेहत: फिर से काबू करने की कवायद

> भारतीय स्वास्थ्य अफसरों को 2001 में पोलियो के सिर्फ 268 मामलों के साथ विश्वास था कि देश 2002 तक पोलियो मुक्त हो जाएगा. मगर भारत ने 2002 में 1,600 मामलों के साथ अप्रत्याशित पोलियो महामारी देखी, जो सभी वैश्विक मामलों का 83 फीसद था

> इनमें से 65 फीसद यूपी से थे. ज्यादा चिंताजनक बात यह थी कि यह महामारी गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के पोलियो मुक्त रहे क्षेत्रों में फैल गई. लेबनान में भी यूपी का स्ट्रेन पाया गया. फिर सरकार ने 2003 में पोलियो के खिलाफ सबसे बड़े सामूहिक टीकाकरण अभियान की शुरुआत की, जिसमें 16.5 करोड़ बच्चों को डॉप पिलाने का लक्ष्य था.—सुप्रिया बेजबरुआ

> देश में पोलियो के उन्मूलन ने साबित कर दिया कि इतने बड़े देश में एक बीमारी को खत्म करना संभव है

> भारत की सफलता उन अन्य देशों के लिए एक आदर्श बन गई जहां पोलियो स्थानीय महामारी था. नाइजीरिया अब पोलियो मुक्त हो गया है; अफगानिस्तान और पाकिस्तान में लड़ाई जारी है

> स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को शामिल करके पोलियो टीकाकरण करने का भारत का अनुभव कोविड-19 के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम के दौरान देश के लिए उपयोगी साबित हुआ. भारत ने दुनियाभर में सबसे ज्यादा टीके लगाए

> इस परियोजना ने यह भी दिखाया कि कैसे अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान और सचिन तेंडुलकर सरीखे प्रभावशाली लोगों और मशहूर हस्तियों को टीबी, कैंसर और कोविड-19 जैसी बीमारियों के उन्मूलन के लिए शामिल किया जा सकता है

''जब तक यह पूरा नहीं हुआ, तब तक यह असंभव लग रहा था. ऐसा लग रहा था कि हमने काम करते हुए अपनी सांस रोक रखी थी. यह बेहद सावधानी से अंजाम दिया जाने वाला काम है. हमारे हर कदम की अहमियत होती है.''

डॉ. हामिद जाफरी

—डॉ. हामिद जाफरी, पूर्व परियोजना प्रबंधक, राष्ट्रीय पोलियो निगरानी परियोजना, डब्ल्यूएचओ इंडिया

Read more!