पंचायती राज : राजीव गांधी का वह काम जिसे पी.वी. नरसिंह राव ने पूरा किया
1984 में जबरदस्त चुनावी जनादेश से उत्साहित होकर राजीव गांधी ने 1989 में पंचायती राज और नगर पालिका विधेयक किया था

भारत की राजनैतिक संरचना 1980 के दशक के अंत तक व्यवस्थागत चुनौतियों से जूझ रही थी. ग्रामीण उत्थान के नाम पर शुरू किए गए विकास कार्यक्रम अक्षमताओं, भ्रष्टाचार और नीति और जमीनी स्तर के बीच एक स्पष्ट अलगाव की वजह से लड़खड़ा रहे थे. निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 40 में परिकल्पित पंचायती राज संस्थाएं (पीआरआई) काफी हद तक प्रतीकात्मक संस्थाएं थीं. वे अनियमित चुनावों, अपर्याप्त वित्तीय शक्तियों और अभिजात वर्ग के कब्जे से बाधित थीं. शहरी परिदृश्य भी उससे बेहतर न था, जिसमें नगरपालिकाएं राज्य के हस्तक्षेप, वित्तीय दिवालियापन और तदर्थ शासन की वजह से कमजोर थीं.
राजीव गांधी 1984 में एक जबरदस्त चुनावी जनादेश से उत्साहित होकर इसे बदलने की कोशिश कर रहे थे. अंतत: 1989 में पेश किए गए पंचायती राज और नगर पालिका विधेयक ने पीआरआई और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव रखा. इसमें नियमित चुनाव, हाशिए के समूहों के लिए आरक्षण और वित्तीय हस्तांतरण तय किया गया.
हालांकि ’80 के दशक के उत्तरार्ध की सियासी उथल-पुथल, जिसमें शाहबानो मामले और मंडल आयोग की रिपोर्ट से होने वाली प्रतिक्रियाएं शामिल थीं, ने गांधी की राजनैतिक पूंजी को कमजोर कर दिया. 1991 में उनकी हत्या ने दुखद रूप से उनके सुधारवादी एजेंडे को भी खत्म कर दिया.
यह उनके उत्तराधिकारी पी.वी. नरसिंह राव थे, जिन्होंने एक बिखरी संसद के जरिए इस विधेयक को आगे बढ़ाया. 73वां संशोधन अधिनियम दिसंबर 1992 में पारित किया गया था, जिसमें तीन-स्तरीय प्रणाली, वित्तीय हस्तांतरण और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रावधानों के साथ पीआरआई को संवैधानिक प्रावधानों के रूप में स्थापित किया गया था.
ग्यारहवीं अनुसूची में कृषि से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा तक पीआरआई को हस्तांतरित किए जाने वाले 29 कामों को सूचीबद्ध किया गया था. इसके साथ ही, 74वें संशोधन अधिनियम ने नगर पंचायतों, नगर परिषदों और नगर निगमों के गठन को जरूरी बनाकर शहरी शासन को फिर से परिभाषित किया. इन संस्थाओं को विकास की योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने का काम सौंपा गया, जिसमें बारहवीं अनुसूची में शहरी नियोजन, जल आपूर्ति और मलिन बस्तियों में सुधार समेत 18 काम सूचीबद्ध हैं.
ये संशोधन साथ में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के चरम को दर्शाते हैं. राज्य चुनाव आयोगों और राज्य वित्त आयोगों जैसी संस्थाओं को शामिल करके उन्होंने पक्का कर दिया कि ये निकाय केवल नाममात्र की संस्थाएं न हों. पीआरआई और नगरपालिकाएं ऐसे मंच बन गए जहां हाशिए पर पड़ी आवाजें राजनैतिक एजेंसी का इस्तेमाल कर सकती थीं. आज दस लाख से ज्यादा महिला प्रतिनिधि पीआरआई में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं.
फिर भी ये संशोधन चुनौतियों से खाली नहीं. वित्तीय हस्तांतरण एक बाधा है क्योंकि राज्य धन, कार्य और कार्यकर्ता साझा नहीं करते. इसके बावजूद, सफलता की ढेरों कहानियां हैं—केरल का विकेंद्रीकरण मॉडल और राजस्थान के विकेंद्रीकरण प्रयोग इस बात की मिसाल हैं कि राजनैतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक संकल्प के साथ क्या हासिल किया जा सकता है. इन संशोधनों के निर्माताओं ने यही तो सोचा था—शासन को शासितों के करीब लाना.
क्या आप जानते हैं?
पंचायती राज मंत्रालय ने पीआरआई के निर्वाचित प्रतिनिधियों की खातिर नेतृत्व/प्रबंधन विकास कार्यक्रम आयोजित करने के लिए छह आइआइएम, आइआइटी धनबाद और आईआरएमए के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. अब तक 38 महिलाओं समेत 193 प्रतिभागियों को प्रशिक्षण मिला
इंडिया टुडे के पन्नों से
अंक: 31 मई, 1989
खास रपट: गांवों के नाम पर चुनावी खेल
चार साल तक उलटबांसी के बाद राजीव गांधी के लिए अपनी छवि से बाहर निकलना नामुमकिन हो गया है. कई लोग, खासकर ग्रामीण उनकी सरकार को शहरी लोगों की सरकार मानते हैं. ऑपरेशन पंचायती राज राजीव और उनकी पार्टी को सियासी भविष्य बचाने और लोकसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को लामबंद करने का अच्छा मौका देता है.
इस रणनीति का एक और अहम फायदा यह भी है कि यह धार्मिक सीमाओं को भी पार करती है. प्रधानमंत्री के एक करीबी सहयोगी ने कहा, "यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हम हार नहीं सकते."
—प्रभु चावला
गांव का हरावल दस्ता
इन महिलाओं ने पितृसत्ता के अड़ंगों को लांघकर ग्रामीण भारत का चेहरा बदला. उनके प्रेरणादायक नेतृत्व से पता चलता है कि जमीनी स्तर का गवर्नेंस कैसे समुदायों को सशक्त बनाकर समावेशी विकास के मानक तैयार करता है
● आरती देवी (गंजम, ओडिशा)
पूर्व निवेश बैंकर आरती ने साक्षरता अभियान शुरू किए, लोक कला को पुनर्जीवित किया, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किया. शासन में पारदर्शिता के लिए यूएस इंटरनेशनल लीडरशिप प्रोग्राम में आमंत्रित होने वाली वे पहली भारतीय थीं.
● शहनाज खान (गढ़ाजान, हरियाणा)
एमबीबीएस छात्रा शहनाज ने रूढि़वादी मेवात के इलाके में लड़कियों को शिक्षा और स्वच्छता में सुधार के लिए प्रेरित किया.
● छवि राजावत (सोडा, राजस्थान)
इस एमबीए स्नातक ने जल की सुलभता, सड़क, सौर ऊर्जा, बैंकिंग और स्वच्छता में सुधार पर काम किया है. गांवों में बदलाव के लिए युवा भारत के दृष्टिकोण का प्रतीक यूएन पावर्टी कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया.
● मीनाक्षी गाडगे (मुखरा के, तेलंगाना)
शराब पर प्रतिबंध लागू किया. 1,00,000 पेड़ लगाने जैसी पर्यावरण-परियोजनाओं को लागू किया, गांव में सौर ऊर्जा की व्यवस्था की. टिकाऊ शासन के लिए कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित.
● मीना बहन (व्यारा, गुजरात)
गुजरात की पहली महिला सरपंच, जिन्होंने उस पंचायत का नेतृत्व किया जिसकी सभी सदस्य महिलाएं थीं. सड़कें बनवाईं, सरकारी योजनाओं को गांव के लिए सुलभ बनाया, शिक्षा और सामाजिक समावेश की वकालत की.
● राधा देवी (भदसिया, राजस्थान)
खुद कक्षा 5 की पढ़ाई छोड़ने वाली राधा ने एनजीओ के सहयोग से स्कूल में नामांकन बढ़ाया, ड्रॉपआउट दर को कम किया. आरटीई कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया.