साइलेंट वैली मूवमेंट : जब केरल में पर्यावरण बचाने को उठी आवाज के साथ पूरा देश एकजुट हुआ
एक पनबिजली परियोजना के विरोध में पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, कवियों और पत्रकारों ने मिलकर जन जागरूकता अभियान चलाया और भारत के अब बची-खुची उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक, केरल की साइलेंट वैली को बचाने में कामयाब रहे

पर्यावरण सक्रियता, कविता, पत्रकारिता और संपादकों की ओर से लिखे गए हजारों पत्रों ने 'विकास’ के नाम पर हो रहे अंधाधुंध नुक्सान के खिलाफ लोगों को जागरूक बना दिया. इससे केरल के पलक्कड़ जिले में पश्चिमी घाट के नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व के बीच स्थित एक प्राचीन वर्षावन साइलेंट वैली को खत्म होने से बचाया जा सका. यह वर्षावन कई लुप्तप्राय जीवों और पौधों की कई दुर्लभ प्रजातियों का घर है और भारत के आखिरी बचे उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में से एक है.
इसे बचाने में लंबे चले साइलेंट वैली मूवमेंट का बहुत बड़ा योगदान रहा. 1970 के दशक के शुरू में केरल राज्य विद्युत बोर्ड (केएसईबी) ने कुंथिपुझा नदी पर पनबिजली के लिए बांध बनाने का प्रस्ताव रखा था. इस बांध के बनने से मुक्चय वन क्षेत्र का 8.3 वर्ग किलोमीटर हिस्सा पानी में डूब जाता. केरल शास्त्र साहित्य परिषद (केएसएसपी) के नेतृत्व में इसके खिलाफ एक जोरदार आंदोलन शुरू हुआ जिसमें पर्यावरण कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों और जीवविज्ञानियों ने पूरा समर्थन दिया.
न्यूयॉर्क जूलॉजिकल सोसाइटी के वैज्ञानिक स्टीवन ग्रीन और सरीसृप विशेषज्ञ रोमुलस व्हिटेकर ने बताया कि बांध परियोजना से शेर जैसी पूंछ वाले मकाक लंगूरों की स्वदेशी प्रजातियों को गंभीर नुक्सान होगा. मकाक बाद में आंदोलन का प्रतीक बन गए. केंद्रीय पर्यावरण नियोजन समन्वय समिति (एनसीईपीसी) की एक टास्क फोर्स ने 1976 में परियोजना को खत्म करने की सिफारिश की, साथ ही नुक्सान को कम करने के लिए कुछ 'सुरक्षा उपायों’ का सुझाव भी दिया. लेकिन आंदोलनकारी इससे संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने आंदोलन रोकने की बजाए इसे और तेज कर दिया.
साइलेंट वैली के मुद्दे को 1970 के दशक में सतीश चंद्रन नायर, प्रो. जॉन जैकब और एस. प्रभाकरन नायर जैसे कार्यकर्ताओं ने उठाया. इन लोगों ने आसपास के गांवों में जंगलों के संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाई और युवाओं को एकजुट किया. अखबारों और पत्रिकाओं में छपे लेखों ने लोगों पर बड़ा असर डाला. इसके बाद लोगों ने राष्ट्रीय समाचार पत्रों में पत्र लिखे और वृक्षों पर केंद्रित कविताएं लिखने वाले कवियों’ ने सार्वजनिक रूप से अपनी कविताएं पढ़ीं. केएसएसपी ने परियोजना के खिलाफ हजारों लोगों के हस्ताक्षर जुटाए.
इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, जब इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आइयूसीएन) ने भारत सरकार से इस परियोजना पर पुनर्विचार करने की अपील की. इसके बावजूद मोरारजी देसाई की सरकार ने 1979 में परियोजना को आगे बढ़ाने का फैसला किया.
लेकिन मीडिया के जागरूकता अभियान से सरकार पर दबाव बना और वह इस पर फिर से विचार करने को मजबूर हुई. केंद्र और राज्य सरकार ने 1980 में वैज्ञानिक एम.जी.के. मेनन की अध्यक्षता में एक जांच समिति बनाई. इस समिति ने परियोजना को रोकने की सिफारिश की. साइलेंट वैली को 1981 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया और जलविद्युत परियोजना को आखिरकार 1983 में रद्द कर दिया गया.
कुदरत के कानून
● चिपको आंदोलन के साथ-साथ इस आंदोलन ने भारत में पर्यावरण सक्रियता की एक नई मिसाल पेश की और दिखाया कि किस प्रकार आम लोग भी अहिंसक तरीके से सरकारों पर दबाव डालकर पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं
● इसने यह सिखाया कि शहरी जरूरतों के लिए प्रकृति की कीमत पर होने वाले अनियंत्रित विकास से मानवता की भलाई नहीं हो सकती
● ग्रीनफील्ड परियोजनाओं में मुख्य हितधारकों के रूप में स्थानीय समुदायों को शामिल करना आज भी नीति-निर्माण की बुनियाद बना हुआ है.