अटल बिहारी वाजपेयी की सोच से कैसे वजूद में आया देश की सड़कों का 'बैकबोन' स्वर्णिम चतुर्भुज?

'हमारे देश में सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें हैं?' अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर विपक्ष के तेजतर्रार नेता के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारत के खस्ताहाल राजमार्गों की तीखी आलोचना करते हुए चुटकी लेते थे. शायद यही वजह थी कि 1999 में प्रधानमंत्री पद संभालने के तुरंत बाद उनके पहले निर्देशों में से एक भारत की राजमार्ग समस्याओं से सीधे निबटना था

अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में सड़क परिवहन मंत्रालय की एक कॉन्फ्रेंस में
अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में सड़क परिवहन मंत्रालय की एक कॉन्फ्रेंस में

''हमारे देश में सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़कें हैं?'' अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर विपक्ष के तेजतर्रार नेता के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भारत के खस्ताहाल राजमार्गों की तीखी आलोचना करते हुए चुटकी लेते थे. शायद यही वजह थी कि 1999 में प्रधानमंत्री पद संभालने के तुरंत बाद उनके पहले निर्देशों में से एक भारत की राजमार्ग समस्याओं से सीधे निबटना था.

वाजपेयी ने सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) को देश के सबसे भीड़भाड़ वाले राजमार्ग खंडों की पहचान करने और उनका दीर्घकालिक समाधान तैयार करने का काम सौंपा. इसका नतीजा स्वर्णिम चतुर्भुज (जीक्यू) परियोजना के रूप में निकला, जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नै को चार लेन वाले राजमार्गों के 5,846 किलोमीटर लंबे नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने की एक दूरदर्शी पहल थी.

यही महत्वाकांक्षी योजना इस परियोजना की नींव बनी. राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी) आधुनिक भारत में सबसे बड़ी सड़क इन्फ्रास्ट्रक्चर पहल है. जीक्यू परियोजना भारत के राजमार्गों के लिए महत्वपूर्ण क्षण साबित हुई. इसने देश के नीति निर्माताओं और इंजीनियरों को यह सीख दी कि बड़े-बड़े सड़क अनुबंधों को कैसे पूरा किया जाए, धन कैसे जुटाया जाए, नई इंजीनियरिंग तकनीक को कैसे शामिल किया जाए और सबसे बढ़कर, परियोजना को योजना के अनुसार चरणों में कैसे पूरा किया जाए.

इस दौरान कई चीजें पहली बार हुईं: बिटुमेन के लिए हॉट मिक्स प्लांट जैसी उन्नत निर्माण तकनीक, तथा सुरक्षा के लिए सड़क के बीच और किनारे पर आधुनिक गार्डरेलिंग. इंजीनियरिंग समाधानों के लिए पहली बार अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंटों को काम पर लगाया गया, और स्टैंडर्डाइज्ड रोड साइनेज राजमार्ग डिजाइन का अभिन्न अंग बन गए. इस परियोजना ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को भी सशक्त बना दिया, जिससे आज यह एक मजबूत सड़क निर्माण संगठन बनने की राह पर है.

भारत की अर्थव्यवस्था और कनेक्टिविटी पर जीक्यू का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा. इसने गाड़ियों की औसत रफ्तार को 30-40 किमी प्रति घंटे से बढ़ाकर 60-80 किमी प्रति घंटे करके प्रमुख शहरों के बीच सफर का वक्त कम कर दिया. इससे न केवल लॉजिस्टिक्स लागत में कमी आई बल्कि व्यापार, वाणिज्य और मैन्युफैक्चरिंग को भी बढ़ावा मिला. द इकोनॉमिक जर्नल में प्रकाशित 2016 के एक अध्ययन में बताया गया कि कैसे जीक्यू ने ''राजमार्ग नेटवर्क के साथ जिलों में संगठित मैन्युफैक्चरिंग में महत्वपूर्ण वृद्धि को प्रोत्साहित किया.'' इसकी वजह से एक दशक में उत्पादन 49 फीसद बढ़ गया.

इस परियोजना की सफलता ने देश में चालू राजमार्ग परिवर्तन के लिए आधार तैयार किया. मूल जीक्यू विजन 2012 तक पूरी तरह से साकार हो गया था, जिसमें एनएचडीपी के दूसरे चरण के दौरान महत्वपूर्ण डायगोनल रूट को जोड़ना भी शामिल था. पिछले कुछ साल में पांच और चरण लागू किए गए हैं, जिससे इस नेटवर्क का और विस्तार और आधुनिकीकरण हुआ है. नरेंद्र मोदी सरकार ने सीआरएफ को केंद्रीय सड़क और बुनियादी ढांचा कोष (सीआरआईएफ) में पुनर्गठित करके इस विरासत को आगे बढ़ाया है. इसका प्रबंधन अब वित्त मंत्रालय करता है.

2014 से सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक, देश में अत्याधुनिक राजमार्गों के निर्माण और पुरानी सड़कों को उन्नत करने में तेजी आई है. जब केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2017 में सात लाख करोड़ रुपए के राजमार्ग निर्माण कार्यक्रम भारतमाला परियोजना को मंजूरी दी तो इसके प्रस्ताव में जीक्यू को एक प्रेरणा के रूप में साफ तौर पर स्वीकार किया गया—यह उस दूरदर्शी दृष्टिकोण का सम्मान था जिसने भारत में सड़कों के बुनियादी ढांचे में क्रांति ला दी.

- अभिषेक जी. दस्तीदार

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क्या आप जानते हैं?

जीक्यू कॉन्ट्रेक्ट मैनेजमेंट मॉडल ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जो अपना 80 फीसद लक्ष्य पूरा कर चुकी है.

इंडिया टुडे के पन्नों से

अंक: 3, नवंबर 1999
जाल बिछाने की जद्दोजहद

● स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना 6,000 किमी तक फैली है, 1,000 किमी पहले ही तैयार हो चुकी है. टास्क फोर्स परियोजना में कुछ चुनिंदा हिस्सों को छोड़कर फिलहाल छह लेन बनाने का काम छोड़ दिया गया है. अंतिम लागत अनुमान: 50,000 करोड़ रुपए. —शेफाली रेखी

विकास का पथ

> स्वर्णिम चतुर्भुज ने यात्रा समय को काफी कम करके और माल ढुलाई की दक्षता में सुधार करके रसद क्षेत्र में क्रांति ला दी

> इसने निवेश आकर्षित किया और संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया

> मीडियन, रेलिंग और बेहतर सड़क डिजाइन जैसे सुरक्षा नवाचारों ने दुर्घटनाओं को कम किया

> इसके सफल क्रियान्वयन ने भारतमाला और प्रगति जैसी पहलदमियों को प्रेरित किया, जिससे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को पूरा करते समय झटपट फैसला करने के लिए संस्थागत प्रणाली बनाई गई

> जीक्यू परियोजना के दौरान शुरू की गई आधुनिक निर्माण तकनीक और सामग्री ने भारत में सड़क निर्माण के लिए मानक स्थापित किए

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