अग्नि - I : जब मिसाइल से सुरक्षित हुआ भारत का आसमान

भारत 1989 में मध्यम दूरी की अपनी पहली बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च करके कुलीन देशों के क्लब में शामिल हो गया. अग्नि-I ने क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने की बुनियाद रखी.

पूर्व राष्ट्रपति और अग्नि- I के पीछे का दिमाग माने जाने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 1997 में दिल्ली के अपने आवास पर
पूर्व राष्ट्रपति और अग्नि- I के पीछे का दिमाग माने जाने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम 1997 में दिल्ली के अपने आवास पर

भारत की पहली मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएम) अग्नि- I देश की सामरिक रक्षा के विकास में निर्णायक पल थी. अग्नि- I बरसों के प्रौद्योगिकीय नवाचार और विकास का चरमोत्कर्ष थी. इसका विकास इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) के तहत हुआ और इसकी शुरुआत हुई थी 1983 में. इसका सफल परीक्षण 22 मई, 1989 को ओडिशा के चांदीपुर स्थित अंतरिम परीक्षण रेंज से किया गया, जो आइआरबीएम प्रणालियां विकसित करने में सक्षम देशों के चुनिंदा समूह में भारत के प्रवेश का संकेत था.

अग्नि-I  मूलत: दो-चरण की मिसाइल के रूप में विकसित की गई थी. बाद में इसे कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल पृथ्वी और अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली एसएलवी-3 की उन्नत ठोस-ईंधन प्रणालियों की प्रौद्योगिकियों को जोड़कर एक-चरण की बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में ढाला गया. अग्नि-I को रेल-आधारित प्लेटफॉर्म या रोड-मोबाइल ट्रांसपोर्टर इरेक्टर लॉन्चर (टीईएल) से लॉन्च किया जा सकता है.

अग्नि- I 700 से 1,200 किमी की दूरी तक मार कर सकती थी. इसे क्षेत्रीय दुश्मनों के खिलाफ भयप्रतिरोधक के रूप में और खासकर पाकिस्तान और चीन के साथ बदलते सुरक्षा परिदृश्य के संदर्भ में विकसित किया गया था. यह मिसाइल एटमी युद्धास्त्र समेत 1,000 किलोग्राम तक भार वहन कर सकती है. अपनी ठोस-ईंधन प्रणोदन प्रणाली के बूते यह तरल-ईंधन मिसाइलों के मुकाबले ज्यादा तेजी से लॉन्च करने के लिए तैयार और ज्यादा लंबे भंडारण क्षमता से लैस है.

अग्नि-I की कामयाबी ने दिखा दिया कि भारत के पास टेक्नोलॉजी की पाबंदियों और विदेशी आपूर्तिकताओं पर निर्भरता से उबरकर स्वदेशी तरीके से परिष्कृत मिसाइल प्रणालियां निर्मित करने की क्षमता है.

अग्नि-I के सफल प्रक्षेपण से न केवल भारत की प्रतिरक्षा तैयारियां मजबूत हुईं बल्कि देश विश्वसनीय एटमी शक्ति के रूप में भी स्थापित हुआ. 1980 के दशक के आखिरी वर्षों के भूराजनीतिक परिप्रेक्ष्य में भारत एटमी शक्तिसंपन्न पड़ोसियों पाकिस्तान और चीन की तरफ से अहम सुरक्षा चुनौतियों से दो-चार था. 1990 के दशक के दौरान सटीकता के लिहाज से पूर्ण अग्नि-I ने नजदीकी सीमाओं के पार ताकत के प्रक्षेपण की क्षमता प्रदान की और इस तरह सामरिक गहराई सुनिश्चित की और भयप्रतिरोधक शक्ति में इजाफा किया.

अग्नि-I उस सबकी शुरुआत भर थी जो आगे चलकर भारत के सबसे अहम मिसाइल परिवारों में से एक साबित हुआ. अग्नि-II, अग्नि-III, अग्नि-IV और अग्नि-V सहित बाद के संस्करणों के साथ दूरी, भार वहन क्षमता और टेक्नोलॉजी का परिष्कार बढ़ते गए. 2018 तक भारत ने अग्नि-V विकसित कर ली, जो 5,000 किमी से भी ज्यादा अंतरमहाद्वीपीय दूरी तक मार कर सकने वाली तीन-चरण की मिसाइल है और यूरोप तथा एशिया-प्रशांत समेत दूसरे भूभागों के काफी भीतर के निशानों पर हमला करने में सक्षम है.

अग्नि मिसाइलों का विकास प्रोपल्शन प्रणालियों, नौवहन, री-एंट्री वीहिकल टेक्नोलॉजी में नवाचार और एडवांस्ड कंपोजिट मटीरियल्स के बूते किया गया.

इस मिसाइल कार्यक्रम से वैश्विक मंच पर भारत की सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ी. 1989 के परीक्षण की अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने आलोचना की मगर इसने मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) सरीखी प्रतिबंधात्मक व्यवस्थाओं के बीच अपनी संप्रभुता की रक्षा करने की भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया.

क्या आप जानते हैं?

पारंपरिक युद्धास्त्र के साथ संचालन के लिए तैनात अग्नि- I अफगानिस्तान सहित दक्षिण एशिया में कहीं भी बड़े सैन्य प्रतिष्ठान को तबाह कर सकती है. दक्षिण और मध्य चीन स्थित बड़े निशाने भी इसकी मारक दूरी क्षमता के भीतर हैं

तरकश के तीर

● भारत का मध्यम और लंबी दूरी का मिसाइल कार्यक्रम 1989 के बाद काफी परिपक्व हुआ. इसी के नतीजतन आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई और अन्य प्रतिरक्षा प्रणालियों का आपस में समन्वय हुआ

● भारत के पास ब्रह्मोस, पृथ्वी और अग्नि के लंबी दूरी वाले संस्करणों समेत बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों की पूरी एक लंबी शृंखला मौजूद है

● यह भारत के रक्षात्मक रवैये से परिवर्तनशील सामरिक भय प्रतिरोधकों वाले रुख की ओर बढ़ने के रणनीतिक बदलाव का प्रतीक है

● स्वदेशी अग्नि-I ने एंटी सैटेलाइट हथियारों, हाइपरसोनिक प्रणालियों, मिसाइल प्रतिरक्षा कवच सरीखी दूसरी परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त किया.

● अग्नि शृंखला भारत की सामरिक प्रतिरक्षा का आधार है

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