भारतीयों की पहचान कैसे बन गया आधार कार्ड?
दुनिया की सबसे बड़ी बायोमेट्रिक आईडी प्रणाली 'आधार’ ने कल्याणकारी डिलीवरी को सुव्यवस्थित कर वित्तीय समावेशन और सुरक्षा को बढ़ावा दिया

वर्ष 2009 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआइडीएआई) की स्थापना देश के डिजिटल और गवर्नेंस के क्षेत्र में एक बेहद खास लम्हा था. इसके मूल में थी देश की बढ़ती आबादी के लिए 12 अंकों की विशिष्ट पहचान संख्या आधार. इसे पहचान सत्यापन की खातिर जोड़ने के लिए बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय डेटा को मिलाकर एकल, मजबूत प्रणाली के रूप में डिजाइन किया गया था. आज आधार दुनिया की सबसे बड़ी बायोमीट्रिक आइडी प्रणाली बन गया है और नागरिकों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के फायदों को पहुंचाने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है.
आधार के लिए शुरुआती नजरिया प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान आकार ले चुका था. इरादा साफ था—डुप्लीकेट और नकली पहचान को खत्म कर पहचान सत्यापन को आसान और किफायती बनाना, जिससे सामाजिक और कल्याणकारी योजनाओं का लक्षित वितरण संभव हो सके.
यूआइडीएआई का नेतृत्व इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को सौंपा गया. नीलेकणि को एक विचार को हकीकत में तब्दील करने का श्रेय दिया जाता है. उनके शब्दों में, "मेरे पास सिर्फ एक पेज था, जिस पर लिखा था, 'हर भारतीय को एक विशिष्ट पहचान पत्र दें.’ उसमें यह नहीं बताया गया था कि कैसे." आधार के पास 2010 तक एक ब्रांड नाम, लोगो और रोलआउट रणनीति थी, जिसमें नीलेकणि ने पद छोड़ने से पहले 60 करोड़ विशिष्ट पहचान पत्रों का महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर रखा था.
हालांकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के तहत आधार के बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन में तेजी लाकर इस परियोजना को निर्णायक बढ़ावा दिया गया. आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) अधिनियम 2016 में पारित किया गया, जिसने सुशासन में इसकी भूमिका को मजबूत किया. सरकार ने सब्सिडी, पेंशन और रोजगार लाभ जैसी योजनाओं से आधार को जोड़कर पारदर्शिता बढ़ाई और लीकेज को कम किया.
आधार के फायदों के बावजूद उसे खासकर डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के मामले में नुक्ताचीनी झेलनी पड़ रही है. एक ओर जहां सुप्रीम कोर्ट ने इसकी संवैधानिकता को बरकरार रखा, वहीं उसने सरकारी सब्सिडी से जुड़े न होने की स्थिति में बैंक खाते खोलने, मोबाइल नंबर हासिल करने और स्कूल में दाखिले जैसी सेवाओं के लिए आधार के अनिवार्य रूप से इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया.
इसके बावजूद वित्तीय इकोसिस्टम में आधार का एकीकरण निर्णायक रहा है. आधार भुगतान ब्रिज इसे बैंक खातों से जोड़कर डीबीटी को सक्षम बनाता है, जिससे कल्याणकारी योजनाओं की डिलीवरी सुव्यवस्थित होती है. इस बीच, आधार एनेबल्ड पेमेंट सिस्टम लोगों को सुरक्षित ढंग और आसानी से बुनियादी बैंकिंग करने में सक्षम बनाता है.
अक्टूबर 2024 तक 138 करोड़ आधार जारी किए जाने के साथ ही इसका असर बेजोड़ है. आधार गवर्नेंस में अंतराल को पाटकर, नागरिकों को सशक्त बनाकर और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देकर देश के डिजिटल परिवर्तन की आधारशिला बना है. अलबत्ता इसे व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा और नवाचार को लगातार संतुलित करते रहना होगा.
क्या आप जानते हैं?
विश्व बैंक के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल रोमर ने आधार को 'दुनिया का सबसे परिष्कृत आइडी कार्यक्रम’ बताया है
"योजना एक विशिष्ट पहचान संख्या देने की है जिसका उपयोग आधार मंच के रूप में किया जा सकता है जो सभी एजेंसियों को सेवाएं मुहैया कराने में सक्षम बनाता है."
—मोंटेक सिंह अहलूवालिया,
तत्कालीन उपाध्यक्ष, योजना आयोग, 2009 में आधार के बारे में इंडिया टुडे से बातचीत में
लक्षित लाभ
● आधार कमजोर वर्गों के लिए उनकी पहचान का एकल बिंदु बनकर प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) में लीकेज को रोक रहा है
● वित्त वर्ष 2024 में 10 अरब से ज्यादा ऐसे लेन-देन किए गए, जिससे सामाजिक कल्याण लाभों में 6.9 लाख करोड़ रुपए हस्तांतरित किए गए
● देश में बड़ी संख्या में प्रवासी आबादी आधार सक्षम भुगतान प्रणाली इस्तेमाल करती है. यह उन्हें सुरक्षित ढंग से भुगतान भेजने और हासिल करने में मदद कर रही है
● सितंबर 2024 में 23,600 करोड़ रुपए के 20.2 करोड़ ऐसे लेन-देन किए गए.