अब अकेले हैंडपंप स्टार्ट करना हुआ संभव; स्टोन क्रशर का काम छोड़ कैसे बनाया मॉडर्न सिंचाई पंप
इस मॉडर्न पंप का बहुत प्रचार नहीं हुआ है, इसलिए आसपास के इलाके के किसान ही इसका इस्तेमाल करते हैं. मगर यह उपकरण किसानों के फायदे की चीज है

इरिगेशन या सिंचाई के पंपों को पहली बार स्टार्ट करना किसानों के लिए मुसीबत का काम होता है. इसमें अमूमन तीन लोग लगते हैं. मगर चनपटिया के नंदेश्वर शर्मा ने एक ऐसा उपकरण बनाया है, जिसकी मदद से एक अकेला आदमी इसे आसानी से स्टार्ट कर सकता है.
पश्चिमी चंपारण के चनपटिया बाजार के चुहड़ी गांव की एक गली में नंदेश्वर शर्मा का बड़ा-सा गैराज है. वहां अच्छी क्वालिटी के लोहे के छोटे-छोटे हैंडपंप जैसे उपकरण और उसके टुकड़े पड़े हैं. यह नंदेश्वर शर्मा उर्फ नंदू शर्मा के काम का पीक सीजन है.
उन्हें ऐसे ढेर सारे उपकरण बना लेने हैं क्योंकि जैसे ही इस इलाके में गन्ने की सिंचाई का मौसम शुरू होगा, गैराज में इस उपकरण को लेने वालों की भीड़ लग जाएगी. इससे पहले वे माल तैयार करके रखना चाहते हैं.
अपनी कहानी बताते हुए शर्मा कहते हैं, ''पहले मैं स्टोन क्रशर का काम करता था. जब वह काम बंद हो गया तो मेरे पास रोजगार का संकट आ गया. खेती की थोड़ी जमीन थी, उसमें यह समझ आता था कि सिंचाई पंप को स्टार्ट करने में काफी दिक्कत होती है. तीन-चार लोग लगते हैं, गोबर-माटी देना पड़ता है. इसका कारण यह कि बोरिंग जब नहीं चल रही होती है तो उसका वाटर लेवल नीचे चला जाता है. इसको ठीक कैसे किया जाए, यह मैं सोचने लगा.''
वे कहते हैं, ''फिर मुझे समझ आया कि हैंडपंप का वाटर लेवल तो नहीं गिरता है, अगर यही टेक्नीक इसमें भी इस्तेमाल करें तो इसका भी समाधान हो सकता है. फिर मैंने इसको बनाया, यह हैंडपंप जैसी मशीन ही है. इसको पंप के मुंह पर लगा देते हैं और हैंडल चलाते हैं तो एक आदमी से पानी का लेवल ऊपर आ जाता है. यह लगा रहे तो पानी का लेयर कभी नीचे नहीं भागता.''
शर्मा बताते हैं कि उन्होंने 2008 में इस पंप को बनाया था, तभी से इलाके के किसान इस मशीन को लेने उनके दरवाजे पर आने लगे. उनके पास दो तरह के पंप हैं. इन्हें बनाने में दो से ढाई हजार रुपए लगते हैं, वे साढ़े तीन और चार हजार में इसे बेचते हैं. राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान ने उनकी इस खोज को पहचाना और इसे प्रमाणपत्र दिया. प्रतिष्ठान की मदद से शर्मा को अपनी इस खोज का पेटेंट भी मिल गया है.
मगर उनके लिए एक दिक्कत है कि पेटेंट मिलने के बावजूद इस इलाके के कई लोग उनकी इस खोज की नकल कर ऐसा ही उपकरण बनाकर बेचने लगे हैं. शर्मा कहते हैं, ''ऐसे लोग सस्ता उपकरण बनाने के चक्कर में कमजोर लोहा इस्तेमाल करते हैं. इससे क्वालिटी भी खराब होती है. इस उपकरण का नाम भी. सरकार को इस बारे में कुछ करना चाहिए.''
शर्मा के चार बच्चे हैं. चारों ने अच्छी पढ़ाई की है. एक बेटा उनके साथ रहता है और इस काम को प्रचारित करने में उनकी मदद करता है. एक बेटी बीपीएससी की तैयारी कर रही है. वही उनके उपकरण का कैटलॉग तैयार कर रही है. शर्मा पिछले दिनों हार्ट अटैक का शिकार हो गए, जिसके कारण उनका यह काम पटरी से थोड़ा उतरने लगा था. पूंजी इलाज में खर्च हो गई.
मगर अब वे फिर से स्वस्थ होकर इस काम में जुटे हैं. उनके इस उपकरण का बहुत प्रचार नहीं हुआ है, इसलिए आसपास के इलाके के किसान ही इसका इस्तेमाल करते हैं. मगर यह उपकरण किसानों के फायदे की चीज है. पूरे देश के किसान इसे हाथोहाथ ले सकते हैं.
नवाचार
इस मशीन की तकनीक काफी सरल है. यह हैंडपंप जैसा उपकरण है, उसी तरह यह पानी के लेवल को रोक कर रखता है और हैंडपंप का हैंडल नीचे गए पानी को ऊपर लाने में मददगार साबित होता है.
सफलता का मंत्र
हर मुसीबत का एक समाधान होता है. युक्तिपूर्वक ढूंढने से जरूर मिलता है.
पुरस्कार
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान का प्रमाणपत्र मिला. पेटेंट भी कराया