लाखों नाउम्मीद जोड़ों को संतान सुख दिलाने वाले अजय मुर्डिया ने कैसे की थी इंदिरा आईवीएफ की शुरुआत?
इंदिरा आईवीएफ के फाउंडर डॉ. अजय मुर्डिया बड़ी उपलब्धि इस बात को मानते हैं कि निस्संतानता को लेकर जो सामाजिक भेदभाव की स्थिति थी, वह खत्म हो गई और लोग इसे मेडिकल चुनौती मानकर समाधान की तरफ बिना किसी हिचकिचाहट के बढ़ रहे हैं

यह कहानी शुरू होती है 46 साल पहले अगस्त, 1978 से. राजस्थान के उदयपुर में 12 नवंबर, 1952 को जन्मे डॉ. अजय मुर्डिया का पुरुषों के प्रजनन से संबंधित विषय पर एक रिसर्च पेपर विश्व प्रतिष्ठित जर्नल 'द लैंसेट' में प्रकाशित हुआ. उसी साल ब्रिटेन में पैट्रिक स्टेप्टो, रॉबर्ट एड्वर्ड्स और जिन पर्डी की तिकड़ी ने इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक के जरिए दुनिया के पहले टेस्ट ट्यूब बेबी लुइस ब्राउन को जन्म दिलाने में सफलता हासिल की थी.
डॉ. मुर्डिया को वहीं से यह तकनीक भारत में लाने और इसे जन-जन तक पहुंचाने की प्रेरणा मिली. पर ऐसी विशिष्ट तकनीक को उन दिनों भारत तक लाना आसान न था. आर्थिक पक्ष तो एक बात थी, सामाजिक पहलुओं पर भी डॉ. मुर्डिया को संघर्ष करना था. खैर, 1988 में उन्होंने उदयपुर में अपने पहले इंदिरा इनफर्टिलिटी क्लीनिक ऐंड रिसर्च सेंटर की शुरुआत की. वह दौर ऐसा था जब शादीशुदा जोड़े के बच्चे न होने के लिए सिर्फ पत्नी को ही जिम्मेदार माना जाता था.
इसी सोच को चुनौती देने के लिए उन्होंने 'निस्संतानता भारत छोड़ो' अभियान की शुरुआत की. संतोष की गहरी सांस लेते हुए वे याद करते हैं, ''इस अभियान के तहत मैंने 25 राज्यों के 752 शहरों में 3,242 फ्री इनफर्टिलिटी कंसल्टेशन कैंप किए और 75,000 से ज्यादा जोड़ों की मदद की.''
इस अभियान के दौरान डॉ. मुर्डिया को समझ आया कि निस्संतानता की समस्या कितनी व्यापक है. आईवीएफ बेशक इसका समाधान था लेकिन इसकी सबसे बड़ी बाधा यह थी कि उस समय आईवीएफ में औसतन 5 से 6 लाख रुपए का खर्च आता था. इसलिए यह समृद्ध परिवारों तक ही सीमित था. वे बताते हैं, ''आईवीएफ की सुविधा सिर्फ बड़े शहरों में ही उपलब्ध थी. इसलिए गांव या छोटे शहर के लोगों के लिए वहां जाकर आईवीएफ कराने में और भी ज्यादा पैसे खर्च हो रहे थे.''
डॉ. मुर्डिया ने 2011 में इंदिरा आईवीएफ की शुरुआत की. उन्हीं के शब्दों में, ''हमने आईवीएफ के खर्च को 5-6 लाख रुपए से घटाकर 1.5 से 2 लाख रुपए तक ला दिया. इससे आर्थिक बाधा खत्म हुई. अब भौगोलिक बाधा दूर करने के लिए हमने छोटे शहरों का रुख किया. आज हमारे 155 से ज्यादा सेंटर हैं. इनमें 70 फीसदी से ज्यादा टियर-2 और टियर-3 के शहरों में हैं.''
वे कहते हैं कि पूरी प्रक्रिया को इस तरह से स्टैंडर्डाइज किया गया कि पहले की आईवीएफ प्रक्रियाओं के मुकाबले इंदिरा आईवीएफ प्रक्रिया में बेहतर परिणाम आने लगे. डॉ. मुर्डिया के मुताबिक, इंदिरा आईवीएफ की सफलता दर लगभग 74 प्रतिशत है और इसने अब तक 1.6 लाख से ज्यादा दंपतियों के माता-पिता बनने के सपने को पूरा करने में मदद की है.
आईवीएफ का खर्च कम करने के लिए डॉ. मुर्डिया ने 'क्लोज्ड वर्किंग चैंबर' और 'क्लाउड मॉनिटरिंग सिस्टम' जैसी तकनीक पर आयात निर्भरता कम करने की ठानी. सरकार के साथ मिलकर उन्होंने स्थानीय स्तर पर टेक्नोलॉजी विकसित की. आईवीएफ में स्किल्ड लोगों की कमी दूर करने के लिए उन्होंने इंदिरा फर्टिलिटी एकेडमी की स्थापना की. इससे इस क्षेत्र में मैनपावर सस्ता हुआ और आईवीएफ की पूरी लागत कम हुई.
वे कहते हैं, ''हमने जब इनोवेशन के माध्यम से आईवीएफ को किफायती बनाया तो इससे भारत के पूरे आईवीएफ बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और दूसरी जगहों पर भी आईवीएफ शुल्क को कम किया गया.''
वे बड़ी उपलब्धि इस बात को मानते हैं कि निस्संतानता को लेकर जो सामाजिक भेदभाव की स्थिति थी, वह खत्म हो गई और लोग इसे मेडिकल चुनौती मानकर समाधान की तरफ बिना किसी हिचकिचाहट के बढ़ रहे हैं.
नवाचार
आईवीएफ का खर्च कम करने के लिए डॉ. मुर्डिया ने 'क्लोज्ड वर्किंग चैंबर' और 'क्लाउड मॉनिटरिंग सिस्टम' जैसी तकनीक पर आयात निर्भरता कम करने की ठानी. इसके लिए सरकार के साथ मिलकर उन्होंने स्थानीय स्तर पर टेक्नोलॉजी विकसित करने का काम किया.
सफलता का मंत्र
गरीब सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति के कारण माता-पिता बनने के सुख से क्यों वंचित रह जाएं? यह उनका अधिकार होना चाहिए, विशेषाधिकार नहीं.
शौक
घूमना. अब तक 50 से ज्यादा देशों की यात्रा कर चुके हैं और बचे हुए देशों में जाना चाहते हैं. क्रिकेट देखने के भी शौकीन.